- जहाजरानी राज्य मंत्री पोन राधाकृष्णनन ने 16 दिसंबर, 2016 को लोकसभा में प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण बिल, 2016 को पेश किया। बिल प्रमुख बंदरगाहों को अधिक स्वायत्त बनाने और स्थितियों के अनुरूप ढालने का प्रयास करता है। बिल प्रमुख बंदरगाह ट्रस्ट एक्ट, 1963 को रद्द करता है। बिल की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- एप्लीकेशन : बिल चेन्नई, कोच्चि, जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह, कांडला, कोलकाता, मुंबई, न्यू मैंगलोर, मोरमुगाव, पारादीप, वी.ओ. चिदंबरानार और विशाखापट्टनम के प्रमुख बंदरगाहों पर लागू होगा। केंद्र सरकार कुछ और प्रमुख बंदरगाहों को अधिसूचित कर सकती है।
- प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण बोर्ड : 1963 के एक्ट के तहत सभी प्रमुख बंदरगाहों का प्रबंधन संबंधित बंदरगाह ट्रस्ट बोर्ड द्वारा किया जाता है जिसके सदस्य केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं। बिल में प्रत्येक प्रमुख बंदरगाह पर प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है। ये बोर्ड मौजूदा पोर्ट ट्रस्ट का स्थान लेंगे।
- बोर्ड का संघटन : बोर्ड में एक चेयरपर्सन (अध्यक्ष) और एक डेपुटी चेयरपर्सन (उपाध्यक्ष) होगा जिनकी नियुक्ति सिलेक्ट कमिटी के सुझावों पर केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। बोर्ड में निम्नलिखित का एक सदस्य भी शामिल होगा, (i) संबंधित राज्य सरकार, (ii) रेल मंत्रालय, (iii) रक्षा मंत्रालय, और (iv) कस्टम विभाग। बोर्ड में तीन से चार स्वतंत्र सदस्य और प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण के कर्मचारियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक सदस्य भी शामिल होगा।
- बोर्ड के अधिकार : बिल बोर्ड को प्रमुख बंदरगाह के विकास के लिए अपनी संपत्ति, परिसंपत्ति और फंड्स के उपयुक्त प्रयोग की अनुमति देता है। बोर्ड निम्नलिखित के संबंध में नियम भी बना सकता है: (i) बंदरगाह संबंधी क्रियाकलापों और सेवाओं के लिए बंदरगाह की परिसंपत्तियों की उपलब्धता की घोषणा करना, (ii) नए बंदरगाह, जेट्टी स्थापित करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं को विकसित करना और उन्हें प्रदान करना, और (iii) किसी वस्तु या पोत पर लगने वाले शुल्क के भुगतान से छूट देना या उसे कम करना।
- दरों का निर्धारण : वर्तमान में प्रमुख बंदरगाहों हेतु टैरिफ प्राधिकरण, जो 1963 के एक्ट के तहत स्थापित किया गया था, बंदरगाहों पर उपलब्ध परिसंपत्तियों और सेवाओं की दर निर्धारित करता है। बिल के तहत बोर्ड या बोर्ड द्वारा नियुक्त कमिटी इन दरों को निर्धारित करेगी। वे निम्नलिखित दरों को निर्धारित कर सकते हैं : (i) सेवाएं जो बंदरगाहों पर संपन्न की जाती हैं, (ii) बंदरगाहों की परिसंपत्तियों की सुविधा और उपयोग, और (iii) विभिन्न श्रेणियों की वस्तुएं और पोत। कुछ शर्तों के अधीन इन दरों का निर्धारण प्रतिस्पर्धा एक्ट, 2002, या अन्य कानूनों के प्रावधानों के समरूप होना चाहिए।
- बोर्ड के वित्तीय अधिकार : 1963 के एक्ट के तहत बोर्ड को कोई भी ऋण लेने के लिए केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी लेनी होती है। बिल के तहत अपनी पूंजीगत और कार्यशील व्यय की जरूरतों को पूरा करने के लिए बोर्ड निम्नलिखित से ऋण प्राप्त कर सकता है : (i) भारत का अधिसूचित बैंक या वित्तीय संस्थान, या (ii) भारत के बाहर का कोई वित्तीय संस्थान जोकि सभी कानूनों का अनुपालन करता हो। हालांकि अपने पूंजीगत रिजर्व के 50% से अधिक के ऋणों के लिए बोर्ड को केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति लेनी होगी।
- सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाएं : बिल के तहत पीपीपी परियोजनाएं ऐसी परियोजनाएं हैं जो राजस्व या रॉयल्टी शेयरिंग के आधार पर छूट अनुबंध के माध्यम से बोर्ड द्वारा हाथ में ली जाती हैं। ऐसी परियोजनाओं हेतु बोर्ड केवल प्रारंभिक नीलामी के लिए टैरिफ निर्धारित कर सकता है। इनमें कनसेशनेयर (जिसे पीपीपी परियोजना दी गई है) बाजार की स्थितियों के आधार पर वास्तविक टैरिफ निश्चित करने के लिए स्वतंत्र होगा। ऐसी परियोजनाओं के लिए राजस्व की हिस्सेदारी विशिष्ट छूट समझौते पर आधारित होगी।
- एड्जुकेटरी बोर्ड : बिल केंद्र सरकार द्वारा एड्जुकेटरी बोर्ड के गठन का प्रस्ताव रखता है। बोर्ड में एक पीठासीन अधिकारी और दो सदस्य होंगे, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। एड्जुकेटरी बोर्ड के कार्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे : (i) प्रमुख बंदरगाहों के टैरिफ प्राधिकरण द्वारा किए जाने वाले कुछ कार्य, (ii) प्रमुख बंदरगाहों और पीपीपी कनसेशनेयर के अधिकारों और बाध्यताओं से संबंधित विवादों या दावों पर न्यायिक निर्णय लेना, और (iii) बंदरगाह का उपयोगकर्ताओं द्वारा बंदरगाह की सेवाओं से जुड़ी शिकायतों की जांच करना।
- जुर्माना : 1963 के एक्ट के तहत एक्ट के विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन करने पर विभिन्न प्रकार के जुर्मानों का प्रावधान है। उदाहरण के लिए (i) बंदरगाह पर बिना अनुमति के कोई ढांचा खड़ा करने का जुर्माना 10,000 रुपए तक हो सकता है, और (ii) शुल्क न चुकाने की एवज में दस गुना तक जुर्माना भरना पड़ सकता है। बिल के तहत किसी प्रावधान या नियम या रेगुलेशन का उल्लंघन करने पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना चुकाना पड़ेगा।
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