सरकारी धनराशि की निगरानी : बजट की समीक्षा कैसे करें

सरकारी वित्त पर संसद की नजर

केंद्र सरकार का व्यय 2000-01 में 3.3 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 2023-24 में 45 लाख करोड़ रुपए हो गया, यानी प्रति व्यक्ति 32,150 रुपए का व्यय। नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के उद्देश्य से इस सरकारी धन को रक्षा, सुरक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण, शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए खर्च किया जाता है।

रेखाचित्र 1: केंद्र सरकार का व्यय बढ़ रहा है (लाख करोड़ रुपए में)

संसद के सदस्य (सांसद) यह जांच करते हैं कि यह धन कहां से जमा किया जा रहा है, इसे किस प्रकार खर्च करने की योजना है और क्या इस व्यय से अपेक्षित परिणाम हासिल होंगे। सांसद दो प्रकार से सरकार को इस खर्च के लिए जवाबदेह ठहरा सकते हैं। पहला, प्रत्येक वित्तीय वर्ष के शुरू होने से पहले वे केंद्रीय बजट की समीक्षा करते हैं और उसे मंजूर करते हैं जिसमें व्यय संबंधी प्राथमिकताओं, कराधान के प्रस्तावों और आगामी वित्तीय वर्ष में उधारियों का उल्लेख होता है। दूसरा, वे मंजूर किए गए व्यय की ऑडिट रिपोर्ट्स की जांच करते हैं ताकि यह देखा जा सके कि आवंटनों को प्रभावी और उपयुक्त तरीके से इस्तेमाल किया गया है।  

यह प्राइमर उन प्रणालियों को स्पष्ट करता है जिनके जरिए सांसद सरकार के वित्तीय प्रस्तावों पर नजर रख सकते हैं। प्राइमर में उन पारिभाषिक शब्दों को भी स्पष्ट किया गया है जोकि बजट दस्तावेजों में सरकार की आय और व्यय तथा दोनों के अधिशेष या घाटे का खुलासा करने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। प्राइमर में बजट में प्रस्तुत किए जाने वाले विभिन्न दस्तावेजों का विवरण दिया गया है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि इनसे क्या जानकारी हासिल की जा सकती है।

केंद्रीय बजट की निगरानी

संसद दो प्रकार से सरकारी धनराशि पर नजर रखती है(क) केंद्रीय बजट के जरिए सरकारी व्यय और कराधान प्रस्तावों की जांच और उन्हें मंजूरी, और (ख) संसदीय समितियों (पार्लियामेंट्री कमिटीज़) के जरिए विभिन्न कार्यों के लिए आवंटित धनराशि के उपयोग की समीक्षा करना।

रेखाचित्र 2बजटीय प्रक्रिया

 

संसद में बजट पेश होने के बाद क्या होता है?

संसद में बजट पेश होने के बाद लोकसभा और राज्यसभा में उस पर सामान्य चर्चा होती है। इस स्तर पर चर्चा बजट और सरकार के प्रस्तावों की सामान्य जांच परख तक सींमित होती है। चर्चा के अंत में वित्त मंत्री जवाब देते हैं। इस चरण पर वोटिंग नहीं होती।

सामान्य चर्चा के बाद संसद में कुछ हफ्तों का अवकाश हो जाता है। इस चरण में सभी मंत्रालयों के व्यय संबंधी विस्तृत अनुमानों को संसद की स्थायी समितियों (स्टैंडिंग कमिटीज़) के पास समीक्षा के लिए भेजा जाता है। इन अनुमानों को अनुदान मांग कहा जाता है। समितियों में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों के सदस्य होते हैं।

बजटीय प्रक्रिया में स्थायी समितियों की क्या भूमिका होती है?

वर्तमान में 24 स्थायी समितियां सभी मंत्रालयों के कामकाज की समीक्षा करती हैं। स्थायी समितियों का एक काम मंत्रालयों को आवंटित धनराशि की समीक्षा करना है। उदाहरण के लिए रक्षा संबंधी स्थायी समिति रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सभी विभागों की अनुदान मांगों की समीक्षा करती है जोकि 2023-24 के लिए 45.9 लाख करोड़ रुपए अनुमानित है (यानी बजट का 13.2%)।

रेखाचित्र 3: स्थायी समितियों के दायरे में आने वाले व्यय  (2023-24)

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स्थायी समितियां निम्नलिखित की समीक्षा करती हैं: (i) मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के लिए आवंटित राशि, (iiमंत्रालय को आवंटित राशि के उपयोग की प्रवृत्ति, (iii) योजना की डिजाइनिंग और उसके परिणाम, और (iv) प्रत्येक मंत्रालय की नीतिगत प्राथमिकता। इसके लिए मंत्रालय के अधिकारियों से समिति के सामने हाजिर होकर प्रश्नों के उत्तर देने तथा अनुदान मांगों के संबंध में अतिरिक्त जानकारी प्रदान करने की अपेक्षा की जाती है। मंत्रालय के व्यय की समीक्षा करने के दौरान समितियां विषय संबंधी विशेषज्ञों से सलाह भी ले सकती हैं या उन्हें विचार प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित कर सकती हैं।

समीक्षा के बाद समितियां अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपती हैं। समितियों के सुझावों के जरिए सांसदों को मंत्रालयों के प्रस्तावित व्यय के प्रभावों को समझने में मदद मिलती है और वे इन्हें मंजूर करने से पहले पूर्ण रूप से भिज्ञ होकर बहस में हिस्सा ले सकते हैं।

स्थायी समिति द्वारा ग्रामीण विकास विभाग की अनुदानों मांगों की समीक्षा

2023-24 की अनुदान मांगों की समीक्षा के दौरान समिति के निष्कर्ष और सुझावों में निम्नलिखित शामिल थे: (i) नौकरियों की उच्च मांग के कारण महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत धनराशि के आवंटन में वृद्धि, (ii) मनरेगा के तहत गारंटीशुदा काम के दिनों की संख्या में बढ़ोतरी की संभावनाएं तलाशना, और (iii) दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण जीविकोपार्जन मिशन, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण जैसी प्रमुख ग्रमीण विकास योजनाओं के तहत बड़ी मात्रा में खर्च न की गई राशि को प्रबंधित करने के लिए बेतर वित्तीय विवेक। 

समिति ने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के तहत सहायता अपर्याप्त थी। इसलिए निर्धारित समय में मकान नहीं बन पाए। उसने सुझाव दिया था कि यह सहायता बढ़ाई जाए, ताकि निर्माण की बढ़ती लागत को पूरा किया जा सके। 

रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद क्या होता है?

सामान्य तौर पर लोकसभा में चार से पांच अनुदान मांगों पर विस्तृत चर्चा की जाती है। हर वर्ष अलग-अलग मंत्रालयों को चर्चा के लिए चुना जाता है और यह फैसला लोकसभा की कार्य मंत्रणा समिति (बिजनेस एडवाइजरी कमिटी) द्वारा किया जाता है। चर्चा के बाद वोटिंग होती है। जिन मांगों पर चर्चा नहीं होती और अंतिम दिन वोटिंग होती है, वे गिलोटिन हो जाती हैं, यानी एक साथ पारित हो जाती हैं।

निम्नलिखित रेखाचित्र में 2015-16 से 2023-24 के दौरान गिलोटिन होने वाले बजटीय व्यय का हिस्सा प्रदर्शित किया गया है। 2018-19 और 2023-24 में सभी अनुदान मांगों को गिलोटिन कर दिया गया था, यानी बिना चर्चा के पारित कर दिया गया था।

रेखाचित्र 4बजट व्यय का हिस्सागिलोटिन बनाम चर्चा (%)

 

अनुदान मांगों पर वोटिंग के दौरान सांसद कटौती प्रस्ताव के जरिए अपनी नामंजूरी व्यक्त कर सकते हैं। अगर कटौती प्रस्ताव पारित हो जाता है तो इसका अर्थ यह है कि सरकार में विश्वास खत्म हो गया है और कैबिनेट से त्यागपत्र देने की अपेक्षा की जाती है। सांसद मंत्रालय की अनुदान राशि में निम्नलिखित कटौतियों के लिए कटौती प्रस्ताव रख सकते हैं: (i) मंत्रालय की नीतियों से नामंजूरी जताते हुए एक रुपए करने का, (ii) एक विशिष्ट राशि की कटौती का (मितव्ययता कटौती), या (iii) विशिष्ट शिकायत दर्ज कराने के लिए 100 रुपए की टोकन राशि का।

बजटीय प्रक्रिया का अंतिम चरण क्या है?

अनुदान मांग मंजूर करने के पश्चात उन्हें एप्रोप्रिएशन बिल में शामिल कर दिया जाता है। बिल स्वीकृत व्यय के लिए भारत के समेकित कोष से धन निकासी की कोशिश करता है जिसमें सरकार की सभी प्राप्तियां और उधारियां शामिल होती हैं। 

एप्रोप्रिएशन बिल के पारित होने के बाद फाइनांस बिल पर भी विचार किया जाता है और उसे पारित किया जाता है। इस बिल में कर दरों में परिवर्तनों और विभिन्न संस्थाओं पर कर लगाने से संबंधित विवरण होते हैं। 

लोकसभा के बजट पारित करने के बाद राज्यसभा एप्रोप्रिएशन और फाइनांस बिल को पारित करते समय केवल सुझाव दे सकती है क्योंकि वे दोनों मनी बिल होते हैं।

फाइनांस बिल

फाइनांस बिल बजट के साथ प्रस्तावित किया जाता है और इसमें आगामी वर्ष में सरकार के वित्तीय प्रस्ताव शामिल होते हैं। फाइनांस बिल को मूल रूप से मनी बिल के रूप में पेश किया जाता है। संविधान के अनुसार मनी बिल वे होते हैं जिनमें कराधान, सरकार की उधारियों या भारत के समेकित कोष से संबंधित प्रावधान होते हैं। मनी बिल को केवल लोकसभा की मंजूरी की जरूरत होती है, जिस पर राज्यसभा सिर्फ अपने सुझाव देती है

हाल के वर्षों में फाइनांस बिल्स में ऐसे विषयों को शामिल किया गया है जिनका करों या सरकार के व्यय से कोई संबंध नहीं था। उदाहरण के लिए फाइनांस बिल, 2017 ने 19 अर्ध न्यायिक निकायों, जैसे सिक्योरिटीज़ अपीलीय ट्रिब्यूनल, राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल्स और टेलीकॉम विवाद निपटारा और अपीलीय ट्रिब्यूनल की संरचना में बदलाव किए और प्रतिस्पर्धा अपीलीय ट्रिब्यूनल सहित सात अन्य निकायों को रद्द किया। 2017 के बिल में चुनावी बांड को प्रस्तावित किया गया जो राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदा देने की अनुमति देता था। फाइनांस बिल, 2022 ने भारतीय रिजर्व बैंक को डिजिटल रूप में बैंक नोट जारी करने की अनुमति दी थी।

अगर सरकार वर्ष के दौरान अतिरिक्त धन खर्च करना चाहती है तो क्या होता है?

वर्ष के दौरान अगर सरकार को धन खर्च करने की जरूरत पड़ती है जिसे संसद द्वारा मंजूर नहीं किया गया है या उसे अतिरिक्त व्यय करना होता है तो वह अनुपूरक अनुदान मांग प्रस्तावित कर सकती है। उल्लेखनीय है कि बजट में प्रस्तुत अनुदान मांगों से अलग, इन अनुपूरक मांगों की समीक्षा स्थायी समितियों द्वारा नहीं की जाती।

2023-24 में सरकार ने दो अनुपूरक अनुदानों मांगों को प्रस्तावित किया। इनके लिए संसद को लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त व्यय को मंजूर करना था (यानी 2023-24 के बजट का 3%)। उदाहरण के लिए दूसरी अनुदान मांगों में खाद्य और उर्वरक सबसिडी के तहत अतिरिक्त व्यय को वित्त पोषित करने के लिए क्रमशः 9,231 करोड़ रुपए और 3,000 करोड़ रुपए प्रदान किए गए।

केंद्रीय बजट की तैयारी

वित्त मंत्रालय द्वारा बजट सर्कुलर के प्रकाशन के साथ बजट की तैयारी की शुरू हो जाती है। बजट पेश करने के करीब 5-6 महीने पहले सर्कुलर जारी किया जाता है। इसमें इस बात का उल्लेख होता है कि विभिन्न मंत्रालय कितने वक्त में वित्त मंत्रालय को प्राप्ति और व्यय संबंधी अनुमान सौंपेंगे। इन अनुमानों के आधार पर अगले वित्तीय वर्ष के बजट अनुमान तैयार किए जाते हैं।

बजट पारित होने के बाद निगरानी

बजट पारित होने के बाद संसद की निगरानी इसलिए जरूरी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संसद द्वारा मंजूर राशि को उपयुक्त तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। वित्तीय समितियां (फाइनांशियल कमिटीज़) सरकार के व्यय पर संसदीय नियंत्रण की समीक्षा करती हैं और संसद में रिपोर्ट पेश करती हैं।

लोक लेखा समिति (पब्लिक एकाउंट्स कमिटी) 

वित्तीय वर्ष के समाप्त होने के बाद नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) सरकार के आय और व्यय के एकाउंट्स को ऑडिट करता है। फिर इस रिपोर्ट को संसद में पेश किया जाता है। प्रत्येक वर्ष कैग की कई रिपोर्ट्स संसद में पेश होती हैं। चूंकि संसद के लिए इन सभी रिपोर्ट्स पर चर्चा करना मुश्किल है और इसमें काफी समय लगता है, इसलिए लोक लेखा समिति (पीएसी) को कैग की रिपोर्ट्स के निष्कर्षों की जांच करने का कार्य सौंपा गया है। पीएसी इस बात की समीक्षा करती है कि क्या सरकार उस उद्देश्य के लिए धन खर्च कर रही है जिसके लिए संसद ने व्यय को मंजूर किया है।

रिपोर्ट्स की जांच करते समय पीएसी कैग के अधिकारियों, विभिन्न मंत्रालयों और विशेषज्ञों से बातचीत करती है। सरकार पीएसी की प्रत्येक रिपोर्ट पर जवाब देती है और बताती है कि उसने किस सुझाव को मंजूर किया और किसे नामंजूर। इन प्रतिक्रियाओं के आधार पर पीएसी ऐक्शन टेकन रिपोर्ट तैयार करती है और उसे संसद में पेश किया जाता है।

आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना पर पीएसी की 151वीं रिपोर्ट 

समिति ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) पर कैग की प्रदर्शन ऑडिट रिपोर्ट की समीक्षा की। पीएमजेएवाई का उद्देश्य आबादी के गरीब और कमजोर तबकों को द्वतीयक और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं की वहनीयता, सुलभता और गुणवत्ता में सुधार करना है। समिति के निष्कर्षों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) लाभार्थियों की पहचान और सत्यापन की प्रक्रिया में कमियां, (ii) डुप्लिकेशन और अपात्र लाभार्थियों के समावेश के कारण अनापेक्षित लाभार्थियों को अत्यधिक भुगतानऔर (iii) बैंक एकीकरण की कमी, ऑफलाइन भुगतान और राज्यों के हिस्से की धनराशि जारी करने में देरी के कारण बड़ी मात्रा में लंबित दावे। 

समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिए: पात्र लाभार्थियों के कवरेज की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र निकाय की स्थापनालाभार्थियों के आंकड़ों की सटीकता बढ़ाने के लिए अंतर्निहित सत्यापन जांच को शामिल करना और फाइनांशियल रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड्स का अनुपालन सुनिश्चित करना। 

प्राक्कलन समिति (एस्टिमेट्स कमिटी) 

प्राक्कलन समिति स्वीकृत और व्यय की गई राशि पर, और सरकार की सामान्य नीतियों पर संसदीय नियंत्रण कायम करती है। समिति के मुख्य कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं(क) सुधारों और प्रशासनिक सुधार, जो किए जा सकते हैं, को रिपोर्ट करना, और (ख) प्रशासन को प्रभावी बनाने के लिए वैकल्पिक नीतियों के संबंध में सुझाव देना, और (ग) यह सुझाव देना कि क्या प्रस्तावित व्यय सरकारी नीति की सीमा के भीतर है।

इससे पूर्व प्राक्कलन समिति विभिन्न मंत्रालयों के व्यय के प्रस्तावित अनुमानों की जांच करने का काम करती थी। 1993 से विभाग संबंधी स्थायी समिति को यह कार्य सौंपा गया तो प्राक्कलन समिति व्यापक रूप से कुछ सरकारी संगठनों के कार्यों की जांच करने लगी।

सशस्त्र बलों की तैयारी- रक्षा उत्पादन और खरीद पर प्राक्कलन समिति की 29वीं रिपोर्ट

समिति ने निम्नलिखित निष्कर्ष और सुझाव दिए: (i) रक्षा संबंधी तैयारी के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन आवंटित किए जाने चाहिए, चूंकि 2017-18 का बजटीय रक्षा व्यय जीडीपी का 1.6था, जोकि 1962 से अब तक सबसे कम व्यय था, (iiरक्षा बजट में पूंजीगत खरीद का हिस्सा लगातार कम हो रहा है जिसका प्रतिकूल असर सशस्त्र बलों की आधुनिकीकरण प्रक्रिया पर पड़ रहा है, और (iiiपुराने किस्म के हथियारों के स्थान पर आधुनिक हथियारों की तत्काल जरूरत जिसके लिए पूंजीगत बजट में पर्याप्त वृद्धि करनी होगी।

सार्वजनिक उपक्रम समिति (पब्लिक अंडरटेकिंग्स कमिटी) 

सार्वजनिक उपक्रम समिति का काम सार्वजनिक क्षेत्र की विभिन्न कंपनियों, जैसे भारतीय खाद्य निगम, भारतीय जीवन बीमा निगम और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के कामकाज की समीक्षा करना है। समिति: (i) सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के वित्तीय लेखों और कैग रिपोर्ट्स की समीक्षा करती है, और (ii) यह जांच करती है कि क्या ये इकाइयां उचित व्यावसायिक सिद्धांतों के अनुसार संचालित की जा रही हैं।   

सरकारी वित्त को समझना

बजट के अंग के रूप में वित्त मंत्री द्वारा आगामी वर्ष में सरकार के वार्षिक वित्तीय विवरण को पेश किया जाता है। इस विवरण में उस राशि के अनुमानों का उल्लेख होता है जिसे सरकार विभिन्न मंत्रालयों पर खर्च करने वाली है और यह भी कि विभिन्न स्रोतों, जैसे करों की वसूली और सार्वजनिक उपक्रमों के लाभांशों से किस प्रकार उस धनराशि को अर्जित किया जाएगा। बजट में सरकार की उधारियों और उसके समूचे ऋण के अनुमानों का भी जिक्र होता है। इसके अतिरिक्त विवरण में यह लेखा भी होता है कि पिछले वर्ष संसद को दिए गए अनुमानों की तुलना में सरकार ने कितना धन अर्जित या खर्च किया है। 

इस खंड में बजट की मुख्य अवधारणाओं और पारिभाषिक शब्दों को सरल शब्दों में प्रस्तुत करके, केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति को स्पष्ट किया गया है। 

सरकार अपने व्यय को किस प्रकार वित्त पोषित करती है?

सरकार की प्राप्तियों से इस बात का संकेत मिलता है कि सरकार के पास अपने व्यय को वित्त पोषित करने के लिए क्या संसाधन उपलब्ध हैं। ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं(i) सरकार की अपनी प्राप्तियां, और (ii) उधारियां।

सरकार अन्य स्रोतों के अतिरिक्त विभिन्न विभागों द्वारा लगाए जाने वाले करों, शुल्क और जुर्माने, सार्वजनिक उपक्रमों के लाभ में हिस्सेदारी और सार्वजनिक परिसंपत्तियों की बिक्री से धन अर्जित करती है। उधारियों की जरूरत तब पड़ती है, जब व्यय की तुलना में सरकार की अपनी प्राप्तियां कम होती हैं।

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