राज्यों की वित्तीय स्थिति : 2018

यह रिपोर्ट निम्नलिखित 19 राज्यों के वर्ष 2017-18 के बजटीय दस्तावेजों के आधार पर उनकी वित्तीय स्थिति का विश्लेषण करती है।

राज्य

संक्षिप्त

राज्य

संक्षिप्त

राज्य

संक्षिप्त

आंध्र प्रदेश

AP

जम्मू एवं कश्मीर

JK

राजस्थान

RJ

असम

AS

कर्नाटक

KA

तमिलनाडु

TN

बिहार

BR

केरल

KL

तेलंगाना

TS

छत्तीसगढ़

CG

मध्य प्रदेश

MP

उत्तर प्रदेश

UP

दिल्ली

DL

महाराष्ट्र

MH

पश्चिम बंगाल

WB

गुजरात

GJ

ओड़िशा

OD

 

 

हरियाणा

HR

पंजाब

PB

 

 

 एक झलक

कर वसूलने की कम क्षमता के कारण कुछ राज्य केंद्रीय हस्तांतरणों पर निर्भर होते हैं

अनेक राज्य जैसे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक अपने स्वयं के करों से अपने राजस्व का एक बड़ा हिस्सा जुटाते हैं। दूसरी ओर जम्मू और कश्मीर, असम और बिहार अपने करों से केवल 20% राजस्व जुटाते हैं। परिणामस्वरूप इन राज्यों को केंद्रीय हस्तांतरणों यानी केंद्रीय करों और अनुदानों के हस्तांतरण पर बहुत हद तक निर्भर रहना पड़ता है।  

रेखाचित्र 1: कुल राजस्व में कर राजस्व की हिस्सेदारी सभी राज्यों में भिन्न है (2017-18)

Sources: State Budget Documents; PRS.

हाल के वर्षों में राज्यों में कर वृद्धि की गति मंद रही, अधिकतर को जीएसटी मुआवजे की जरूरत

जीएसटी के लागू होने के बाद जिन राज्यों की कर राजस्व वृद्धि 14% से कम रही, उन्हें केंद्र द्वारा मुआवजा दिया जाएगा। हाल के वर्षों में राज्यों के कर राजस्व में 9% की वार्षिक दर से वृद्धि हुई (2012-15), जोकि पहले के मुकाबले काफी कम है। अगर यह गिरावट जारी रही तो अनेक राज्य केंद्रीय मुआवजे के पात्र हो सकते हैं, जैसा कि निम्नलिखित रेखाचित्र 2 में प्रदर्शित किया गया है। उल्लेखनीय है कि यह कैलकुलेशन कर राजस्व पर आधारित है, जिसमें अल्कोहल पर सेल्स टैक्स शामिल है। यह टैक्स जीएसटी में शामिल नहीं किया गया है।  

रेखाचित्र 2: कर वृद्धि की औसत दर से संकेत मिलता है कि कुछ राज्यों को जीएसटी के अंतर्गत मुआवजे की जरूरत हो सकती है

Note: Data for Telangana unavailable.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

हस्तांतरण बढ़ने से व्यय संबंधी प्राथमिकताएं बदली हैं

14 वें वित्त आयोग के सुझावों के परिणामस्वरूप केंद्र ने राज्यों को अपने करों का बड़ा हिस्सा (42%) हस्तांतरित किया है। फलस्वरूप विभिन्न योजनाओं के लिए फंड शेयरिंग पैटर्न संशोधित हुआ, यह देखते हुए कि राज्यों के पास अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार व्यय करने का लचीलापन है। हस्तांतरण में वृद्धि के बाद जितने बजट पेश किए गए, उनमें शिक्षा पर व्यय की सीमा निश्चित रही है, जबकि स्वास्थ्य पर व्यय में वृद्धि हुई है।

रेखाचित्र 3: बजट में मुख्य क्षेत्रों में व्यय का % समान ही रहा (2010-17)

Note: Figures for 2016-17 are revised estimates and 2017-18 budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

 

भारत में केंद्र रक्षा, विदेशी मामलों और रेलवे जैसे विषयों के लिए उत्तरादायी है, जबकि राज्य स्वास्थ्य, शिक्षा, कानून एवं व्यवस्था और कृषि के लिए। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सभी राज्य सामूहिक रूप से केंद्र सरकार के मुकाबले अधिक व्यय करते हैं। उदाहरण के लिए 2016-17 में राज्यों द्वारा लगभग 28 लाख करोड़ रुपए के व्यय का अनुमान है। यह केंद्र सरकार के व्यय से 70% अधिक है, जोकि 16 लाख करोड़ रुपए था (केंद्र के व्यय में राज्यों को दिया जाने वाला अनुदान शामिल नहीं होता)।

हाल के वर्षों में राज्यों के वित्त में निम्नलिखित के कारण परिवर्तन हुआ है: (i) 14 वें वित्त आयोग के सुझावों के बाद केंद्रीय करों के हस्तांतरण में वृद्धि, (ii) वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत, और (iii) कुछ मामलों में वित्तीय प्रबंधन सीमा में छूट, इत्यादि। इस रिपोर्ट में पिछले कुछ वर्षों में 19 राज्यों (दिल्ली सहित) के वार्षिक बजट के आधार पर उनकी वित्तीय स्थिति का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट उन कुछ प्रवृत्तियों को भी प्रस्तुत करती है, जो राज्य की वित्तीय स्थिति की व्याख्या करते हैं।

जीएसटी में कर राजस्व में 14% वृद्धि का आश्वासन, राज्य कुछ लचीलापन गंवा सकते हैं

अधिकतर राज्यों में स्वयं का कर राजस्व, कुल राजस्व का बड़ा हिस्सा है

रेखाचित्र 4: राज्यों के राजस्व की संरचना (2017-18)

Note: Estimations do not take into account the roll-out of GST.

Sources: State Budget Documents; PRS.

सामान्य तौर पर राज्यों की राजस्व प्राप्तियों में उनके अपने कर राजस्व का अधिक बड़ा हिस्सा होता है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से पहले, कर राजस्व में निम्नलिखित की वसूली से प्राप्तियां शामिल होती थीं: (i) सेल्स टैक्स, (ii) राज्यों की एक्साइज ड्यूटी, (iii) वस्तुओं और यात्रियों पर इंट्री टैक्स, और (iv) स्टाम्प ड्यूटी, इत्यादि। 2017-18 में इन 19 राज्यों के कुल राजस्व में स्वयं के करों का हिस्सा लगभग 47% होने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि जीएसटी के लागू होने से पहले राज्यों द्वारा ये अनुमान लगाए गए थे। जीएसटी में सेल्स टैक्स (अल्कोहल और पेट्रोलियम को छोड़कर) और इंट्री टैक्स (चुंगी) सहित विभिन्न अप्रत्यक्ष कर शामिल हो गए। राज्यों के कुल कर राजस्व में सेल्स टैक्स का सबसे बड़ा हिस्सा (65%) होने की संभावना थी।  

इसके अतिरिक्त, राज्य विभिन्न स्रोतों से गैर कर राजस्व अर्जित करते हैं, जिनमें राज्यों द्वारा दिए जाने वाले ऋणों से अर्जित ब्याज, खनिजों के खनन का लाइसेंस शुल्क, वन क्षेत्र के संबंध में वसूला जाने वाला शुल्क, इत्यादि शामिल हैं। 2017-18 में उनके राजस्व में गैर कर राजस्व की हिस्सेदारी औसत 7% रही।  

राज्यों को अपने राजस्व का 46% हिस्सा केंद्र सरकार से प्राप्त होता है : (i) केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी के रूप में 26%, और (ii) योजनाओं और अन्य कार्यक्रमों हेतु सहायतानुदान के रूप में 20%। जैसा कि रेखाचित्र 4 में प्रदर्शित किया गया है, दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्य केंद्र पर कम निर्भर हैं और अपना अधिकतर राजस्व (70%) अपने स्वयं के द्वारा कमाते हैं। दूसरी ओर असम, बिहार, ओड़िशा, जम्मू एवं कश्मीर जैसे राज्य केंद्र पर अपेक्षाकृत अधिक निर्भर हैं और अपने स्वयं के जरिए 40% या उससे कम राजस्व अर्जित करते हैं।

राज्य कुछ लचीलापन गंवा सकते हैं, जीएसटी परिषद में सामूहिक रूप से निर्णय लिया जाएगा

जीएसटी को लागू करने से पहले, प्रत्येक राज्य यह तय करते थे कि किन वस्तुओं पर कौन से टैक्स (जैसे सेल्स टैक्स) लगाए जाएंगे और उन टैक्सों की दर क्या होगी। इसका यह अर्थ था कि टैक्स की दर में अंतर के कारण एक वस्तु, जैसे वॉशिंग मशीन का मूल्य अलग-अलग राज्यों में अलग अलग हो सकता था। जीएसटी संरचना के अंतर्गत, केंद्र और राज्यों, दोनों को टैक्स की दरों को अधिसूचित करने की समवर्ती शक्ति है। देश भर में विभिन्न वस्तुओं पर इन टैक्स दरों को एक समान दर पर वसूला जाएगा। इसका अर्थ यह है कि देश के सभी राज्यों में वॉशिंग मशीन पर एक समान दर पर टैक्स वसूले जाएंगे।

इसके लिए जीएसटी परिषद, जिसमें केंद्र और राज्य के वित्त मंत्री शामिल हैं, सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिए टैक्स की दरें निर्धारित करेगी। यह निर्णय 75% वोट से लिया जाएगा (केंद्र का 33% वोट है और शेष 67% में प्रत्येक राज्य का समान वोट शेयर है)। इसका अर्थ यह है कि अंतिम निर्णय (सक्सेसफुल वोट) के लिए 31 राज्यों (दिल्ली और पुद्दूचेरी सहित) में से 20 राज्यों को सहमत होना होगा। फैसला होने पर परिषद सुझाव देगी कि केंद्र और राज्य सरकारें क्रमशः केंद्रीय जीएसटी और राज्य जीएसटी की दरों को अधिसूचित करें।

जीएसटी के लागू होने के बाद टैक्स की दरें

जीएसटी के अंतर्गत सभी वस्तुएं और सेवाएं निम्नलिखित टैक्स स्लैब्स में वर्गीकृत की गई हैं: (i) 5%, (ii) 12%, (iii) 18%, (iv) 28%, और (v) जीएसटी मुआवजा सेस के साथ 28%। इसके अतिरिक्त कुछ वस्तुओं को 0% टैक्स स्लैब में रखा गया है (जिसका अर्थ यह है कि वे इनपुट टैक्स क्रेडिट के लिए पात्र होंगी) और कुछ को छूट दी गई है।

उदाहरण के लिए जीएसटी के लागू होने से पहले कारों पर टैक्स की दरें विभिन्न राज्यों में अलग अलग थीं। जैसे दिल्ली में कारों की बिक्री पर 12.5% टैक्स लगता था, तमिलनाडु में 14.5%[1] यह उन एक्साइज ड्यूटीज़ के अतिरिक्त था, जो देश में एक समान थीं। जीएसटी के अंतर्गत पूरे देश में कारों पर 28% टैक्स वसूला जाएगा (इसके अतिरिक्त करों पर जीएसटी मुआवजा सेस भी वसूला जाएगा)।

राज्यों के कुल राजस्व का 23% से भी कम हिस्सा जीएसटी में शामिल

जीएसटी में राज्यों द्वारा वसूले जाने वाले विभिन्न टैक्सों को शामिल किया गया है, जैसे वस्तुओं की बिक्री पर सेल्स टैक्स (शराब और पेट्रोलियम सहित) और इंटरटेनमेंट टैक्स। राज्यों की कुल राजस्व प्राप्तियों (कर राजस्व, गैर कर राजस्व और राज्यों को केंद्रीय हस्तांतरण) के 23% से कम हिस्से के जीएसटी में शामिल होने की उम्मीद है। इस राशि में अल्कोहल पर वसूला जाने वाला सेल्स टैक्स शामिल है, जोकि जीएसटी में सम्मिलित नहीं है। इसलिए जीएसटी के अंतर्गत शामिल होने वाले कर राजस्व का प्रतिशत उससे कम होगा, जितना रेखाचित्र 5 में प्रदर्शित किया गया है। 

रेखाचित्र 5: राज्यों के कुल राजस्व में औसतन 23% से भी कम हिस्सा जीएसटी में शामिल है (2014-16)

Note: GST does not subsume Sales Tax on alcoholHowever, this chart does not exclude such amount as this data is not available for all statesTherefore, the percentage of tax revenue subsumed under GST is less than shown here.

Sources: State Budget Documents; Petroleum Planning and Analysis Cell; RBI State of State Finances; PRS.

टैक्स संबंधित फैसलों में राज्यों की स्वायत्तता

जीएसटी के लागू होने से पहले राज्यों के पास टैक्स दरों के संबंध में फैसले लेने की स्वायत्तता थी। राज्य इस संबंध में भी फैसला कर सकते थे कि कुछ टैक्सों को किस प्रकार वसूला जाएगा। जीएसटी के रोल—आउट होने के साथ जीएसटी परिषद में सहमति के आधार पर (या वोट के जरिए) इनमें से कुछ टैक्सों से संबंधित फैसले लिए जाएंगे। इससे वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स दरों को तय करने का राज्यों का लचीलापन समाप्त हो सकता है, लेकिन उनके पास यह तय करने की शक्ति अब भी होगी कि वे किस प्रकार कुछ अन्य अप्रत्यक्ष करों को वसूल सकते हैं। जिन टैक्सों की दरों और उन्हें वसूले जाने के तरीकों का फैसला राज्य अब भी कर सकते हैं, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) भूमि और भवन, (ii) अल्कोहल और नारकोटिक्स पर राज्य की एक्साइज ड्यूटी, (iii) बिजली पर टैक्स, (iv) अल्कोहल और पेट्रोलियम पर सेल्स टैक्स (जब तक जीएसटी परिषद जीएसटी के अंतर्गत पेट्रोलियम को नहीं लाती), (v) वस्तुओं और यात्रियों के परिवहन पर टैक्स, (vi) सड़क टैक्स, और (vii) टोल टैक्स। उदाहरण के लिए राज्य पेट्रोलियम उत्पादों पर सेल्स टैक्स के जरिए 8% राजस्व अर्जित करते हैं।    

रेखाचित्र 6: पेट्रोल पर सेल्स टैक्स/वैट की वसूली के जरिए राज्य 8% राजस्व अर्जित करते हैं (2016-17)

Sources: Petroleum Planning and Analysis Cell, Ministry of Petroleum and Natural Gas; Reserve Bank of India; PRS.

हाल के वर्षों में राज्यों में कर वृद्धि की दर धीमी, अधिकतर को मुआवजे की जरूरत हो सकती है

जीएसटी में राज्यों के अनेक अप्रत्यक्ष कर शामिल हैं, जैसे वस्तुओं पर वसूला जाने वाला सेल्स टैक्स (पेट्रोलियम उत्पादों और अल्कोहल के अतिरिक्त), इंट्री टैक्स और लग्ज़री टैक्स। केंद्र सरकार ने गारंटी दी कि जीएसटी के लागू होने के कारण अगर राज्यों को कर राजस्व का नुकसान होगा, तो उसका मुआवजा दिया जाएगा। इस नुकसान को कैलकुलेट करने के लिए यह माना जाएगा कि 2015-16 में राज्य का कर राजस्व वार्षिक 14% की दर पर बढ़ा है। अगर जीएसटी के लागू होने के बाद किसी राज्य के कर राजस्व की वार्षिक वृद्धि दर 14% से कम होती है, तो केंद्र इस कमी के लिए राज्य को मुआवजा देगा। मुआवजा देने के लिए कुछ वस्तुओं, जैसे मोटर वाहनों और सिगरेट पर केंद्र द्वारा जीएसटी मुआवजा सेस वसूला जाएगा।

2005-06 से 2015-16 की अवधि के दौरान, राज्यों का कर राजस्व वार्षिक 15% की औसत दर पर बढ़ा। हालांकि हाल के वर्षों में, 2012-15 के बीच, कर की वृद्धि दर निम्न रही, राज्यों के कर राजस्व में औसत 9% की वार्षिक वृद्धि ही दर्ज की गई। अगर यह गिरावट जारी रहती है तो अनेक राज्य केंद्रीय मुआवजे के पात्र हो सकते हैं। इनमें आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं (देखें रेखाचित्र 7)। उल्लेखनीय है कि यह कैलकुलेशन कुल कर राजस्व पर आधारित है, जिसमें अल्कोहल पर सेल्स टैक्स शामिल है। इसे जीएसटी में शामिल नहीं किया गया है। 

रेखाचित्र 7: कर वृद्धि की औसत दर संकेत देती है कि कुछ राज्यों को जीएसटी के अंतर्गत मुआवजे की जरूरत हो सकती है

Note: Data for Telangana not available.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

केंद्रीय हस्तांतरणों के प्रयोग में लचीलापन बढ़ा, प्राथमिकताएं समान बनी रहीं

14 वें वित्त आयोग के बाद राज्यों को केंद्र से अधिक अनटाइड धनराशि प्राप्त हो रही है

केंद्र दो मुख्य मदों में राज्यों को संसाधन हस्तांतरित करता है: (i) केंद्रीय करों में हिस्सेदारी, जिनके साथ ऐसी कोई शर्त नहीं होती कि धनराशि को किस प्रकार खर्च किया जा सकता है, और (ii) सहायतानुदान, जिसके लिए केंद्र यह शर्त सकता है कि इस राशि को किस प्रकार उपयोग किया जाए।

14 वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को 2015-16 से राज्यों को हस्तांतरित किए जाने वाले केंद्रीय करों को 32% से बढ़ाकर 42% कर देना चाहिए।[2]  राज्यों में इन टैक्सों को वितरित करने का तरीका पांच कारकों पर निर्भर था, जिनमें से प्रत्येक कारक का समान महत्व था। इन कारकों में राज्य की जनसंख्या, प्रति व्यक्ति आय, क्षेत्र और वन क्षेत्र शामिल थे। इन कारकों में आकार (जनसंख्या और क्षेत्र) और पुनर्वितरण (निर्धन राज्यों को अधिक हिस्सा) का ध्यान रखा जाता था, और अधिक वन क्षेत्र वाले राज्यों को इन्सेंटिव मिलता था। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश, जिसकी प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है, को कुल जनसंख्या में अपनी हिस्सेदारी की तुलना में अधिक आबंटित किया गया, जबकि महाराष्ट्र जैसे धनी राज्य को कम हिस्सा मिला।

रेखाचित्र 8: निर्धन राज्यों को जनसंख्या में अपनी हिस्सेदारी की तुलना में अधिक धनराशि हस्तांतरण की गई (2015-20)

Note: Finance Commission does not provide data for Delhi.

Sources: Report of the Fourteenth Finance Commission (2015-20); PRS.

हालांकि व्यय संबंधी प्राथमिकताओं के समान रहने की उम्मीद है

राज्यों को हस्तांतरित केंद्रीय करों में वृद्धि के बाद अनेक योजनाओं और कार्यक्रमों के फंड शेयरिंग पैटर्न को संशोधित किया गया। इसमें योजनाओं को समाप्त करना और उनका एकीकरण शामिल था। इस संशोधन से राज्यों को यह फैसला लेने की छूट मिली कि वे केंद्र से प्राप्त होने वाले अतिरिक्त संसाधनों का प्रयोग करते हुए किन योजनाओं को जारी रखना चाहेंगे।

इन परिवर्तनों को लागू करने के बाद राज्यों ने जो बजट प्रस्तुत किए, उनसे प्रदर्शित होता है कि उनकी व्यय संबंधी प्राथमिकताएं थोड़ी बदल गईं। उदाहरण के लिए राज्यों ने 2010-11 और 2014-15 (13 वें वित्त आयोग की अवधि) के बीच 17.4% व्यय शिक्षा पर किया, लेकिन 14 वें वित्त आयोग के तीन वर्षों के दौरान शिक्षा पर व्यय घटकर 16.5% हो गया। इस अवधि के दौरान स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यय 4% से बढ़कर 5.8% हो गया। इसी प्रकार कृषि में व्यय 5.2% से बढ़कर 5.8% और ग्रामीण विकास क्षेत्र में व्यय 3.9% से बढ़कर 5.1% हो गया।      

रेखाचित्र 9: बजट में मुख्य क्षेत्रों पर व्यय समान रहा (2010-17)

Note: Figures for 2016-17 are revised estimates and 2017-18 budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

15वें वित्त आयोग का गठन किया गया

डॉ. एन. के. सिंह की अध्यक्षता में 15वें वित्त आयोग का गठन किया गया है।[3] आयोग 2020 से 2025 की अवधि के लिए निम्नलिखित विषयों पर सुझाव देगा : (i) राज्यों के साथ केंद्रीय करों की हिस्सेदारी, (ii) वे सिद्धांत, जिनके आधार पर राज्यों को केंद्रीय अनुदान दिए जाते हैं, और (iii) राज्यों की वित्तीय स्थिति में सुधार के उपाय ताकि वे पंचायतों और म्यूनिसिपैलिटीज को संसाधन उपलब्ध करा सकें।

इसके अतिरिक्त आयोग द्वारा केंद्र और राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर जीएसटी के प्रभाव का अध्ययन भी किया जाएगा। आयोग केंद्र और राज्यों के मौजूदा ऋण स्तरों की समीक्षा करेगा और उनके ऋण और घाटे को ध्यान में रखते हुए एक रोडमैप का सुझाव देगा। आयोग राज्यों के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रदर्शन आधारित इन्सेंटिव का सुझाव भी दे सकता है: (i) जनसंख्या नियंत्रण के लिए राज्यों द्वारा किए गए प्रयास, (ii) पूंजीगत व्यय को बढ़ाने की दिशा में हुई प्रगति, और (iii) ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने में हुई प्रगति, इत्यादि।

राज्य बजट अनुमान से कम खर्च कर रहे हैं, मुख्य क्षेत्रों पर व्यय में कटौती

राज्य अपने बजट अनुमान से कम खर्च कर रहे हैं

वर्ष की शुरुआत में राज्य उस वर्ष होने वाले कुल प्रस्तावित व्यय का अनुमान लगाते हैं। वास्तविक व्यय, इस बजट अनुमान से फर्क हो सकता है। 2011-12 और 2015-16 के दौरान राज्य अपने व्यय के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाए। राज्यों ने सिलसिलेवार 7% कम व्यय किया। इसका यह अर्थ है कि वास्तविक व्यय बजट अनुमान से कम था। तेलंगाना और असम में फंड्स को सबसे कम उपयोग किया गया।

रेखाचित्र 10: राज्यों ने अपने बजट व्यय को औसत 7% कम खर्च किया (2011-15)

Note: Data for Telangana from 2014-15 onwards.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

ग्रामीण विकास और सिंचाई में सबसे कम व्यय किया गया, ऊर्जा पर सर्वाधिक

रेखाचित्र 11: विभिन्न क्षेत्रों में व्यय के आंकड़े (2011-15)

Note: Over-spending implies that the actual expenditure was more than the budget estimate.

Sources: State Budget Documents; Reserve Bank of India; PRS.

औसतन, राज्य अपने बजट का 80% राजस्व व्यय में शेष 20% पूंजीगत व्यय में खर्च करते हैं। 2011 और 2015 के बीच राज्यों ने अपने राजस्व व्यय पर 6% और पूंजीगत व्यय पर 16% कम खर्च किया।

ग्रामीण विकास पर सबसे कम खर्च किया गया, इसके बाद सिंचाई (13%) और एसी/एसटी/ओबीसीज़ के कल्याण (13%) का स्थान आता है। दूसरी ओर राज्यों ने ऊर्जा पर अपने बजट अनुमान से 17% अधिक खर्च किया। इसका कारण 2015-16 में उदय योजना को लागू करने के लिए किया गया अतिरिक्त खर्च हो सकता है। इस योजना को नवंबर 2015 में लागू किया था और परिणास्वरूप राज्यों ने मार्च 2015 में बजट प्रस्तुत करते समय इस योजना पर होने वाले व्यय का अनुमान नहीं लगाया था।

विमुद्रीकरण और केरल पर उसका प्रभाव

नवंबर 2016 में 500 और 1,000 रुपयों के करंसी नोट विमुद्रित कर दिए गए, जिसका अर्थ यह था कि इन नोटों को देश में वैध मुद्रा के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। लोगों को 31 दिसंबर, 2016 तक विमुद्रित करंसी नोटों को बदलने या जमा करने का अवसर दिया गया।

केरल के इकोनॉमिक रिव्यू- 2016 में राज्य की वित्तीय स्थिति पर विमुद्रीकरण के असर पर चर्चा की गई। यह कहा गया कि राज्य की 56% अर्थव्यवस्था पर खुदरा व्यापार, होटल, रेस्त्रां और परिवहन जैसे नकदी वाले क्षेत्रों का वर्चस्व था। करंसी नोटों की वापसी के कारण इन क्षेत्रों पर बहुत बुरा असर हुआ। देश में कुल डिपॉजिट्स की औसत 20% राशि सहकारी बैंकों में जमा है, जबकि केरल में यह आंकड़ा 60% के करीब है। इसलिए सहकारी बैंकों पर विमुद्रित करंसी नोटों को बदलने और जमा करने पर लगी रोक ने विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया।

रिव्यू में कहा गया कि विमुद्रीकरण के बाद आर्थिक क्रियाकलाप में मंदी आई और परिणामस्वरूप राज्य के स्टाम्प ड्यूटी (रियल एस्टेट क्षेत्र) और मोटर वाहन टैक्स कलेक्शन में गिरावट देखी गई। राजस्व में गिरावट और केंद्रीय हस्तांतरणों में कमी का असर राज्य के लिए बड़ा घाटा पैदा कर सकता है या राज्य स्तर पर व्यय में कमी आ सकती है।

Source: Economic Review - 2016, Government of Kerala.

2014-15 में मुख्य क्षेत्रों में राज्यों का व्यय और 2017-18 में परिवर्तन[4]

शिक्षा

2017-18 में राज्यों द्वारा शिक्षा पर 16% व्यय करने की उम्मीद है। सामान्यतया, यह व्यय योजनाओं (जैसे सर्व शिक्षा अभियान), स्कूलों की इमारतों के निर्माण और रखरखाव और शिक्षकों के वेतन पर किया जाता है। दिल्ली के शिक्षा पर सर्वाधिक खर्च (25%) करने की उम्मीद है, जबकि तेलंगाना ने इस पर सबसे कम (9%) व्यय करने का प्रस्ताव रखा है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में पहले से ज्यादा खर्च करती है क्योंकि वह पुलिस, कृषि और ग्रामीण विकास पर अधिक व्यय नहीं करती।

रेखाचित्र 12: 2017-18 में शिक्षा पर दिल्ली का व्यय सर्वाधिक

Note: Figures for 2014-15 are actuals and 2017-18 are budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

स्वास्थ्य

2017-18 में राज्यों द्वारा स्वास्थ्य पर 4% व्यय करने की उम्मीद है। यह राशि मुख्य रूप से डॉक्टरों को वेतन देने और अस्पतालों के निर्माण एवं रखरखाव पर खर्च की जाएगी। इसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं पर व्यय भी शामिल है। दिल्ली ने स्वास्थ्य पर सर्वाधिक व्यय (13%) करने का अनुमान लगाया है, जबकि तेलंगाना ने सबसे कम व्यय (3%) का प्रस्ताव रखा है।

रेखाचित्र 13: 2017-18 में स्वास्थ्य पर दिल्ली का व्यय सर्वाधिक

Note: Figures for 2014-15 are actuals and 2017-18 are budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

कृषि

2017-18 में राज्यों द्वारा अपने कुल व्यय का 7% हिस्सा कृषि क्षेत्र में खर्च करने की उम्मीद है। इसमें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और फसल बीमा योजनाओं पर किया जाने वाला खर्च शामिल है। इनमें पंजाब (14%), उत्तर प्रदेश (12%) और छत्तीसगढ़ (12%) द्वारा सर्वाधिक खर्च करने का अनुमान है।

रेखाचित्र 14: कृषि पर पंजाब और उत्तर प्रदेश का व्यय सर्वाधिक

Note: Figures for 2014-15 are actuals and 2017-18 are budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

सिंचाई

2017-18 में सिंचाई पर राज्यों द्वारा 5% व्यय किए जाने की संभावना है। इसमें सिंचाई नेटवर्क के निर्माण एवं रखरखाव और बाढ़ नियंत्रण पर किया जाने वाला व्यय शामिल है। तेलंगाना ने सिंचाई पर सर्वाधिक व्यय (18%) का प्रस्ताव रखा है, इसके बाद आंध्र प्रदेश (9%) का स्थान आता है।

रेखाचित्र 15: सिंचाई पर तेलंगाना का व्यय सबसे अधिक (2017-18)

Note: Figures for 2014-15 are actuals and 2017-18 are budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

ग्रामीण विकास

2017-18 में राज्यों द्वारा ग्रामीण विकास पर औसत लगभग 6% व्यय करने की उम्मीद है। इसमें विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों (जैसे सैनिटेशन और सड़क निर्माण से संबंधित) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) जैसी योजनाओं के कार्यान्वयन पर किया जाने वाला व्यय शामिल है। बिहार का व्यय सर्वाधिक (14%) है और इसके बाद पश्चिम बंगाल (10%) का स्थान आता है।

रेखाचित्र 16: 2017-18 में ग्रामीण विकास पर बिहार का खर्च सबसे अधिक

Note: Figures for 2014-15 are actuals and 2017-18 are budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

सड़कें और पुल

राज्यों ने सड़कों और पुलों पर अपने कुल व्यय का 4% व्यय करने का प्रस्ताव रखा है। इसमें राज्य राजमार्गों और जिला सड़कों के निर्माण और रखरखाव पर किया जाने वाला व्यय शामिल है। छत्तीसगढ़ (10%) और ओड़िशा (9%) के आबंटन सर्वाधिक हैं। 

रेखाचित्र 17: सड़कों पर छत्तीसगढ़ का व्यय सर्वाधिक (2017-18)

Note: Figures for 2014-15 are actuals and 2017-18 are budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

ऊर्जा

2017-18 में राज्यों द्वारा ऊर्जा के क्षेत्र में 6% व्यय करने की उम्मीद है। इसमें उपभोक्ताओं को दी जाने वाली सब्सिडी, पावर प्रॉजेक्ट्स पर किया जाने वाला व्यय और बिजली वितरण कंपनियों को दिया गया लोन शामिल है। इस पर जम्मू एवं कश्मीर ने 22% और राजस्थान ने 16% खर्च का प्रस्ताव रखा है। उल्लेखनीय है कि राज्य बिजली पर टैक्स या ड्यूटी वसूलकर औसतन अपना 3.2% कर राजस्व अर्जित करते हैं।

रेखाचित्र 18: ऊर्जा पर जम्मू एवं कश्मीर का सर्वाधिक व्यय

Note: Figures for 2014-15 are actuals and 2017-18 are budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

पुलिस

राज्यों ने पुलिस पर अपने कुल व्यय का 4% हिस्सा व्यय करने का प्रस्ताव रखा। इसमें पुलिसकर्मियों के वेतन और उनके आवास के निर्माण एवं रखरखाव संबंधी खर्चे शामिल हैं। जम्मू एवं कश्मीर (8%) और पंजाब (6%) का आबंटन सबसे अधिक है। हालांकि दिल्ली में पुलिस केंद्र सरकार के अंतर्गत आती है, राज्य फॉरेंसिक लेबोरेट्री पर खर्च करता है।

रेखाचित्र 19: जम्मू एवं कश्मीर और पंजाब का पुलिस पर सबसे अधिक खर्च

Note: Figures for 2014-15 are actuals and 2017-18 are budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

एससी/एसटी/ओबीसीज़ का कल्याण

एससी, एसटी और ओबीसीज़ के कल्याण कार्यक्रमों में स्कॉलरशिप्स के अतिरिक्त विद्यार्थियों के लिए हॉस्टल बनाने और उनके रखरखाव पर होने वाला खर्च शामिल है। इन कार्यक्रमों पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग व्यय होता है, जोकि राज्य में एससी और एसटी जनसंख्या पर निर्भर करता है। 2017-18 में तेलंगाना द्वारा एससी, एसटी और ओबीसी आबादी के कल्याण पर 10% व्यय किया जाएगा, जिसके बाद आंध्र प्रदेश (8%) और कर्नाटक (7%) का स्थान आता है।  

रेखाचित्र 20: एससी/एसटी/ओबीसीज़ के कल्याण पर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश का सर्वाधिक व्यय

Note: Figures for 2014-15 are actuals and 2017-18 are budget estimates.

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

अधिकतर राज्यों में घाटा सीमा के भीतर, 23% प्राप्तियों को ऋण भुगतान पर खर्च करते हैं

अधिकतर राज्यों में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 3% से कम, राज्यों का औसत 2.9%

सरकार की कुल प्राप्तियों से कुल व्यय अधिक होने को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। सरकार के उच्च राजकोषीय घाटे का अर्थ यह है कि उक्त वित्तीय वर्ष में अधिक उधारी की जरूरत होगी। सरकार विभिन्न उद्देश्यों के लिए उस उधार का उपयोग कर सकती है, जिसमें विकास संबंधी गतिविधियां और ब्याज भुगतान शामिल हैं। 2015 में 14वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया कि राज्यों को राजकोषीय घाटे को अपनी जीएसडीपी के 3% पर रखना चाहिए। उसने यह सुझाव दिया कि राजकोषीय घाटे की सीमा को अधिकतम 3.5% की छूट दी जा सकती है, केवल तभी जब राज्य एक विशिष्ट स्तरों तक अपने ऋण और ब्याज भुगतान को बनाए रख सके। यह छूट केवल निम्नलिखित मामलों में दी जाएगी : (i) 0.25%, अगर पिछले वर्ष राज्य का ऋण-जीएसडीपी अनुपात 25% से कम था, और (ii) 0.25%, अगर पिछले वर्ष राज्य का ब्याज भुगतान अपने राजस्व के 10% से कम या उसके बराबर था।2

2012-13 और 2017-18 की अवधि में, अधिकतर राज्यों ने अपना राजकोषीय घाटा वित्त आयोग की निर्धारित सीमा के भीतर बनाए रखा। जिन राज्यों का राजकोषीय घाटा निर्धारित सीमा से अधिक रहा, वे हैं जम्मू और कश्मीर (4.7%) और पंजाब (5.6%)। दूसरी ओर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना का राजकोषीय घाटा सबसे कम रहा।

रेखाचित्र 21: अधिकतर राज्यों का राजकोषीय घाटा निर्धारित सीमा से कम पर बना रहा (2012-17)

Note: Average for Telangana for four out of the six years.  Data for West Bengal unavailable.

Sources: State Budget Documents; PRS.

एफआरबीएम एक्ट क्या है?

2003 में संसद ने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन एक्ट (एफआरबीएम एक्ट) पारित किया जिसने केंद्र सरकार की घाटे और बकाया देनदारियों की सीमा निर्धारित की। इसके बाद केंद्रीय एफआरबीएम एक्ट के समान अनेक राज्यों ने अपने एफआरबीएम एक्ट पारित किए। एफआरबीएम एक्ट्स के उद्देश्य निम्नलिखित हैं: (i) अनुशासित सरकारी उधारियों को प्रोत्साहित करना, ताकि भविष्य की सरकारों पर पुनर्भुगतान का दबाव न पड़े, और (ii) यह सुनिश्चित किया जाए कि सरकारी उधारियों के कारण निजी उधारियां (व्यक्तिगत और कंपनियों की) प्रभावित न हों। केंद्र और राज्य सरकारें इन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए अपने घाटों और देनदारियों को कम करने का लक्ष्य निर्धारित करती हैं।

एफआरबीएम एक्ट की समीक्षा

2017 में एफआरबीएम रिव्यू कमिटी (चेयरपर्सन : एन. के सिंह) ने केंद्र और राज्यों के वित्तीय प्रशासन की स्थिति की समीक्षा की। कमिटी ने राजकोषीय नीति के लिए ऋण (यानी वर्ष के अंत में कुल देनदारियां) को मुख्य लक्ष्य के रूप में प्रयोग किए जाने का सुझाव दिया, जबकि मौजूदा तरीके में राजकोषीय घाटे (यानी वर्ष के लिए जरूरी उधारियां) का इस्तेमाल किया जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि देश के लिए ऋण-जीडीपी अनुपात 60% तय किया जाना चाहिए जिसमें केंद्र का ऋण जीडीपी का 40% और राज्यों का 20% हो। कमिटी ने सुझाव दिया था कि इन लक्ष्यों में फेरबदल किन कारणों से किया जा सकता है, यह स्पष्ट रूप से निर्धारित होना चाहिए और सरकारों को अन्य स्थितियों को अधिसूचित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जैसा कि मौजूदा एफआरबीएम एक्ट्स में प्रावधान है।

अधिकतर राज्यों में राजस्व अधिशेष

अगर सरकार की राजस्व प्राप्तियों (जैसे राज्य परिवहन और शिक्षा आदि सेवाएं प्रदान करने पर मिलने वाले टैक्स और फीस) से राजस्व व्यय (जैसे वेतन और ब्याज भुगतान पर होने वाला व्यय) अधिक होता है तो राजस्व घाटा होता है। राजस्व घाटे का यह मायने है कि राज्यों को उन खर्चों को पूरा करने के लिए उधार लेने की जरूरत है जिनसे परिसंपत्तियों का सृजन नहीं होता। 2012-13 से 2017-18 की अवधि के दौरान पंजाब (2.8%), पश्चिम बंगाल (1.8%) और केरल (1.6%) का राजस्व घाटा सबसे अधिक था। उल्लेखनीय है कि 14वें वित्त आयोग ने यह सुझाव दिया था कि राज्यों को अपना राजस्व घाटा कम करना चाहिए।   

राजस्व अधिशेष का यह अर्थ है कि किसी एक वर्ष में राज्यों का राजस्व, अपनी व्यय संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। राजस्व अधिशेष से निम्नलिखित संकेत मिलते हैं : (i) राज्य पूंजीगत परिसंपत्तियां का सृजन कर सकता है, और (ii) वह अपनी बकाया देनदारियां चुका सकता है। 2012-13 से 2017-18 की अवधि के दौरान ओड़िशा, जम्मू एवं कश्मीर और बिहार का राजस्व अधिशेष सर्वाधिक था।    

रेखाचित्र 22: अधिकतर राज्यों ने राजस्व घाटा समाप्त किया (2012-17)

Note: Average for West Bengal for five years, Telangana for four years, and Tamil Nadu and Uttar Pradesh for three years.  Data for Delhi unavailable.

Sources: State Budget Documents; PRS

राज्यों द्वारा उदय के अंतर्गत लिया गया ऋण उनकी जीएसडीपी का औसत 3% है

रेखाचित्र 23: तालिका में प्रदर्शित किया गया है कि राज्यों ने अपने जीएसडीपी के कितने प्रतिशत का ऋण अपने ऊपर लिया है (2015-16)

Sources: MoUs signed by states on UDAY; PRS.

नवंबर 2015 में केंद्र सरकार ने उज्जवल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय) को शुरू किया जिससे सरकारी बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) की वित्तीय स्थिति में सुधार किया जा सके। इस योजना से पहले, मार्च 2015 तक डिस्कॉम्स का कर्ज 4 लाख करोड़ रुपए से अधिक था।[5] उदय योजना में हस्ताक्षर करने वाले राज्यों से अपेक्षा की गई कि दो वर्षों की अवधि के लिए वे इन कंपनियों के 75% कर्ज को अपने ऊपर ले लेंगे (योजना के पहले वर्ष में 50% और दूसरे वर्ष में शेष 25% कर्ज)। योजना में यह प्रावधान था कि एफआरबीएम एक्ट के अंतर्गत 2015-16 और 2016-17 में राज्यों के राजकोषीय घाटे की गणना में डिस्कॉम्स के कर्ज को शामिल नहीं किया जाएगा।5

इस अध्ययन में 19 राज्यों में से 12 ने योजना में हिस्सा लिया और अपने डिस्कॉम्स का 75% कर्ज अपने ऊपर ले लिया। यह 2,19,834 करोड़ रुपए की राशि थी, जिसने इन राज्यों पर कर्ज का दबाव बढ़ा दिया। उदाहरण के लिए राजस्थान ने अपनी जीएसडीपी के 8.8% के बराबर का कर्ज उठाया, जबकि हरियाणा के लिए यह आंकड़ा 5.4%, मध्य प्रदेश के लिए 4.8%, पंजाब के लिए 3.8% और उत्तर प्रदेश के लिए 3.5% था।

राज्य की बकाया देनदारियां उनकी जीएसडीपी का 24%

बकाया देनदारियां पूर्व के राजकोषीय घाटे की फाइनांसिंग से जमा हुए उधार का संकेत देती हैं। अधिक देनदारी यह संकेत देती है कि भविष्य में राज्यों पर ऋण चुकाने की अधिक बाध्यता होगी। राज्यों के एफआरबीएम एक्ट यह विनिर्दिष्ट करते हैं कि राज्य अपनी जीएसडीपी की कितनी प्रतिशत बकाया देनदारियों रख सकते हैं। सामान्यतया राज्यों के लिए यह सीमा 25% पर निर्धारित है। 2016-17 में जम्मू एवं कश्मीर पर सबसे अधिक देनदारियां थीं (उसकी जीएसडीपी का 49%), इसके बाद उत्तर प्रदेश (36%) का स्थान आता है। दूसरी ओर दिल्ली की बकाया देनदारियां सबसे कम थीं (6%)।  

रेखाचित्र 24: राज्यों पर बकाया देनदारियां उनकी जीएसडीपी का 24% (2016-17)

Sources: RBI State of State Finances; PRS.

राज्यों ने बजट के अतिरिक्त अपनी जीएसडीपी के 3% की गारंटी दी है

जैसा कि पूर्व में चर्चा की गई है, राज्यों की उधारियों के कारण औसतन, उनकी जीएसडीपी के 24% के बराबर बकाया देनदारियां जमा हैं। हालांकि इसमें आकस्मिक देनदारियां शामिल नहीं हैं जिनका राज्यों को कुछ मामलों में भुगतान करना होता है। 

राज्य सरकारें सरकारी स्वामित्व वाले सार्वजनिक उपक्रमों (एसपीएसईज़) जैसे डिस्कॉम्स के ऋणों की गारंटी देती हैं। इसका कारण यह हो सकता है कि उन उपक्रमों का क्रेडिट प्रोफाइल खराब होता है और सरकारी गारंटी से उनके लिए ऋण हासिल करना आसान हो सकता है। हालांकि अगर ये उपक्रम अपने ऋण का पुनर्भुगतान नहीं कर पाते, तो राज्य सरकारों को उनकी गारंटी का मान रखना पड़ता है और उनकी बजाय सरकार को पुनर्भुगतान करना पड़ता है। इसलिए ये गारंटियां ऐसी देनदारियां होती हैं जिनकी प्रकृति आकस्मिक होती है। 2015-16 तक राज्यों की ऐसी आकस्मिक देनदारियां उनकी जीएसडीपी का 3% के बराबर थीं। यह उनकी 23% बकाया देनदारियों के अतिरिक्त थीं। 

आरबीआई का कहना है कि ये आकस्मिक देनदारियां राज्य सरकारों के लिए जोखिम हैं जिनका कारण बड़ी बकाया देनदारियां और इन एसपीएसईज़ के घाटे हैं। यह भी कहा गया कि अगर राज्य 2017-18 में वेतन आयोग के सुझावों को लागू करेंगे तो राज्यों की देनदारियां बढ़ सकती हैं।

रेखाचित्र 25: जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में बकाया गारंटियां (2015—16)

Sources: State Budget Documents; RBI State of State Finances; PRS.

राज्य अपनी 23% गैर ऋण प्राप्तियों को ब्याज और ऋण पुनर्भुगतान पर खर्च करते हैं

राज्य अपनी प्राप्तियों (उधारियों को छोड़कर) का 23% मूल और ब्याज भुगतान पर खर्च करते हैं। यह राशि पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अधिक है। इन दोनों राज्यों में प्राप्तियों का क्रमशः 79% और 65% ऋण चुकाने में व्यय होता है। ऋण का पुनर्भुगतान जितना अधिक होगा, अन्य प्राथमिकताओं पर व्यय करने में  उतना ही दबाव पड़ेगा।

रेखाचित्र 26: पंजाब और पश्चिम बंगाल गैर ऋण प्राप्तियों का सबसे अधिक हिस्सा ऋण चुकाने में खर्च करते हैं (2013-17)

Sources: State Budget Documents; PRS.

राज्य 7.4% की दर पर उधार लेते हैं, लेकिन अपने निवेश पर उन्हें 0.2% का रिटर्न मिलता है

राज्य सरकारें स्टैट्यूटरी कॉरपोरेशंस, ग्रामीण बैंकों, ज्वाइंट स्टॉक कंपनयों, सहकारी संघों और सरकारी कंपनियों में निवेश करती हैं। 2015-16 में राज्यों में इन निवेशों पर औसत रिटर्न 0.2% था। दूसरी ओर राज्य अपने घाटों को फाइनांस करने के लिए उधार भी लेते हैं। 2015-16 में राज्यों ने इन उधारियों पर 7.4% ब्याज चुकाया।

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने राज्यों को यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि उन्हें अपने निवेश का बेहतर मूल्य हासिल हो, अन्यथा उच्च लागत पर लिए गए उधार को कम रिटर्न वाले प्रॉजेक्ट्स में निवेश किया जाता रहेगा।[6],[7],[8]जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर, जिसने 7.2% की ब्याज दर पर उधार लिया और 23.5% की दर पर रिटर्न प्राप्त किया, अन्य सभी राज्यों को अपने निवेशों पर निम्न दर पर रिटर्न हासिल हुआ। उल्लेखनीय है कि जम्मू एवं कश्मीर को जम्मू एवं कश्मीर बैंक लिमिटेड में निवेश पर उच्च रिटर्न हासिल हुआ।

रेखाचित्र 27: उधारियों पर चुकाया गया ब्याज और निवेश पर रिटर्न (2015-16)

Sources: Comptroller and Auditor General (2015-16); PRS.

अतिरिक्त बजटीय व्यय का अर्थ है, व्यय की अपर्याप्त सरकारी जांच

रेखाचित्र 28: बजटीय और अतिरिक्त बजटीय व्यय की जांच

Sources: PRS.

राज्य सरकारें अपनी प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए अक्सर पीएसयूज़ को निगमित करती हैं। उदाहरण के लिए तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम लिमिटेड जोकि राज्य में बसें चलाता है, एक निगमित कंपनी है जिसका स्वामित्व राज्य सरकार के पास है। इन निगमों का अपना राजस्व मॉडल होता है और उनका वित्त राज्य सरकार से अलग होता है। इससे पीएसयू की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित होती है।

कई राज्य विशिष्ट निगमित कंपनियों के जरिए सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करते हैं (जैसे केरल इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बोर्ड और महाइंफ्रा)। ऐसी कंपनियां सेवाएं प्रदान करती हैं, जैसे पेय जल देना, स्कूलों अस्पतालों का निर्माण और गरीबों के लिए आवास निर्माण। ऐसे कार्यों से कुछ समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।

तेलंगाना: दो बेडरूम हाउसिंग स्कीम, और मिशन भागीरथ

तेलंगाना सरकार ने दो बेडरूम हाउसिंग स्कीम (गरीबों के लिए 2.6 लाख घर), मिशन भागीरथ (1.25 लाख घरों को पेय जल आपूर्ति) और  बागवानी एवं शहरी विकास के लिए अन्य कार्यक्रमों को लागू करने का प्रस्ताव रखा। राज्य इन कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करने के लिए अतिरिक्त बजटीय प्रणालियों का प्रयोग करने की योजना बना रहा है। इसके लिए उसने अनेक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को शुरू किया है। एक ओर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम इन कार्यक्रमों को लागू करने के लिए उधार लेते हैं, सरकार इन ऋणों पर गारंटी देती है।

 Sources: Telangana Budget Documents; PRS.

  • कार्यान्वयन के बाद इन कार्यक्रमों के कार्यों और प्रदर्शन का ऑडिट कैग द्वारा किया जाता है। कैग की रिपोर्ट्स की जांच राज्य विधायिका की कमिटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंग द्वारा की जाती है। हालांकि व्यय से पहले राज्य विधायिका द्वारा उनके फाइनांस को मंजूर नहीं किया जाता। यह उल्लेख किया जाना महत्वपूर्ण हो सकता है कि विधायिका बजट की समीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है और वह सरकार द्वारा लागू की जाने वाली नीतियों की जांच भी करती है।
  • इनमें से कुछ प्रॉजेक्ट्स जैसे स्कूलों का निर्माण राजस्व मॉडल नहीं हो सकता। ऐसे प्रॉजेक्ट्स के लिए राज्य सरकारों को कार्यपालक एजेंसियों के ऋणों पर गारंटी देनी होती है। हालांकि सरकारें इन एजेंसियों के जरिए नीतियों को लागू करती हैं, इन एजेंसियों द्वारा लिया गया ऋण राज्य सरकारों के दस्तावेजों में कहीं दिखाई नहीं देता।

 

[1]Delhi Value Added Tax Act, 2004; Tamil Nadu Value Added Tax Act, 2006.

[2].  Report of the Fourteenth Finance Commission, February 2015, http://www.prsindia.org/uploads/media/Report%20Summaries/14th%20Finance%20Commission%20Report.pdf.  

[3].  ‘Cabinet approves setting up of the 15th Finance Commission, Press Information Bureau, Cabinet, November 22, 2017; S.O. 3755(E), Gazette of India, Ministry of Finance, November 27, 2017, http://egazette.nic.in/WriteReadData/2017/180483.pdf.

[4]Data has been taken from the Annual Financial Statement of state budget documents.

[5].  UDAY (Ujwal DISCOM Assurance Yojana) for financial turnaround of Power Distribution Companies, Press Information Bureau, Cabinet, November 5, 2015.

[6].  Report of the Comptroller and Auditor General of India on State Finances for the year ended 31 March 2016 for Rajasthan, http://cag.gov.in/sites/default/files/audit_report_files/Rajasthan_Report_No_6_of_year_2016_State_Finances.pdf

[7].  Report of the Comptroller and Auditor General of India on State Finances for the year ended 31 March 2016 for Maharashtra, http://cag.gov.in/sites/default/files/audit_report_files/Maharashtra_Report_No_6_of_2016_on_State_Finances.pdf

[8].  Report of the Comptroller and Auditor General of India on State Finances for the year ended 31 March 2016 for Gujarat, http://www.cag.gov.in/sites/default/files/audit_report_files/Gujarat%20Report%20No%205%20of%202016%20State%20Finances.pdf

 

 

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