लेजिसलेटिव ब्रीफ

बिल की मुख्य विशेषताएं

संविधान (129वां संशोधन) बिल, 2024

  • बिल लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने (साइमल्टेनियस इलेक्शन) के लिए संविधान में संशोधन करता है।
  • साइमल्टेनियस इलेक्शन के लिए राष्ट्रपति द्वारा आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख पर एक अधिसूचना जारी की जा सकती है। अधिसूचना की तारीख के बाद गठित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति के साथ समाप्त हो जाएगा।
  • अगर लोकसभा या राज्य विधानसभा अपने पांच वर्ष के पूर्ण कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है, तो शेष कार्यकाल के बराबर की अवधि के लिए नए चुनाव कराए जाएंगे। इससे यह सुनिश्चित होगा कि अगले चुनाव साइमल्टेनियस इलेक्शन साइकिल में हो पाएंगे।
  • अगर निर्वाचन आयोग की राय है कि किसी राज्य विधानसभा के चुनाव, साइमल्टेनियस इलेक्शन के हिस्से के तौर पर नहीं कराए जा सकते, तो वह इस संबंध में राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकता है। इसके मद्देनजर राष्ट्रपति द्वारा उस राज्य विधानसभा के चुनाव बाद की किसी तारीख पर कराने का आदेश जारी किया जा सकता है।

केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) बिल, 2024

  • बिल में प्रावधान है कि केंद्र शासित प्रदेशों के चुनावों को भी साइमल्टेनियस इलेक्शन के साथ कराया जाएगा।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • संविधान संशोधन बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन में यह कहा गया है कि चुनाव महंगे और समय लेने वाले होते हैं। उसमें कहा गया है कि बार-बार चुनावों के कारण बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू होती है जो विकास से जुड़ी योजनाओं में रुकावट पैदा करती है। प्रश्न यह है कि क्या इन मुद्दों के कारण चुनावी प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत को उचित ठहराया जा सकता है।
  • बिल के परिणाम के तौर पर अल्पावधि की विधायिकाएं बन सकती हैं, कई मामलों में एक वर्ष से भी कम की। इतनी कम अवधि की विधायिकाएं प्रभावी शासन व्यवस्था प्रदान करने में सक्षम नहीं हो सकतीं, चूंकि मंत्रियों को प्रशासन की बारीकियों से परिचित होने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल सकता।
  • संविधान संशोधन बिल निर्वाचन आयोग को यह अधिकार देता है कि वह राष्ट्रपति को राज्य विधानसभा के चुनाव को स्थगित करने की सिफारिश कर सकता है। वर्तमान में संविधान का अनुच्छेद 356 कुछ शर्तों के तहत विधानसभा चुनाव स्थगित करने की अनुमति देता है। इसमें संसद की मंजूरी भी शामिल है। बिल में ऐसी कोई शर्त नहीं है, इसलिए यह चुनाव स्थगित करने की शर्तों को कम करता है, यानी चुनाव स्थगित करना आसान बनाता है।

संविधान संशोधन बिल में विधानसभा के चुनाव स्थगित रखने की कोई समय सीमा नहीं दी गई है। इससे किसी राज्य के विधानसभा के बिना रह जाने की संभावना बनती है।

 

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारत में विधानमंडलों का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। 1951 से 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए।[1]  हालांकि 1968 और 1969 में कुछ राज्य विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं जिसे यह चक्र प्रभावित हुआ। 1970 में चौथी लोकसभा भी समय से पहले भंग हो गई थी।तब से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते रहे हैं।1

विधि आयोग और संसदीय स्थायी समिति जैसे निकायों का कहना है कि वर्तमान चुनाव प्रक्रिया में काफी खर्च होता है और प्रशासनिक मशीनरी का बार-बार इस्तेमाल किया जाता है।[2],[3] इसके अतिरिक्त इन निकायों का कहना है कि बार-बार चुनाव होने के कारण आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) के बार-बार लागू होने से नीति निर्माण, विकासात्मक गतिविधियों और सेवा वितरण के काम में भी बाधाएं आती हैं।2,बार-बार के चुनावों से बचने और इन मुद्दों को हल करने के लिए साइमल्टेनियस इलेक्शंस का प्रस्ताव रखा गया है।2,3

इसके मद्दनेजर केंद्र सरकार ने सितंबर 2023 में एक उच्च स्तरीय समिति (चेयर: पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद) का गठन किया। इस समिति का उद्देश्य साइमल्टेनियस इलेक्शंस की व्यावहारिकता की समीक्षा करना और इसके लिए एक रूपरेखा का सुझाव देना था।समिति ने कहा कि साइमल्टेनियस इलेक्शंस से: (i) शासन में स्थिरता और पूर्वानुमान सुनिश्चित होंगे, (ii) नीतिगत निष्क्रियता और व्यवधान को कम किया जा सकेगा, (iii) लागत में कमी आएगी और (iv) मतदाताओं की भागीदारी बढ़ेगी। समिति ने दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया।साथ ही सुझाव दिया कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए और पंचायतों एवं नगर पालिकाओं के चुनाव उसके 100 दिनों के भीतर कराए जाने चाहिए।

साइमल्टेनियस इलेक्शंस के प्रस्ताव के लिए दिसंबर 2024 में लोकसभा में संविधान (एक सौ उन्तीसवां संशोधन) बिल, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) बिल, 2024 को पेश किया गया। इन दोनों बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (चेयर: श्री पी.पी. चौधरी) के पास भेजा गया है।

मुख्य विशेषताएं

संविधान (129वां संशोधन) बिल, 2024 निर्वाचन आयोग को यह अधिकार देता है कि वह लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ (जिसे साइमल्टेनियस इलेक्शन कहा जा सकता है) करा सकता है। केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) बिल, 2024 इस रूपरेखा को केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) की विधानसभाओं में भी लागू करने का अधिकार देता है।  

  • एक साथ चुनाव की शुरुआत: संविधान संशोधन बिल के प्रावधानों को लागू करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख पर एक अधिसूचना जारी की जा सकती है। अधिसूचना की तारीख के बाद गठित सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति के साथ समाप्त हो जाएगा। इसलिए लोकसभा और उसके बाद सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।
  • लोकसभा या राज्य विधानसभाएं समय से पहले भंग: अगर लोकसभा या राज्य/यूटी विधानसभा अपने पांच वर्ष के पूर्ण कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है, तो शेष कार्यकाल के बराबर की अवधि के लिए नए चुनाव कराए जाएंगे। इससे हर पांच वर्ष में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे।
  • राज्य के चुनाव टालना: अगर निर्वाचन आयोग की राय है कि किसी विशेष राज्य विधानसभा के चुनाव, साइमल्टेनियस इलेक्शन के हिस्से के तौर पर नहीं कराए जा सकते, तो वह इस संबंध में राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकता है। इसके मद्देनजर राष्ट्रपति द्वारा उस राज्य विधानसभा के चुनाव बाद की किसी तारीख पर कराने का आदेश जारी किया जा सकता है। जहां किसी राज्य विधानसभा का चुनाव साइमल्टेनियस इलेक्शन के बाद टाल दिया जाता है, तो वहां उस विधानसभा की पूर्ण अवधि उसी दिन समाप्त होगी, जिस दिन आम चुनाव में गठित लोकसभा की पूर्ण अवधि समाप्त होगी। यूटी कानून संशोधन बिल में ऐसे प्रावधान नहीं हैं।

 

भाग ख: मुख्य मुद्दे और विश्लेषण

जवाबदेही बनाम स्थिरता

कई समितियों ने यह दलील दी है कि साइमल्टेनियस इलेक्शन से शासन में स्थिरता लाने में मदद मिलेगी।1,2,1948 में संविधान सभा द्वारा संविधान के मसौदे पर विचार के लिए प्रस्ताव पेश करते समय, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा था कि एक लोकतांत्रिक कार्यपालिका को दो शर्तों को पूरा करना चाहिए: (i) वह एक स्थिर कार्यपालिका होनी चाहिए, और (ii) वह एक जिम्मेदार कार्यपालिका होनी चाहिए।[4]  उन्होंने तर्क दिया था कि ऐसी कोई प्रणाली नहीं है जो इन दोनों को समान स्तर पर सुनिश्चित करती हो, और संसदीय प्रणाली स्थिरता की तुलना में जिम्मेदारी पर अधिक जोर देती है।डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि संसदीय प्रणाली में जिम्मेदारी का दैनिक और आवधिक मूल्यांकन भारत के लिए अधिक आवश्यक है।4

राष्ट्रपति प्रणाली के विपरीत, जहां कार्यपालिका का एक निश्चित कार्यकाल होता है, संसदीय प्रणाली में सरकार का कार्यकाल तब तक होता है, जब तक उसे विधायिका में बहुमत प्राप्त होता है। विधायक/सांसद विधानमंडल/संसद में प्रश्नों, बहस, प्रस्तावों और अविश्वास प्रस्तावों के माध्यम से दैनिक आधार पर कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराते हैं।विधायकों/सांसदों को समय-समय पर होने वाले चुनावों के माध्यम से जनता के प्रति सीधे जवाबदेह बनाया जाता है।

साइमल्टेनियस इलेक्शंस की जरूरत

संविधान संशोधन बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन (एसओआर) में वर्तमान चुनाव प्रक्रिया के निम्नलिखित मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है: (i) चुनाव महंगे और समय लेने वाले हो गए हैं, और (ii) बार-बार चुनावों के कारण बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू होती है जो विकास से जुड़ी योजनाओं में रुकावट पैदा करती है और सेवा वितरण का काम प्रभावित होता है। इन मुद्दों को हल करने के लिए बिल साइमल्टेनियस इलेक्शन का प्रस्ताव करता है। साइमल्टेनियस इलेक्शन देश में राजनीतिक और चुनावी प्रक्रियाओं की प्रकृति को नया आकार दे सकते हैं। प्रश्न यह है कि क्या चुनाव कराने की लागत और एमसीसी पर असर के कारण चुनावी प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत को उचित ठहराया जा सकता है। यहां हम मौजूदा चुनाव प्रक्रिया से संबंधित कुछ चिंताओं पर चर्चा कर रहे हैं। 

चुनावों पर खर्च

विधि और न्याय से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2015) ने कहा था कि भारतीय निर्वाचन आयोग के अनुमान के अनुसार, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने पर सरकारी खर्च लगभग 4,500 करोड़ रुपए था।1,यह राशि केंद्र सरकार के 2015-16 के बजट (17 लाख करोड़ रुपए) का लगभग 0.25% और 2015-16 में जीडीपी (137 लाख करोड़ रुपए) का लगभग 0.03% थी। निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदान किए गए एक अन्य अनुमान के अनुसार, 1957 और 2014 के बीच लोकसभा चुनाव का व्यय जीडीपी का लगभग 0.02% -0.05% था (अनुलग्नक में तालिका 1)।[5]  इसलिए यह तर्क दिया जा सकता है कि चुनावों पर प्रत्यक्ष सरकारी खर्च बहुत अधिक नहीं है।

पार्टियां चुनाव के दौरान प्रचार और उम्मीदवारों को समर्थन प्रदान करने जैसे तरीकों पर भी खर्च कर सकती हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में सात राष्ट्रीय पार्टियों ने 2,378 करोड़ रुपए खर्च करने की जानकारी दी थी।[6]  हालांकि ऐसा हो सकता है कि ये आंकड़े उम्मीदवारों और पार्टियों द्वारा किए गए वास्तविक खर्च को न दर्शाते हों। कुछ गैर-आधिकारिक अध्ययनों का अनुमान है कि 2024 के लोकसभा चुनावों पर कुल खर्च लगभग 1.35 लाख करोड़ रुपए था।[7]

चुनाव कराने में लगने वाला समय

पिछले कुछ वर्षों में लोकसभा चुनावों के चरणों की संख्या और कुल अवधि में वृद्धि हुई है (अनुलग्नक में तालिका 2)। उदाहरण के लिए 1970 और 1980 के दशक में मतदान के पहले और अंतिम दिन के बीच की अवधि 3 से 4 दिन थी।[8],[9] 2009 के बाद से यह 25 दिनों से अधिक हो गई है और 2024 में 43 दिन थी।8,9 1977 और 1998 के बीच, मतदान के दिनों की कुल संख्या 4 या उससे कम थी।8,9  2014 में यह बढ़कर 10 और 2019 एवं 2024 में 7 हो गई।8,9 राज्य विधानसभाओं के चुनावों के चरणों की संख्या और अवधि में भी काफी भिन्नता रही है (अनुलग्नक में तालिका 3)।

जबकि इन वर्षों के दौरान मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है, तकनीकी बदलाव जैसे बैलेट पेपर से ईवीएम में बदलाव, वित्तीय संसाधनों, कर्मचारियों की संख्या और देश भर में समूची कानून व्यवस्था की स्थिति में भी सुधार हुआ है। इससे यह प्रश्न उठ सकता है कि क्या चुनाव में लगने वाले समय को कम करने के लिए चुनाव की शेड्यूलिंग की भी समीक्षा की जा सकती है। चुनाव की अवधि घटने से आदर्श आचार संहिता लागू रहने का समय भी कम हो सकता है।

एमसीसी का प्रभाव

चुनावों की घोषणा होने पर एमसीसी को लागू किया जाता है, जो चुनाव में किसी भी अनुचित लाभ को कम करने के लिए सत्तासीन दल पर कुछ प्रतिबंध लगाती है।[10]  इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सरकारी खजाने से वित्तपोषित विज्ञापन जारी करने पर प्रतिबंध, (ii) किसी भी रूप में वित्तीय अनुदान की घोषणा, या इस संबंध में वादे करने और परियोजनाओं या योजनाओं की आधारशिला रखने पर रोक, और (iii) सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में तदर्थ नियुक्तियां करने पर रोक, जिनसे चुनाव में फायदा हो सकता है।10

संविधान संशोधन बिल के एसओआर और साइमल्टेनियस इलेक्शन पर उच्च स्तरीय समिति ने भी कहा था कि बार-बार चुनावों और लंबे समय तक एमसीसी लागू रहने से शासन में व्यवधान और नीतिगत गतिहीनता आती है।1  हालांकि निर्वाचन आयोग का कहना है कि एमसीसी मौजूदा योजनाओं के कार्यान्वयन में बाधा नहीं डालती है।10  उसका यह कहना भी है कि एमसीसी मौजूदा योजनाओं को चालू न करने या उन्हें निष्क्रिय रखने का बहाना नहीं हो सकती है।10 इसके अलावा, पहले से शुरू किए गए कार्य जारी रह सकते हैं और पूर्ण किए गए कार्यों के लिए भुगतान जारी करने पर कोई रोक नहीं है।10 एमसीसी में आपात स्थिति या प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए शुरू की गई योजनाओं को मंजूरी देने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।10 इसके अलावा एमसीसी केवल उन निर्वाचन क्षेत्रों या राज्य पर प्रतिबंध लगाती है, जहां चुनाव हो रहे हैं, अन्य क्षेत्रों में नहीं।10  विधि आयोग (2018) ने कहा था कि एमसीसी से प्रशासनिक गतिहीनता नहीं आती, लेकिन मतदाताओं को प्रभावित करने वाले नीतिगत निर्णयों से बचने के चलते गवर्नेंस में कमी आ सकती है।3

 

संविधान संशोधन बिल:

क्लॉज 2, 3, 4

 

केंद्र शासित प्रदेश कानून संशोधन बिल: क्लॉज 2(5), 3(5), 4(5)

विधायिका का कार्यकाल

बिल में संविधान में संशोधन करके लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रावधान है। बिल के प्रावधानों को लागू करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख पर अधिसूचना जारी की जा सकती है। अधिसूचना की तारीख के बाद गठित सभी राज्य/यूटी विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल (पूर्ण कार्यकाल का तात्पर्य उसकी पहली बैठक से पांच वर्ष है) की समाप्ति के साथ समाप्त हो जाएगा। अगर लोकसभा या राज्य/यूटी विधानसभा अपने पांच वर्ष के पूर्ण कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है, तो पांच वर्ष के शेष कार्यकाल के बराबर अवधि के लिए चुनाव कराए जाएंगे। इससे हर पांच वर्ष में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे।

बिल के परिणामस्वरूप कुछ मामलों में विधायिकाओं का कार्यकाल छोटा हो सकता है

प्रस्तावित व्यवस्था के परिणामस्वरूप, शुरुआत में और निरंतर आधार पर बहुत ही अल्पावधि की विधायिकाओं का निर्माण हो सकता है। उदाहरण के लिए राष्ट्रपति द्वारा जून 2029 में एक साथ चुनाव कराने की अधिसूचना जारी की जाएगी, ताकि जून 2034 के आसपास पहली बार साइमल्टेनियस इलेक्शन कराए जा सकें। यहां कुछ उदाहरण विभिन्न परिदृश्यों को दर्शाते हैं।

उदाहरण 1- राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल में शुरुआती कटौती: कुछ राज्यों में 2028 में चुनाव होने हैं। संविधान के अनुच्छेद 172 के अनुसार उनकी विधानसभाएं अपने पांच वर्ष के कार्यकाल के अंत में भंग हो जाएंगी। नतीजतन, वहां 2033 में एक वर्ष से भी कम अवधि के लिए चुनाव कराने होंगे, ताकि जून 2034 में पहली बार साइमल्टेनियस इलेक्शन हो सकें।

उदाहरण 2- बाद में लोकसभा के कार्यकाल में कटौती: मान लीजिए, 2038 में अपने कार्यकाल के लगभग चार वर्ष बाद तत्कालीन केंद्र सरकार अपने गठबंधन सहयोगियों का समर्थन खो देती है, और कोई अन्य गठबंधन बहुमत का दावा करने के लिए नहीं उभरता है। लोकसभा के लिए आगामी चुनाव एक वर्ष से कम अवधि के लिए कराने होंगे। उसके बाद एक वर्ष के भीतर पूरे पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए एक और चुनाव होगा।

उदाहरण 3- राज्य विधानसभा के कार्यकाल में बाद में कटौती: इसी प्रकार, अगर कोई राज्य विधानसभा 2038 में भंग हो जाती है, तो आगामी चुनाव एक वर्ष से कम कार्यकाल वाली विधानसभा के लिए कराए जाएंगे।

अल्पावधि वाली सरकारें प्रभावी शासन प्रदान करने में सक्षम नहीं हो सकेंगी

अल्पावधि वाली विधायिका में मंत्रियों को प्रशासन की बारीकियों से परिचित होने का पर्याप्त समय नहीं मिल सकता। इससे शासन और नीति निर्माण की प्रभावशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसी विचार से संविधान के तहत पांच वर्ष की अवधि का प्रावधान किया गया था। संविधान के मसौदे में चार वर्ष का कार्यकाल निर्धारित किया गया था।[11] 

संवैधानिक सलाहकार श्री बी.एन. राऊ ने तत्कालीन आयरिश प्रधानमंत्री श्री डे वलेरा के साथ परामर्श के बाद इसे पांच वर्ष करने का प्रस्ताव रखा। श्री डे वलेरा ने कहा था कि संसदीय शासन प्रणाली के अंतर्गत, मंत्रियों को प्रशासनिक बारीकियों से परिचित होने के लिए अपने कार्यकाल की शुरुआत में कम से कम एक वर्ष की आवश्यकता होती है।11 कार्यकाल का अंतिम वर्ष अगले चुनाव की तैयारी में बीत जाता है।11 इसलिए चार वर्ष के कार्यकाल में उनके पास प्रभावी कार्य के लिए केवल दो वर्ष ही होंगे, जिसे वे किसी भी प्रकार के योजनाबद्ध प्रशासन के लिए बहुत कम मानते थे।11

अगर बिल लागू होता है, तो ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं, जब लोकसभा या राज्य विधानसभा के लिए कम अवधि के लिए चुनाव कराए जाएं (यह एक वर्ष से कम भी हो सकता है)। यह स्पष्ट नहीं है कि इतने कम कार्यकाल के लिए चुनी गई सरकार किस तरह से नीतियां बनाएगी और उन्हें कैसे लागू करेगी। यह प्रश्न भी है कि क्या इतनी कम अवधि के कार्यकाल में सरकार ऐसे कदम ही उठाएगी, जिसका तत्काल प्रभाव हो, और जरूरी नहीं कि मध्यम से लंबी अवधि में वह वांछनीय हो।

ऐसी परिस्थितियों में मतदाताओं के व्यवहार के उदाहरण सीमित हैं

दुनिया भर में एक वर्ष से कम अवधि वाली विधायिकाओं के लिए चुनावों की बहुत अधिक मिसाल नहीं है। संसदीय लोकतंत्रों में, स्वीडन में इस बिल में प्रस्तावित प्रणाली के समान ही प्रणाली अपनाई जाती है।[12] स्वीडन में संसद का कार्यकाल चार वर्ष का होता है।12 अगर समय से पहले चुनाव होते हैं, तो इस तरह से गठित संसद केवल चार वर्ष के कार्यकाल के शेष समय तक ही चलती है।12  1971 के बाद से जब स्वीडन ने एक सदनीय विधायिका को अपनाया, तब से समय से पहले चुनाव का ऐसा कोई उदाहरण नहीं है।12

बेल्जियम भी 2014 से साइमल्टेनियस इलेक्शन की प्रणाली का पालन कर रहा है।[13]  राष्ट्रीय और क्षेत्रीय विधानमंडलों के चुनाव यूरोपीय संसद के चुनाव के दिन ही होते हैं।13  जब चुनाव जल्दी कराने होते हैं तो वहां निर्वाचित विधानमंडल का कार्यकाल शेष पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए होता है।13  हालांकि 2018 में जब सरकार ने अपने कार्यकाल की समाप्ति से छह महीने पहले विश्वास मत खो दिया, तो जल्दी-जल्दी चुनावों से बचने के लिए उसे कार्यवाहक सरकार के रूप में काम करने की अनुमति दे दी गई।[14]

ऐसा अनुभवजन्य उदाहरण न होने पर, प्रश्न यह भी है कि कम अवधि के लिए चुनाव मतदाताओं की भागीदारी और आकांक्षाओं को कैसे प्रभावित करेगा। यह जानते हुए कि पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए एक और चुनाव जल्द ही होने वाला है, मतदाता अंतरिम चुनाव में भाग लेने के लिए कम प्रोत्साहित हो सकते हैं।

 

संविधान संशोधन बिल:

क्लॉज 2(5)

राज्य विधानसभा के चुनाव का स्थगन

निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति को राज्य विधानसभा के चुनाव स्थगित करने की सिफारिश कर सकता है। अगर निर्वाचन आयोग की राय है कि राज्य विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ नहीं कराए जा सकते, तो राज्य विधानसभा का चुनाव साइमल्टेनियस इलेक्शन के बाद कराया जा सकता है। इस प्रकार की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा इस संबंध में आदेश जारी किया जा सकता है। अगर राज्य विधानसभा का चुनाव स्थगित किया जाता है, तो उसका कार्यकाल इस तरह से कम किया जा सकता है कि भविष्य के चुनाव साइमल्टेनियस इलेक्शन के चक्र के साथ कराए जाएं। हम नीचे इन प्रावधानों से जुड़े कुछ मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।

चुनाव स्थगित करना निर्वाचन आयोग के लिए आसान हो सकता है

बिल में निर्वाचन आयोग के लिए ऐसा कोई और सिद्धांत निर्दिष्ट नहीं किया गया है जिसके आधार पर वह अपनी सिफारिशें दे सके। यह स्पष्ट नहीं है कि किन परिस्थितियों में ऐसे उपायों की आवश्यकता हो सकती है। वर्तमान में संविधान का अनुच्छेद 356 तीन शर्तों के पूरा होने पर चुनाव स्थगित करने की अनुमति देता है: (क) आपातकाल लागू है; (ख) राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन है, और (ग) निर्वाचन आयोग साबित कर देता है कि राज्य में आम चुनाव कराने में कठिनाइयां हैं। पहली दो शर्तों को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा मंजूर किया जाना चाहिए। बिल में ये शर्तें नहीं दी गई हैं, और इसलिए यह चुनाव स्थगित करने की शर्तों को कम करता है, यानी चुनाव स्थगित करना आसान बनाता है।

अगर चुनाव विधानसभा भंग होने के बाद कराए जाते हैं, तब शासन व्यवस्था पर स्पष्टता का अभाव है

संविधान के अनुसार, राज्य विधानसभा पांच वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने पर भंग हो जाती है। साइमल्टेनियस इलेक्शन के चक्र में, एक राज्य विधानसभा अगले साइमल्टेनियस इलेक्शन तक अपना पांच वर्षीय कार्यकाल पूरा कर लेगी। हालांकि बिल निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर किसी भी राज्य विधानसभा के चुनाव स्थगित करने की अनुमति देता है। लेकिन बिल में चुनाव स्थगित करने की अवधि की कोई सीमा नहीं है। ऐसे मामले में चुनाव होने तक राज्य विधानसभा के बिना होगा।

अगर चुनाव स्थगित हो जाता है, और किसी विशेष राज्य में कोई विधानसभा नहीं रहती, तो बिल में यह अस्पष्ट है कि सरकार कौन और किस अधिकार के तहत चलाएगा। ऐसी स्थिति में कार्यवाहक सरकार को जारी रखने या राष्ट्रपति शासन लागू करने जैसे उपायों की आवश्यकता हो सकती है। चुनाव होने तक अस्थायी व्यवस्था के रूप में राज्यपाल द्वारा अल्प अवधि के लिए कार्यवाहक सरकार नियुक्त की जाती है। राष्ट्रपति शासन के लिए दो महीने के भीतर संसद द्वारा मंजूरी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, इन दोनों स्थितियों में निर्वाचन आयोग के अलावा अन्य संवैधानिक निकायों के निर्णयों की आवश्यकता होती है। बिल निर्वाचन आयोग को ऐसी स्थिति तैयार करने के लिए तो सक्षम बनाता है, लेकिन उस स्थिति से बाहर निकलने की प्रक्रिया को स्पष्ट नहीं करता। मौजूदा प्रावधानों का कारण यह है कि संसदीय लोकतंत्र में सरकार हमेशा निर्वाचित प्रतिनिधियों का विश्वास बरकरार रखते हुए वैधता प्राप्त करती है। वर्तमान रूपरेखा सदन के पांच वर्ष के कार्यकाल की समाप्ति पर चुनाव कराने को अनिवार्य बनाकर उपरोक्त अनिश्चितताओं को समाप्त करती है।

तालिका 1: केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा चुनावों पर किया गया व्यय (करोड़ रुपए में)

चुनावी वर्ष

व्यय

जीडीपी
(वर्तमान मूल्य)

जीडीपी के % के रूप में व्यय

1952

10.5

10,663

0.098%

1957

5.9

13,710

0.043%

1962

7.3

20,077

0.036%

1967

11

37,601

0.029%

1971

12

50,120

0.023%

1977

23

1,04,024

0.022%

1980

55

1,47,063

0.037%

1984

82

2,52,188

0.032%

1989

154

4,93,278

0.031%

1991

359

6,62,260

0.054%

1996

597

13,94,816

0.043%

1998

666

17,72,297

0.038%

1999

948

19,88,262

0.048%

2004

1,016

31,86,332

0.032%

2009

1,114

63,66,407

0.018%

2014

3,870

1,24,67,959

0.031%

स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 1508, राज्यसभा, विधि एवं न्याय मंत्रालय, 4 जुलाई, 2019 को दिया गया उत्तर; एमओएसपीआई; पीआरएस।

तालिका 2: लोकसभा चुनाव का शेड्यूल

चुनावी वर्ष

चुनाव के दिन

मतदान के पहले और अंतिम दिन के बीच के दिन

मतदाता (करोड़ में)

1952

17

23

17.3

1957

20

19

19.4

1962

7

6

21.6

1967

13

13

25.0

1971

9

9

27.4

1977

4

4

32.1

1980

2

3

35.6

1984

3

4

40.0

1989

3

4

49.9

1991

4

16

51.2

1996

3

10

59.3

1998

4

12

60.6

1999

8

28

62.0

2004

4

20

67.2

2009

5

27

71.7

2014

10

35

83.4

2019

7

38

91.2

2024

7

43

97.9

स्रोत: इलेक्टोरल स्टैटिस्टिक्स पॉकेट बुक 2023; 18वीं लोकसभा के आम चुनावों के कार्यक्रम पर प्रेस नोट, ईसीआई; पीआरएस।

तालिका 3: हालिया राज्य विधानसभा चुनावों के शेड्यूल

राज्य

चुनावी वर्ष

मतदाता (करोड़ में)

चुनावी दिनों की संख्या

मतदान के पहले और अंतिम दिन के बीच के दिन

 

राज्य

चुनावी वर्ष

मतदाता (करोड़ में)

चुनावी दिनों की संख्या

मतदान के पहले और अंतिम दिन के बीच के दिन

 

 

आंध्र प्रदेश

2024

4.14

1

-

अरुणाचल प्रदेश

2024

0.07

1

-

असम

2021

2.32

3

10

बिहार

2020

7.29

3

10

छत्तीसगढ़

2023

2.04

2

10

दिल्ली

2025

1.55

1

-

गोवा

2022

0.12

1

-

गुजरात

2022

4.91

2

4

हरियाणा

2024

2.03

1

-

हिमाचल प्रदेश

2022

0.56

1

-

जम्मू एवं कश्मीर

2024

0.89

3

13

झारखंड

2024

2.61

2

7

कर्नाटक

2023

5.24

1

-

केरल

2021

2.68

1

-

मध्य प्रदेश

2023

5.61

1

-

महाराष्ट्र

2024

9.65

1

-

 

मणिपुर

2022

0.21

2

4

मेघालय

2023

0.22

1

-

मिजोरम

2023

0.09

1

-

नागालैंड

2023

0.13

1

-

ओड़िशा

2024

3.37

4

19

पुद्दूचेरी

2021

0.10

1

-

पंजाब

2022

2.14

1

-

राजस्थान

2023

5.27

1

-

सिक्किम

2024

0.05

1

-

तमिलनाडु

2021

6.28

1

-

तेलंगाना

2023

3.17

1

-

त्रिपुरा

2023

0.28

1

-

उत्तर प्रदेश

2022

15.06

7

25

उत्तराखंड

2022

0.82

1

-

पश्चिम बंगाल

2021

7.34

8

33

स्रोत: विभिन्न विधानसभाओं के लिए चुनावी शेड्यूल पर प्रेस नोट, ईसीआई; पीआरएस।

 

 

तालिका 4: चुनिंदा देशों में चुनाव प्रक्रिया

देश

सरकार का प्रकार

संघीय

राष्ट्रीय विधायिका का कार्यकाल

प्रांतीय विधायिका का कार्यकाल

साइमल्टेनियस इलेक्शंस

शेष कार्यकाल के लिए जल्दी चुनाव

ऑस्ट्रेलिया[15]

संसदीय

हां

3 वर्ष

4 वर्ष

नहीं

नहीं

बेल्जियम13

संसदीय

हां

5 वर्ष

5 वर्ष

हां; यूरोपियन पार्लियामेंट चुनाव के साथ नेशनल और प्रॉविंशियल लेजिसलेटर के चुनाव भी कराए जाते हैं

हां*

कनाडा[16]

संसदीय

हां

4 वर्ष

4 वर्ष

नहीं

नहीं

जर्मनी[17]

संसदीय

हां

4 वर्ष

4 से 5 वर्ष $

नहीं

नहीं

स्वीडन12

संसदीय

नहीं

4 वर्ष

-

हां; नेशनल लेजिसलेटर, और रीजनल और म्यूनिसिपल काउंसिल के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं

हां#

यूके

संसदीय

नहीं

5 वर्ष

-

नहीं

नहीं

यूएसए[18]

राष्ट्रपति

हां

2 वर्ष, राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 वर्ष का होता है

2 या 4 वर्ष, ज्यादातर स्टेट्स में गवर्नर का कार्यकाल 4 वर्ष का होता है

नहीं

नहीं

नोट: *2018 में सरकार ने विश्वास मत खो दिया था जिसके कारण जल्दी चुनाव कराने पड़े। हालांकि सरकार को कार्यवाहक क्षमता में बने रहने की अनुमति दी गई थी ताकि जल्दी-जल्दी चुनाव न हों। $16 में से 15 स्टेट्स में 5 वर्षीय कार्यकाल है। #1971 के बाद से समय से पहले कोई भी चुनाव नहीं हुआ है।

स्रोत: देश वाले कॉलम में एंडनोट्स देखे; पीआरएस।

 

[1]. High-Level Committee Report on Simultaneous Elections in India, March 2024, https://onoe.gov.in/HLC-Report-en.

[2]. Report No. 79, Standing Committee on Personnel, Public Grievances, Law and Justice: ‘Feasibility of Holding Simultaneous Elections’, 2015, https://legalaffairs.gov.in/sites/default/files/simultaneous_elections/79th_Report.pdf.

[3]. Draft Report on Simultaneous Elections, Law Commission, 2018, https://legalaffairs.gov.in/sites/default/files/simultaneous_elections/LCI_2018_DRAFT_REPORT.pdf.

[4]. Constituent Assembly Debates on November 4, 1948, Volume VII, https://eparlib.nic.in/bitstream/123456789/762996/1/cad_04-11-1948.pdf.

[5]. Unstarred Question No. 1508, Rajya Sabha, Ministry of Law and Justice, Answered on July 4, 2019, https://sansad.in/getFile/annex/249/Au1508.docx?source=pqars.

[7]. “2024 LS polls, costliest ever, expenditure may touch Rs 1.35 trn: Report”, Business Standard, April 26, 2024, https://tinyurl.com/biz-std-2024-election-expense

[8]. Table 6.2, Table 6.6, Electoral Statistics Pocket Book 2023, ECI, https://tinyurl.com/eci-stats-pocket-book-2023.

[9]. “Schedule of the General Elections to 18th Lok Sabha”, ECI, https://elections24.eci.gov.in/docs/press-note-no-23.pdf.

[10]. Model Code of Conduct, ECI, https://www.eci.gov.in/mcc/; Compendium of Instructions on Model Code of Conduct, ECI, https://ceobihar.nic.in/pdf/Compendium_MCC.pdf.

[11]. Chapter 2, Part I: Report by the Constitutional Advisor, on his visit to USA, Canada, Ireland, and England, Pages 223-224, Pages 227-228, The Framing of the India’s Constitution: Select Documents, Volume III, Indian Institute of Public Administration, https://ia801500.us.archive.org/22/items/in.ernet.dli.2015.278539/2015.278539.The-Framing.pdf.

[12]. Elections to the Riksdag, Website of Swedish Parliament, as accessed on May 13, 2025, https://www.riksdagen.se/en/how-the-riksdag-works/democracy/elections-to-the-riksdag/#extraordinary-elections-5; Article 11 – Extraordinary Elections, The Constitution of Sweden, https://shorturl.at/GiMEx.   

[13]. The Belgian Parliament and EU affairs, European Parliamentary Research Service, January 2024, https://www.europarl.europa.eu/RegData/etudes/BRIE/2024/754619/EPRS_BRI(2024)754619_EN.pdf; Article 46, Article 65, Article 117, The Belgian Constitution, http://www.parliament.am/library/parlamentarizm2019/belgia.pdf.

[14]. “No Belgium snap election despite PM losing majority”, AFP, France24, December 21, 2018, https://www.france24.com/en/20181221-no-belgium-snap-election-despite-pm-losing-majority.

[15]. The Australian system of government, Australian Parliament, as accessed on May 15, 2025, https://shorturl.at/WbElZ

[16]. The Canadian System of Government, House of Commons Procedure and Practice, Third Edition, Canada, 2017, https://www.ourcommons.ca/procedure/procedure-and-practice-3/ch_01_1-e.html.

[17]. Article 39, Article 67, Article 68, Basic Law for the Federal Republic of Germany; “Elections to the Länder parliaments”, Website of the Federal Returning Officer, Germany, as accessed on May 13, 2025, https://www.bundeswahlleiterin.de/en/service/landtagswahlen.html; “Dates of elections to parliaments in the federal states”, Website of Bundesrat, Germany, as accessed on May 13, 2025, https://www.bundesrat.de/EN/organisation-en/laender-en/wahltermine-en/wahltermine-en-node.html.

[18]. Article II, The Constitution of USA; Summary of the U.S. Presidential Election Process, U.S. Embassy and Consulate, last accessed on May 6, 2025, https://kz.usembassy.gov/summary-of-the-u-s-presidential-election-process/; “Number of Legislators and Length of Terms in Years”, National Conference on State Legislatures, USA, June 19, 2024, https://www.ncsl.org/resources/details/number-of-legislators-and-length-of-terms-in-years.

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