
इस अंक की झलकियां
संसद का मानसून सत्र 2022 समाप्त; पांच बिल पारित; छह पेश
संसद में पारित होने वाले बिल्स में शामिल हैं- राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग बिल, 2021, भारतीय अंटार्कटिका बिल, 2022 और सामूहिक विनाश के हथियार (संशोधन) बिल, 2022।
2022-23 की पहली तिमाही में जीडीपी 13.5% की दर से बढ़ी
2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी 20.1% की दर से बढ़ी। इसका कारण 2020-21 की पहली तिमाही का निम्न स्तर था, जब जीडीपी 23.8% की दर पर संकुचित हुई थी।
रेपो रेट 5.4% हुई; स्टैंडिंग डिपॉजिट फेसिलिटी रेट बढ़कर 5.15% हुई
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने पॉलिसी रेपो रेट (जिस दर पर आरबीआई बैंकों को ऋण देता है) को 4.9% से बढ़ाकर 5.4% किया है।
लोकसभा ने कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग को सक्षम करने वाले बिल को पारित किया
बिल ऊर्जा संरक्षण एक्ट, 2001 में संशोधन करता है। बिल में कहा गया है कि सरकार उपभोक्ताओं की एक निर्दिष्ट श्रेणी से यह अपेक्षा कर सकती है कि वे ऊर्जा की खपत का एक न्यूनतम हिस्सा नॉन-फॉसिल फ्यूल से पूरा करें।
सर्वोच्च न्यायालय ने बेनामी संपत्ति लेनदेन एक्ट, 1988 के कुछ प्रावधानों को रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि 2016 के संशोधन कानून से पहले के लेनदेन के लिए आपराधिक अभियोजन या जब्ती की कार्यवाही केवल उत्तरव्यापी प्रभाव से लागू की जा सकती है।
बिजली (संशोधन) बिल, 2022 को लोकसभा में पेश किया गया
बिल कई डिस्कॉम्स को एक ही नेटवर्क का इस्तेमाल करके, बिजली आपूर्ति करने की अनुमति देता है। डिस्कॉम्स को शुल्क चुकाने पर उसी क्षेत्र में काम करने वाले दूसरे डिस्कॉम को अपने नेटवर्क का भेदभावपूर्ण रहित एक्सेस देना होगा।
बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 अधिसूचित
नियम बेकार बैटरियों के प्रबंधन के लिए मानक निर्दिष्ट करते हैं, जिसमें एंड ऑफ लाइफ बैटरी शामिल हैं। यह निर्माताओं की जिम्मेदारी को बढ़ाते हैं और निर्दिष्ट करते हैं कि निर्माता अपशिष्ट बैटरी का संग्रह, रीसाइकलिंग और रीफर्बिशमेंट सुनिश्चित करे।
जैव विविधता बिल पर ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी ने रिपोर्ट पटल पर रखी
2021 का संशोधन बिल संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान तक पहुंच को लाभ-साझाकरण प्रावधानों से छूट देता है। कमिटी ने 'संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान' शब्दों को परिभाषित करने का सुझाव दिया है।
विभिन्न विषयों पर स्टैंडिंग कमिटीज़ ने रिपोर्ट सौंपी
पवन ऊर्जा के मूल्यांकन, बिजली शुल्क नीति की समीक्षा, एडॉप्शन और गार्जियनशिप कानूनों की समीक्षा और भारतीय डायस्पोरा के कल्याण पर रिपोर्ट्स संसद को प्रस्तुत की गईं।
कैग ने तटीय संरक्षण और प्रीमियम रैशनलाइजेशन पर रिपोर्ट सौंपी
कैग ने तटीय इकोसिस्टम्स के संरक्षण तथा एनएचएआई के बोट प्रॉजेक्ट्स में प्रीमियम रैशनलाइजेशन पर रिपोर्ट्स जारी की।
पीएमएवाई- (यू) दिसंबर 2024 तक बढ़ाई गई
केंद्र ने 2022 तक शहरी क्षेत्रों में 'सभी को आवास' प्रदान करने के लिए पीएमएवाई-यू को शुरू किया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यों को घरों के निर्माण के लिए अधिक समय देने हेतु योजना को दिसंबर 2024 तक बढ़ाने की मंजूरी दी है।
एयरलाइन्स को अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के विवरण को कस्टम्स के साथ साझा करना होगा
रेगुलेशंस के अनुसार, एयरलाइनों को अपने सामान्य कारोबार के दौरान अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के जमा किए गए विवरणों को राष्ट्रीय सीमा शुल्क लक्ष्य केंद्र - यात्री के साथ साझा करना होगा। विवरण में नाम और पीएनआर शामिल हैं।
संसद
Niranjana S Menon (niranjana@prsindia.org)
मानसून सत्र 2022 समाप्त; पांच बिल पारित; छह पेश
संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई, 2022 से 8 अगस्त, 2022 तक चला।[1] संसद में 16 दिन बैठकें हुईं और निर्धारित समय से दो दिन पहले वह अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई।
इस सत्र के दौरान 24 बिल्स को पेश किया जाना था, और छह पेश किए गए। पांच बिल पारित किए गए जिसमें राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग बिल, 2021, भारतीय अंटार्कटिका बिल, 2022 और सामूहिक विनाश के हथियार और उनके डिलिवरी सिस्टम्स (गैरकानूनी गतिविधियों पर प्रतिबंध) संशोधन बिल, 2022 शामिल हैं। फैमिली कोर्ट्स (संशोधन) बिल, 2022 और केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) बिल, 2022 को इसी सत्र में पेश और पारित किया गया। जो बिल पेश किए गए और लंबित हैं, उनमें बिजली (संशोधन) बिल, 2022 और प्रतिस्पर्धा (संशोधन) बिल, 2022 को संबंधित पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटीज़ के पास भेजा गया है।
मानसून सत्र 2022 के दौरान लेजिसलेटिव बिजनेस पर अधिक विवरण के लिए कृपया देखें। सत्र के दौरान संसद के कामकाज पर अधिक विवरण के लिए कृपया देखें।
मैक्रोइकोनॉमिक विकास
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
रेपो रेट और स्टैंडिंग डिपॉजिट फेसिलिटी रेट्स बढ़कर क्रमशः 5.4% और 5.15% हुए
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने पॉलिसी रेपो रेट (जिस दर पर आरबीआई बैंकों को ऋण देता है) को 4.9% से बढ़ाकर 5.4% करने का फैसला किया है।[2] समिति के अन्य निर्णयों में निम्नलिखित शामिल हैं:
स्टैंडिंग डिपॉजिट फेसिलिटी रेट (जिस दर पर आरबीआई कोलेट्रल दिए बिना बैंकों से उधार लेता है) को 4.65% से बढ़ाकर 5.15% कर दिया गया है।
मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी रेट (जिस दर पर बैंक अतिरिक्त धन उधार ले सकते हैं) और बैंक रेट (जिस दर पर आरबीआई बिल्स ऑफ एक्सचेंज को खरीदता है) 5.15% से बढ़कर 5.65% हो गए हैं।
समिति ने समायोजन को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया ताकि यह सुनिश्चित हो कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बरकरार रहे।
2022-23 की पहली तिमाही में जीडीपी 13.5% की दर से बढ़ी
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) (स्थिर कीमतों पर) 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 2021-22 की इसी अवधि की तुलना में 13.5% की दर से बढ़ा।[3] 2020-21 की पहली तिमाही में निम्न स्तर के कारण 2021-22 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में 20.1% की वृद्धि हुई थी। पिछले साल की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.8% का संकुचन हुआ था। 2021-22 की चौथी तिमाही (जनवरी-दिसंबर) में जीडीपी 4.1% की दर से बढ़ी।
रेखाचित्र 1: 2011-12 की स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि (प्रतिशत में, वर्ष-दर-वर्ष)
स्रोत: सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय; पीआरएस।
आर्थिक क्षेत्रों में सकल घरेलू उत्पाद को सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) के रूप में मापा जाता है। 2021-22 की पहली तिमाही की तुलना में 2022-23 की पहली तिमाही में सभी क्षेत्रों में वृद्धि सकारात्मक रही। सार्वजनिक सेवाओं ने उच्चतम वृद्धि (26.3%) दर्ज की, इसके बाद व्यापार (25.7%) और निर्माण (16.8%) का स्थान रहा।
तालिका 1: 2022-23 की पहली तिमाही में स्थिर मूल्यों पर विभिन्न क्षेत्रों में जीवीए में वृद्धि (%, वर्ष दर वर्ष)
क्षेत्र |
ति 1 2020-21 |
ति 1 2021-22 |
ति 1 2022-23 |
कृषि |
3% |
2.2% |
4.5% |
खनन |
-17.8% |
18% |
6.5% |
मैन्यूफैक्चरिंग |
-31.5% |
49% |
4.8% |
बिजली |
-14.8% |
13.8% |
14.7% |
निर्माण |
-49.4% |
71.3% |
16.8% |
व्यापार |
-49.9% |
34.3% |
25.7% |
वित्तीय सेवाएं |
-1.1% |
2.3% |
9.2% |
लोक प्रशासन |
-11.4% |
6.2% |
26.3% |
जीवीए |
-21.4% |
18.1% |
12.7% |
जीडीपी |
-23.8% |
20.1% |
13.5% |
नोट: जीवीए को मूल कीमतों (2011-12) पर मापा जाता है।
स्रोत: सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय; पीआरएस।
2022-23 की पहली तिमाही में औद्योगिक उत्पादन में 12.7% की वृद्धि हुई
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में एक वर्ष पहले इसी अवधि की तुलना में 12.7% बढ़ा, जबकि 2021-22 की इसी तिमाही में 44% की वृद्धि हुई थी।[4],[5] आईआईपी में मैन्यूफैक्चरिंग, खनन और बिजली क्षेत्रों का भार क्रमश: 78%, 14% और 8% है। 2022-23 की पहली तिमाही में बिजली क्षेत्र में 17.1% की वृद्धि हुई, जबकि 2021-22 में इसी अवधि में 16.8% की वृद्धि हुई थी। 2022-23 की पहली तिमाही में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में 12.7% की वृद्धि हुई, जबकि 2021-22 की इसी तिमाही में 53% की वृद्धि हुई थी। 2022-23 की पहली तिमाही में खनन क्षेत्र में 8.9% की वृद्धि हुई, जबकि 2021-22 की इसी तिमाही में यह 27.5% थी। पिछले वर्ष की अप्रैल-जून की तुलना में 2021 में इसी अवधि के दौरान तेज वृद्धि की वजह यही थी कि 2020 में लॉकडाउन के कारण वृद्धि का स्तर निम्न था।
रेखाचित्र 1: आईआईपी में वृद्धि (% वर्ष दर वर्ष)
स्रोत: सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय; पीआरएस।
वित्त
लेनदेन के आकार के आधार पर विलय को रेगुलेट करने वाला बिल लोकसभा में पेश
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
प्रतिस्पर्धा (संशोधन) बिल, 2022 को लोकसभा में पेश किया गया।[6] यह बिल प्रतिस्पर्धा एक्ट, 2002 में संशोधन करने का प्रयास करता है।[7] एक्ट बाजार में प्रतिस्पर्धा को रेगुलेट करने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की स्थापना करता है। बिल को वित्त संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री जयंत सिन्हा) को समीक्षार्थ भेज दिया गया है।[8] बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
लेनदेन के मूल्य पर आधारित कॉम्बिनेशंस का रेगुलेशन: एक्ट किसी व्यक्ति या उद्यम को ऐसे किसी कॉम्बिनेशन में प्रवेश करने से रोकता है जिसका प्रतिस्पर्धा पर अच्छा-खासा प्रतिकूल असर पड़े। कॉम्बिनेशंस का मतलब है, उपक्रमों का विलय, अधिग्रहण या अमैल्गमैशन (समामेलन)। यह प्रतिबंध ऐसे लेनदेन पर लागू होता है जहां संबंधित पक्षों की संचयी संपत्ति 1,000 करोड़ रुपए से अधिक है, या (ii) उनका संचयी कारोबार 3,000 करोड़ रुपए से अधिक का है, जोकि कुछ शर्तो के अधीन है। बिल कॉम्बिनेशंस की परिभाषा का दायरा बढ़ाता है ताकि इसमें 2,000 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के लेनदेन को शामिल किया जा सके।
कॉम्बिनेशन के वर्गीकरण के लिए नियंत्रण की परिभाषा: कॉम्बिशंस के वर्गीकरण के लिए, एक्ट नियंत्रण को इस तरह से परिभाषित करता है कि उसका मतलब है, एक या उससे अधिक उद्यमों का दूसरे उद्यम या समूह के मामलों या प्रबंधन पर नियंत्रण। बिल नियंत्रण की परिभाषा में संशोधन करता है और इसे इस तरह परिभाषित करता है कि यह प्रबंधन, मामलों या रणनीतिक वाणिज्यिक फैसलों पर भौतिक असर डालने की योग्यता है।
कॉम्बिनेशंस की मंजूरी के लिए समय सीमा: एक्ट में निर्दिष्ट है कि कोई भी कॉम्बिनेशन तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि सीसीआई आदेश पारित नहीं कर देता है या मंजूरी के लिए आवेदन दायर करने के बाद 210 दिन बीत नहीं जाते हैं- इनमें से जो भी पहले हो। बिल दूसरी स्थिति में समय सीमा को घटाकर 150 दिन करता है।
बिल पर पीआरएस सारांश के लिए कृपया देखें।
सर्वोच्च न्यायालय ने बेनामी संपत्ति लेनदेन एक्ट, 1988 के कुछ प्रावधानों को रद्द किया
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
सुप्रीम कोर्ट ने बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध एक्ट, 1988 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया है।[9],[10] बेनामी लेनदेन में ऐसे लेनदेन शामिल होते हैं जहां एक संपत्ति किसी व्यक्ति के पास होती है या उसे हस्तांतरित की जाती है पर उसके लिए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भुगतान किया जाता है। 2016 में इस एक्ट में संशोधन किया गया था।[11] 2016 के संशोधन से पहले एक्ट के तहत व्यक्तियों को बेनामी लेनदेन करने से प्रतिबंधित किया गया था, और ऐसा करने पर बेनामी संपत्तियों की जब्ती, और तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान था। हालांकि इसमें कुछ लेन-देन जैसे कि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी या अविवाहित बेटी के नाम पर संपत्ति की खरीद को छूट दी गई थी। 2016 के संशोधन ने इस छूट को हटा दिया, और जुर्माना बरकरार रखा। इसे 1988 और 2016 के बीच दर्ज किए गए बेनामी लेनदेन के लिए लागू माना गया था। 2016 के संशोधन के बाद बेनामी लेनदेन करने वाले व्यक्तियों के लिए एक अलग जुर्माने का प्रावधान किया गया था। न्यायालय इस बात की जांच कर रहा था कि क्या 2016 के संशोधन पूर्वव्यापी रूप से लागू हो सकते हैं।
अदालत ने पाया कि असंशोधित कानून में बेनामी लेनदेन करने वाले व्यक्ति के आपराधिक इरादे का जिक्र नहीं था। हालांकि इसमें इसे अपराध कहा गया था कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के संपत्ति के अधिग्रहण का मूल्य चुकाए। इसने सख्त जिम्मेदारी के साथ एक कठोर प्रावधान बनाया था। साथ ही, असंशोधित कानून के आपराधिक प्रावधान के साथ-साथ जब्ती की कार्यवाही अत्यधिक व्यापक थी और पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना संचालित की जाती थी। इस प्रकार, असंशोधित कानून के तहत आपराधिक प्रावधानों और जब्ती की कार्यवाही को असंवैधानिक पाया गया। इसी तरह 2016 के संशोधन द्वारा प्रस्तुत बेनामी लेनदेन के लिए पूर्वव्यापी दंड के प्रावधान को भी असंवैधानिक माना गया क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 20 (1) का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद में प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को अपराध के लिए तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक उसने ऐसा कार्य करने के समय प्रवृत्त विधि का उल्लंघन नहीं किया हो। इन टिप्पणियों के मद्देनजर न्यायालय ने फैसला सुनाया कि 2016 के संशोधन कानून से पहले के लेनदेन के लिए आपराधिक मुकदमा या जब्ती की कार्यवाही जारी नहीं रह सकती है और इसे केवल उत्तरव्यापी प्रभाव से लागू किया जा सकता है।
आरबीआई ने डिजिटल ऋण के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क जारी किया
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने डिजिटल ऋण के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क जारी किया है।[12] फ्रेमवर्क डिजिटल ऋण पर कार्य समूह (अध्यक्ष: श्री जयंत कुमार दास) की रिपोर्ट पर आधारित है। रेगुलेटरी फ्रेमवर्क आरबीआई द्वारा रेगुलेटेड संस्थाओं (जैसे कि बैंक) और ऋण सुविधा सेवा के लिए इन संस्थाओं द्वारा संलग्न ऋण सेवा प्रदाताओं (एलएसपी) पर केंद्रित है। फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:
ग्राहकों का संरक्षण: सभी ऋण संवितरण और पुनर्भुगतान उधारकर्ता और रेगुलेटेड संस्था के बैंक खातों के बीच निष्पादित किए जाने हैं। एलएसपी या किसी तीसरे पक्ष के खाते में ऋण जारी या जमा नहीं किया जा सकता है। एलएसपी को देय किसी भी शुल्क या शुल्क का भुगतान रेगुलेटेड संस्था द्वारा किया जाएगा, न कि उधारकर्ता द्वारा। उधारकर्ता को डिजिटल ऋण की सभी समावेशी लागत का खुलासा करना आवश्यक है और उधारकर्ता की स्पष्ट सहमति के बिना क्रेडिट सीमा में स्वतः वृद्धि को फ्रेमवर्क के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है। रेगुलेटेड संस्थाओं और उनके एलएसपी के पास फिनटेक/डिजिटल ऋण संबंधी शिकायतों के समाधान के लिए एक उपयुक्त नोडल शिकायत निवारण अधिकारी होना चाहिए।
डेटा प्रोटेक्शन: डिजिटल लेंडिंग एप्लिकेशन द्वारा एकत्र किया गया डेटा आवश्यकता-आधारित होना चाहिए, स्पष्ट ऑडिट ट्रेल होना चाहिए, और उधारकर्ता की स्पष्ट सहमति से किया जाना चाहिए। उधारकर्ताओं को विशिष्ट डेटा के उपयोग के लिए सहमति को स्वीकार या अस्वीकार करने का विकल्प प्रदान किया जा सकता है। इसके अलावा उधारकर्ता को पहले दी गई सहमति को रद्द करने और उसके डेटा को हटाने के विकल्प भी प्रदान किए जाने चाहिए। सभी डेटा भारत में स्थित सर्वर में स्टोर किया जाना चाहिए।
रिपोर्टिंग की आवश्यकता: डिजिटल लेंडिंग एप्लिकेशन के माध्यम से प्राप्त सभी ऋणों के संबंध में क्रेडिट सूचना कंपनियों (सीआईसी) को सूचित किया जाना चाहिए। मर्चेंट प्लेटफॉर्म पर रेगुलेटेड संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत सभी नए डिजिटल ऋण उत्पादों, जिनमें अल्पकालिक ऋण या डेफर्ड भुगतान शामिल है, के संबंध में सीआईसी को सूचित किया जाना चाहिए।
आरबीआई ने भुगतान प्रणालियों में शुल्क पर चर्चा पत्र जारी किया
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भुगतान प्रणालियों में शुल्क पर चर्चा पत्र जारी किया है।[13] पत्र के अनुसार, एक कुशल भुगतान प्रणाली में फीस/शुल्क का उचित निर्धारण किया जाना चाहिए ताकि यूजर्स के लिए इष्टतम लागत और ऑपरेटरों के लिए वापसी सुनिश्चित हो। पत्र की मुख्य विशेषताएं निम्न हैं:
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई): यूपीआई एक फंड ट्रांसफर और मर्चेंट पेमेंट सिस्टम है। यूपीआई में यूजर्स और मर्चेंट के लिए फिलहाल कोई चार्ज नहीं है। पेपर में कहा गया है कि किसी भी भुगतान प्रणाली में भुगतान प्रणाली प्रदाताओं को निरंतर परिचालन के लिए आय अर्जित करनी चाहिए ताकि वे नई तकनीक में निवेश कर सकें। यह अनुमान लगाया गया है कि 800 रुपए के औसत मूल्य वाले मर्चेंट यूपीआई लेनदेन में दो रुपए खर्च होते हैं। इस पर टिप्पणियां आमंत्रित की गई हैं कि क्या: (i) लागत को सबसिडाइज करना ज्यादा प्रभावी विकल्प है, और (ii) अगर यूपीआई के लिए शुल्क शुरू किया जाता है तो क्या उन्हें आरबीआई द्वारा प्रबंधित किया जाना चाहिए या बाजार द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए।
रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (आरटीजीएस): आरबीआई, आरटीजीएस का ओनर, ऑपरेटर और रेगुलेटर है। यह मुख्य रूप से बड़े मूल्य के लेनदेन के लिए और बैंकों/बड़े संस्थानों द्वारा फंड्स के रियल टाइम निपटान की सुविधा के लिए उपयोग किया जाता है। प्रत्यक्ष सदस्य (बैंक) आरटीजीएस के लिए मासिक सदस्यता शुल्क का भुगतान करते हैं। जबकि सदस्यों द्वारा आवक लेनदेन के लिए कोई शुल्क नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन सदस्य दो लाख रुपए से पांच लाख रुपए के जावक लेनदेन के लिए 25 रुपए और पांच लाख रुपए से अधिक के लेनदेन के लिए 50 रुपए ले सकते हैं। आरबीआई ने इस नीति की समीक्षा पर टिप्पणियां आमंत्रित की हैं कि क्या आरटीजीएस लेनदेन के लिए सदस्यों पर शुल्क नहीं लगाया जाए।
डेबिट कार्ड: डेबिट कार्ड में मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) लगाया जाता है। भुगतान प्राप्तकर्ताओं (संस्थाएं जो पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स की स्वीकृति को सक्षम करती हैं) द्वारा व्यापारी से एमडीआर की वसूली की जाती है। भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों द्वारा निर्धारित इंटरचेंज शुल्क, एमडीआर से लिए जाते हैं और डेबिट कार्ड जारी करने वाले के साथ साझा किए जाते हैं। 1 जनवरी, 2018 से व्यापारियों के कारोबार के आकार और लेनदेन मूल्य के आधार पर आरबीआई द्वारा अधिकतम एमडीआर की सीमा तय की गई है। यह छोटे मूल्य के लेनदेन की स्वीकृति के लिए डेबिट कार्ड के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था। इस पर टिप्पणियां आमंत्रित की गई हैं कि क्या: (i) डेबिट कार्ड के लिए एमडीआर सभी व्यापारियों के लिए एक समान होना चाहिए और (ii) आरबीआई को डेबिट कार्ड के लिए इंटरचेंज शुल्क को रेगुलेट करना चाहिए।
टिप्पणियां 3 अक्टूबर, 2022 तक आमंत्रित हैं।
सेबी ने सतत वित्त पर परामर्श पत्र जारी किया
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने सतत वित्त के रूप में हरित और नील बांड पर एक परामर्श पत्र जारी किया।[14] सतत वित्त में वित्तीय क्षेत्र में निवेश करते समय पर्यावरणीय, सामाजिक और कंपनी संचालन (ईएसजी) के विचारों को ध्यान में रखना शामिल है। मुख्य विशेषताएं हैं:
हरित बॉन्ड्स की परिभाषा: हरित बांड्स या हरित ऋण प्रतिभूतियां वर्तमान में सेबी (गैर-परिवर्तनीय प्रतिभूतियों का निर्गम और सूचीकरण) रेगुलेशन, 2021 के तहत रेगुलेटेड हैं। इन बांड्स का उपयोग अक्षय ऊर्जा, स्वच्छ परिवहन और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन सहित कुछ परियोजनाओं के लिए धन जुटाने हेतु किया जाता है। पेपर में अन्य श्रेणियों के वित्तपोषण के लिए हरित बांड्स के दायरे का विस्तार करने का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें शामिल हैं: (i) वायु उत्सर्जन में कमी, (ii) ग्रीन हाउस गैस नियंत्रण, (iii) वेस्ट रीसाइकलिंग, और (iv) रीसाइकिल योग्य औऱ नवीनीकृत उत्पादों का डिजाइन और उन्हें पेश करना।
फंड्स का उपयोग: हरित बांड्स या हरित ऋण प्रतिभूतियों के लिए मौजूदा फ्रेमवर्क के तहत प्रत्येक ऋण प्रतिभूति से प्राप्त धनराशि के उपयोग का खुलासा अनिवार्य नहीं है। यह प्रस्तावित किया गया है कि हरित बांड या हरित ऋण प्रतिभूतियों के प्रत्येक निर्गम से प्राप्त राशि के उपयोग का पता लगाया जाएगा और अलग-अलग या कई हरित बांड्स के लिए समग्र आधार पर इसका खुलासा किया जाएगा।
नील बॉन्ड्स: नील या ब्ल्यू बांड ऐसे डेट इंस्ट्रूमेंट्स हैं जिनका उपयोग महासागरों और नील अर्थव्यवस्थाओं में निवेश के वित्तपोषण के लिए किया जाता है। परामर्श पत्र में उल्लेख किया गया है कि भारत में नील अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं में नील बॉन्ड के लिए महत्वपूर्ण गुंजाइश है जिसमें शामिल हैं: (i) समुद्री संसाधनों का खनन, (ii) सतत फिशिंग, (iii) कोरल डिग्रेडेशन, और (iv) राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति। परामर्श पत्र में इस पर टिप्पणियां आमंत्रित की गई हैं कि क्या इन पहलों में नील बांड्स के माध्यम से वित्तपोषण की कोई गुंजाइश है।
आरबीआई ने विदेशी निवेश नियमों को अधिसूचित किया
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन एक्ट, 1999 के तहत विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी निवेश) रेगुलेशन, 2022 को अधिसूचित किया है।[15],[16] यह विदेशी संस्थाओं में भारतीय संस्थाओं द्वारा ऋण निवेश को रेगुलेट करने का प्रयास करता है। मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
भारतीय संस्थाओं द्वारा वित्तीय प्रतिबद्धताएं: एक भारतीय इकाई किसी विदेशी संस्था द्वारा जारी किसी भी ऋण उत्पाद में उधार या निवेश कर सकती है यदि भारतीय इकाई: (i) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) करने के लिए पात्र है, (ii) उसने विदेशी इकाई में ओडीआई किया है और (iii) वित्तीय प्रतिबद्धता करते समय ऐसी विदेशी संस्था में नियंत्रण हासिल कर लिया है। भारतीय इकाई द्वारा दिए गए ऋणों को एक ऋण समझौते द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए जहां ब्याज दर आर्म्स लेंथ आधार पर ली जाएगी। आर्म्स लेंथ आधार का अर्थ है, जब दो संबंधित पक्षों के बीच लेनदेन कुछ इस तरह किया जाए कि हितों का टकराव न हो।
गारंटी देना: रेगुलेशन भारतीय इकाई द्वारा विदेशी इकाई या उसकी किसी भी सहायक कंपनी को कुछ गारंटी देने की अनुमति देते हैं जहां भारतीय इकाई ने नियंत्रण हासिल कर लिया है। ऐसी गारंटियों में शामिल हैं: (i) भारतीय इकाई द्वारा कॉरपोरेट या प्रदर्शन गारंटी, (ii) भारतीय इकाई की समूह कंपनी द्वारा कॉरपोरेट या प्रदर्शन गारंटी, और (iii) भारत में किसी बैंक द्वारा जारी बैंक गारंटी।
रिपोर्टिंग की जरूरत: एक भारतीय निवासी जिसने किसी विदेशी संस्था में ओडीआई, वित्तीय प्रतिबद्धता या विनिवेश किया है, उसे नामित बैंकों के माध्यम से कुछ विवरणों की रिपोर्ट करनी होगी। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) क्या वित्तीय प्रतिबद्धता को वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के लिए माना जाता है, (ii) विनिवेश से प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर विनिवेश लेनदेन, और (iii) इस तरह के पुनर्गठन की तारीख से तीस दिनों के भीतर पुनर्गठन।
सेबी ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के जरिए निवेश को आसान बनाने हेतु कमिटी का गठन किया
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एपीआई) को आसान बनाने के लिए एक स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: के. वी. सुब्रह्ण्यम) का गठन किया है।[17] कमिटी के संदर्भ की शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के लिए उपलब्ध निवेश के मार्गों की समीक्षा करना और नए मार्गों की व्यावहारिकता पर सलाह देना, (ii) बॉन्ड बाजार में एफपीआई की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए जरूरी उपायों पर सलाह देना, (iii) एफपीआई रेगुलेशंस के सरलीकरण हेतु कानूनी संरचना के लिए जरूरी उपायों पर सलाह देना, और (iv) भारतीय वित्तीय बाजारों में निवेश और एफपीआई के कामकाज से संबंधित मुद्दों, जिसमें भारत में एफपीआई दवारा कारोबारी सुगमता के लिए उपाय करना शामिल है, पर सलाह देना।
कैबिनेट ने हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र के लिए इमरजेंसी क्रेडिट सुविधा हेतु अतिरिक्त धनराशि को मंजूरी दी
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) की सीमा 4.5 लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर 5 लाख करोड़ रुपए करने को मंजूरी दी है।[18] यह अतिरिक्त राशि केवल हॉस्पिटैलिटी और संबंधित क्षेत्रों के उद्यमों को उपलब्ध होगी। इसके जरिए उन क्षेत्रों में आर्थिक सुधार होगा जो कोविड-19 से प्रभावित हुए थे। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमईज़) को आपातकालीन ऋण सुविधा प्रदान करने के लिए ईसीएलजीए को मई 2020 में शुरू किया गया था।[19] इसके बाद इसे अन्य क्षेत्रों जैसे हॉस्पिटैलिटी और नागरिक उड्डयन को उपलब्ध कराया गया।[20] यह योजना 31 मार्च, 2023 तक वैध है।
आयकर दाता अटल पेंशन योजना में शामिल नहीं हो पाएंगे
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
वित्त मंत्रालय ने 1 अक्टूबर, 2022 से उन नागरिकों को अटल पेंशन योजना (एपीवाई) का हिस्सा बनने से प्रतिबंधित कर दिया है जो आय कर चुकाते हैं या चुकाते रहे हैं। [21] गरीबों, वंचितों और असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए 2015 में एपीवाई को शुरू किया गया था। यह एक स्वैच्छिक और आवधिक अंशदान आधारित पेंशन प्रणाली है। अब तक एपीवाई उन सभी भारतीय नागरिकों के लिए खुली थी जिनके पास 18 वर्ष से 40 वर्ष की आयु के बीच बचत बैंक खाता था। अगर 1 अक्टूबर, 2022 को या उसके बाद शामिल होने वाले ग्राहक बाद में आयकर दाता पाए जाते हैं, तो उनका खाता बंद कर दिया जाएगा और संचित पेंशन राशि उन्हें हस्तांतरित कर दी जाएगी।
ऊर्जा
बिजली (संशोधन) बिल, 2022 लोकसभा में पेश
Saket Surya (saket@prsindia.org)
लोकसभा में बिजली (संशोधन) बिल, 2022 को पेश किया गया। बिल बिजली एक्ट, 2003 में संशोधन करता है।[22] एक्ट भारत में बिजली क्षेत्र को रेगुलेट करता है। इसके तहत अंतरराज्यीय और राज्यों के भीतर के मामलों को रेगुलेट करने के लिए क्रमशः केंद्रीय और राज्य बिजली रेगुलेटरी आयोगों (सीईआरसी और एसईआरसीज़) के गठन का प्रावधान है।[23] बिल को ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राजीव रंजन सिंह) को समीक्षार्थ भेजा गया है। बिल के अंतर्गत मुख्य प्रावधानों में निम्न शामिल हैं:
एक क्षेत्र में कई डिस्कॉम्स: एक्ट में प्रावधान है कि एक ही क्षेत्र में आपूर्ति के लिए कई वितरण लाइसेंसी (डिस्कॉम्स) होंगे। एक्ट में यह अपेक्षित है कि डिस्कॉम्स अपने नेटवर्क के जरिए बिजली का वितरण करेंगे। बिल इस शर्त को हटाता है। इसमें यह जोड़ा गया है कि डिस्कॉम को कुछ शुल्क चुकाने पर उसी क्षेत्र में काम करने वाले दूसरे नेटवर्क्स को भेदभाव रहित (नॉन-डिस्क्रिमिनेटरी) ओपन एक्सेस प्रदान करना होगा। केंद्र सरकार आपूर्ति के क्षेत्र के निर्धारण के लिए मानदंड निर्दिष्ट कर सकती है।
बिजली खरीद और शुल्क: एक ही क्षेत्र के लिए कई लाइसेंस देने पर, मौजूदा डिस्कॉम्स के मौजूदा बिजली खरीद समझौतों (पावर पर्चेज एग्रीमेंट्स) (पीपीए) के अनुसार बिजली और उससे संबंधित लागत को सभी डिस्कॉम्स के बीच साझा किया जाएगा। बिजली की अतिरिक्त जरूरत को पूरा करने के लिए डिस्कॉम अतिरिक्त पीपीए कर सकता है, अगर उसने मौजूदा समझौतों की बाध्यताओं को पूरा कर लिया है। अतिरिक्त बिजली की ऐसी जरूरत को दूसरे डिस्कॉम्स के साथ बांटने की जरूरत नहीं है। एक्ट के तहत आपूर्ति के क्षेत्र में कई डिस्कॉम्स होने की स्थिति में, एसईआरसी को शुल्क की अधिकतम सीमा निर्दिष्ट करनी होगी। बिल इसमें यह जोड़ता है कि एसईआरसी ऐसे मामलों में न्यूनतम शुल्क की सीमा भी निर्दिष्ट करेगा।
क्रॉस-सबसिडी बैलेंसिंग फंड: बिल कहता है कि एक ही क्षेत्र के लिए कई लाइसेंस देने की स्थिति में, राज्य सरकार क्रॉस-सबसिडी बैलेंसिंग फंड बनाएगी। क्रॉस-सबसिडी का अर्थ एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें उपभोक्ताओं की एक श्रेणी, उपभोक्ताओं की दूसरी श्रेणी की खपत को सबसिडाइज करती है। क्रॉस-सबसिडी के कारण वितरण लाइसेंसी के पास आने वाले किसी भी सरप्लस को इस फंड में जमा किया जाएगा। इस फंड का इस्तेमाल उसी क्षेत्र या किसी अन्य क्षेत्र में दूसरे डिस्कॉम्स के लिए क्रॉस-सबसिडी के घाटे को पूरा करने के लिए किया जाएगा। बिल निर्दिष्ट करता है कि एक ही क्षेत्र में कई डिस्कॉम के कामकाज से संबंधित उपरोक्त मामलों को एक्ट के तहत केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार रेगुलेट किया जाएगा।
बिल पर पीआरएस के सारांश के लिए कृपया देखें।
कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग को सक्षम करने वाला बिल लोकसभा में पारित
Saket Surya (saket@prsindia.org)
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) बिल, 2022 को लोकसभा में पेश किया गया।[24] बिल ऊर्जा संरक्षण एक्ट, 2001 में संशोधन का प्रयास करता है। एक्ट ऊर्जा दक्षता और संरक्षण को बढ़ावा देता है।[25] इसमें उपकरणों, घरेलू उपयोग के उपकरणों, भवनों तथा उद्योगों द्वारा उपभोग की जाने वाली ऊर्जा के रेगुलेशन का प्रावधान है। बिल के मुख्य प्रस्तावों में निम्न शामिल हैं:
ऊर्जा के नॉन-फॉसिल स्रोतों के इस्तेमाल की बाध्यता: एक्ट केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह ऊर्जा उपभोग के मानकों को निर्दिष्ट करे। बिल इसमें यह जोड़ता है कि सरकार किसी निर्दिष्ट उपभोक्ता से यह अपेक्षा कर सकती है कि वह ऊर्जा की खपत का एक न्यूनतम हिस्सा नॉन-फॉसिल स्रोत से प्राप्त करे। अलग-अलग नॉन-फॉसिल स्रोतों और उपभोक्ताओं की श्रेणियों के लिए उपभोग की अलग-अलग सीमाएं निर्दिष्ट की जा सकती हैं। निर्दिष्ट उपभोक्ताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उद्योग जैसे खनन, स्टील, सीमेंट, टेक्सटाइल, रसायन और पेट्रोरसायन, (ii) रेलवे सहित परिवहन क्षेत्र, और (iii) व्यावसायिक इमारतें, जैसा कि अनुसूची में निर्दिष्ट है। नॉन-फॉसिल स्रोतों से ऊर्जा के उपभोग की बाध्यता पूरी न करने की स्थिति में 10 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा होगी। इसके अतिरिक्त भी जुर्माना लगेगा। इसके लिए यह देखा जाएगा कि निर्धारित मानदंड से कितने अधिक यूनिट ऊर्जा की खपत की गई। उतने ही यूनिट तेल की जो कीमत होगी, उसका दोगुना जुर्माना वसूला जाएगा।
कार्बन ट्रेडिंग: बिल केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम निर्दिष्ट करे। कार्बन क्रेडिट का अर्थ कार्बन उत्सर्जन की एक निर्दिष्ट मात्रा का व्यापार योग्य परमिट। केंद्र सरकार या कोई अधिकृत एजेंसी इस योजना के अंतर्गत पंजीकृत और उसका अनुपालन करने वाली संस्थाओं को कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट्स जारी कर सकती है। संस्थाएं सर्टिफिकेट को खऱीदने या बेचने के लिए अधिकृत होंगी। कोई अन्य व्यक्ति भी स्वेच्छा से कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट खरीद सकता है।
इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण संहिता: एक्ट केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण संहिता निर्दिष्ट करे। संहिता क्षेत्रफल के लिहाज से ऊर्जा उपभोग के मानदंड निर्दिष्ट करती है। बिल इसमें संशोधन करके ‘ऊर्जा संरक्षण और टिकाऊ भवन संहिता’ का प्रावधान करता है। यह नई संहिता ऊर्जा दक्षता एवं संरक्षण, अक्षय ऊर्जा के उपयोग, और हरित भवनों की अन्य जरूरतों से संबंधित नियमों का प्रावधान करेगी।
बिल पर पीआरएस के सारांश के लिए कृपया देखें।
स्टैंडिंग कमिटी ने भारत में पवन ऊर्जा के मूल्यांकन पर रिपोर्ट सौंपी
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राजीव रंजन सिंह) ने ‘भारत में पवन ऊर्जा का मूल्यांकन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।[26] कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
पवन ऊर्जा की क्षमता: कमिटी ने गौर किया कि देश में पवन ऊर्जा क्षमता के बहुत छोटे से हिस्से का दोहन किया गया है। भारत में पवन ऊर्जा की वाणिज्यिक दोहन योग्य क्षमता 200 गीगावॉट (GW) से अधिक अनुमानित है। मई 2022 तक पवन ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 41 गीगावॉट थी जोकि वाणिज्यिक दोहन योग्य क्षमता का लगभग 20% है। क्षमता वृद्धि की धीमी रफ्तार के कारणों में निम्नलिखित शामिल है: (i) शुल्क प्रणाली को फीड-इन-टैरिफ (उत्पादकों को बाजार भाव से अधिक की गारंटी) से बदलकर प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी के जरिए शुल्क निर्धारण करना, और (ii) डेवलपर्स द्वारा आक्रामक बोली लगाना। कमिटी ने कहा कि पवन ऊर्जा से ज्यादा सौर ऊर्जा को तरजीह दी जाती है, इसके बावजूद कि सौर ऊर्जा क्षेत्र आयात पर निर्भर है। मार्च 2014 से मई 2022 तक पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता में 93% और सौर ऊर्जा में 2064% की बढ़ोतरी हुई। कमिटी ने कहा कि भारत के पवन ऊर्जा क्षेत्र में घरेलू निर्माण काफी अधिक है। कमिटी ने सुझाव दिया कि ऊर्जा मिश्रण को संतुलित रखने के लिए पवन ऊर्जा को प्राथमिकता दी जाए।
शुल्क प्रणाली में बदलाव: 2017 तक पवन ऊर्जा क्षमता में वृद्धि फीड-इन-टैरिफ प्रणाली (उत्पादकों को बाजार भाव से अधिक की गारंटी) के जरिए की जाती थी और इसके बाद इसे प्रतिस्पर्धात्मक बोली के जरिए शुल्क निर्धारण में बदल दिया गया। इस बदलाव से परियोजनाओं को स्थापित करने में रुकावट आई है। 4-5 रुपए प्रति यूनिट के अपेक्षाकृत उच्च शुल्क से 2.5-3 रुपए प्रति यूनिट के अधिक प्रतिस्पर्धी शुल्क में परिवर्तन हुआ है। इससे पवन ऊर्जा परियोजनाओं में लाभपरकता कम हो गई। कमिटी ने कहा कि नीलामी की प्रणाली के तहत पवन ऊर्जा परियोजनाओं का आकार बढ़ गया है और ये बड़े स्वतंत्र बिजली उत्पादकों/डेवलपर्स को दिए जाते हैं। कुछ डेवलपर्स आक्रामक बोली का सहारा लेते हैं, इस प्रकार कीमतों को अस्थिर और कम कर देते हैं और आखिरकार परियोजना से बाहर हो जाते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि एकतरफा तरीके से बाहर होने वाले डेवलपर्स पर भारी जुर्माना लगाया जाए और लगातार डीफॉल्ट करने वालों को ब्लैकलिस्ट किया जाए।
अपतटीय पवन ऊर्जा: कमिटी ने कहा कि गुजरात और तमिलनाडु में तटों पर लगभग 70 GW अपतटीय पवन ऊर्जा (जलाशयों में पवन ऊर्जा परियोजनाएं) अनुमानित थी। हालांकि इन राज्यों में कोई परियोजना नहीं लगाई गई। अपतटीय पवन ऊर्जा में तटवर्ती परियोजनाओं की तुलना में अधिक क्षमता उपयोग कारक (सीयूएफ) है और स्थापित क्षमता में वृद्धि के साथ इसकी लागत घटती है। कमिटी ने भारत के विभिन्न तटीय क्षेत्रों में अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता की खोज करने का सुझाव दिया।
रिपोर्ट पर पीआरएस सारांश के लिए कृपया देखें।
बिजली शुल्क नीति की समीक्षा पर रिपोर्ट सौंपी गई
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राजीव रंजन सिंह) ने “बिजली शुल्क नीति की समीक्षा- देश भर में एकरूपता की जरूरत” पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।[27] कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
शुल्क का पुनर्गठन: कमिटी ने कहा कि देश भर में वर्तमान में या एक साथ शुल्क में एकरूपता लाना बहुत मुश्किल होगा। उसने कहा कि उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण की भिन्न-भिन्न लागत के कारण बिजली की आपूर्ति की लागत अलग-अलग है। राज्यों को इस बात का अधिकार दिया गया है कि वे उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों के लिए शुल्क निर्धारित कर सकते हैं। बहुत से राज्यों ने सामाजिक-आर्थिक कारकों के आधार पर शुल्क की बहुत अधिक श्रेणियां बनाई हैं (93 तक)। कमिटी ने कहा कि शुल्क की मौजूदा संरचना विविध और जटिल है और बिजली शुल्क के विभिन्न कारकों को पुनर्गठित करना जरूरी है। उसने केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि वह शुल्क संरचना को सरल बनाने के लिए राज्यों के साथ काम करे।
पावर परचेज एग्रीमेंट्स (पीपीएज़): बिजली खरीद की लागत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) के लिए आपूर्ति की लागत का एक बड़ा हिस्सा है। बिजली की लगभग 90% मांग उत्पादकों और डिस्कॉम्स के बीच के दीर्घकालीन द्विपक्षीय अनुबंध, जिसे पीपीएज़ कहा जाता है, के जरिए पूरी की जाती है। कमिटी ने पाया कि डिस्कॉम्स ने मौजूदा बाजार कीमतों की तुलना में अधिक कीमत पर पीपीए पर हस्ताक्षर किए हैं। इसका उनके वित्तीय प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उसने पीपीए की लागत को पुनर्गठित करने का सुझाव दिया। हालांकि यह भी कहा गया कि पीपीए पर फिर से बातचीत करना, जब तक कि पार्टियों द्वारा पारस्परिक रूप से तय नहीं किया जाता है, अपेक्षित नहीं है क्योंकि इससे भविष्य के निवेश पर प्रतिकूल असर हो सकता है।
निर्धारित लागत का भुगतान: डिस्कॉम्स दो हिस्सों में उत्पादकों को भुगतान करते हैं: (i) निश्चित शुल्क, जोकि पूंजीगत निवेश को दर्शाता है, और (ii) उत्पादन के लिए ईंधन की लागत सहित परिवर्तनशील शुल्क। कमिटी ने कहा कि 2020-21 में कोयला और लिग्नाइट आधारित संयंत्रों में क्षमता उपयोग 53% था। संयंत्र का उपयोग न होने के बावजूद डिस्कॉम्स को निश्चित लागत के रूप में एक बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ता है। यह लागत अंततः अंतिम उपभोक्ता को चुकानी पड़ती है क्योंकि इसे वहां तक पास कर दिया जाता है। हालांकि, वितरण शुल्क स्तर पर निश्चित लागत की वसूली पूरी तरह से नहीं की जा रही है। कमिटी ने सरकार को सुझाव दिया कि डिस्कॉम के बोझ को कम करने के रास्ते तलाशे जाने चाहिए।
रिपोर्ट पर पीआरएस सारांश के लिए कृपया देखें।
कोयला लॉजिस्टिक नीति, 2022 के ड्राफ्ट पर टिप्पणियां आमंत्रित
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
कोयला मंत्रालय ने कोयला लॉजिस्टिक नीति 2022 को टिप्पणियों के लिए जारी किया है।[28] कोयला लॉजिस्टिक्स परिवहन के एक या कई साधनों के जरिए कोयले को मूल स्थान से गंतव्य तक लाने-ले जाने को कहा जाता है। इसमें स्टोरेज, लोडिंग या बिजली संयंत्रों और सीमेंट उद्योग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कोयला डिलीवरी के लिए अनलोडिंग शामिल है। नीति के उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पर्याप्त कोयला निकासी के लिए बुनियादी ढांचे की उपलब्धता सुनिश्चित करना, (ii) लॉजिस्टिक की लागत को अनुकूल बनाना, (iii) परिवहन और हरित परिवहन के बहु-मॉडल नेटवर्क को बढ़ावा देना, और (iv) तकनीक के उपयोग के जरिए लॉजिस्टिक्स के लिए बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करना। ड्राफ्ट नीति की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
कोयले की लॉजिस्टिक लागत में कमी: कोयला निकासी की प्रमुख समस्याओं में से एक लॉजिस्टिक्स की उच्च लागत है। ड्राफ्ट नीति कई तरीकों से कोयले के लॉजिस्टिक्स की लागत को कम करने का प्रयास करती है जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) खदान आबंटन प्रक्रिया में निकासी के बुनियादी ढांचे के निर्माण और उपयोग की योजना बनाना, (ii) कोयले के लिए रेल भाड़े की दरों को रेगुलेट करना, (iii) सभी रेल मार्गों की तुलना में रेल-समुद्र-रेल मार्ग को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना, और (iv) स्मार्ट कोल लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर का उपयोग करना जो लॉजिस्टिक्स चेन के बारे में रियल टाइम सूचना देता है।
परिवहन का मल्टीमॉडल नेटवर्क: ड्राफ्ट नीति में कहा गया है कि कोयला निकासी में तमाम चुनौतियों में से एक यह है कि बहु-मोडल परिवहन में लॉजिस्टिक्स की योजना बहुत सीमित है।
नीति में एक बहु-मॉडल एकीकृत राष्ट्रीय कोयला निकासी योजना तैयार करने का प्रस्ताव है। योजना तैयार करने के लिए एक तकनीकी सहायता इकाई और एक अंतर-मंत्रालयी समिति (आईएमसी) की स्थापना की जाएगी। योजना बनाते समय संबंधित मंत्रालयों, राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ समस्याओं पर काम किया जाएगा। योजना के कार्यान्वयन की निगरानी आईएमसी द्वारा की जाएगी।
ड्राफ्ट नीति पर 9 सितंबर, 2022 तक टिप्पणियां आमंत्रित हैं।
खेल
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
संसद ने खेलों में डोपिंग को रेगुलेट करने वाला बिल पारित किया
संसद ने राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग बिल, 2021 को पारित कर दिया है और खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी के सुझावों को शामिल करने के लिए उसमें कुछ संशोधन किए हैं।[29] बिल खेलों में डोपिंग को प्रतिबंधित करने का प्रयास करता है और संवैधानिक निकाय के तौर पर राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी बनाने का प्रावधान करता है।[30] एथलीट्स खेल प्रदर्शन में सुधार करने के लिए कुछ प्रतिबंधित पदार्थों का उपभोग करते हैं और इसे डोपिंग कहा जाता है। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
डोपिंग पर प्रतिबंध: बिल एथलीट्स, एथलीट्स के सपोर्ट कर्मचारियों और अन्य लोगों को खेलों में डोपिंग से प्रतिबंधित करता है। सपोर्ट कर्मचारियों में कोच, ट्रेनर, मैनेजर, टीम स्टाफ, मेडिकल कर्मचारी और एथलीट्स के साथ काम करने, उनका उपचार और सहयोग करने वाले अन्य लोग शामिल हैं। इन लोगों को यह सुनिश्चित करना होगा कि एंटी-डोपिंग नियमों का उल्लंघन नहीं हो रहा, जिनमें निम्नलिखित शामिल है: (i) एथलीट के शरीर में प्रतिबंधित पदार्थों या उनके मार्कर्स की मौजूदगी, (ii) किसी प्रतिबंधित पदार्थ या पद्धतियों का इस्तेमाल, इस्तेमाल की कोशिश या उनका कब्जे में होना, (iii) सैंपल देने से इनकार करना, (iv) प्रतिबंधित पदार्थ या पद्धतियों की तस्करी या तस्करी की कोशिश, और (v) ऐसे उल्लंघन करने में मदद करना या उसे छिपाना।
कमिटी ने कहा था कि बिल बालिग और नाबालिग एथलीट्स के बीच अंतर नहीं करता। कमिटी ने सुझाव दिया था कि नाबालिग एथलीट्स की सुरक्षा की व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए नियमों में नाबालिग और बालिग एथलीट्स के बीच अंतर किया जाना चाहिए। संशोधनों में यह जोड़ा गया है कि एंटी-डोपिंग नियम निम्नलिखित पर भी लागू होने चाहिए: (i) खेलों में भाग लेने वाले या संलग्न ‘अन्य व्यक्ति’, और (ii) निर्धारित तरीके के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा 'संरक्षित व्यक्तियों' के रूप में निर्दिष्ट व्यक्ति। विश्व एंटी-डोपिंग एजेंसी संहिता के अनुसार, एक संरक्षित व्यक्ति वह है : (i) जिसकी आयु 16 वर्ष से कम है, या (ii) उसकी आयु 18 वर्ष से कम है और उसने ओपन श्रेणी में किसी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग नहीं लिया है, या (iii) अपने देश के कानूनी ढांचे के अनुसार उसमें कानूनी क्षमता का अभाव है।
उल्लंघन करने का परिणाम: अगर कोई एथलीट या एथलीट का सपोर्ट कर्मचारी एंटी-डोपिंग नियमों का उल्लंघन करता तो उसके निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं: (i) परिणाम डिस्क्वालिफाई हो सकते हैं जिसमें मेडल, प्वाइंट्स और पुरस्कार को जब्त करना शामिल है, (ii) एक निर्दिष्ट अवधि तक किसी प्रतिस्पर्धा या आयोजन में भाग नहीं ले पाना, (iii) वित्तीय प्रतिबंध, और (iv) अन्य परिणाम, जिन्हें निर्दिष्ट किया जा सकता है। टीम स्पोर्ट्स के परिणामों को रेगुलेशंस के जरिए निर्दिष्ट किया जाएगा। संशोधनों में कहा गया है कि संरक्षित व्यक्तियों के लिए रेगुलेशंस के जरिए परिणामों को निर्दिष्ट किया जाएगा।
राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी: वर्तमान में राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी एंटी डोपिंग नियमों को लागू करती है। यह एजेंसी सोसायटी के तौर पर स्थापित है। बिल में राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी को बॉडी कॉरपोरेट के तौर पर स्थापित किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त डायरेक्टर जनरल एजेंसी के प्रमुख होंगे। एजेंसी के कार्यों में निम्नलिखित शामिल है: (i) एंटी-डोपिंग गतिविधियों की योजना बनाना, उन्हें लागू करना और उनकी निगरानी करना, (ii) एंटी-डोपिंग के नियमों के उल्लंघन की जांच करना, और (iii) एंटी-डोपिंग संबंधी शोध को बढ़ावा देना।
बिल पर अधिक विवरण के लिए कृपया देखें।
विदेशी मामले
संसद ने सामूहिक विनाश के हथियारों को प्रतिबंधित करने के लिए बिल पारित किया
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
सामूहिक विनाश के हथियार और उनके डिलिवरी सिस्टम्स (गैरकानूनी गतिविधियों पर प्रतिबंध) संशोधन बिल, 2022 को लोकसभा में पेश किया गया।[31] बिल सामूहिक विनाश के हथियार और उनके डिलिवरी सिस्टम्स (गैरकानूनी गतिविधियों पर प्रतिबंध) एक्ट, 2005 में संशोधन करता है।[32] 2005 का एक्ट सामूहिक विनाश के हथियारों और उनकी डिलिवरी के तरीकों से संबंधित गैरकानूनी गतिविधियों (जैसे मैन्यूफैक्चरिंग, परिवहन या स्थानांतरण) पर प्रतिबंध लगाता है। सामूहिक विनाश के हथियारों में बायोलॉजिकल, रासायनिक या परमाणु हथियार शामिल हैं। बिल व्यक्तियों को सामूहिक विनाश के हथियारों और उनके डिलिवरी सिस्टम्स से संबंधित किसी भी निषिद्ध गतिविधि को वित्तपोषित करने पर प्रतिबंध लगाता है।
बिल पर पीआरएस सारांश के लिए कृपया देखें।
भारतीय डायस्पोरा के कल्याण के लिए स्टैंडिंग कमिटी ने रिपोर्ट सौंपी
Tanvi Vipra (tanvi@prsindia.org)
विदेशी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री पी.पी. चौधरी) ने “भारतीय डायस्पोरा का कल्याण: नीतियां/योजनाएं” पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।[33] भारतीय डायस्पोरा उन लोगों को कहा जाता है जिनकी जड़ें भारत में तलाशी जा सकती हैं या जो भारतीय नागरिक विदेशों में रहते हैं। इनमें अनिवासी भारतीय (एनआरआई), भारतीय मूल के व्यक्ति (पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन) (पीआईओ), और भारत के प्रवासी नागरिक (ओवरसीज़ सिटिजन्स ऑफ इंडिया) (ओसीआई) शामिल हैं। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
डायस्पोरा के लिए नीति: विदेशी मामलों का मंत्रालय विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के जरिए डायस्पोरा के साथ संलग्न रहता है। कमिटी ने गौर किया कि देश के विकास में डायस्पोरा का सामाजिक-आर्थिक योगदान होने के बावजूद उनके लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को डायस्पोरा पर एक स्पष्ट नीति दस्तावेज का ड्राफ्ट तैयार करना चाहिए जोकि उस समुदाय के साथ संलग्नता के मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करेगा।
भारतीय डायस्पोरा पर डेटाबेस: कमिटी ने गौर किया कि विदेशी मामलों के मंत्रालय के पास डायस्पोरा के लिए कोई अपडेटेड डेटा नहीं है, चूंकि भारतीय दूतावास के साथ रजिस्ट्रेशन स्वैच्छिक है। ऐसे डेटाबेस के अभाव में कल्याणकारी योजनाओं को उचित तरीके से लागू नहीं किया जा सकता। कमिटी ने सुझाव दिया कि भारतीय दूतावासों को डायस्पोरा को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे खुद को रजिस्टर करें ताकि मंत्रालय प्रभावी तरीके से कल्याणकारी योजनाओं को लागू कर सके।
इमिग्रेशन मैनेजमेंट बिल: कमिटी ने गौर किया कि इमिग्रेशन मैनेजमेंट बिल, 2022 लंबे समय से परामर्श और समीक्षा के अधीन है। बिल इमिग्रेशन फ्रेमवर्क बनाने, मंजूरियों को उदार बनाने और विदेशों में रहने वाले प्रवासियों के कल्याण का प्रयास करता है। कमिटी ने मंत्रालय को इस बिल को जल्द से जल्द पेश करने का सुझाव दिया।
रिपोर्ट पर पीआरएस सारांश के लिए कृपया देखें।
पृथ्वी विज्ञान
Tushar Chakrabarty (tushar@prsindia.org)
संसद ने अंटार्कटिका क्षेत्र में भारतीय अभियानों को रेगुलेट करने वाला बिल पारित किया
भारतीय अंटार्कटिका बिल, 2022 को लोकसभा में पारित कर दिया गया है।[34] बिल अंटार्कटिका संधि, अंटार्कटिका समुद्री जीव संसाधन संबंधी कन्वेंशन और अंटार्कटिका संधि के लिए पर्यावरणीय संरक्षण पर प्रोटोकॉल को प्रभावी बनाने का प्रयास करता है। यह अंटार्कटिका के वातावरण के संरक्षण तथा इस क्षेत्र में गतिविधियों को रेगुलेट करने का भी प्रयास करता है। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
बिल किन पर लागू होता है: बिल के प्रावधान किसी भी व्यक्ति, जहाज या विमान पर लागू होंगे जो बिल के तहत जारी परमिट के अंतर्गत अंटार्कटिका के लिए भारतीय अभियान का हिस्सा है। अंटार्कटिका के क्षेत्रों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अंटार्कटिका का महाद्वीप, जिसमें इसके आइस शेल्फ्स शामिल हैं, और इससे सटे महाद्वीपीय शेल्फ के सभी क्षेत्र, और (ii) सभी द्वीप (उनके आइस शेल्फ्स सहित), और 60 डिग्री अक्षांश के दक्षिण में स्थित सभी समुद्र और वायु क्षेत्र।
केंद्रीय समिति: केंद्र सरकार अंटार्कटिका शासन और पर्यावरणीय संरक्षण समिति बनाएगी। समिति के कार्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) विभिन्न गतिविधियों के लिए अनुमति देना, (ii) अंटार्कटिका के वातावरण के संरक्षण के लिए प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय कानूनों का कार्यान्वयन और उनके अनुपालन को सुनिश्चित करना, (iii) संधि, कन्वेंशन और प्रोटोकॉल के पक्षों से जानकारी हासिल करना और उनकी समीक्षा करना, और (iv) अंटार्कटिका में गतिविधियों के लिए अन्य पक्षों से फीस/चार्ज पर बातचीत करना।
परमिट की जरूरत: निम्नलिखित गतिविधियों के लिए समिति के परमिट या प्रोटोकॉल के दूसरे पक्षों (भारत के अतिरिक्त) से लिखित अनुमति जरूरी होगी: (i) अंटार्कटिका में भारतीय अभियान का प्रवेश या उसका वहां रहना, (ii) अंटार्कटिका में किसी व्यक्ति का प्रवेश या भारतीय स्टेशन में रहना, (iii) भारत में पंजीकृत जहाज या विमान का अंटार्कटिका में प्रवेश या वहां रहना, (iv) किसी व्यक्ति या जहाज का खनिज संसाधनों को ड्रिल, ड्रेज या उसकी खुदाई करना, या खनिज संसाधनों का सैंपल जमा करना, (v) ऐसी गतिविधियां जो देशी प्रजातियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं, और (vi) अंटार्कटिका में किसी व्यक्ति, जहाज या विमान का कचरा निस्तारण।
विधि एवं न्याय
नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय आरबिट्रेशन सेंटर को नया नाम देने वाला बिल लोकसभा में पारित
Tanvi Vipra (tanvi@prsindia.org)
लोकसभा में नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय आरबिट्रेशन सेंटर (संशोधन) बिल, 2022 को पेश और पारित किया गया।[35] बिल नई दिल्ली आरबिट्रेशन सेंटर एक्ट, 2019 में संशोधन करता है। एक्ट नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय आरबिट्रेशन सेंटर की स्थापना का प्रावधान करता है और इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान निर्दिष्ट करता है। नई दिल्ली आरबिट्रेशन सेंटर को अंतरराष्ट्रीय वैकल्पिक विवाद निवारण केंद्र के स्थान पर स्थापित किया गया है। बिल नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय आरबिट्रेशन सेंटर का नाम बदलकर भारत अंतरराष्ट्रीय आरबिट्रेशन सेंटर करता है। यह एक्ट में ड्राफ्टिंग की कई कमियों को ठीक भी करता है।
बिल पर पीआरएस सारांश के लिए कृपया देखें।
गार्जियनशिप और एडॉप्शन कानूनों की समीक्षा पर रिपोर्ट सौंपी गई
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री सुशील कुमार मोदी) ने “गार्जियनशिप और एडॉप्शन कानूनों की समीक्षा” पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।[36] कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
एडॉप्शन पर एक कानून: वर्तमान में एडॉप्शन को दो कानूनों द्वारा रेगुलेट किया जाता है- हिंदू एडॉप्शन और भरण-पोषण एक्ट, 1956 (हामा) जो हिंदुओं पर लागू होता है और किशोर न्याय एक्ट, 2015 (जेजे एक्ट)। कमिटी ने कहा कि इन दो कानूनों के बीच कुछ विसंगतियां हैं, जैसे एडॉप्शन के लिए अधिकतम आयु की सीमा और एडॉप्शन की टाइमलाइन्स और शर्तें। कमिटी ने सुझाव दिया कि एडॉप्शन पर एक कानून लाया जाए जो सभी धर्मों के सभी लोगों पर समान रूप से लागू हो। कानून संस्थागत बच्चों और परिवार के साथ रहने वाले बच्चों के लिए अलग से एडॉप्शन की प्रक्रिया निर्धारित कर सकता है और एलजीबीटीक्यू समुदाय को भी कवर कर सकता है।
गार्जियनशिप पर एक कानून: वर्तमान में गार्जियनशिप को गार्जियन्स और वार्ड्स एक्ट, 1890 और हिंदू अल्पसंख्यक और गार्जियनशिप एक्ट, 1956 (हिंदुओं पर लागू) के जरिए रेगुलेट किया जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि गार्जियनशिप को रेगुलेट करने वाला एक कानून बनाया जाए। एक्ट में वरिष्ठ नागरिकों के लिए गार्जियनशिप को आसान बनाने के प्रावधान होने चाहिए। इस एक्ट में निर्णय लेने में किसी के समर्थन का भी प्रावधान किया जाना चाहिए। ऐसी व्यवस्था में व्यक्ति अपने भरोसेमंद सलाहकारों, जैसे मित्रों, परिवार या पेशेवर व्यक्ति को समर्थक के रूप में नियुक्त करता है।
जेजे एक्ट का कार्यान्वयन: 2021 में संशोधनों के बाद जेजे एक्ट जिला मेजिस्ट्रेट (डीएम) (एडीशनल डीएम सहित) को एडॉप्शन के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत करता है। डीएम द्वारा जारी आदेश से पीड़ित व्यक्ति डिविजिनल कमीश्नर से अपील कर सकता है। कमिटी ने कहा कि जजों के पास यह तय करने की क्षमता होती है कि एडॉप्शन बच्चे के हित में है या नहीं। यह उचित नहीं है कि न्यायिक निकाय के स्थान पर एडॉप्शन का आदेश प्रशासनिक प्राधिकारी द्वारा जारी किया जाए। उसने सुझाव दिया कि चूंकि नई व्यवस्था की गई है, इसलिए डीएम, एडीशनल डीएम और डिविजिनल कमीश्नर को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को एक वर्ष बाद इस नई प्रणाली के कामकाज की समीक्षा करनी चाहिए और कमिटी को एक रिपोर्ट देनी चाहिए।
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शिक्षा
Tanvi Vipra (tanvi@prsindia.org)
मौजूदा विश्वविद्यालय को गति शक्ति विश्वविद्यालय में बदलने वाला बिल संसद में पारित
केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) बिल, 2022 को लोकसभा में पारित कर दिया गया।[37] बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
गति शक्ति विश्वविद्यालय: बिल राष्ट्रीय रेल और परिवहन संस्थान, वड़ोदरा (मानद विश्वविद्यालय) को गति शक्ति विश्वविद्यालय में बदलता है, जोकि एक केंद्रीय विश्वविद्यालय होगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एक्ट, 1956 के तहत राष्ट्रीय रेल और परिवहन संस्थान को मानद विश्वविद्यालय घोषित किया गया था। इस गति शक्ति विश्वविद्यालय को केंद्र सरकार द्वारा रेल मंत्रालय के जरिए स्पांसर और वित्त पोषित किया जाएगा।
शिक्षा का दायरा: बिल में प्रावधान है कि गति शक्ति विश्वविद्यालय परिवहन, तकनीक और प्रबंधन से संबंधित विषयों में उत्तम स्तर की शिक्षा, अनुसंधान और दक्षता विकास करने का उपाय करेगा। अगर जरूरी हुआ तो विश्वविद्यालय भारत और विदेशों में अपने केंद्र भी स्थापित कर सकता है। बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन के अनुसार, विश्वविद्यालय की स्थापना से परिवहन क्षेत्र में प्रशिक्षित प्रतिभाओं की जरूरत पूरी होगी।
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दूरसंचार
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
ट्राई ने दूरसंचार क्षेत्र में एआई और बिग डेटा का लाभ उठाने पर टिप्पणी आमंत्रित की
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने 'दूरसंचार क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिग डेटा का लाभ' पर एक परामर्श पत्र जारी किया है।[38] आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और बिग डेटा उभरती हुई तकनीक हैं जिन्हें दूरसंचार नेटवर्क में इस्तेमाल किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप बेहतर नेटवर्क संबंधी विश्वसनीयता, कम लागत और बेहतर ग्राहक अनुभव प्राप्त होते हैं। हालांकि ऐसी तकनीकों को अपनाने के साथ कुछ चुनौतियां हैं जैसे गोपनीयता को लेकर चिंताएं, एआई मॉडल को प्रदान किए गए निम्न गुणवत्ता वाले डेटा, पक्षपाती एल्गोरिदम और नियमों के अनुपालन के मुद्दे। इसके अलावा एआई और बिग डेटा को अपनाने में कुछ बाधाएं हैं। इनमें शामिल हैं: (i) एआई विशिष्ट बुनियादी ढांचे की आवश्यकता, (ii) एआई सिस्टम के लिए उपयोगकर्ता डेटा तक पहुंच, (iii) मानकों और रेगुलेशंस की कमी, और (iv) एआई सिस्टम बनाने के लिए निवेश की आवश्यकता। भारत ने एआई मॉडलों के प्रशिक्षण हेतु डेटा को एक्सेसिबल बनाने के लिए कई पहल की है। लेकिन दूरसंचार क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ डेटा हब स्थापित करने की आवश्यकता है।
एआई को अपनाने की जटिलताओं को देखते हुए, दूरसंचार ऑपरेटरों को इन तकनीकों को अपनाने में जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए ऐसे सॉल्यूशंस विकसित करने की जरूरत है जिससे कंपनियां एआई सॉल्यूशंस को लाइव नेटवर्क में लगाने से पहले टेस्टिंग और प्रदर्शन का माहौल दे सकें। इसके अलावा एआई सॉल्यूशंस या उत्पादों की मान्यता के लिए एक प्रक्रिया निर्धारित करने से एआई सेवाओं की खरीद के संबंध में लोगों में विश्वास पैदा हो सकता है। ट्राई ने उल्लेख किया कि एआई और बिग डेटा का लाभ उठाने में प्रमुख चुनौतियों में से एक आवश्यक तकनीकी कौशल की कमी है। मौजूदा टैलेंट पूल का अधिकांश हिस्सा नियमित आईटी विकास पर केंद्रित है, न कि अनुसंधान और विकास गतिविधियों पर।
ट्राई ने निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों पर विचार मांगे हैं: (i) एआई और बिग डेटा को अपनाने में दूरसंचार क्षेत्र के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियां, (ii) एआई सिस्टम को अपनाने के लिए हितधारकों के बीच विश्वास पैदा करने के उपाय, (iii) निर्दिष्ट एआई मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु दूरसंचार क्षेत्र के लिए विशिष्ट निकाय की आवश्यकता, (iv) एआई डोमेन में पर्याप्त कुशल कार्यबल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उपाय, और (v) एआई सिस्टम विकसित करने के लिए डेटा तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाने की पहल।
टिप्पणियां 16 सितंबर, 2022 तक आमंत्रित हैं।
आवासन एवं शहरी मामले
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
पीएमएवाई (यू) को दिसंबर 2024 तक बढ़ाया गया
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पीएमएवाई-यू) को 31 दिसंबर, 2024 तक बढ़ाने को मंजूरी दे दी है।[39] केंद्र सरकार ने शहरी क्षेत्रों में 'सभी को आवास' प्रदान करने के लिए जून 2015 में पीएमएवाई-यू को शुरू किया था। यह योजना पहले 31 मार्च, 2022 तक लागू थी। पीएमएवाई- यू के तहत केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, और राज्य/केंद्र शासित प्रदेश लाभार्थियों के चयन सहित योजना को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं। योजना के शुभारंभ के बाद से स्वीकृत कुल 123 लाख घरों में से, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने योजना के पिछले दो वर्षों के दौरान 40 लाख घरों के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किए। इसलिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के अनुरोधों के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यों को घरों के निर्माण के लिए अधिक समय देने हेतु पीएमएवाई-यू के विस्तार को मंजूरी दी।
दिल्ली विकास एक्ट, 1957 में ड्राफ्ट संशोधन टिप्पणियों के लिए जारी
आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने दिल्ली विकास एक्ट, 1957 में संशोधन के ड्राफ्ट पर टिप्पणियां आमंत्रित की हैं।[40] एक्ट दिल्ली में विकास गतिविधियों को नियंत्रित करता है और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की स्थापना करता है।[41] संशोधनों की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:
लैंड पूलिंग और शहरी रीजनरेशन: संशोधन में कहा गया है कि डीडीए लैंड पूलिंग और शहरी रीजनरेशन के लिए नीतियों को अधिसूचित कर सकता है। लैंड पूलिंग से तात्पर्य विभिन्न स्वामित्व के तहत भूमि के संयोजन और एकीकृत योजना के उद्देश्यों के लिए उसके पुनर्वितरण से है। शहरी रीजनरेशन एक शहरीकृत गांव के पुन: विकास को दर्शाता है। डीडीए विभिन्न क्षेत्रों को लैंड पूलिंग के क्षेत्रों और शहरी रीजनरेशन क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित कर सकता है। शहरी स्थानीय निकाय शहरी रीजनरेशन क्षेत्रों को भी अधिसूचित कर सकते हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार डीडीए को इस विभाजन का निर्देश दे सकती है। एक बार जब किसी क्षेत्र को लैंड पूलिंग क्षेत्र या शहरी रीजनरेशन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाता है, तो सभी भूस्वामियों को लैंड पूलिंग और शहरी रीजनरेशन में भाग लेना चाहिए। लैंड पूलिंग नीति या शहरी रीजनरेशन नीति का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को छह महीने तक की कैद या 10 लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
हस्तांतरणीय विकास अधिकार (टीडीआर): डीडीए, मालिक की सहमति से, केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित टीडीआर के माध्यम से क्षतिपूर्ति करके सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि/संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है। टीडीआर का मतलब है, ऐसा हस्तांतरणीय अधिकार जो सर्टिफिकेट के रूप में दिया जाता है। इसके तहत ऐसे लोग अपने फ्लोर एरिया में निर्माण करने या उसे विकसित करने का अधिकार देते हैं जो अपने भूखंड पर फ्लोर एरिया अनुपात (एफएआर) का इस्तेमाल नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए किसी स्मारक के निकट होने या बिजली लाइनों से संबंधित प्रतिबंधों के कारण लोग एफएआर का इस्तेमाल नहीं कर सकते। भूखंड के कुल क्षेत्रफल पर कुल निर्माण कितना है, उस अनुपात को फ्लोर एरिया अनुपात कहा जाता है। टीडीआर प्रमाणपत्र प्राप्त करने वाले व्यक्ति उन्हें निर्दिष्ट टीडीआर प्राप्त करने वाले क्षेत्रों में बेच सकते हैं।
टिप्पणियां 17 सितंबर, 2022 तक आमंत्रित हैं।
पर्यावरण
जैव विविधता (संशोधन) बिल, 2021 पर ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी की रिपोर्ट पटल पर रखी गई
Saket Surya (saket@prsindia.org)
जैव विविधता (संशोधन) बिल, 2021 पर ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (चेयर: डॉ. संजय जायवाल) ने अपनी रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी।[42] बिल को लोकसभा में दिसंबर 2021 में पेश किया गया था।[43] बिल जैव विविधता एक्ट, 2002 में संशोधन करता है।[44] एक्ट जैव विविधता के संरक्षण और जैव विविधता और उससे संबंधित ज्ञान की पहुंच के लाभ को स्थानीय समुदायों के साथ साझा करने का प्रावधान करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान: बिल लाभ-साझाकरण प्रावधानों से संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान तक पहुंच को छूट देता है। हालांकि यह 'संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान' शब्द को परिभाषित नहीं करता है। कमिटी ने कहा कि आयुष चिकित्सा पद्धति में अधिकांश पारंपरिक ज्ञान संहिताबद्ध है। यह भी देखा गया कि लोक जैव विविधता रजिस्टर में पंजीकृत पारंपरिक ज्ञान को भी संहिताबद्ध माना जा सकता है। इससे अधिकांश स्थानीय पारंपरिक ज्ञान धारकों को लाभ से वंचित किया जा सकता है। एक्ट के प्रावधानों के अनुसार जैव विविधता का दस्तावेजीकरण करने के लिए स्थानीय अधिकारियों द्वारा रजिस्टर तैयार किया जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया की कि इस शब्द को बिल में परिभाषित किया जाए। इसे औषधि और प्रसाधन सामग्री एक्ट, 1940 की पहली अनुसूची में निर्दिष्ट आधिकारिक पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए। अनुसूची में आयुर्वेद, सिद्ध और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों पर पुस्तकों की सूची है।
उगाए जाने वाले औषधीय पौधे: बिल उगाए जाने वाले औषधीय पौधों तक पहुंच को लाभ-साझाकरण प्रावधानों से छूट देता है। यह प्रावधान करता है कि केंद्र सरकार ऐसे औषधीय पौधों के लिए उत्पत्ति का प्रमाण पत्र जारी करने का एक तरीका निर्धारित कर सकती है। कमिटी ने नियम बनाने की शक्ति को हटाने का सुझाव दिया। इसके बजाय उसने बिल में ही प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में और स्पष्टीकरण प्रदान करने का सुझाव दिया। बिल में यह प्रावधान होना चाहिए कि संबंधित स्थानीय अधिकारियों की पुस्तकों में प्रविष्टि के माध्यम से उत्पत्ति का प्रमाण पत्र प्राप्त किया जाएगा।
रिपोर्ट पर पीआरएस सारांश के लिए कृपया देखें।
बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 अधिसूचित
Mayank Shreshtha (mayank@prsindia.org)
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण (संरक्षण) एक्ट, 1986 के तहत बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 को अधिसूचित किया है।[45],[46],[47] ये नियम बैटरी (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2001 का स्थान लेते हैं और विभिन्न प्रकार की अपशिष्ट बैटरियों के प्रबंधन के लिए मानक निर्धारित करते हैं। अपशिष्ट बैटरी में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) यूस्ड/एंड ऑफ लाइफ बैटरी और उसके खतरनाक/गैर-खतरनाक घटक; (ii) मैन्यूफैक्चरिंग प्रक्रिया के दौरान बैटरी को डायवर्ट करना; और (iii) एक्सपायर हो चुकी या बेकार हो चुकी बैटरी। नियमों की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (ईपीआर): बैटरियों के उत्पादकों को अपशिष्ट बैटरियों का संग्रह, रीसाइकलिंग और रीफर्बिशिंग सुनिश्चित करना होता है। ईपीआर लक्ष्य प्रत्येक प्रकार की बैटरी- पोर्टेबल, ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रिक और औद्योगिक के भीतर बैटरी के प्रकार (जैसे, लिथियम-आयन, लेड-एसिड) के लिए विशिष्ट हैं। ईपीआर एक नई बैटरी में घरेलू रूप से रीफर्बिशिंग की सामग्री (जैसे, लिथियम, निकल, कोबाल्ट) के न्यूनतम उपयोग को अनिवार्य करता है।
उपभोक्ताओं की जिम्मेदारियां: उपभोक्ताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि: (i) अपशिष्ट बैटरी को अन्य प्रकार के कचरे से अलग फेंका जाए, और (ii) अपशिष्ट बैटरियों को संग्रह, रीफर्बिशर्स या रीसाइकलिंग में लगी किसी संस्था को देकर निपटाना।
कार्यान्वयन के लिए समिति: नियमों के कार्यान्वयन के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को उपायों की सिफारिश करने के लिए केंद्र सरकार एक समिति (चैयरमैन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) का गठन करेगी। समिति में संबंधित हितधारक शामिल होंगे जैसे कि विभिन्न मंत्रालयों, राज्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के सदस्य, और विभिन्न हितधारकों जैसे कि रीसाइकलर्स और उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करने वाले संघ।
केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) बेकार बैटरी के पंजीकरण और रिटर्न दाखिल करने के लिए एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल बनाएगा। ऑनलाइन पोर्टल निर्माता के दायित्वों को पूरा करने के लिए उत्पादकों और रीसाइकलर्स/रीफर्बिशर्स के बीच ईपीआर प्रमाणपत्रों के निर्माण और आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करेगा।
पर्यावरण क्षतिपूर्ति: नियमों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं पर सीपीसीबी द्वारा पर्यावरण क्षतिपूर्ति लगाई जाएगी।
कैग ने तटीय संरक्षण पर रिपोर्ट सौंपी
Tanvi Vipra (tanvi@prsindia.org)
भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने “तटीय पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम्स) का संरक्षण” पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट जारी की।[48] कैग के निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
संस्थागत संरचना: तटीय पर्यावरण के संरक्षण के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने तदर्थ निकाय के तौर पर राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (एनसीजेडएमए) की स्थापना की थी। कैग ने कहा कि तदर्थ होने और कर्मचारियों की कमी के कारण एनसीजेडएमए अपना कामकाज नहीं कर पाया। इसके अतिरिक्त उसकी भूमिका तटीय विनियमन जोन (सीआरजेड) के पुनर्वगीकरण पर विचार-विमर्श करने या फैसले लेने तक ही सीमित है। कैग ने सुझाव दिया कि एनसीजेडएमए और राज्य तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरणों (एससीजेडएमए) को पूर्णकालिक सदस्यों के साथ स्थायी निकाय बनाया जाए।
प्रॉजेक्ट्स के लिए मंजूरियां: सीआरजेड में गतिविधियों के लिए उद्योगों को मंजूरी लेनी पड़ती है। कैग ने कहा कि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट्स में कमियां होने के बावजूद कुछ प्रॉजेक्ट्स को मंजूरी दी गई। इन कमियों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) गैर मान्यता प्राप्त सलाहकारों द्वारा ईआईए रिपोर्ट्स तैयार करना, (ii) पुराने बेसलाइन डेटा का इस्तेमाल, और (iii) ईआईए में पर्यावरणीय प्रभाव का अपर्याप्त विश्लेषण। प्रॉजेक्ट्स की मंजूरियों से संबंधित अन्य मुद्दों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) निजी सलाहकारों द्वारा प्रदान की गई सूचना का सत्यापन न करना, और (ii) जन सुनवाइयों (जहां लोग प्रॉजेक्ट के पर्यावरणीय प्रभाव के संबंध में अपनी चिंताओं को जाहिर करते हैं) की कमियां। कैग ने कहा कि प्रॉजेक्ट को मंजूरियां देने की प्रक्रिया से यह पूरी तरह सुनिश्चित नहीं होता कि प्रस्तावित प्रॉजेक्ट्स का तटीय पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। कैग ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को मंजूरी देने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रॉजेक्ट के प्रस्तावकों ने गहराई से प्रॉजेक्ट का पारिस्थिकीय मूल्यांकन किया है। प्रॉजेक्ट के प्रस्तावक उन एजेंसियों को कहते हैं जो प्रॉजेक्ट लगाने का प्रस्ताव रखती हैं।
रिपोर्ट पर पीआरएस सारांश के लिए कृपया देखें।
भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को अपडेट किया
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के अपडेशन को मंजूरी दे दी है।[49] 2015 में पेरिस समझौते के तहत भारत सहित कई देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपने नियत एनडीसी को प्रस्तुत किया था। इसका उद्देश्य पूर्व-औद्योगिक स्तर से वैश्विक तापमान वृद्धि को अधिमानतः 1.5 ℃ तक सीमित करना था। 2021 ग्लासगो सम्मेलन (कोप 26) में भारत ने 2030 तक हासिल किए जाने वाले कुछ संशोधित लक्ष्यों की घोषणा की थी। भारत के एनडीसी में परिवर्तन निम्नलिखित हैं:
जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता: 2015 में प्रस्तुत एनडीसी ने 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 33% से 35% तक कम करने का प्रावधान किया। संशोधित लक्ष्य 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक तीव्रता को 45% तक कम करना चाहते हैं।
नॉन-फॉसिल स्रोतों से बिजली: 2015 का लक्ष्य 2030 तक नॉन-फॉसिल स्रोतों से संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता को 40% तक बढ़ाना था। जुलाई 2022 तक भारत की नॉन-फॉसिल स्रोतों से विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता 42% है। अपडेटेड एनडीसी लक्ष्य को 50% तक बढ़ाता है।
कोप 26 में भारत द्वारा घोषित अन्य लक्ष्य हैं: (i) नॉन-फॉसिल ऊर्जा क्षमता को 500-गीगावाट तक बढ़ाना, और (ii) अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम करना।[50] इसके अलावा भारत 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है।
उपभोक्ता मामले
Tanvi Vipra (tanvi@prsindia.org)
लूज़ गारमेंट्स की बिक्री पर अनुपालन के बोझ को कम करने के लिए नियमों में संशोधन
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेटबंद सामान) नियम 2011 में संशोधन किए हैं।[51],[52] 2011 के नियमों के तहत, पैक की गई वस्तुओं को कुछ अनुपालनों को पूरा करना होता है जैसे कि सामान का सामान्य नाम, यूनिट बिक्री मूल्य और निर्माण के महीने और वर्ष की घोषणा।
संशोधन निर्दिष्ट करते हैं कि खुले में बेचे जाने वाले वस्त्र या होजरी आइटम ऐसे अनुपालन की शर्तों से मुक्त हैं। लूज़ गारमेंट्स से तात्पर्य उन वस्त्रों से है जिन्हें उपभोक्ता खरीदने से पहले जांच सकता है। खुले में बेचे जाने वाले वस्त्रों या होजरी वस्तुओं के लिए निर्माता का नाम और पता, कंज्यूमर केयर ईमेल एड्रेस और फोन नंबर, साइज और अधिकतम खुदरा मूल्य जैसी जानकारी प्रदान की जानी चाहिए। संशोधन अनुपालन के बोझ को कम करके व्यापार करने में आसानी पैदा करने का प्रयास करते हैं।[53]
नागरिक उड्डयन
Tanvi Vipra (tanvi@prsindia.org)
एयरलाइंस अंतरराष्ट्रीय यात्रियों का विवरण कस्टम्स के साथ साझा करेंगी
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड ने सीमा शुल्क एक्ट, 1962 के तहत यात्री नाम रिकॉर्ड (पीएनआर) सूचना रेगुलेशन, 2022 को अधिसूचित किया है।[54] रेगुलेशंस के अनुसार, एयरलाइंस को अपने कारोबार की सामान्य प्रक्रिया में एकत्रित अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के विवरण को राष्ट्रीय सीमा शुल्क लक्ष्य केंद्र- यात्री (एनसीटीसीपी) के साथ साझा करना होगा। एनसीटीसीपी यात्रियों के विवरण को प्रोसेस करने के लिए बोर्ड द्वारा स्थापित एक प्राधिकरण है। सीमा शुल्क एक्ट, 1962 के तहत अपराधों को रोकने, उनका पता लगाने, जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए विवरण एकत्र किए जाते हैं। अपराधों में माल का अवैध आयात या निर्यात शामिल है। रेगुलेशंस की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
साझा किया जाने वाले विवरण: एयरलाइंस को यात्री विवरण जैसे नाम, पीएनआर रिकॉर्ड, टिकट आरक्षण की तारीख, यात्रा की तारीख, सभी संपर्क जानकारी और सामान की जानकारी एनसीटीसीपी के साथ साझा करनी होगी। प्रस्थान के समय से कम से कम 24 घंटे पहले विवरण एनसीटीसीपी के साथ साझा किया जाना चाहिए।
सूचना साझा करना: एनसीटीसीपी अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों या सरकारी विभागों के साथ अनुरोध पर यात्री विवरण साझा कर सकता है, अगर वे राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के संबंध में जरूरी हैं।
डेटा का प्रतिधारण: विवरण पांच साल तक रखे जाएंगे, जब तक कि वे जांच, अभियोजन या अदालती कार्यवाही के लिए जरूरी न हों। विवरण पांच साल बाद गुमनाम कर दिया जाएगा। किसी पहचान योग्य मामले, खतरे या जोखिम के संबंध में आगे के विश्लेषण के लिए जरूरी होने पर विवरण एक अधिकृत अधिकारी द्वारा 'प्रतिरूपित' किया जा सकता है।
सूचना का संरक्षण: एनसीटीसीपी द्वारा एकत्र की गई जानकारी को केवल अधिकृत अधिकारियों द्वारा संरक्षित, प्रोसेस और प्रसारित किया जाएगा। किसी व्यक्ति की जाति, धर्म, राजनीतिक राय, ट्रेड यूनियन सदस्यता, स्वास्थ्य या यौन अभिविन्यास जैसे विवरण प्रकट करने की अनुमति नहीं है।
जुर्माना: एक एयरलाइन द्वारा डेटा साझा न करने की स्थिति में हर मामले पर एनसीटीसीपी 25,000 रुपए से 50,000 रुपए के बीच जुर्माना लगा सकती है।
घरेलू उड़ानों पर हवाई किराए की सीमा हटाई गई
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने घरेलू हवाई किराए पर ऊपरी और निचली सीमा को हटाने के लिए अधिसूचना जारी की है।[55] मई 2020 में घरेलू उड़ानों के लिए हवाई किराए को ऊपरी और निचले बैंड के साथ सीमित कर दिया गया था। अधिसूचना के अनुसार, घरेलू हवाई किराए की सीमा 31 अगस्त, 2022 से लागू नहीं होगी।
नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने ट्रांसजेंडर पायलट आवेदकों का एयरोमेडिकल आकलन करने हेतु मेडिकल परीक्षकों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं।[56] ट्रांसजेंडर व्यक्ति उन लोगों को कहते हैं जो जन्म के समय अपने निर्दिष्ट जेंडर से सोशल ट्रांजिशन की मांग करते हैं या उससे गुजरते हैं। दिशानिर्देशों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
पंजीकरण प्रक्रिया: प्रारंभिक चिकित्सकीय जांच कराने वाले ट्रांसजेंडर आवेदक अपने सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी पर लिखित जेंडर के अनुसार नागरिक उड्डयन के ई-गवर्नेंस पोर्टल (ईजीसीए) पर पंजीकरण करेंगे। ऐसे उम्मीदवारों को भारतीय वायुसेना के एयरोस्पेस मेडिसिन संस्थान (आईएएम) में आगे की जांच के लिए चिकित्सा आकलनकर्ताओं द्वारा अस्थायी रूप से अनफिट घोषित किया जाएगा।
आकलन के लिए दिशानिर्देश: आईएएम में आवेदकों को वर्ल्ड प्रोफेशनल एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ (डब्ल्यूपीएटीएच) मानकों के अनुसार मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक द्वारा एक विस्तृत मानसिक स्वास्थ्य परीक्षा से गुजरना होगा। तालिका 2 में उन आधारों को सूचीबद्ध किया गया है जिनके आधार पर फिटनेस प्रमाणपत्र प्रदान किए जाते हैं।
तालिका 2: ट्रांसजेंडर आवेदकों के लिए चिकित्सकीय आकलन के मानदंड
स्थिति |
आकलन |
कम से कम पांच साल पहले जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी या हार्मोन थेरेपी से गुजरना |
यदि कोई मनोरोग संबंधी असामान्यता नहीं है, और हार्मोन थेरेपी के कोई डॉक्यूमेंटेड दुष्प्रभाव नहीं हैं, तो आवेदक को फिट माना जाएगा |
जेंडर रीअसाइनमेंट या हार्मोन थेरेपी हुए पांच साल पूरे नहीं हुए या मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्यों या उपचारों का इतिहास रहा हो |
जेंडर रीअसाइनमेंट या हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी के लिए सर्जरी कराने वाले आवेदकों को प्रक्रिया के बाद तीन महीने के लिए चिकित्सकीय रूप से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा |
स्रोत: नागरिक उड्डयन महानिदेशालय; पीआरएस।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग
Tanvi Vipra (tanvi@prsindia.org)
एनएचएआई की प्रीमियम रैशनलाइजेशन योजना पर कैग ने रिपोर्ट सौंपी
भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने “भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी के बिल्ट-ऑपरेट-ट्रांसफर (बोट) प्रॉजेक्ट्स में प्रीमियम का रैशनलाइजेशन/स्थगन” पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट जारी की।[57] कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
राजमार्ग विकास का बोट (टोल) मोड: बोट (टोल) मॉडल के तहत प्रॉजेक्ट के बोलीकर्ता दो तरह से संविदा भाव लगाते हैं- एक, एनएचएआई से मिलने वाला वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) या दूसरा, निर्माण/कनसेशन की अवधि के दौरान एनएचएआई को दिया जाने वाला प्रीमियम। कनसेशनेयर वह निजी पार्टनर होता है जोकि किसी निर्दिष्ट कनसेशन अवधि के दौरान प्रॉजेक्ट के वित्त पोषण, निर्माण और संचालन के लिए जिम्मेदार होता है। 2013 में एनएचएआई ने आर्थिक मंदी के फलस्वरूप सड़क क्षेत्र में जान फूंकने के लिए एक योजना का प्रस्ताव रखा जिससे कनसेशनेयर द्वारा चुकाए जाने वाले प्रीमियम को स्थगित किया जा सके। उपलब्ध विकल्पों में से जो योजना मंजूर की गई, उसमें सभी स्ट्रेस्ड प्रॉजेक्ट्स के प्रीमियम को रीशेड्यूल करना शामिल था। एनएचएआई ने 20 प्रॉजेक्ट्स के लिए 9,296 करोड़ रुपए मूल्य के प्रीमियम को आठ से 14 वर्षों के लिए स्थगित किया।
विकल्पों के बावजूद योजना मंजूर: कैग ने गौर किया कि सभी बोट प्रॉजेक्ट्स के कनसेशन एग्रीमेंट्स में ऐसे प्रावधान थे जिनके तहत एनएचएआई कनसेशनेयर्स को राहत दे सकती थी। एनएचएआई ने कनसेशनेयर्स की समस्याओं का उल्लेख किया जैसे भुगतान करने की असमर्थता, जिससे 98,115 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है, अगर प्रॉजेक्ट को रोक दिया जाता। कैग ने गौर किया कि प्रीमियम को स्थगित करने की योजना के दुरुपयोग का अधिक जोखिम था। उसने कहा कि एक बार में आठ से 14 वर्ष का स्थगन, अनुचित लाभ देना था और एनएचएआई के वित्तीय हितों के लिए नुकसानदेह था। कैग ने सुझाव दिया कि एनएचएआई को कॉन्ट्रैक्ट के प्रावधानों से परे नई योजनाओं का प्रस्ताव देने से पहले कनसेशन एग्रीमेंट्स के मौजूदा प्रावधानों का पालन करना चाहिए।
टेंडर देने के बाद उसमें संशोधन: कनसेशनेयर्स द्वारा चुकाया जाने वाला प्रीमियम एक कानूनी कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार था जो खुली बोली प्रक्रिया के बाद तैयार किया गया था। वित्तीय बोलियों को तय करने के लिए प्रस्तावित प्रीमियम ही एकमात्र मानदंड था। कैग ने कहा कि टेंडर देने के बाद उसमें संशोधन करने से टेंडर की प्रक्रिया प्रभावित होती है। उसने एनएचएआई को सुझाव दिया कि उसे टेंडर देने के बाद ऐसे संशोधनों से बचना चाहिए जोकि कॉन्ट्रैक्ट्स की पवित्रता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
रिपोर्ट पर पीआरएस सारांश के लिए कृपया देखें।
खतरनाक या जोखिमपरक सामान ले जाने वाले वाहनों के लिए वाहन ट्रैकिंग
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने मोटर वाहन एक्ट, 1988 के तहत केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधनों को अधिसूचित किया है।[58] संशोधनों के अनुसार, खतरनाक या जोखिमपरक सामान ले जाने वाले निर्दिष्ट वाहनों में वाहन ट्रैकिंग सिस्टम को एनेबल किया जाएगा। निर्दिष्ट वाहनों में माल ढोने वाले वाहन शामिल हैं जिनका वजन 3.5 टन से अधिक है। खतरनाक या जोखिमपरक सामानों में विस्फोटक, ज्वलनशील और गैर-ज्वलनशील गैसें, ऑक्सीकरण पदार्थ और रेडियोएक्टिव सामग्रियां शामिल हैं।[59]
शिपिंग
Tanvi Vipra (tanvi@prsindia.org)
भारतीय पोर्ट्स बिल, 2022 के ड्राफ्ट पर टिप्पणियां आमंत्रित
बंदरगाह, जहाजरानी एवं जलमार्ग मंत्रालय ने भारतीय पोर्ट्स बिल, 2022 का ड्राफ्ट जारी किया है।[60] ड्राफ्ट बिल बंदरगाहों पर प्रदूषण को रोकने, अंतरराष्ट्रीय समुद्री संधियों का अनुपालन सुनिश्चित करने और प्रमुख एवं गैर-प्रमुख बंदरगाहों का प्रबंधन करने का प्रयास करता है। ड्राफ्ट विधेयक की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
एप्लिकेबिलिटी: ड्राफ्ट बिल देश के सभी बंदरगाहों, बंदरगाह की सीमा के भीतर के जहाजों, नौगम्य नदियों और चैनलों पर लागू होता है जो बंदगाह और बंदरगाहों का इस्तेमाल करने वाले एयरक्राफ्ट्स की ओर जाते हैं। ड्राफ्ट बिल निम्नलिखित पर लागू नहीं होता है: (i) भारतीय नौसेना, तटरक्षक, या सीमा शुल्क प्राधिकारियों के बंदरगाह, (ii) केंद्र या राज्य सरकार के जहाज, या युद्ध के विदेशी जहाज, या (iii) ऐसा कोई भी बंदरगाह जिसे कि केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया हो।
प्रशासनिक निकाय: ड्राफ्ट बिल एक समुद्री राज्य विकास परिषद की स्थापना का प्रयास करता है जिसके कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) वैधानिक अनुपालन के लिए मौजूदा कानूनी ढांचे पर केंद्र सरकार को सिफारिश करना, (ii) प्रतिस्पर्धा और बंदरगाह कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाने के उपायों के संबंध में सिफारिश करना, (iii) बंदरगाहों की क्षमता को समझने के लिए प्रस्तावित फ्रेमवर्क के रूप में राष्ट्रीय योजना को तैयार करना, और (iv) बंदरगाहों द्वारा एकत्र की जाने वाली जानकारी के लिए दिशानिर्देश जारी करना। प्रत्येक राज्य सरकार राज्य में सभी गैर-प्रमुख बंदरगाहों के लिए एक राज्य समुद्री बोर्ड का गठन करेगी। बोर्ड के कार्यों में विकास योजनाएं शुरू करना, बुनियादी ढांचे और सेवाओं के लिए लाइसेंस प्रदान करना और बंदरगाह के पारिस्थितिकीय संतुलन की सुरक्षा करना शामिल है।
बंदरगाह शुल्क: एक प्रमुख बंदरगाह के लिए मुख्य बंदरगाह अथॉरिटी का बोर्ड बंदरगाह शुल्क का निर्धारण या संशोधन करेगा। केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई भी बंदरगाह एक प्रमुख बंदरगाह होता है। एक गैर-प्रमुख बंदरगाह के लिए, राज्य समुद्री बोर्ड या बोर्ड द्वारा अधिकृत एक कनसेशनेयर बंदरगाह शुल्क निर्धारित या संशोधित करेगा। बंदरगाह का शुल्क पोत मालिकों को प्रदान की गई सेवाओं के एवज में एक बंदरगाह को देय मुआवजे को कहते हैं। इस तरह के शुल्क में बंदरगाह का उपयोग करने का शुल्क, कार्गो की लोडिंग या अनलोडिंग का कीमत और सामान के स्टोरेज शामिल है।
प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण: मारपोल कन्वेंशन यानी जहाजों से प्रदूषण की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन, 1973 की शर्तों के अनुसार, भारतीय बंदरगाहों को जहाजों से अपशिष्ट प्राप्त करने के लिए पर्याप्त रिसेप्शन सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। रिसेप्शन की सुविधा प्रदान करने वाले बंदरगाह यूजर शुल्क लगा सकते हैं। बंदरगाहों को केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुपालन में एक बंदरगाह अपशिष्ट रिसेप्शन और हैंडलिंग योजना तैयार करने की भी आवश्यकता होती है।
स्टील
स्टील क्षेत्र में दक्षता विकास पर स्टैंडिंग कमिटी ने रिपोर्ट सौंपी
कोयला, खान एवं स्टील संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (अध्यक्ष: श्री राकेश सिंह) ने 'स्टील क्षेत्र में दक्षता विकास' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।[61] कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
ग्रीन स्टील का निर्माण: कमिटी ने कहा कि ग्रीन स्टील के उत्पादन में निम्नलिखित के कारण कमी है: (i) कार्बन कैप्चर उपयोग जैसी सिद्ध तकनीकों की कमी, और (ii) ग्रीन हाइड्रोजन जैसे वैकल्पिक ईंधन की उपलब्धता। ग्रीन स्टील से कार्बन फुटप्रिंट की मात्रा कम होती है। जब ऐसी तकनीक व्यावसायिक रूप से उपलब्ध होगी, तो स्टील संयंत्रों को आवश्यक प्रशिक्षण देना होगा। कमिटी ने स्टील मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह ग्रीन स्टील के उत्पादन के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की स्टील मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स के कर्मचारियों को तकनीकी कौशल प्रदान करे।
स्थानीय युवाओं का दक्षता विकास: कमिटी ने कहा कि स्टील कंपनियों को प्रशिक्षण और दक्षता विकास के जरिए स्थानीय आबादी को नौकरियां देनी चाहिए। ये लोग न तो तकनीकी रूप से प्रशिक्षित हैं, और न ही उनमें इतनी आर्थिक क्षमता है कि वे अपनी दक्षता को सुधार सकें। कमिटी ने कहा कि अधिकतर पीएसयूज़ ने स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान खोले हैं। हालांकि मैगनीज़ अयस्क लिमिटेड, और कुद्रेमुख लौह अयस्क कंपनी जैसे कुछ पीएसयूज़ ने दक्षता विकास में कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के कुछ ही काम किए हैं। उसने सुझाव दिया कि स्टील मंत्रालय को दक्षता विकास और उद्यमिता तथा कंपनी मामलों के मंत्रालयों के साथ समन्वय कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी कंपनियां (सार्वजनिक और निजी) स्थानीय युवाओं के कौशल विकास प्रशिक्षण के लिए धन आबंटित कर रही हैं।
कृषि
कैबिनेट ने 2020-23 में गन्ने के लिए 305 रुपए प्रति क्विंटल की दर पर एफआरपी को मंजूरी दी
Omir Kumar (omir@prsindia.org)
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 2022-23 चीनी मौसम (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) को 10.25% की मूल प्राप्ति दर के लिए 305 रुपए प्रति क्विंटल करने को मंजूरी दे दी है।[62] एफआरपी केंद्र सरकार द्वारा घोषित मूल्य है जिसका भुगतान चीनी कारखानों को किसानों से खरीदे गए गन्ने के लिए करना पड़ता है। प्राप्ति दर उत्पादित चीनी और गन्ने की पेराई के बीच का अनुपात है। चीनी मौसम 2021-22 में एफआरपी 10% की मूल प्राप्ति दर के लिए 290 रुपए प्रति क्विंटल था।[63]
कैबिनेट ने कम अवधि के कृषि ऋण पर प्रति वर्ष 1.5% के ब्याज अनुदान को मंजूरी दी
Tanvi Vipra (tanvi@prsindia.org)
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीन लाख रुपए तक के अल्पकालिक कृषि ऋण प्रदान करने के लिए 1.5% के ब्याज अनुदान की बहाली को मंजूरी दी है।[64] ऋणदाता संस्थाओं को अल्पकालिक कृषि ऋण देने के लिए 2022-23 से 2024-25 तक ब्याज अनुदान प्रदान किया जाएगा। योजना के लिए 34,856 करोड़ रुपए के अतिरिक्त बजटीय प्रावधान की आवश्यकता होगी। केंद्र सरकार ने वित्तीय संस्थानों के लिए ब्याज दरों में वृद्धि के कारण योजना को बहाल करने का फैसला किया है।
[1] Vital Stats, Parliament functioning in Monsoon Session 2022, August 8, https://prsindia.org/sessiontrack/monsoon-session-2022/vital-stats.
[2] Resolution of the Monetary Policy Committee (MPC) August 3-5, 2022, Reserve Bank of India, August 5, 2022, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/PressRelease/PDFs/PR6507CC1FACC2FE34796A36979DFF3CBF1B8.PDF.
[3] Press Note on Estimates of Gross Domestic Product for the First Quarter (April-June) 2022-23, Ministry of Statistics and Programme Implementation, August 31, 2022, https://www.mospi.gov.in/documents/213904/416359//PRESS_NOTE-Q1_2022-231661947831694.pdf/93025346-aa15-02bf-41f9-67ab344c4ea3.
[4] “Quick Estimates of Index of Industrial Production and Use-Based Index for the Month of June, 2022 (Base 2011-12=100)”, Press Information Bureau, Ministry of Statistics and Programme Implementation, August 12, 2022, https://mospi.gov.in/documents/213904/416359//IIP%20Jun'22%20Press%20Release1660305632910.pdf/5c5fbbc6-2d6c-b8e9-0e9d-ad95f0b37c57.
[5] “Quick Estimates of Index of Industrial Production and Use Based Index for the Month of June, 2021 (Base 2011-12=100)”, Press Information Bureau, Ministry of Statistics and Programme Implementation, August 12, 2022, https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1745171.
[6] The Competition (Amendment) Bill, 2022, http://164.100.47.4/BillsTexts/LSBillTexts/Asintroduced/185_2022_LS_Eng.pdf.
[7] The Competition Act, 2002, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2010/1/a2003-12.pdf.
[8] Bulletin-Part II, Lok Sabha, August 17, 2022, http://loksabhadocs.nic.in/bull2mk/2022/17.08.22.pdf.
[9] Civil Appeal No. 5783 of 2022, Supreme Court of India, August 23, 2022, https://main.sci.gov.in/supremecourt/2020/2941/2941_2020_1_1501_37575_Judgement_23-Aug-2022.pdf.
[10] The Prohibition of Benami Property Transactions Act, 1988, https://legislative.gov.in/sites/default/files/A1988-45_1.pdf.
[11] The Benami Transactions (Prohibition) Amendment Act, 2016, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_parliament/2016/the-benami-transactions-(prohibition)-amendment-act,-2016.pdf.
[12] Recommendations of the Working group on Digital Lending – Implementation, Reserve Bank of India, August 10, 2022, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/PressRelease/PDFs/PR689DL837E5F012B244F6DA1467A8DEB10F7AC.PDF.
[13] Discussion Paper on Charges in Payment Systems, Reserve Bank of India, August 17, 2022, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/DPSSDISCUSSIONPAPER5E016622B2D3444A9F294D07234059AA.PDF.
[14] Consultation Paper on Green and Blue Bonds as a mode of Sustainable Finance, Securities and Exchange Board of India, August 4, 2022, https://www.sebi.gov.in/reports-and-statistics/reports/aug-2022/consultation-paper-on-green-and-blue-bonds-as-a-mode-of-sustainable-finance_61636.html.
[15] Foreign Exchange Management (Overseas Investment) Regulations, 2022, Reserve Bank of India, August 22, 2022, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/notification/PDFs/FEMA400E3410E8B6F384DF982443E53E6688627.PDF.
[16] The Foreign Exchange Management Act, 1999, https://legislative.gov.in/sites/default/files/A1999-42_0.pdf.
[17] “SEBI constitutes ‘FPI Advisory Committee (FAC)’, Securities and Exchange Board of India, August 5, 2022, https://www.sebi.gov.in/media/press-releases/aug-2022/sebi-constitutes-fpi-advisory-committee-fac-_61783.html.
[18] “Cabinet approves enhancement in the corpus of Emergency Credit Line Guarantee Scheme for increasing the limit of admissible guarantees”, Press Information Bureau, Union Cabinet, August 17, 2022,
[19] “Cabinet approves additional funding of up to Rupees three lakh crore through introduction of Emergency Credit Line Guarantee Scheme (ECLGS)”, Press Information Bureau, Union Cabinet, May 20, 2020,
[20] “Scope of Emergency Credit Line Guarantee Scheme (ECLGS) enhanced and validity extended till 31.3.2023”, Press Information Bureau, Union Cabinet, March 30, 2022, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1811580.
[21] F. No. 16/1/2015-PR, Ministry of Finance, August 10, 2022, https://egazette.nic.in/WriteReadData/2022/238023.pdf.
[22] The Electricity (Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2022/Electricity%20(A)%20Bill,%202022.pdf.
[23] The Electricity Act, 2003, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2058/1/a2003-36.pdf.
[24] The Energy Conservation (Amendment) Bill, 2022 https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2022/Energy%20Conservation%20(Amendment)%20Bill,%202022.pdf.
[25] The Energy Conservation Act, 2001, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2003/1/a2001-52.pdf.
[26] Report No. 27: “Evaluation of Wind Energy in India”, Standing Committee on Energy, Lok Sabha, August 2, 2022, http://164.100.47.193/lsscommittee/Energy/17_Energy_27.pdf.
[27] Report No. 26: ‘Review of Power Tariff Policy – Need for uniformity across the Country’, Standing Committee on Energy, Lok Sabha, August 8, 2022, http://164.100.47.193/lsscommittee/Energy/17_Energy_26.pdf.
[28] “Seeking comments of stakeholders on draft Coal Logistic Policy 2022”, Ministry of Coal, August 25, 2022, https://coal.nic.in/sites/default/files/2022-08/26-08-2022-wn.pdf.
[29] Report 340: The National Anti-Doping Bill, 2021, Standing Committee on Education, Women, Children, Youth and Sports, Rajya Sabha, March 23, 2022, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/16/162/340_2022_3_11.pdf.
[30] The National Anti-Doping Bill, 2021, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2021/National%20Anti-Doping%20Bill,%202021.pdf.
[31] The Weapons of Mass Destruction and their Delivery Systems (Prohibition of Unlawful Activities) Amendment Bill, 2022, http://164.100.47.4/BillsTexts/LSBillTexts/PassedLoksabha/96C_2022_LS_E.pdf.
[32] The Weapons of Mass Destruction and their Delivery Systems (Prohibition of Unlawful Activities) Act, 2005, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2017/1/200521.pdf.
[33] Report No. 15: ‘Welfare of Indian Diaspora’, Standing Committee on External Affairs, Lok Sabha, August 3, 2022, http://164.100.47.193/lsscommittee/External%20Affairs/17_External_Affairs_15.pdf.
[34] The Indian Antarctic Bill, 2022, http://164.100.47.4/BillsTexts/LSBillTexts/PassedLoksabha/95-C_2022_LS_eng.pdf.
[35] New Delhi International Arbitration Centre (Amendment) Bill, 2022, Ministry of Law and Justice, August 8, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2022/New%20Delhi%20International%20Arbitration%20Centre%20(Amendment)%20Bill,%202022.pdf.
[36] Report No. 118: ‘Review of Guardianship and Adoption Laws’, Standing Committee on Personnel, Public Grievances, Law and Justice, Rajya Sabha, August 8, 2022, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/18/164/118_2022_8_16.pdf.
[37] Central Universities (Amendment) Bill, 2022, Ministry of Education, Skill Development, and Entrepreneurship, August 8, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2022/The%20Central%20Universities%20(Amendment)%20Bill,%202022.pdf.
[38] “Consultation Paper on Leveraging Artificial Intelligence and Big Data in Telecommunication Sector”, Telecom Regulatory Authority of India, August 5, 2022, https://www.trai.gov.in/sites/default/files/CP_05082022.pdf.
[39] Cabinet approves continuation of Pradhan Mantri Awas Yojana-Urban (PMAY-U) - “Housing for All” Mission up to 31st December 2024”, Press Information Bureau, Union Cabinet, August 10, 2022, https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1850679.
[40] “Pre-legislative consultation with regard to proposed amendment in Delhi Development Act, 1957 – Regarding”, Ministry of Housing and Urban Affairs, August 18, 2022, https://mohua.gov.in/upload/whatsnew/62fe068ebd8a8DDA-Act-English.pdf.
[41] The Delhi Development Act, 1957, https://legislative.gov.in/sites/default/files/A1957-61.pdf.
[42] Report of the Joint Parliamentary Committee on the Biological Diversity (Amendment) Bill, 2021, August 2, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2021/Joint_Committee_Reoert%20on_the_Biological_Diversity_(Amendment)_Bill_2021.pdf.
[43] The Biological Diversity (Amendment) Bill, 2021 as introduced in Lok Sabha on December 16, 2021, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2021/Biological%20Diversity%20(Amendment)%20Bill,%202021.pdf.
[44] The Biological Diversity Act, 2002, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2046/1/200318.pdf.
[45] Battery Waste Management Rules, 2022, https://moef.gov.in/wp-content/uploads/2022/08/BWMR-2022.pdf.
[46] The Environment (Protection) Ac, 1986, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/4316/1/ep_act_1986.pdf.
[47] “Government notifies Battery Waste Management Rules, 2022”, Press Information Bureau, Ministry of Environment, Forest and Climate Change, August 25, 2022, https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1854433.
[48] Report No. 44 of 2022 – Performance Audit on Conservation of Coastal Ecosystems, Union Government (Ministry of Environment, Forest and Climate Change), Comptroller and Auditor General of India, August 8, 2022, https://cag.gov.in/en/audit-report/details/116707.
[49] “Cabinet approves India’s Updated Nationally Determined Contribution to be communicated to the United Nations Framework Convention on Climate Change”, Press Information Bureau, Union Cabinet, August 3, 2022, https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1847812.
[50] “National Statement by Prime Minister Shri Narendra Modi at COP26 Summit in Glasgow”, Press Information Bureau, November 1, 2021, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1768712.
[51] CG-DL-E-22082022-238255, Gazette Notification No. 573, Ministry of Consumer Affairs, Food and Public Distribution, August 22, 2022, https://egazette.nic.in/WriteReadData/2022/238255.pdf.
[52] Legal Metrology (Packaged Commodities) Rules, 2011, March 7, 2011, https://wbconsumers.gov.in/writereaddata/ACT%20&%20RULES/Act%20&%20Rules/9%20The%20Legal%20Metrology%20(Package%20Commodities)%20Rules,%202011.pdf.
[54] G.S.R. (E). Passenger Name Record Information Regulations, Ministry of Finance, August 8, 2022, https://www.cbic.gov.in/resources//htdocs-cbec/customs/cs-act/notifications/notfns-2022/cs-nt2022/csnt67-2022.pdf;jsessionid=931EE26B4A0C0AD8BB99A3EBFE783A52.
[55] Order No. 28/2022, Ministry of Civil Aviation, August 10, 2022, https://twitter.com/MoCA_GoI/status/1557309848617754630?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1557309848617754630%7Ctwgr%5E34ff9c7e4842efb3bf22f72c81324a3ad89dee35%7Ctwcon%5Es1_&ref_url=https%3A%2F%2Fwww.indiatoday.in%2Findia%2Fstory%2Fgovt-removes-fare-bands-imposed-on-domestic-airlines-1986531-2022-08-11.
[56] ‘Guidelines for Medical Examiners for Aeromedical Evaluation of Transgender (Including Gender Dysphoria and Gender Non-Conformity) for Class 1,2 or 3 Medical Assessment’, Directorate General of Civil Aviation, August 10, 2022, https://www.dgca.gov.in/digigov-portal/Upload?flag=iframeAttachView&attachId=151453281.
[57] Report No. 11 of 2022 – Compliance Audit of review of policy of Rationalisation/Deferment of Premium in (BOT) projects by NHAI, Union Government (Commercial), Comptroller and Auditor General of India, August 4, 2022, https://cag.gov.in/en/audit-report/details/116600.
[58] CG-DL-E-05082022-237957, Ministry of Road Transport and Highways, August 3, 2022, https://egazette.nic.in/WriteReadData/2022/237957.pdf.
[59] G.S.R. 349 (E), Central Motor Vehicles (Fourth) Amendment) Rules, 2005, June 1, 2005, https://morth.nic.in/sites/default/files/notifications_document/G_S_R_349E_dt_1_6_2005_96_120.pdf.
[60] Draft Indian Ports Bill, 2022, Ministry of Ports, Shipping and Waterways, August 18, 2022, https://shipmin.gov.in/sites/default/files/draft%20indian%20port%20pdf.pdf.
[61] Report No. 36: ‘Skill Development in Steel Sector’, Standing Committee on Coal, Mines and Steel, Lok Sabha, August 4, 2022, http://164.100.47.193/lsscommittee/Coal,%20Mines%20and%20Steel/17_Coal_Mines_and_Steel_36.pdf.
[62] “In another farmer’s friendly step, Government approves Fair and Remunerative Price of sugarcane payable by Sugar Mills to sugarcane farmers for sugar season 2022-23”, Press Information Bureau, Cabinet Committee on Economic Affairs, August 3, 2022, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1847997.
[63] “Government approves determination of Fair and Remunerative Price of sugarcane payable by Sugar Mills for sugar season 2021-22”, Press Information Bureau, Cabinet Committee on Economic Affairs, August 25, 2021, https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1748833.
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