मंत्रालय: 
शिपिंग
  • भारतीय पत्तन बिल, 2025 को 28 मार्च, 2025 को लोकसभा में पेश किया गया। यह भारतीय पत्तन एक्ट, 1908 का स्थान लेने का प्रयास करता है। एक्ट में केंद्र और राज्य सरकारों की निम्नलिखित शक्तियों का उल्लेख किया गया है: (i) बंदरगाहों (पत्तन) की सीमाओं में बदलाव, (ii) बंदरगाहों की सुरक्षा और संरक्षण, और (iii) बंदरगाह-शुल्क, फीस और दूसरे प्रभार लगाना। बिल में एक्ट के कुछ प्रावधानों को बरकरार रखा गया है। मुख्य बदलावों में निम्न शामिल हैं:
  • समुद्री राज्य विकास परिषद: बिल में केंद्र सरकार से यह अपेक्षित है कि वह समुद्री राज्य विकास परिषद की स्थापना करेगी। परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री द्वारा की जाएगी। इस परिषद के अन्य सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रत्येक राज्य के बंदरगाहों के प्रभारी मंत्री, (ii) भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल के तटीय सुरक्षा से संबंधित सचिव, और (iii) केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के सचिव।

  • परिषद के कार्य: परिषद केंद्र और राज्य सरकारों के परामर्श से निम्नलिखित के संबंध में दिशानिर्देश जारी करेगी: (i) बंदरगाहों द्वारा जमा किए जाने वाले डेटा या सूचना के साथ-साथ, उन्हें जमा करने, उनके अपडेशन, स्टोरेज और उन्हें परिषद को प्रस्तुत करने का तरीका, (ii) बंदरगाहों से संबंधित डेटा या सूचना का प्रसार, और (iii) बंदरगाह शुल्क की पारदर्शिता सुनिश्चित करना। यह केंद्र सरकार को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान) तैयार करने पर भी सलाह देगी और विधायी पर्याप्तता, बंदरगाहों की कार्यकुशलता एवं बंदरगाहों से कनेक्टिविटी से संबंधित मामलों पर सुझाव देगी।

  • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना: बिल केंद्र सरकार को समुद्री व्यापार और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना तैयार करने का अधिकार देता है। केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरणों के बोर्ड्स और राज्य समुद्री बोर्ड्स को इस योजना का अनुपालन करने का प्रयास करना चाहिए।

  • राज्य समुद्री बोर्ड्स: बिल की तीसरी अनुसूची में निर्दिष्ट सभी राज्य समुद्री बोर्ड्स को वैधानिक मान्यता प्रदान की गई है। इसमें गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों के समुद्री बोर्ड शामिल हैं। राज्य सरकारें नए कानून के लागू होने के छह महीने के भीतर राज्य समुद्री बोर्ड स्थापित कर सकती हैं। राज्य समुद्री बोर्ड्स के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बंदरगाह के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए लाइसेंसिंग का कार्य करना, (ii) बंदरगाह के सभी कार्यों को सुपरवाइज करना, (iii) बंदरगाह शुल्क तय करना और (iv) बंदरगाह की सीमाओं के भीतर नेविगेशन का रेगुलेशन करना।

  • विवाद निवारण समिति: बिल में राज्य सरकारों से यह अपेक्षा की गई है कि वे एक विवाद निवारण समिति का गठन करेंगी, जो राज्य के भीतर गैर-प्रमुख बंदरगाहों, बंदरगाह के कन्सेशनेयर्स, बंदरगाहों का उपयोग करने वालों और बंदरगाहों पर सर्विस देने वालों के आपसी विवादों का निपटारा करेगी। विवाद संबंधी आवेदन के छह महीने के भीतर समिति को आदेश पारित करना होगा। समिति के आदेशों के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में की जाएगी।

  • प्रदूषण नियंत्रण और प्रतिक्रिया: बिल के तहत, सभी बंदरगाहों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित और राज्य सरकार के परामर्श से पोर्ट वेस्ट रिसेप्शन और हैंडलिंग योजना तैयार करनी होगी। बंदरगाह छोड़ने से पहले, जहाज के मालिक को जहाज से निकलने वाले सभी कचरे को रिसेप्शन फेसिलिटी में पहुंचाना होगा। हर बंदरगाह को तटीय जल में प्रदूषण के खतरे से जुड़ी घटनाओं की सूचना केंद्र या राज्य सरकारों को देनी होगी, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है।

  • अपराधों के लिए दंड: बिल कुछ अपराधों के लिए कारावास या जुर्माने की सज़ा निर्दिष्ट करता है। छह महीने तक के कारावास, एक लाख रुपए तक के जुर्माने या दोनों से दंडनीय अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) जहाज की सुरक्षा को ख़तरे में डालना और (ii) बिना अनुमति के जल-तल (वॉटरबेड) या भूभौतिकीय (जियोफिजिकल) संरचनाओं को नुकसान पहुंचाना। जिन अपराधों के लिए केवल एक लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) केंद्र/राज्य सरकार की अधिसूचना के बिना बंदरगाह संचालन शुरू करना, और (ii) बंदरगाहों द्वारा तटीय जल में प्रदूषण के खतरे से जुड़ी घटनाओं की रिपोर्ट न करना। कुछ प्रावधानों का उल्लंघन केवल मौद्रिक दंड के साथ दंडनीय है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सूचना न देना या आवश्यक दस्तावेजों को छिपाना, और (ii) बिना पायलट, हार्बर मास्टर या पोर्ट अधिकारी के बंदरगाह में प्रवेश करना या उससे बाहर निकलना। इन अपराधों पर दो लाख रुपए तक का जुर्माना है।  

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