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जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) संशोधन बिल, 2024 को 5 फरवरी, 2024 को राज्यसभा में पेश किया गया। यह जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) एक्ट, 1974 में संशोधन करता है। यह एक्ट जल प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी और एसपीसीबी) की स्थापना करता है। बिल कई उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से हटाता है और इसके बदले जुर्माना लगाता है। यह शुरुआत में हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होगा। दूसरे राज्य अपने यहां इसे लागू करने के लिए प्रस्ताव पारित कर सकते हैं।
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उद्योग स्थापित करने के लिए सहमति से छूट: एक्ट के अनुसार, ऐसे किसी भी उद्योग या उपचार संयंत्र की स्थापना के लिए एसपीसीबी की पूर्व सहमति आवश्यक है जिससे जलाशयों, सीवर या भूमि में सीवेज के बहने की आशंका हो। बिल में निर्दिष्ट किया गया है कि केंद्र सरकार, सीपीसीबी के परामर्श से, कुछ श्रेणियों के औद्योगिक संयंत्रों को ऐसी सहमति प्राप्त करने से छूट दे सकती है। बिल में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार एसपीसीबी द्वारा दी गई सहमति को मंजूरी देने, अस्वीकार करने या रद्द करने के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकती है। एक्ट के तहत, एसपीसीबी से ऐसी सहमति प्राप्त किए बिना उद्योग स्थापित करना और संचालित करना छह साल तक की कैद और जुर्माने से दंडनीय है। बिल इसे बरकरार रखता है। बिल उन निगरानी उपायों से छेड़छाड़ को दंडनीय बनाता है जिनसे यह निर्धारित होता है कि क्या कोई उद्योग या उपचार संयंत्र लगाया जाए। इसके लिए 10,000 रुपए से 15 लाख रुपए के बीच जुर्माना होगा।
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राज्य बोर्ड के अध्यक्ष: एक्ट के तहत, एसपीसीबी के अध्यक्ष को राज्य सरकार द्वारा नामित किया जाता है। बिल में कहा गया है कि केंद्र सरकार अध्यक्ष के नामांकन के तरीके और सेवा की शर्तों को निर्धारित करेगी।
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प्रदूषित पदार्थ का बहना: एक्ट के तहत, एसपीसीबी ऐसी किसी भी गतिविधि को तुरंत रोकने के लिए निर्देश जारी कर सकता है जिससे जलाशयों में हानिकारक या प्रदूषणकारी पदार्थ बहता हो। एक्ट कुछ छूटों को छोड़कर, जलाशयों में या भूमि पर प्रदूषणकारी पदार्थों से संबंधित मानकों (एसपीसीबी द्वारा निर्धारित) के उल्लंघन पर भी रोक लगाता है। इस छूट में लैंड रीक्लेमेशन के लिए नदी तट पर गैर प्रदूषित पदार्थों को जमा करना शामिल है। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने पर डेढ़ साल से छह साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। बिल सजा को हटाता है और इसके बजाय 10,000 रुपए से 15 लाख रुपए के बीच जुर्माना लगाता है।
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अन्य अपराधों पर दंड: एक्ट के तहत, ऐसा अपराध जिसके लिए सजा स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट नहीं है, तीन महीने तक की कैद या 10,000 रुपए तक के जुर्माने या दोनों से दंडनीय है। बिल में सजा के रूप में कैद को हटा दिया गया है और 10,000 रुपए से 15 लाख रुपए के बीच जुर्माने का प्रावधान किया गया है। एक्ट के तहत किसी भी प्रावधान के उल्लंघन के लिए जुर्माना न देने की स्थिति में तीन साल तक की कैद की सजा होगी, या निर्धारित जुर्माने की राशि का दोगुना तक जुर्माना लगाया जाएगा।
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दंड निर्धारित करने वाले अधिकारी: बिल केंद्र सरकार को एक्ट के तहत दंड निर्धारित करने के लिए एड्जुडिकेटिंग अधिकारी नियुक्त करने की अनुमति देता है। अधिकारी केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव या राज्य सरकार के सचिव स्तर का होना चाहिए। एड्जुडिकेटिंग अधिकारी द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकती है लेकिन इससे पहले निर्धारित जुर्माने का 10% जमा करना होगा। एड्जुडिकेटिंग अधिकारी द्वारा लगाए गए जुर्माने को पर्यावरण (संरक्षण) एक्ट, 1986 के तहत स्थापित पर्यावरण संरक्षण कोष में जमा किया जाएगा।
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अपराधों का संज्ञान: एक्ट के अनुसार अगर सीपीसीबी या एसपीसीबी ने कोई शिकायत की है, या बोर्ड को नोटिस देकर किसी व्यक्ति ने शिकायत की है तो अदालत अपराध का संज्ञान ले सकती है। बिल में कहा गया है कि अगर एड्जुडिकेटिंग अधिकारी ने शिकायत की है तो भी संज्ञान लिया जा सकता है।
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सरकारी विभागों द्वारा अपराध: एक्ट के तहत, सरकारी विभागों द्वारा किए गए अपराधों के लिए उस विभाग के प्रमुख को दोषी माना जाएगा, बशर्ते कि वह साबित करे कि इस तरह के उल्लंघन से बचने के लिए सम्यक उद्यम (ड्यू डेलिजेंस) किया गया था। बिल निर्दिष्ट करता है कि अगर विभाग एक्ट के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है तो विभाग के प्रमुख को उनके मूल वेतन के एक महीने के बराबर जुर्माना देना होगा।
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