रिपोर्ट का सारांश
- उद्योग संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. के. केशवा राव) ने दिसंबर 2020 में ‘ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मंदी- प्रभाव और बहाली के उपाय’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने इस क्षेत्र में 2019-20 में मंदी तथा क्षेत्र पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव की पड़ताल की और क्षेत्र की बहाली हेतु उपायों का सुझाव दिया। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- मंदी का असर: कमिटी ने कहा कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र का टर्नओवर 8.2 लाख करोड़ रुपए है, जोकि भारत की मैन्यूफैक्चरिंग जीडीपी का 49% और पूरी जीडीपी का 7.1% है। ऑटोमोबाइल उद्योग से 8% निर्यात होता है जिसका मूल्य 27 बिलियन USD है। इसके अतिरिक्त कुल जीएसटी कलेक्शन में इस क्षेत्र का योगदान 15% है। ऑटो कंपोनेंट उद्योग का मूल्य भी लगभग 4 लाख करोड़ रुपए (जीडीपी का 2.3%) है और इसमें 50 लाख लोग कार्यरत हैं। ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मंदी और उसके आकार का भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर हुआ है। बिक्री में गिरावट से मैन्यूफैक्चरर्स ने ऑटो कंपोनेंट्स और एंसिलरीज़ सहित सभी प्रकार के निर्माण को कम किया है। इससे ऑटो क्षेत्र में अनुमानित 3.45 लाख नौकरियों का नुकसान हुआ है। इसके अतिरिक्त ऑटो सेल्स क्षेत्र के लोन्स में भी गिरावट आई है (वित्तीय वर्ष 2018 में 1,922 करोड़ रुपए से वित्तीय वर्ष 2019 में 1,493 करोड़ रुपए)।
तालिका 1: ऑटोमोबाइल की घरेलू बिक्री
वर्ग |
अप्रैल-सितंबर 2019 |
2018 से परिवर्तन |
यात्री वाहन |
13,33,251 |
-23.6% |
कमर्शियल वाहन |
3,75,480 |
-23.0% |
तिपहिया |
3,30,696 |
-6.7% |
दुपहिया |
96,96,733 |
-16.2% |
कुल |
1,17,36,976 |
-17.1% |
- ग्राहकों के लिए वित्तीय समस्याएं : कमिटी ने कहा कि ग्राहकों को ऑटोमोबाइल लोन्स लेने में परेशानी हो रही है। इसका कारण यह है कि बैंक सख्ती से क्रेडिट रेटिंग्स का पालन कर रहे हैं और अधिकतर दोपहिया ग्राहक फर्स्ट टाइम यूजर्स होते हैं जिनकी कोई क्रेडिट रेटिंग्स नहीं होती। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राहकों की वित्तीय सुरक्षा का कोई रिकॉर्ड नहीं होता जिससे उनके लिए लोन लेना मुश्किल होता है। कमिटी ने कहा कि ऑटो लोन सुरक्षित होता है क्योंकि वाहन खुद ही कोलेट्रल होता है। इसलिए बैंकों को ग्राहकों को लोन देने से मना नहीं करना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि भारी उद्योग मंत्रालय को इस मामले में वित्तीय सेवा विभाग से बातचीत करनी चाहिए ताकि वाहनों के लिए लोन मंजूर करने की नीति को उदार बनाया जा सके।
- जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाना: इंटरनल कंबशन इंजन (आईसीई) आधारित वाहनों (जिसमें पेट्रोल और डीजल इंजन आधारित सभी वाहन शामिल हैं) की जीएसटी दर सर्वाधिक यानी 28% है और इन पर 1% से 22% का अतिरिक्त मुआवजा सेस लगता है। कमिटी ने कहा कि मांग को बढ़ावा देने के लिए सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों पर 5% की दर से जीएसटी लगाती है, इसलिए आईसीई वाहनों की जीएसटी दरों को कम करने की भी गुंजाइश है ताकि मांग बढ़ाकर ऑटोमोबाइल क्षेत्र की मंदी को काबू में किया जा सके। कमिटी ने सुझाव दिया कि जीएसटी की 18% दर से कीमतों में कमी होगी और मांग बढ़ेगी। बिक्री बढ़ने से जीएसटी राजस्व में कमी की भरपाई होगी। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि यूजर्ड कारों पर जीएसटी दरों को मौजूदा 12% या 18% (कारों के प्रकार पर निर्भर) से घटाकर 4% किया जाना चाहिए।
- देश भर में एक समान रोड टैक्स: जीएसटी से अलग, हर राज्य में रोड टैक्स और वाहनों का रजिस्ट्रेशन टैक्स अलग-अलग है। कमिटी ने कहा कि जब वाहन एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हैं तो रोड और रजिस्ट्रेशन टैक्स को लेकर कई प्रक्रियागत परेशानियां होती हैं। उसने सुझाव दिया कि सभी राज्यों में एक समान रोड टैक्स होना चाहिए।
- कोविड-19 लॉकडाउन का असर: कमिटी ने गौर किया कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र में 2019-20 से ही मंदी कायम है। कोविड-19 महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के बाद इस क्षेत्र में पूरी तरह शटडाउन हो गया। लॉकडाउन के दौरान हर दिन लगभग 2,300 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र को अगले दो सालों के लिए संकुचन (नकारात्मक वृद्धि) का सामना करना पड़ सकता है। यह असर मांग और आपूर्ति, दोनों पर हुआ है। लॉकडाउन के कारण लॉजिस्टिक लॉगजाम, अपर्याप्त श्रमबल, बिक्री की कमी और लंबित भुगतान के कारण वित्तीय असुरक्षा और आयातित कंपोनेंट्स की कमी के चलते आपूर्ति प्रभावित हुई। दूसरी तरफ उपभोक्ताओं के नकारात्मक मनोभाव और लिक्विडिटी की कमी के कारण मांग पर असर हुआ।
- कमिटी ने कहा कि सरकार के राहत पैकेज से ऑटोमोबाइल क्षेत्र से संबंधित समस्याएं पूरी तरह से दूर नहीं हुईं क्योंकि पैकेज का लक्ष्य सिर्फ अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष को बढ़ावा देना था। उसने सुझाव दिया कि सरकार को क्षेत्र में मांग को बढ़ावा के लिए प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। उसने कई अतिरिक्त उपायों का सुझाव दिया, जैसे (i) ऑटो क्षेत्र की कंपनियों ने लॉकडाउन के दौरान अस्थायी और कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले श्रमिकों को जो भुगतान किया है, उस व्यय को कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) व्यय का पात्र बनाया जाए, (ii) सरकारी एजेंसियों की टेस्टिंग और मंजूरी के स्थान पर मैन्यूफैक्चरर्स को रेगुलेटरी शर्तो के लिए सेल्फ सर्टिफिकेशन की अनुमति दी जाए।
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