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संसद के 70 वर्ष

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संसद के 70 वर्ष 

13 मई, 2022 को संसद ने अपनी बैठक के 70 वर्ष पूरे किए हैं। लोकसभा और राज्यसभा के पहले सत्र 13 मई, 1952 को आयोजित किए गए थे। यह 17वीं लोकसभा (2019-2024) है। इस नोट में हम बता रहे हैं कि पहले सत्र के बाद से संसद की सदस्यता और कामकाज में क्या बदलाव हुए हैं।

लोकसभा में कम युवा संसद; महिला सांसदों की संख्या में धीमी वृद्धि

  • 25-40 वर्ष के आयु वर्ग के सांसदों का हिस्सा क्रमिक रूप से गिरा है, पहली लोकसभा में यह 26% था, और 17वीं लोकसभा में 12% है।
     
  • महिला सांसदों की संख्या में क्रमिक रूप से वृद्धि हुई है। मौजूदा लोकसभा में 15% और राज्यसभा में 12% महिला सांसद हैं। हालांकि संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व दूसरे देशों की तुलना में कम है। जैसे यूके में हाउस ऑफ कॉमन्स में 35% और हाउस ऑफ लॉर्ड्स में 29% महिलाएं हैं। कनाडा में निचले सदन में 31% और ऊपरी सदन 49% महिलाएं हैं। दक्षिण अफ्रीका के निचले सदन में 47% और ऊपरी सदन में 37% महिलाएं हैं।      

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उच्च शिक्षा प्राप्त सांसद अधिक

  • पहली लोकसभा के 58% सांसदों के पास कम से कम अंडरग्रैजुएट डिग्री थी, जोकि 13 लोकसभा में बढ़कर लगभग 80% हो गया लेकिन इसके बाद इसमें मामूली गिरावट आई है।
     
  • पहली लोकसभा में सांसदों का आम पेशा वकालत था (32%) जोकि पिछले कुछ वर्षों में काफी गिरा है (17वीं लोकसभा में सिर्फ 4% वकील हैं)। अधिक सांसद अब अपने पेशे को सोशल और पॉलिटिकल वर्कर घोषित करते हैं (जोकि पहली लोकसभा में कोई नहीं था, और 17वीं लोकसभा में 38% हैं)।

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प्रत्येक सांसद अब अधिक नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है  

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  • भारत की जनसंख्या 1952 में 38 करोड़ से 3.6 गुना बढ़कर 2019 में 136 करोड़ हो गई है। हालांकि इस अवधि में लोकसभा में सीटों में 11% की वृद्धि हुई है। ये सीटें 489 से बढ़कर 543 हुई हैं। परिणामस्वरूप जितने सांसदों का प्रतिनिधित्व कोई सांसद करता है, उनकी संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। 1952 में एक सांसद लगभग आठ लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता था, और 2019 में वह लगभग 25 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। 

संसद की बैठकें कम दिन होती हैं, कम बिल पारित किए जाते हैं

 

  • लोकसभा में बैठकों के दिन 1952-70 के दौरान 121 दिनों के वार्षिक औसत से घटकर 2000 में 68 दिन हो गए हैं।
     
  • पिछले कुछ वर्षों के दौरान संसद द्वारा कम बिल पारित किए गए हैं। जिन लोकसभाओं ने अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया है, उसमें से 8वीं लोकसभा के दौरान सबसे अधिक बिल पारित किए गए (355), जबकि 15वीं लोकसभा में सबसे कम (192)।    

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गैर सरकारी सदस्यों के बिलों पर चर्चा कम हुई    

  • संसद में सरकार के अतिरिक्त कोई अन्य सांसद भी बिल पेश कर सकता है जिसे गैर सरकारी सदस्यों के बिल या प्राइवेट मेंबर बिल कहा जाता है। अब तक गैर सरकारी सदस्यों के 14 बिल संसद में पारित हुए हैं लेकिन 1970 के बाद नहीं। 2015 में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों से जुड़ा एक प्राइवेट मेंबर बिल राज्यसभा में पारित हुआ था और लोकसभा में इसे वापस ले लिया गया था (सरकार ने दूसरा बिल पेश किया था जिसे संसद ने पारित कर दिया था)।
     
  • 1993 में संसद को उसके विधायी और वित्तीय कामकाज में मदद देने के लिए संसदीय स्थायी समितियों (पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटीज़) का गठन किया गया था। 2004 से संसद में पेश किए बिल्स में से सिर्फ 45% बिल्स को समितियों के सुपुर्द किया गया। हाल के वर्षों में इसमें काफी गिरावट हुई है। 16वीं और 17वीं (जारी) लोकसभाओं में समितियों को अपेक्षाकृत कम बिल्स भेजे गए। यह यूके जैसे देशों से बिल्कुल अलग है जहां सभी बिल्स (मनी बिल को छोड़कर) को जांच के लिए समितियों के पास भेजा जाता है। 

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लोकसभा में बजट पर चर्चा में कमी आई

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  • लोकसभा में केंद्रीय बजट पर चर्चा (इसमें मंत्रालयों के आबंटन पर होने वाली चर्चा शामिल है) में लगने वाला समय 1990 के दशक से कम हो रहा है। उल्लेखनीय है कि 1993 में स्थापित संसदीय स्थायी समितियां सभी मंत्रालयों को आबंटित धनराशि की समीक्षा करती हैं। 1952 से ऐसा चार बार हुआ है, जब मंत्रालय वार आबंटनों पर चर्चा किए बिना बजट पारित कर दिया गया। 

11वीं लोकसभा के बाद हाल के वर्षों में विश्वास मत कम ही पड़े 

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  • पहला अविश्वास प्रस्ताव 1963 में पेश किया गया था। अब तक लोकसभा में 39 विश्वास प्रस्ताव पेश किए गए हैं (इसमें विश्वास के साथ-साथ अविश्वास प्रस्ताव भी शामिल हैं)। इनमें पांच बार (1979, 90, 96, 97 और 99), प्रधानमंत्री सदन में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए थे।
     
  • हालिया सार्वजनिक महत्व के विषयों पर सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिए स्थगन प्रस्ताव पेश किया जाता है। 5वीं लोकसभा के दौरान ऐसे प्रस्तावों की संख्या में गिरावट आई है। 17वीं लोकसभा में अब तक कोई स्थगन प्रस्ताव नहीं पेश किया गया है। 

स्रोत: लोकसभा और राज्यसभा के बुलेटिन; संसदीय मामलों के मंत्रालयों की स्टैटिस्टिकल हैंडबुक, 2022; पीआरएस।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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