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बैंकिंग कानून (संशोधन) बिल, 2024 को 9 अगस्त, 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था। यह निम्नलिखित कानूनों में संशोधन करता है: (i) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) एक्ट, 1934, (ii) बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949, (iii) भारतीय स्टेट बैंक एक्ट, 1955, (iv) बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1970, और (v) बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट, 1980।
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नकद भंडार (कैश रिजर्व्स) के लिए पखवाड़े (फोर्टनाइट) की परिभाषा: आरबीआई एक्ट के तहत, अनुसूचित बैंकों को नकदी भंडार के रूप में आरबीआई के साथ औसत दैनिक शेष का एक निश्चित स्तर बरकरार रखना होता है। यह औसत दैनिक शेष एक पखवाड़े के प्रत्येक दिन के कारोबार की समाप्ति पर बैंकों द्वारा रखे गए शेष के औसत पर आधारित होता है। एक पखवाड़े को शनिवार से अगले शुक्रवार तक (दोनों दिन सहित) की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है। बिल पखवाड़े की परिभाषा को इस अवधि में बदलता है: (i) प्रत्येक महीने के पहले दिन से पंद्रहवें दिन तक, या (ii) प्रत्येक महीने के सोलहवें दिन से अंतिम दिन तक। बिल बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत भी इस परिभाषा को बदलता है जहां गैर अनुसूचित बैंकों को नकदी भंडार बहाल रखने की आवश्यकता होती है।
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सहकारी बैंकों के निदेशकों का कार्यकाल: बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट किसी बैंक के निदेशक (इसके अध्यक्ष या पूर्णकालिक निदेशक को छोड़कर) को लगातार आठ वर्षों से अधिक समय तक पद पर बने रहने से निषिद्ध करता है। बिल में सहकारी बैंकों के लिए इस अवधि को बढ़ाकर 10 वर्ष करने का प्रावधान है।
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सहकारी बैंकों के मामले में समान निदेशकों पर प्रतिबंध: बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट किसी एक बैंक के बोर्ड के निदेशक को दूसरे बैंक के बोर्ड में काम करने से निषिद्ध करता है। यह आरबीआई द्वारा नियुक्त निदेशकों पर लागू नहीं होता है। बिल केंद्रीय सहकारी बैंक के निदेशक को भी यह छूट देता है। यह छूट तब लागू होगी, जब वह किसी राज्य सहकारी बैंक के बोर्ड के लिए चुना जाता है जिसमें वह सदस्य है।
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कंपनी में पर्याप्त हित: बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत किसी कंपनी में पर्याप्त हित (सब्सटांशियल इंटरेस्ट) का तात्पर्य पांच लाख रुपए से अधिक के शेयर या कंपनी की चुकता पूंजी का 10%, जो भी कम हो, रखने से है। यह हिस्सा किसी व्यक्ति, उसके पति/पत्नी या नाबालिग बच्चे द्वारा व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से रखा जा सकता है। बिल इस सीमा को दो करोड़ रुपए तक बढ़ाने के लिए इस प्रावधान में संशोधन करता है। केंद्र सरकार अधिसूचना के जरिये इस राशि में बदलाव कर सकती है।
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नॉमिनेशन: बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट एकल या संयुक्त जमा धारकों को अपनी जमा राशि के लिए एक नॉमिनी नियुक्त करने की अनुमति देता है। नॉमिनी बैंक की कस्टडी में छोड़ी गई वस्तुओं या बैंक से किराए पर लिए गए लॉकर के लिए भी नियुक्त किया जा सकता है। यह नॉमिनी, उसे नॉमिनेट करने वाले व्यक्ति की मृत्यु की स्थिति में जमा राशि, वस्तुओं या लॉकर को एक्सेस कर सकता है। बिल इन उद्देश्यों के लिए अधिकतम चार नॉमिनी की नियुक्ति की अनुमति देता है। जमा राशि के लिए ऐसे नॉमिनी को बारी-बारी से, या एक साथ नियुक्त किया जा सकता है जबकि अन्य उद्देश्यों के लिए उन्हें बारी-बारी से नियुक्त किया जा सकता है। एक साथ नॉमिनी बनाए जाने पर नॉमिनेशन घोषित अनुपात में प्रभावी होगा। बारी-बारी से नॉमिनेशन की स्थिति में, जिस नॉमिनी का नाम नॉमिनेशन के क्रम में ऊपर रखा गया है, उसे प्राथमिकता मिलेगी।
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दावा रहित रकम का निपटान: भारतीय स्टेट बैंक एक्ट, और बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) एक्ट 1970 और 1980 भुगतान न किए गए या दावा रहित लाभांश को भुगतान रहित लाभांश खाते में हस्तांतरित करने का प्रावधान करते हैं। अगर खाते से सात वर्ष तक धनराशि का भुगतान न किया जाए या अगर उस पर दावा न किया जाए, तो इसे निवेशक शिक्षा और संरक्षण निधि (आईईपीएफ) में हस्तांतरित कर दिया जाता है। यह बिल उस धनराशि के दायरे को विस्तृत करता है जिसे आईईपीएफ में हस्तांतरित किया जा सकता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) ऐसे शेयर जिनके लिए लगातार सात वर्षों तक लाभांश का भुगतान नहीं किया गया है या उस पर दावा नहीं किया गया है, और (ii) बॉन्ड्स के लिए कोई ब्याज या रीडम्प्शन राशि जिसका सात वर्षों से भुगतान नहीं किया गया है/जिस पर दावा नहीं किया गया है। कोई भी व्यक्ति जिसके शेयर या दावा रहित/भुगतान न की गई धनराशि को आईईपीएफ में हस्तांतरित कर दिया गया है, वह हस्तांतरण या रिफंड का दावा कर सकता है।
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ऑडिटर्स का पारिश्रमिक: वर्तमान में बैंकों के ऑडिटर्स को दिया जाने वाला पारिश्रमिक केंद्र सरकार के परामर्श से आरबीआई द्वारा तय किया जाता है। बिल बैंकों को अपने ऑडिटर्स का पारिश्रमिक तय करने का अधिकार देता है।
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