- रक्षा मंत्री ए.के.एंटोनी ने 13 अगस्त, 2012 को राज्यसभा में सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल (संशोधन) बिल, 2012 पेश किया। 27 अगस्त, 2012 को इसे विभाग से संबंधित पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमिटी के पास विचार के लिए भेज दिया गया। यह बिल सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल एक्ट, 2007 को संशोधित करने का प्रयास करता है।
- यह एक्ट विशिष्ट मामलों के संबंध में निर्णय लेने के लिए सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल की स्थापना करता है। इन मामलों में सैन्यकर्मियों के कमीशन, नियुक्ति, एनरोलमेंट और सेवा की शर्तो से जुड़े ऐसे सभी विवाद और शिकायतें शामिल होंगी जोकि आर्मी एक्ट, 1950, नेवी एक्ट, 1957 और एयरफोर्स एक्ट, 1950 के अधीन आती हैं। ट्रिब्यूनल को इन एक्ट्स के तहत कोर्ट मार्शल के आदेशों, निष्कर्षों और दंड के खिलाफ अपील की सुनवाई करने का भी अधिकार है।
- एक्ट के तहत ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन और सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष है। बिल में इस कार्यकाल को बढ़ाकर पांच वर्ष कर दिया गया है। मौजूदा एक्ट के तहत वे दोबारा नियुक्ति के पात्र हैं लेकिन बिल में उन्हें दोबारा नियुक्त करने का प्रावधान हटाया गया है।
- एक्ट कहता है कि अगर चेयरपर्सन हाई कोर्ट का पूर्व चीफ जस्टिस है तो वह 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बना रह सकता है। बिल में चेयरपर्सन की आयु सीमा 67 वर्ष कर दी गई है। बिल जुडिशियल सदस्यों की आयु सीमा 65 वर्ष से 67 वर्ष करने का प्रस्ताव भी रखता है।
- एक्ट के तहत ट्रिब्यूनल को आपराधिक अवमानना के लिए दंड देने का अधिकार है। लेकिन एक्ट में दीवानी अवमानना के संबंध में कोई प्रावधान नहीं हैं जैसे कि ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए आदेशों को लागू करवाना।
- बिल कहता है कि स्वयं की अवमानना होने की स्थिति में ट्रिब्यूनल को भी हाई कोर्ट के समान अधिकार होंगे। न्यायालय अवमानना एक्ट, 1971 कुछ परिवर्तनों के साथ लागू होगा। एक्ट में जहां हाई कोर्ट का संदर्भ आएगा, उसमें ट्रिब्यूनल भी शामिल होगा। इसके अलावा एडवोकेट जनरल की जगह पर एटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल या एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी पढ़ा जाएगा।
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