ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

वन (संरक्षण) संशोधन बिल, 2023

  • वन (संरक्षण) संशोधन बिल, 2023 पर गठित ज्वाइंट कमिटी (चेयर: श्री राजेंद्र अग्रवाल) ने 20 जुलाई, 2023 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। बिल वन (संरक्षण) एक्ट, 1980 में संशोधन करता है। एक्ट में वन भूमि के संरक्षण के प्रावधान हैं। बिल एक्ट के दायरे में कुछ प्रकार की भूमि को शामिल, और कुछ को उससे बाहर करता है। यह चिड़ियाघरों और सफारी जैसी कुछ गतिविधियों को वनों के भीतर चलाने की अनुमति भी देता है। कमिटी ने बिल के तहत सभी संशोधनों की पुष्टि की, जबकि पांच सदस्यों ने अपनी असहमति जाहिर करते हुए कुछ नोट्स सौंपे। रिपोर्ट की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

  • एक्ट के दायरे में आने वाली भूमि: एक्ट में गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के उपयोग पर प्रतिबंध है।  बिल प्रावधान करता है कि दो प्रकार की भूमि एक्ट के तहत होगी: (i) भारतीय वन एक्ट, 1927 या किसी अन्य कानून के तहत वन के रूप में घोषित/अधिसूचित भूमि, या (ii) सरकारी रिकॉर्ड में 25 अक्टूबर, 1980 को या उसके बाद वन के रूप में अधिसूचित भूमि। कमिटी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय (1996) ने माना था कि सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज कोई भी क्षेत्र एक्ट के दायरे में आएगा। इसमें 25 अक्टूबर, 1980 से पहले वन के रूप में दर्ज भूमि शामिल होगी। असहमति के एक नोट के अनुसार, जमींदारी प्रथा के उन्मूलन (1950-70 के दशक) के दौरान वन विभाग को हस्तांतरित वन भूमि के बड़े हिस्से को किसी भी कानून के तहत वन के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया था। ये भूमि अरावली और पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्रों में मौजूद हैं। नोट में कहा गया है कि ये जैव विविधता के हॉटस्पॉट हैं और वर्तमान में एक्ट के तहत संरक्षित हैं। इसमें कहा गया है कि 25 अक्टूबर 1980 से पहले दर्ज की गई वन भूमि को बाहर करने से सर्वोच्च न्यायालय का 1996 का फैसला कमजोर हो जाएगा। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा कि बिल की एप्लिकेबिलिटी की दूसरी शर्त में 25 अक्टूबर, 1980 से पहले वन के रूप में दर्ज ऐसी भूमि भी शामिल है।

  • एक्ट के दायरे से छूट प्राप्त भूमि: बिल भूमि की कई श्रेणियों को एक्ट के दायरे से बाहर करता है। इनमें निम्नलिखित भूमि शामिल है: (i) सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए 10 हेक्टेयर तक की भूमि, (ii) कूटनीतिक राष्ट्रीय महत्व या सुरक्षा के लिए लीनियर प्रॉजेक्ट के निर्माण हेतु अंतरराष्ट्रीय सीमाओं, नियंत्रण रेखा या वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ 100 किमी के भीतर स्थित भूमि, और (iii) वामपंथी अतिवादी प्रभावित क्षेत्रों में पांच हेक्टेयर क्षेत्र के भीतर रक्षा संबंधी प्रॉजेक्ट्स/अर्धसैनिक बलों के लिए शिविर/पब्लिक यूटिलिटी प्रॉजेक्ट्स के निर्माण के लिए प्रस्तावित भूमि। असहमति के एक नोट में यह भी कहा गया है कि बिल हिमालय और उत्तर पूर्वी क्षेत्रों के जंगलों को एक्ट के दायरे से छूट देता है। ये जंगल प्रांतीय जैव विविधता से समृद्ध हैं और इस तरह की व्यापक छूट के परिणामस्वरूप चरम मौसम की घटनाओं के कारण प्रकृति, जैव विविधता और इंफ्रास्ट्रक्चर पर असर पड़ेगा। छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश के सुझावों में स्पष्ट रूप से यह निर्दिष्ट करने को कहा गया है कि सुरक्षा संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर और पब्लिक यूटिलिटी प्रॉजेक्ट्स में क्या शामिल होगा। असहमति के नोट में यह भी कहा गया कि ये शब्दावली व्यापक है और कई किस्म के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स को शुरू करने के लिए इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय कूटनीतिक लीनियर परियोजनाओं की पहचान करेंगे और उन्हें छूट देंगे। असम को छोड़कर कई उत्तर पूर्वी राज्यों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पास 100 किलोमीटर की छूट से उनका पूरा राज्य अपने आकार और विस्तार के कारण एक्ट के दायरे से बाहर हो जाएगा। पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि ऐसी छूट केवल राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं के लिए प्रदान की जाएगी और ऐसी छूट आवश्यकता आधारित होगी। 100 किमी की सीमा अनुमत अधिकतम सीमा है।

  • गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि का उपयोग: एक्ट के तहत केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के साथ वन भूमि को गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। गैर वानिकी उद्देश्यों में सहायक संरक्षण कार्य जैसे चेक-पोस्ट, फायर लाइन बनाना और पाइपलाइनों का निर्माण शामिल नहीं है। बिल में कहा गया है कि सिल्विकल्चर, चिड़ियाघर और सफारी, और इको-पर्यटन सुविधाओं जैसी गतिविधियों, या केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किसी अन्य उद्देश्य के लिए केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।  कमिटी के सामने यह दलील भी दी गई कि जंगलों के अंदर चिड़ियाघरों और सफारी की अनुमति देने से व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ सकती हैं और उनकी स्थिति खराब हो सकती है। सिक्किम ने कहा कि बिना किसी स्पष्ट परिभाषा वाले ऐसे प्रावधानों का दुरुपयोग होने की आशंका है। पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि चिड़ियाघर और सफारी वन संरक्षण और प्रबंधन में सहायक हैं, और व्यावसायीकरण को बढ़ावा नहीं देते हैं। वे स्थानीय समुदायों को आजीविका के स्रोत और विकास के अवसर प्रदान करेंगे। मंत्रालय ने कहा कि बिल के तहत सभी छूट केवल सरकारी संस्थाओं से संबंधित हैं।

  • केंद्र सरकार की निर्देश जारी करने की शक्ति: बिल केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह एक्ट को लागू करने के लिए केंद्र या राज्य सरकार के तहत किसी भी अथॉरिटी को निर्देश जारी कर सकती है। कमिटी के सामने यह दलील दी गई कि यह प्रावधान वनों को रेगुलेट करने के राज्यों के अधिकार का उल्लंघन कर सकता है। पर्यावरण मंत्रालय ने तर्क दिया कि यह बिल जलवायु परिवर्तन और कार्बन तटस्थता जैसे वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिए एक्ट के सीमा को व्यापक बनाता है। इन मुद्दों से निपटने के लिए केंद्र सरकार को एक्ट को लागू करने से संबंधित निर्देश देने पड़ सकते हैं। 

 

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