- लोकसभा में जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने 10 अगस्त, 2015 को मर्चेट शिपिंग (संशोधन) बिल, 2015 पेश किया। यह बिल मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958 को संशोधित करता है और इसका उद्देश्य इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन सिविल लायबिलिटी फॉर बंकर ऑयल पॉल्यूशन डैमेज, 2001 (बंकर तेल प्रदूषण से होने वाले नुकसान के प्रति सिविल दायित्व पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन) का अनुपालन सुनिश्चित करना है। कन्वेंशन सुनिश्चित करता है कि उन लोगों को पर्याप्त, त्वरित और कारगर मुआवजा मिले जो जहाज के बंकर में भरे तेल ईंधन के रिसाव से होने वाले नुकसान का शिकार होते हैं।
- 1958 के एक्ट के प्रावधानों को नैरोबी इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन रिमूवल ऑफ रेक्स, 2007 और इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन साल्वेज, 1989 के अनुरूप करने के लिए बिल यह संशोधन प्रस्तावित करता है। बिल के प्रमुख प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं :
- बंकर तेल प्रदूषण के लिए जिम्मेदारी : जहाज के मालिक की जिम्मेदारियों में शामिल होगाः (i) रिसाव के परिणामस्वरूप होने वाले संदूषण द्वारा जहाज के बाहर किसी प्रकार का प्रदूषण संबंधी नुकसान, (ii) प्रदूषण से होने वाले नुकसान को रोकने या कम करने के लिए किए गए उपायों की लागत और (iii) रोकथाम के किसी भी उपाय से होने वाला नुकसान। अगर सरकारी (भारतीय या विदेशी) जहाजों का इस्तेमाल कर्मशियल उद्देश्य के लिए किया जाता है तो इस स्थिति में संबंधित सरकार को प्रदूषण से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार माना जाएगा।
- दायित्व से छूटः जहाज का मालिक प्रदूषण से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं माना जाएगा, अगर वह साबित कर देता है कि नुकसानः (i) युद्ध, विद्वेष या अपरिहार्य प्राकृतिक आपदा के कारण हुआ है, (ii) जहाज मालिक के कर्मचारी या प्रतिनिधि को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया है या (iii) पूरी तरह से सरकार की लापरवाही या दोषपूर्ण कृत्य के कारण हुआ है। इसके अलावा, अगर जहाज का मालिक यह साबित कर दे कि नुकसान पूरी तरह से या आंशिक रूप से किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जान-बूझकर किए गए कार्य, या चूक या लापरवाही के कारण हुआ है जो खुद भी नुकसान का शिकार हुआ है तो मालिक को नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं माना जाएगा।
- दावे का निर्धारणः एक्ट के तहत, जहाज के मालिक कुछ विशेष नुकसानों की स्थिति में अपनी जिम्मेदारी को सीमित कर सकते हैं। बिल के तहत, बंकर तेल प्रदूषण के संबंध में जहाज के मालिक के खिलाफ किए गए दावे के जवाब में, वह अपनी जिम्मेदारी की सीमा निर्धारित करने के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन कर सकता है। उच्च न्यायालय उस सीमा के अनुसार दावे की राशि निर्धारित करेगा और दावेदारों के बीच उसका वितरण करेगा। मुआवजे के संबंध में दावा करने का अधिकार हादसे के तीन वर्ष के बाद समाप्त हो जाएगा (और जोकि किसी भी स्थिति में हादसे की तिथि से छह वर्ष के बाद नहीं बढ़ाया जा सकता)।
- बीमा या वित्तीय सिक्योरिटीः 1,000 टन भार से अधिक के जहाज के मालिकों से अनिवार्य बीमा कवरेज या वित्तीय सिक्योरिटी लेने की अपेक्षा की जाती है, जो भी निर्धारित किया गया हो। महानिदेशक उन सभी जहाजों को सर्टिफिकेट जारी करेंगे जो अपेक्षित बीमा या वित्तीय सिक्योरिटी का रखरखाव करते हैं।
- क्षति की जानकारी और निर्धारणः अगर कोई भारतीय जहाज किसी क्षति (रेक) में शामिल है तो जहाज के मास्टर और ऑपरेटर को महानिदेशक को इस हादसे की जानकारी देनी होगी। यह क्षति जोखिम पैदा करती है या नहीं, इसका निर्धारण अनेक आधारों पर किया जाएगा जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) क्षति का प्रकार, आकार और निर्माण, (ii) शिपिंग रूट्स या स्थापित ट्रैफिक लेन से नजदीकी, (iii) क्षेत्र की सब-मरीन टोपोग्राफी, (iv) क्षति के शिकार जहाज के कार्गो तथा तेल की प्रकृति एवं मात्रा, और (v) ऑफशोर इंस्टॉलेशन, पाइपलाइन्स, टेलीकम्यूनिकेशन केबल्स और इसी प्रकार की दूसरी संरचनाओं से नजदीकी।
- क्षति की स्थिति में जहाज मालिक का दायित्व : जहाज मालिक क्षति के स्थान का पता लगाने, उस जगह को चिन्हित करने और मलबे को हटाने का खर्चा उठाएगा, बशर्ते वह यह साबित कर देता है कि क्षति: (i) युद्ध या एक अपरिहार्य प्राकृतिक प्रक्रिया का परिणाम है, (ii) किसी तीसरे पक्ष द्वारा जान-बूझकर किए गए कार्य या चूक के कारण हुई थी या (iii) सरकार की लापरवाही या दोषपूर्ण कृत्य के कारण हुई थी।
- बचाव कार्य (साल्वेज ऑपरेशन) : बचाव कार्य (साल्वेज ऑपरेशन) ऐसी कोई भी गतिविधि होती है जोकि सागरखंड में खतरे में पड़े जहाज की सहायता के लिए की जाती है। जिस बचाव कार्य का परिणाम सकारात्मक होता है, वह पुरस्कार (साल्वेज) के लिए अधिकृत होता है। निम्नलिखित सेवाएं प्रदान करने की स्थिति में जहाज मालिक को साल्वेज का भुगतान करना होता हैः (i) भारत के क्षेत्रीय समुद्र में किसी जहाज से लोगों की जान बचाना, (ii) क्षति का शिकार हुए या फंसे हुए जहाज की सहायता करना या (iii) क्षति का शिकार हुए व्यक्ति को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा क्षति के दौरान बचाव कार्य करना।
- बिल में क्षति और बचाव कार्य के मामलों में बीमा और दावों के निर्धारण के प्रावधान भी शामिल हैं।
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