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श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने 23 जुलाई, 2019 को लोकसभा में कोड ऑन वेजेज़, 2019 को पेश किया। यह कोड उन सभी रोजगार में वेतन और बोनस भुगतान को रेगुलेट करता है जहां कोई उद्योग चलाया जाता है, व्यापार किया जाता है या मैन्यूफैक्चरिंग की जाती है। कोड निम्नलिखित चार कानूनों का स्थान लेता है : (i) वेतन का भुगतान एक्ट, 1936, (ii) न्यूनतम वेतन एक्ट, 1948, (iii) बोनस का भुगतान एक्ट, 1965, और (iv) समान पारिश्रमिक एक्ट, 1976।
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कवरेज: कोड सभी कर्मचारियों पर लागू होता है। केंद्र सरकार रेलवे, खनन और तेल क्षेत्रों इत्यादि से जुड़े रोजगार के वेतन संबंधी फैसले लेगी। राज्य सरकारें अन्य रोजगारों के लिए फैसले लेंगी।
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वेज में पारिश्रमिक, भत्ते या मौद्रिक परिभाषा में व्यक्त होने वाले सभी घटक शामिल हैं। इसमें कर्मचारियों को मिलना वाला बोनस या यात्रा भत्ता, इत्यादि शामिल नहीं हैं।
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फ्लोर वेज: कोड के अनुसार, केंद्र सरकार श्रमिकों के जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए एक फ्लोर वेज नियत करेगी। इसके अतिरिक्त वह विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिए भिन्न-भिन्न फ्लोर वेज तय कर सकती है। फ्लोर वेज तय करने से पहले केंद्र सरकार केंद्रीय सलाहकार बोर्ड की सलाह ले सकती है और राज्य सरकारों से परामर्श कर सकती है।
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केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित मिनिमम वेज राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन फ्लोर वेज से अधिक होना चाहिए। अगर केंद्र या राज्य सरकार द्वारा नियत मौजूदा मिनिमम वेज फ्लोर वेज से अधिक है तो वे मिनिमम वेज को घटा नहीं सकतीं।
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मिनिमम वेज का निर्धारण: कोड नियोक्ताओं को मिनिमम वेज से कम वेतन चुकाने से प्रतिबंधित करता है। मिनिमम वेज को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाएगा। यह समय, या उत्पादित होने वाले पीस की संख्या इत्यादि पर आधारित होगा। केंद्र या राज्य सरकारें प्रत्येक पांच वर्षों में मिनिमम वेज की समीक्षा या उसमें संशोधन करेंगी। मिनिमम वेज निर्धारित करने के दौरान केंद्र या राज्य सरकारें निम्नलिखित कारकों पर ध्यान देंगी: (i) श्रमिकों की दक्षता और (ii) कार्य की कठिनाई।
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ओवरटाइम: केंद्र या राज्य सरकारें उन घंटों की संख्या निर्धारित करेंगी जिनसे कोई कार्य दिवस बनता है। किसी भी दिन कार्य दिवस से अधिक देर तक काम करने पर कर्मचारी को ओवरटाइम मिलेगा। यह राशि कर्मचारी के सामान्य वेतन का कम से कम दोगुना होगी।
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वेतन का भुगतान: वेतन निम्नलिखित में प्रदान किया जाएगा (i) सिक्के, (ii) करंसी नोट, (iii) चेक द्वारा, (iv) बैंक खाते में जमा करके, या (v) डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से। वेतन की अवधि नियोक्ता द्वारा निम्नलिखित में से किसी एक के आधार पर निर्धारित की जाएगी: (i) दैनिक, (ii) साप्ताहिक, (iii) पाक्षिक, या (iv) मासिक।
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कटौतियां: कोड के अंतर्गत एक कर्मचारी का वेतन कुछ निश्चित आधारों पर ही काटा जा सकता है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) जुर्माना, (ii) ड्यूटी से अनुपस्थित रहना, (iii) नियोक्ता द्वारा आवास उपलब्ध कराना, या (iv) कर्मचारी को दिए गए एडवांस की रिकवरी, इत्यादि। ये कटौतियां कर्मचारी के कुल वेतन के 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
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बोनस का निर्धारण: सभी कर्मचारी जिनका वेतन केंद्र या राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित एक विशिष्ट मासिक राशि से अधिक नहीं है, वे वार्षिक बोनस के हकदार होंगे। नियोक्ता प्रत्येक कर्मचारी को वार्षिक बोनस देगा, जोकि कम से कम : (i) वेतन का 8.33%,या (ii) 100 रुपए, इनमें से जो भी अधिक हो, होना चाहिए। इसके अतिरिक्त नियोक्ता कर्मचारियों के बीच सकल लाभ का एक हिस्सा बांटेगा। कर्मचारी के एक वर्ष के वेतन के अनुपात में इसका आबंटन किया जाएगा। एक कर्मचारी अपने वार्षिक वेतन का अधिकतम 20% बोनस प्राप्त कर सकता है।
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लैंगिक भेदभाव: कोड समान कार्य या समान किस्म के कार्य के लिए वेतन और कर्मचारियों की भर्ती जैसे मामलों में लैंगिक भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है। समान प्रकृति के कार्य को उस कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके लिए आवश्यक कौशल, प्रयास, अनुभव और जिम्मेदारियां एक समान हैं।
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सलाहकार बोर्ड: केंद्र और राज्य सरकारें अपने सलाहकार बोर्डों का गठन करेंगी। इन बोर्डों में निम्नलिखित शामिल होंगे : (i) नियोक्ता, (ii) कर्मचारी (नियोक्ताओं के समान संख्या में), (iii) स्वतंत्र व्यक्ति, और (iv) राज्य सरकार के पांच प्रतिनिधि। राज्य सलाहकार बोर्ड में नियोक्ता, कर्मचारी और स्वतंत्र व्यक्ति शामिल होंगे। इसके अतिरिक्त केंद्र और राज्य स्तरीय बोर्डों में कुल सदस्यों का तिहाई महिलाएं होंगी। बोर्ड निम्नलिखित पहलुओं पर संबंधित सरकारों को सलाह देगा : (i) न्यूनतम वेतन का निर्धारण, और (ii) महिलाओं के लिए रोजगार अवसरों को बढ़ाना।
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अपराध: कोड में नियोक्ता द्वारा निम्नलिखित अपराध करने पर सजा विनिर्दिष्ट की गई है, (i) देय से कम वेतन देने पर, या (ii) कोड के किसी प्रावधान का उल्लंघन करने पर। अपराध की प्रकृति के आधार पर सजा भिन्न-भिन्न हो सकती है। अधिकतम सजा तीन महीने की कैद के साथ एक लाख रुपए तक का जुर्माना होगी।
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