स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- श्रम संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सन: डॉ. किरीट सोमैय्या) ने 4 जनवरी, 2018 को ‘औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान और कौशल विकास पहल योजना’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। विभिन्न व्यावसायिक पेशों में दक्षता प्रदान करने के लिए क्राफ्ट्समेन ट्रेनिंग स्कीम के अंतर्गत 1950 में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) की स्थापना की गई थी। इसका उद्देश्य देश में कुशल श्रमशक्ति की जरूरत को पूरा करना था। वर्तमान में देश भर में 13,353 आईटीआई हैं और इनमें 11,000 आईटीआई निजी क्षेत्र से संबद्ध हैं।
- एक्रेडेशन की प्रक्रिया: कमिटी ने कहा कि 2012 में आईटीआईज़ की जांच, वैरिफिकेशन और एक्रेडेशन का काम क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) को सौंपा गया था। इसके अतिरिक्त क्यूसीआई उन संस्थानों को भी एक्रेडेशन देता है जो राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीटी) और क्यूसीआई की सहमति से स्वीकृत एक्रेडेशन के मानदंडों को पूरा करते हैं। एनसीवीटी देश में प्रशिक्षण नीति बनाने और व्यावसायिक प्रशिक्षण के समन्वय हेतु सरकार को सलाह देने वाली केंद्रीय एजेंसी है। आईटीआईज़ से एफिलिएशन का आदेश देने से पहले प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीटी) यह जांच करता है कि एक्रेडेटेड एप्लीकेशंस एनसीवीटी के नियमों का अनुपालन करती हैं अथवा नहीं।
- कमिटी ने कहा कि क्यूसीआई ने एक्रेडेशन और एफिलिएशन की क्वालिटी से समझौता किया। काउंसिल ने इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने, उपकरणों और फैकेल्टी के मामले में निर्धारित एनसीवीटी नियमों का पालन नहीं किया। कमिटी ने यह भी कहा कि यह प्रशिक्षण महानिदेशालय की भी असफलता है कि उसने बिना किसी जांच के यह सब चलने दिया। इस संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि प्रशिक्षण महानिदेशालय को क्यूसीआई के खिलाफ तुरंत उपयुक्त कार्रवाई करने का फैसला लेना चाहिए।
- आवेदनों और शिकायतों का लंबित रहना: कमिटी ने कहा कि क्यूसीआई ने एक्रेडेशन के मामलों को समय-समय पर प्रोसेस नहीं किया और 2013 से 2016 के बीच के बहुत सारे आवेदन लंबित पड़े रहे। यह भी कहा गया कि 2014-16 के बीच आईटीआईज़ के एक्रेडेशन के बारे में अनेक जन शिकायतें मिलीं। इस बारे में कमिटी ने सुझाव दिया कि 263 शिकायतों की जांच के अतिरिक्त उन सभी 6,729 मामलों की अनिवार्य रूप से समीक्षा की जानी चाहिए जिन्हें एक्रेडेशन के लिए क्यूसीआई ने आगे बढ़ाया है।
- इसके अतिरिक्त कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि क्राफ्ट्समेन ट्रेनिंग स्कीम की रेगुलेटरी और निरीक्षण संबंधी शक्तियों को मजबूत करने के लिए उसे कानूनी अधिकार दिए जाने चाहिए।
- प्रशिक्षण के बाद रोजगार की संभावनाएं: कमिटी ने गौर किया कि 400 सरकारी आईटीआईज़ (2015-16 तक) में 64% प्रशिक्षुओं को या तो वैतनिक रोजगार मिल गया या उन्होंने स्वरोजगार किया। 100 निजी आईटीआईज़ में यह आंकड़ा 53% का है। कमिटी ने कहा कि प्रशिक्षुओं की रोजगारपरकता बढ़ाने के लिए आईटीआईज़ में दिए जाने वाले कौशलों की समीक्षा करके और उनकी संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने नियमित कैंपस प्लेसमेंट्स (रोजगार मेला) और आईटीआईज़ में स्पेशल रिक्रूटमेंट ड्राइव्स की व्यवस्था करने का सुझाव दिया। इसके लिए आईटीआईज़ विभिन्न इंप्लॉयर एसोसिएशंस/उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के संपर्क में रह सकते हैं।
- क्षमता का पूरा उपयोग न होना: कमिटी ने कहा कि आईटीआईज़ में 19.4 लाख ट्रेनी हैं जबकि इनकी सीटिंग क्षमता 21.9 लाख की है यानी उपलब्ध सीटों का 88% उपयोग किया जा रहा है। इस उपलब्ध क्षमता का पूरा उपयोग किया जाए, इसके लिए कमिटी ने सुझाव दिया कि सीटों को खाली रखने की बजाय ऐसा मैकेनिज्म तैयार करना चाहिए जो पाठ्यक्रमों की लोकप्रियता का आकलन करे और संसाधनों को उस दिशा में मोड़ें।
- इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि अप्रेंटिसशिप ट्रेनिंग में बहुत संभावनाएं हैं लेकिन उसका दोहन नहीं किया गया है। इस संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि इसके लिए राज्य सरकारों और निजी उद्योगों सहित सभी स्टेकहोल्डर्स को शामिल करने के लिए व्यापक प्रयास किए जाने चाहिए।
- राज्य सरकारों की भागीदारी: कमिटी ने कहा कि राज्य सरकारों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। उदाहरण के लिए मौजूदा सरकारी आईटीआईज़ को मॉडल आईटीआईज़ में अपग्रेड करने की योजना शुरू की गई है। कमिटी ने गौर किया कि इस योजना के अंतर्गत फंड्स का अच्छी तरह से उपयोग नहीं किया गया। कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना के अंतर्गत फंड्स के पूरे उपयोग हेतु राज्यों से फंड्स को उचित तरीके से जारी करने की योजनाएं मांगनी चाहिए।
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