रिपोर्ट का सारांश
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने 31 जनवरी, 2020 को आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 को पटल पर रखा। सर्वेक्षण की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
अर्थव्यवस्था की स्थिति
- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी): 2018-19 में 6.8% की तुलना में 2019-20 में जीडीपी की वृद्धि दर 5% रहने की उम्मीद है। यह छठी तिमाही है, जब जीडीपी की वृद्धि दर में निरंतर गिरावट रही है। 2020-21 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.0%-6.5% के बीच रहने की उम्मीद है।
2019-20 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में जीडीपी के 4.8% की दर से बढ़ने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष यानी 2018-19 की दूसरी छमाही (अक्टूबर-मार्च) में यह 6.2% की दर से बढ़ी थी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि उपभोग में सुस्त वृद्धि और परिणामस्वरूप स्थिर निवेश में कमी से इस अवधि में जीडीपी वृद्धि में गिरावट रही।
सर्वेक्षण में कहा गया कि वर्ष 2019 विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत कठिन था। 2009 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय संकट के बाद से उत्पादन वृद्धि की गति 2.9% के साथ अत्यंत धीमी रही। मैन्यूफैक्चरिंग, व्यापार और मांग के लिए कमजोर वातावरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया।
सर्वेक्षण में इस बात पर बल दिया गया कि भारत की जीडीपी के अत्यधिक आकलन से जुड़ी चिंताएं निराधार हैं।
- मुद्रास्फीति: 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर, 2018) में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति 3.7% से बढ़कर 2019-20 (अप्रैल से दिसंबर) में 4.1% हो गई। यह वृद्धि मुख्य रूप से खाद्य स्फीति के कारण थी। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित मुद्रास्फीति 2018-19 में 4.3% से गिरकर 2019-20 (अप्रैल से दिसंबर) में 1.5% हो गई।
- मौजूदा खाता घाटा (सीएडी) और राजकोषीय घाटा: भारत की सीएडी 2018-19 में जीडीपी के 2.1% से घटकर 2019-20 (अप्रैल-दिसंबर) में जीडीपी के 1.5% पर हो गई। 2019-20 का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3% पर अनुमानित है और वर्ष का प्राथमिक घाटा (राजकोषीय घाटे में ब्याज भुगतान को हटाने पर प्राथमिक घाटे के आंकड़े प्राप्त होते हैं) 0.2% पर है। नवंबर 2019 तक राजकोषीय घाटा बजटीय स्तर के 114.8% पर रहा। सर्वेक्षण में कहा गया कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को वर्तमान वर्ष में ढिलाई दी जा सकती है। चूंकि यह सरकार की तत्काल प्राथमिकता है कि अर्थव्यवस्था वृद्धि को पुर्नजीवित किया जाए।
कृषि और संबद्ध गतिविधियां
- कृषि क्षेत्र में वृद्धि अस्थिर रही है: यह 2014-15 में -0.2% थी, जबकि 2016-17 में 6.3%, और 2019-20 में यह फिर गिरकर 2.8% हो गई। कृषि में सकल स्थिर पूंजीगत निर्माण 2013-14 में सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) के 17.7% से गिरकर 2017-18 में जीवीए का 15.2% हो गया।
- जीवीए में कृषि का योगदान 2014-15 में 18.2% से गिरकर 2019-20 में 16.5% हो गया। इस गिरावट का मुख्य कारण यह था कि 2014-15 में जीवीए में फसलों की हिस्सेदारी 11.2% से गिरकर 2017-18 में 10% हो गई थी। गैर कृषि क्षेत्रों में अपेक्षाकृत उच्च स्तरीय प्रदर्शन के कारण इस हिस्सेदारी में गिरावट हुई थी।
- किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कुछ मुद्दों पर काम किए जाने की जरूरत है जैसे ऋण की उपलब्धता, बीमा कवरेज और कृषि में निवेश। भारत में कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण अपेक्षाकृत कम है, जिसे लक्षित किए जाने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि यह फसल बाद के नुकसान को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और कृषि उत्पादन के लिए अतिरिक्त बाजार तैयार करता है।
उद्योग और इंफ्रास्ट्रक्चर
- 2019-20 में समूचे औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि पिछले वर्ष की तुलना में कम रही। 2018-19 में यह 6.9% से गिरकर 2019-20 में 2.5% रही। 2018-19 में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के 2.0% की दर से बढ़ने का अनुमान है। 2018-19 में जीवीए में उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी 29.6% थी।
- 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान औद्योगिक उत्पादन वृद्धि (आईआईपी) 0.6% है। आईआईपी औद्योगिक प्रदर्शन का मापक है। उसने मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को 78%, खनन को 14% और बिजली को 8% वेटेज दिया है। ऑटोमोटिव और फार्मास्युटिकल्स जैसे मुख्य क्षेत्रों के लिए घरेलू मांग में गिरावट ने मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधियों को कम किया है। चालू वित्त वर्ष के दौरान श्रम सघन क्षेत्रों जैसे ज्वैलरी, बेसिक मेटल, चमड़े और कपड़े के निर्यात में भी कमी आई है। एनबीएफसी द्वारा कम उधार देने के कारण लिक्विडिटी की कमी का भी प्रतिकूल असर हुआ।
- राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्टर पाइपलाइन (एनआईपी) ने विभिन्न प्रॉजेक्ट्स में पिछले पांच वर्षों (2020-25) में 100 लाख करोड़ रुपए के निवेश का अनुमान लगाया है। सर्वेक्षण में कहा गया कि एनआईपी का वित्त पोषण भी एक चुनौती होगा।
सेवा क्षेत्र
- सेवा क्षेत्र में 2018-19 में 7.5% की तुलना में 2019-20 में 6.9% की दर से वृद्धि का अनुमान है। 2019-20 में भारत की जीवीए में सेवा क्षेत्र का योगदान 55.3% होने का अनुमान है। वर्तमान 15 राज्यों और यूटी के सकल राज्य मूल्य संवर्धन में सेवा क्षेत्र का हिस्सा 50% से अधिक है। इस अवधि में व्यापार, होटल, परिवहन, ब्रॉडकास्टिंग से संबंधित संचार और सेवा, वित्तीय और रियल एस्टेट जैसे उपक्षेत्रों में गिरावट देखी गई।
- भारत में समूचे निर्यात क्षेत्र में सेवा निर्यात की हिस्सेदारी बढ़ रही है। विश्व के वाणिज्यिक सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2018 में 3.5% और व्यापारिक निर्यात में 1.7% थी।
मानव विकास और रोजगार
- मानव विकास सूचकांक में भारत का स्थान 2018 में 129वां था। 2014-20 की अवधि के दौरान सामाजिक सेवाओं (स्वास्थ्य एवं शिक्षा सहित) पर व्यय 1.5% बढ़ गया। कुल स्वास्थ्य व्यय के प्रतिशत के रूप में आउट ऑफ पॉकेट व्यय 2013-14 में 64.2% की तुलना में 2016-17 में 58.7% हो गया। सर्वेक्षण में कहा गया कि माध्यमिक, उच्च माध्यमिक और उच्च शिक्षा के स्तरों पर सकल दाखिला अनुपात में सुधार की जरूरत है।
- अर्थव्यवस्था में कुल औपचारिक रोजगार 2011-12 में 8% से बढ़कर 2017-18 में 10% हो गया। 2011-18 की अवधि के दौरान नियमित वेतन/वेतनशुदा कर्मचारियों के बीच 2.62 करोड़ नई नौकरियों का सृजन हुआ। श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में गिरावट हुई, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
बाजार में भरोसा बढ़ा
- सर्वेक्षण में कहा गया कि 2025 तक भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की अभिलाषा के लिए यह जरूरी है कि बाजार में भरोसा बढ़े। इसके लिए कारोबार समर्थक नीतियों की भी जरूरत होगी। इन नीतियों में निम्नलिखित शामिल हैं (i) नए लोगों को समान अवसर प्रदान करना, निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा और ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस को कायम करना, (ii) सरकारी हस्तक्षेप के जरिए ऐसी नीतियों को समाप्त करना जोकि अनावश्यक रूप से बाजार को कमजोर बनाती हैं, (iii) रोजगार सृजन के लिए व्यापार को सक्षम बनाना, और (iv) बैंकिंग क्षेत्र को अर्थव्यवस्था के सानुपातिक बनाना। जबकि प्रो-बिजनेस नीतियों को बढ़ावा देने की जरूरत है, निजी हितों और ताकतवर लोगों का पक्ष लेने वाली प्रो-क्रोनी नीतियों को समाप्त किया जाना चाहिए।
- सर्वेक्षण में कहा गया कि जिन मामलों में सरकारी हस्तक्षेप जरूरी नहीं, उन मामलों को समाप्त करने से प्रतिस्पर्धी बाजार सक्षम बनेंगे और निवेश एवं आर्थिक विकास में तेजी आएगी। उदाहरण के लिए खाद्य के सबसे बड़े खरीदार के रूप में सरकार के उभरने से कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे सबसिडी का दबाव बढ़ना, अनाज की मांग और आपूर्ति के बीच डायवर्जन और फसल विविधीकरण के प्रति उत्साह कम होना।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में भारत 2014 में 142वें स्थान पर था और 2019 में 63वें स्थान पर पहुंच गया। हालांकि भारत विभिन्न मानदंडों पर पिछड़ रहा है जैसे ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस (रैंक 136), संपत्ति रजिस्ट्रेशन (रैंक 154), टैक्स भुगतान (रैंक 115), और कॉन्ट्रैक्ट्स को लागू करना (रैंक 163)। ये मानदंड भविष्य में सुधार की गुंजाइश प्रदान करते हैं।
जमीनी स्तर पर उद्यमशीलता
- जमीनी स्तर पर संपत्ति सृजन में जिला स्तरीय उद्यमशीलता का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जिले में नई कंपनियों के पंजीकरण में 10% की वृद्धि से जिले की जीडीपी में 1.8% की वृद्धि होती है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि विश्व में नई निर्मित कंपनियों की संख्या के लिहाज से भारत तीसरे स्थान पर है। उल्लेखनीय है कि विभिन्न जिलों और सेक्टर्स में नई कंपनियां शुरू हो रही हैं।
- जिले में शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर की क्वालिटी का स्तर नई कंपनियों के सृजन को बहुत प्रभावित करता है। ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस को सक्षम बनाने वाली नीतियों और लचीले श्रम कानूनों से नई कंपनियों का सृजन होता है, विशेष रूप से मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में।
रोजगार सृजन के लिए नेटवर्क प्रॉडक्ट्स का निर्यात
- नेटवर्क प्रॉडक्ट्स का निर्यात 2025 तक भारत को 5 ट्रिलियन $ की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए जरूरी मूल्य संवर्धित वृद्धि में एक चौथाई योगदान दे सकता है। नेटवर्क प्रॉडक्ट्स ऐसे उत्पादों को कहते हैं जिनमें ग्लोबल वैल्यू चेन के जरिए उत्पादन किया जाता है। इन चेन्स को मल्टीनेशनल कॉरपोरेशंस संचालित करते हैं। ‘विश्व के लिए भारत में एसेंबल’ को ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में एकीकृत करके यह हासिल किया जा सकता है। इससे 2025 तक 4 करोड़ अच्छे वेतन वाली नौकरियां और 2030 तक 8 करोड़ नौकरियों का सृजन किया जा सकता है।
बैंकिंग क्षेत्र
- अर्थव्यवस्था का आकार देखते हुए भारत का बैंकिंग क्षेत्र गैर अनुपातिक रूप से कम विकसित हुआ है। भारत में केवल एक बैंक ऐसा है जोकि विश्व स्तर के टॉप 100 बैंकों में शुमार होता है। भारतीय बैंकिंग में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) की हिस्सेदारी 70% है। हालांकि विभिन्न प्रदर्शन मानदंडों पर पीएसबी निजी बैंकों की तुलना में अकुशल हैं।
- सर्वेक्षण में बैंकों के कामकाज में वित्तीय तकनीक के इस्तेमाल, सभी स्तरों पर कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व का सुझाव दिया गया जिससे पीएसबीज़ की कार्यकुशलता में इजाफा होगा। ऋण संबंधी फैसले लेने के लिए एक जीएसटीएन टाइप एंटिटी का गठन किया जा सकता है जोकि पीएसबी के संबंध में बिग डेटा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कर सकती है। ऐसे निवेश बड़े उधारकर्ताओं की बेहतर स्क्रीनिंग और निरीक्षण को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का विनिवेश
- केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के 11 उपक्रमों का विश्लेषण बताता है कि औसतन, निजीकृत होने वाले उपक्रम निजीकरण के बाद अपने जैसे अन्य उपक्रमों की तुलना में अच्छा प्रदर्शन करते हैं जैसे उनकी शुद्ध कीमत, शुद्ध लाभ और प्रॉफिट मार्जिन अच्छा होता है।
- सीपीएसईज़ की रणनीतिक बिक्री के जरिए किए जाने वाले विनिवेश से संपत्ति सृजित करने की उनकी क्षमता बढ़ती है। इस प्रकार उच्च लाभपरकता के लिए बड़े पैमाने पर विनिवेश किया जाना चाहिए।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।