स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री रमेश बिधूड़ी) ने 20 दिसंबर, 2023 को 'कच्चे तेल की आयात नीति की समीक्षा' पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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स्रोतों का विविधीकरण: भारत का अधिकांश हाइड्रोकार्बन आयात पश्चिम एशिया से होता है जो भू-राजनीतिक तनाव से ग्रस्त है। इससे आपूर्ति बाधित हो सकती है। कमिटी ने कहा कि कच्चे तेल और गैस आपूर्ति के लिए किसी भी क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। उसने सुझाव दिया कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय कच्चे तेल और गैस के आयात में विविधता लाने के लिए कदम उठाए।
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आयात निर्भरता में कमी: भारत ने 2022-23 में अपने कच्चे तेल की खपत का लगभग 87% आयात किया। कमिटी ने पाया कि भविष्य में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग बढ़ने की संभावना है। ऊर्जा के क्षेत्र में आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने रोडमैप तैयार किया है। रोडमैप में निम्नलिखित प्रावधान हैं: (i) घरेलू उत्पादन बढ़ाना, (ii) जैव-ईंधन और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना, (iii) ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना और (iv) रिफाइनरी प्रक्रिया में सुधार। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय हरित हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक वाहनों और जैव-ईंधन को बढ़ावा दे। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय विशेषज्ञों का एक बहुविषयक समूह बनाए ताकि जीवाश्म ईंधन की मांग को कम करने के लिए नीतिगत उपाय किए जा सकें।
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स्पॉट और टर्म कॉन्ट्रैक्ट: कच्चे तेल के कॉन्ट्रैक्ट टर्म कॉन्ट्रैक्ट और स्पॉट टेंडर के माध्यम से दिए जाते हैं। टर्म कॉन्ट्रैक्ट ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करते हैं क्योंकि यह एक सहमत अवधि (एक वर्ष या अधिक के लिए) में सुनिश्चित मात्रा प्रदान करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के तेल उपक्रम स्पॉट खरीद करते हैं क्योंकि कई बार टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करते। आम तौर पर स्पॉट टेंडर टर्म कॉन्ट्रैक्ट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध होते हैं। कमिटी ने कहा कि स्पॉट खरीद की हिस्सेदारी 2017-18 में 27.6% से बढ़कर 2022-23 में 35.1% हो गई है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को यह निर्धारित करने के लिए एक अध्ययन/ऑडिट करना चाहिए कि क्या स्पॉट टेंडर में खरीद से लागत कम होती है।
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कच्चे तेल का मूल्य निर्धारण: पश्चिम एशिया में तेल उत्पादक देशों की राष्ट्रीय तेल कंपनियां (एनओसी) कच्चे तेल के आधिकारिक बिक्री मूल्य की घोषणा करती हैं। कमिटी ने कहा कि पश्चिम एशिया में एनओसी द्वारा तय किया गया आधिकारिक बिक्री मूल्य अधिक पारदर्शी होना चाहिए। कच्चे तेल की कीमत का उत्पादन लागत से कोई संबंध नहीं है। चूंकि तेल उत्पादक देश एकजुट होकर काम करते हैं, इसलिए कच्चे तेल की कीमतें बाजार द्वारा संचालित होने के बजाय उत्पादक द्वारा निर्धारित होती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय कच्चे तेल के मूल्य निर्धारण में सुधार लाने के लिए अन्य तेल आयातक देशों के साथ समन्वय करे।
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कच्चे तेल के मूल्य निर्धारण में एशियाई प्रीमियम: कच्चे तेल के आधिकारिक बिक्री मूल्य के अलावा, भारत सहित एशियाई देशों द्वारा की गई खरीद पर एशियाई प्रीमियम नामक एक अतिरिक्त लागत लगाई जाती है। यह प्रीमियम परिवहन लागत पर निर्भर करता है। कमिटी ने कहा कि किसी देश को गैर-कमर्शियल कारणों से अधिक लागत का भुगतान नहीं करना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय/तेल पीएसयू को प्रीमियम खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। उन्हें ऐसे देशों से सहयोग मांगना चाहिए जिन्हें यह लागत वहन करनी पड़ती है। साथ ही विभिन्न बहुपक्षीय संस्थानों की मदद लेनी चाहिए ताकि ऐसे शुल्क समाप्त हों।
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भारतीय रुपयों में कच्चे तेल का व्यापार: कच्चे तेल का आयात बिल सभी व्यापारिक आयातों का लगभग 25% है। केंद्र सरकार ने विदेशी मुद्रा बचाने के लिए कच्चे तेल के आयात का निपटान भारतीय रुपयों में करने की योजना बनाई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भारतीय रुपए में निर्यात और आयात का निपटान करने की व्यवस्था शुरू की है। हालांकि कच्चे तेल के आपूर्तिकर्ता निम्नलिखित को लेकर चिंतित हैं: (i) अपनी पसंदीदा करंसी में कैसे स्वदेश भेजा जाए, और (ii) करंसी को बदलने में लगने वाली उच्च लागत। कमिटी ने भारतीय रुपए में कच्चे तेल आयात के निपटान की धीमी गति पर चिंता व्यक्त की। उसने सुझाव दिया कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को संबंधित बाधाओं को दूर करने के लिए वित्त मंत्रालय और आरबीआई के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए।
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कच्चे तेल का परिवहन: कच्चे तेल की परिवहन लागत आयातक देश द्वारा वहन की जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि तेल पीएसयू को विभिन्न स्थानों से कच्चे तेल के परिवहन के लिए नए और छोटे मार्ग तलाशने चाहिए। ऐसे मार्गों में भू-राजनीतिक तनाव कम होना चाहिए और ये किफायती होने चाहिए।
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कच्चे तेल की पाइपलाइन: भारत में लगभग 49% कच्चे तेल का परिवहन पाइपलाइनों के माध्यम से किया जाता है। परिवहन के अन्य साधनों की तुलना में पाइपलाइनों के माध्यम से कच्चे तेल का परिवहन सस्ता है। वर्तमान में 3,750 किमी की पांच पाइपलाइन परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। इनके जून 2023 और जनवरी 2025 के बीच पूरा होने की उम्मीद है। कमिटी ने मंत्रालय और तेल पीएसयू को यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि चालू परियोजनाएं समय पर पूरी हों। उसने पाइपलाइनों के माध्यम से लाए जाने वाले कच्चे तेल की हिस्सेदारी बढ़ाने का भी सुझाव दिया।
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