स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- वाणिज्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: वी. विजयसाय रेड्डी) ने 10 फरवरी, 2021 को कोविड के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश को आकर्षित करना: चुनौतियां और अवसर पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। निवेश को आकर्षित करने की दिशा में मुख्य चुनौतियों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रशासनिक और रेगुलेटरी बाधाएं, (ii) अपर्याप्त और महंगा ऋण, (iii) भूमि अधिग्रहण की थका देने वाली प्रक्रिया, और (iv) इंफ्रास्ट्रक्चर की अपर्याप्त सुविधाएं। कमिटी ने लॉजिस्टिक्स, ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, स्टील जैसे क्षेत्रों की समस्याओं पर गौर किया और समाधान सुझाए। इन क्षेत्रों में चीन के साथ व्यापार घाटे से संबंधित समस्याएं शामिल हैं। हालांकि कोविड के बाद भारत में निवेश के अवसर बढ़ सकते हैं, चूंकि कंपनियां अपनी सप्लाई चेन में बदलाव लाएंगी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस: कमिटी ने कहा कि केंद्र ने ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार करने के लिए कई कदम उठाए हैं (जैसे बिजनेस शुरू करने के लिए बेव बेस्ड फॉर्म्स को शुरू करना)। उसने सुझाव दिया कि राज्य तथा जिला स्तर पर प्रशासकों को संवेदनशील बनाया जाए ताकि वे विभिन्न कार्यक्रमों को तेजी से लागू करें।
- लॉजिस्टिक्स: सड़क परिवहन पर अधिक निर्भरता, सड़कों और बंदरगाहों के इंफ्रास्ट्रक्चर की खराब क्वालिटी, स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर में टूट फूट और अनेक स्टेकहोल्डर्स की मौजूदगी की वजह से लॉजिस्टिक्स की लागत बहुत अधिक है। इसके अतिरिक्त कृषि क्षेत्र के निम्न मूल्य या बल्क आइटम्स के लिए लॉजिस्टिक्स की लागत अधिक है।
- कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को मजबूत करने और उसे औपचारिक बनाने के लिए विभिन्न कदमों को अमल में लाना, (ii) रेलवे और आंतरिक जलमार्ग संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार, और (iii) क्षेत्र में प्रभावी विकास के लिए राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति को अंतिम रूप देना।
- ऑटोमोबाइल: ऑटोमोबाइल क्षेत्र में 2019-20 और 2020-21 में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई थी। कमिटी ने मांग को प्रोत्साहित करने, निर्यात को बढ़ावा देने और ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार करने की जरूरत को स्वीकार किया। उसने निम्नलिखित का सुझाव दिया: (i) वाहनों की जीएसटी दरों को 28% से घटाकर 18% किया जाए, (ii) अफ्रीकी और एशियाई देशों जैसे नए बाजारों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर करना, और (iii) मैन्यूफैक्चरिंग शुरू करने से संबंधित मंजूरियों के लिए सिंगल विंडो फेसिलिटी प्रदान करना। कमिटी ने यह भी कहा कि इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) का इस्तेमाल उम्मीद से कम है। उसने सुझाव दिया कि चार्जिंग स्टेशन्स को शुरू करने के काम में तेजी लाई जाए।
- फार्मास्यूटिक्लस: कमिटी ने एक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडियंट्स (एपीआई) के आयात के लिए चीन पर निर्भरता के संबंध में चिंताई जताई। यह दवाओं की मुख्य सामग्री है। उसने सुझाव दिया कि घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एपीआई प्लांट्स को प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (पीएलआई) उपलब्ध कराया जाए। फिलहाल पीएलआई योजना नए उत्पादन केंद्र या मौजूदा केंद्र के किसी नए प्लांट में निवेश करने हेतु वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- फार्मास्यूटिकल उद्योग सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में से एक है और इसीलिए पर्यावरणीय प्रतिबंधों के अधीन है। कमिटी ने सुझाव दिया कि कुछ नियमों में राहत दी जानी चाहिए। जैसे उच्च मांग वाले महीने में स्वीकृत प्रदूषण सीमा में 15% की वृद्धि, वह भी पर्यावरणीय मंजूरी की शर्त के बिना (बशर्ते प्रदूषण में बढ़ोतरी लगातार छह महीने तक कायम न रहे)।
- मेडिकल डिवाइस: कुछ मेडिकल डिवाइसेज़ पर मूल्य नियंत्रण है जोकि बिक्री की कीमत तय करता है या निर्माता पर इस बात की पाबंदी लगाता है कि वह कीमत को एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ा सकता। कमिटी ने सुझाव दिया कि मेडिकल डिवाइस का मूल्य दवाओं के मूल्य से अलग होना चाहिए और उसकी निगरानी के लिए एक अलग रेगुलेटर बनाया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसने सुझाव दिया कि मेडिकल डिवाइसेज़ रेगुलेटरी एक्ट लागू किया जाना चाहिए। वर्तमान में ड्रग्स (मूल्य) नियंत्रण आदेश, 2013 दवाओं और मेडिकल डिवाइसेज़ का मूल्य रेगुलेट करता है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स: भारत मोबाइल फोन्स का दूसरा सबसे बड़ा मैन्यूफैक्चरर है। हालांकि अधिकतर मोबाइल फोन्स भारत में एसेंबल होते हैं, पर उनके हिस्से दूसरी जगहों से आयात किए जाते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग में निवेश करने वाली किसी भी विदेशी कंपनी से इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को कहा जाना चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि सरकार को सस्ते आयात से घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग को बचाने के लिए आयात शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिए।
- स्टील: स्टील उद्योग की चुनौतियों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) खास तौर से चीन से बड़ा व्यापार घाटा, (ii) अधिक वित्त पोषण की जरूरत, (iii) लॉजिस्टिक्स पर अधिक लागत, और (iv) रेगुलेटरी प्रक्रियाओं में देरी। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) स्टील क्षेत्र के लिए इनपुट मैटीरियल के आयात पर टैरिफ खत्म करना, (ii) स्टील क्षेत्र को इंफ्रास्ट्रक्चर स्टेटस देना, ताकि वित्त जुटाना आसान हो, और (iii) रेगुलेटरी मंजूरियां हासिल करने के लिए समयबद्ध प्रक्रिया तैयार करना (जिससे स्टील प्लांट की स्थापना में लगने वाला तीन साल का समय, कम होकर एक साल हो जाए)।
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