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छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना विधानसभाओं का कामकाज

वाइटल स्टैट्स

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना विधानसभाओं का कामकाज

चुनाव आयोग ने नवंबर 2023 में पांच राज्य विधानसभाओं के चुनावों की घोषणा की है। ये राज्य हैं, छत्तीसगढ़ (CG), मध्य प्रदेश (MP), मिजोरम (MZ), राजस्थान (RJ), और तेलंगाना (TS)। इस डॉक्यूमेंट में इन राज्य विधानसभाओं के वर्तमान कार्यकाल के दौरान, यानी 2019 और 2023 के बीच के कामकाज की समीक्षा की गई है। 

पिछले पांच वर्षों में राजस्थान में सबसे अधिक बैठकें, तेलंगाना में सबसे कम

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 नोट: तेलंगाना में बैठकों की अवधि उपलब्ध नहीं है; 2018 में मिजोरम में तीन बैठक के दिनों को भी शामिल किया गया है। 

  • राजस्थान ने अपने कार्यकाल के दौरान उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं किया। मार्च 2020 में सरकार बदलने के बाद से मध्य प्रदेश में कोई उपाध्यक्ष नहीं है।
  • सभी पांच राज्य विधानसभाओं की बैठकें वर्ष में 30 दिन से कम हुईं। 2020 में मध्य प्रदेश में छह बैठकें हुईं।
  • राज्यों (छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम और राजस्थान) में सबसे लंबी बैठक छत्तीसगढ़ में 14 घंटे तक चली, जब 21 जुलाई, 2023 को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हुई।

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नोट: मिजोरम का डेटा उपलब्ध नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना 2000 में और तेलंगाना की 2014 में हुई थी।

  • पांच राज्यों में से चार में (जिसके लिए लंबी अवधि का डेटा उपलब्ध है), समय के साथ बैठकें कम हो गईं। अपने पहले 10 वर्षों में राजस्थान विधानसभा की बैठक औसतन वर्ष में 59 दिन होती थी, जबकि मध्य प्रदेश विधानसभा की बैठक वर्ष में 48 दिन होती थी। पिछले 10 वर्षों में औसत वार्षिक बैठक के दिन राजस्थान में घटकर 29 और मध्य प्रदेश में 21 रह गए हैं। 2017 में तेलंगाना में सबसे अधिक बैठकें हुईं - 37 दिन; हालांकि तब से हर वर्ष इसकी बैठक 20 दिनों से कम हुई। 
  • विधानसभा का सत्र तब शुरू होता है, जब राज्यपाल सम्मन जारी करता है, और राज्यपाल के सत्रावसान के नोटिस के साथ यह समाप्त होता है। राजस्थान और तेलंगाना में सत्र स्थगित कर दिए गए लेकिन सत्रावसान नहीं किया गया, इसलिए सत्र कई महीने तक चला, और बैठकों के बीच लंबा अंतराल रहा। उदाहरण के लिए 2021 और 2022 में राजस्थान में फरवरी में शुरू होने वाले सत्र सितंबर में समाप्त हुए। इनमें से प्रत्येक वर्ष में लगभग 80% बैठकें फरवरी और मार्च में और बाकी सितंबर में आयोजित की गईं।

लगभग आधे बिल, पेश होने के एक दिन के भीतर ही पारित कर दिए गए

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  • इन विधानसभाओं ने 48% बिल्स को पेश करने के एक दिन के भीतर (यानी उसी दिन या पेश किए जाने के अगले दिन) विचार और उन्हें पारित किया। मिजोरम ने अपने मौजूदा कार्यकाल के दौरान 57 बिल पारित किए, पेश होने वाले दिन या उसके अगले दिन। 
  • 2020 में छत्तीसगढ़ विधानसभा ने छह घंटे की एक बैठक में 14 बिल पारित किए। 2022 में मध्य प्रदेश में दो दिनों में 13 बिल पेश और पारित किए गए। दोनों बैठकें एक साथ पांच घंटे तक चलीं।

मध्य प्रदेश ने पांच वर्षों के दौरान 39 अध्यादेश जारी किए

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नोट: वित्त और विनियोग अध्यादेश शामिल नहीं हैं।

  • 2019 और 2023 के बीच मध्य प्रदेश ने 39 अध्यादेश जारी किए, उसके बाद तेलंगाना (14), और राजस्थान (13) का स्थान है। जब विधानसभाएं सत्र में नहीं होतीं तो राज्य अध्यादेश जारी कर सकते हैं। मध्य प्रदेश में 2020 में 11 अध्यादेश जारी किए गए, जब विधानसभा की बैठक केवल छह दिन चली। इनमें से छह अध्यादेशों के स्थान पर बिल नहीं लाए गए और ये अध्यादेश निरस्त हो गए। 2021 में जारी किए गए अध्यादेशों की संख्या बढ़कर 14 हो गई, जब विधानसभा की बैठक 20 दिनों तक चली। 

औसतन, राज्यों ने बजट पर सात दिन तक चर्चा की, और फिर उन्हें पारित किया

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  • एक तिहाई समय बजट चर्चा में व्यतीत हुआ। बाकी समय विभिन्न विभागों के खर्च पर चर्चा और वोटिंग हुई।
  • मिजोरम में सभी विभागों की मांगों पर सदन में चर्चा और वोटिंग हुई। अन्य राज्यों में हर साल सभी मांगों पर चर्चा नहीं होती। संसद के विपरीत, पांच राज्यों में से किसी में भी विभागीय व्यय की विस्तार से समीक्षा करने के लिए समितियां नहीं हैं।
     

छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधायकों की उपस्थिति 83% रही... 

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  • इन तीन राज्यों में पांच वर्षों में औसत उपस्थिति 83% थी। छत्तीसगढ़ में सभी वर्षों में विधायकों की उपस्थिति 87% से 90% के बीच रही। मध्य प्रदेश में 2019 में औसत उपस्थिति 92% थी, लेकिन बाद के वर्षों में 80% से कम थी। राजस्थान में 2019 से 2021 तक उपस्थिति औसतन लगभग 85% थी, लेकिन 2022 में घटकर 67% हो गई।
  • मध्य प्रदेश के 17 विधायकों और छत्तीसगढ़ के दो विधायकों की उपस्थिति 100% रही।

नोट: मिजोरम और तेलंगाना के लिए उपस्थिति पर डेटा उपलब्ध नहीं है; *राजस्थान के लिए उपस्थिति का डेटा केवल 2022 तक उपलब्ध है; उपस्थिति पूरे सत्र के औसत को दर्शाती है।

... और उन्होंने औसत 100 से अधिक प्रश्न पूछे

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नोट: मिजोरम और तेलंगाना के लिए प्रश्नों का डेटा उपलब्ध नहीं है। औसत प्रश्न पूरे सत्र के औसत को दर्शाते हैं।

  • प्रश्नों का मौखिक या लिखित उत्तर प्राप्त होता है। मंत्री द्वारा मौखिक उत्तरों के लिए सूचीबद्ध प्रश्नों में से, मध्य प्रदेश में केवल 2% और छत्तीसगढ़ में 10% का मौखिक उत्तर दिया गया। जिन प्रश्नों का उत्तर मौखिक रूप से नहीं दिया जा सकता, उनका लिखित उत्तर दिया जाता है।
  • राजस्थान विधानसभा की प्रक्रिया के नियम सदस्यों को सत्रों के बीच सीमित संख्या में प्रश्न (लिखित प्रतिक्रिया के लिए) पूछने की अनुमति देते हैं। हालांकि पिछले तीन वर्षों से राजस्थान में सत्र लगभग पूरे वर्ष तक चले हैं। 2019 और 2020 में आयोजित सत्रों के बीच 200 से अधिक प्रश्न पूछे गए थे। तब से, केवल चार ऐसे प्रश्न पूछे गए हैं।

मध्य प्रदेश में औसतन पुरुषों ने महिलाओं की तुलना में दोगुने सवाल पूछे

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नोट: मिजोरम और तेलंगाना के लिए उपस्थिति और प्रश्नों पर डेटा उपलब्ध नहीं है; *राजस्थान के लिए उपस्थिति का डेटा केवल 2022 तक उपलब्ध है।

  • छत्तीसगढ़ में 17% सदस्य महिलाएं हैं। राजस्थान में यह अनुपात 13% और मध्य प्रदेश में 10% से कम है। छत्तीसगढ़ में महिला सदस्यों की औसत उपस्थिति पुरुष सदस्यों की तुलना में अधिक है, लेकिन अन्य राज्यों में कम है। राजस्थान में (जहां डेटा उपलब्ध है) चर्चा में पुरुष और महिला सदस्यों की औसत भागीदारी लगभग बराबर है।
  • मध्य प्रदेश में विधानसभा में लगभग 10% हिस्सेदारी होने के बावजूद, महिला विधायकों ने कुल प्रश्नों में से केवल 4% ही पूछे। अन्य राज्यों में महिला विधायकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों की संख्या विधानसभा में उनके प्रतिनिधित्व के अनुपात में है।

स्रोत: विधानसभा की कार्यवाही और बुलेटिन; विधानसभा की वेबसाइट्स; राज्य राजपत्र, सूचना का अधिकार अनुरोध; पीआरएस।

     

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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