स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
छोटे और सीमांत किसानों के लिए कृषि मशीनीकरण
-
कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री पी.सी. गद्दीगौदर) ने 21 जुलाई, 2023 को 'देश में छोटे और सीमांत किसानों के लिए कृषि मशीनीकरण में अनुसंधान और विकास' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। कृषि के मशीनीकरण से उत्पादकता में सुधार होता है, विवेकपूर्ण इनपुट उपयोग सुनिश्चित होता है और किसानों को निर्वाह खेती की बजाय व्यावसायिक खेती करने में सक्षम बनाता है। कमिटी के निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
-
कृषि मशीनीकरण की स्थिति: अगस्त 2022 तक भारत में 47% कृषि गतिविधियां मशीनीकृत हैं। यह चीन (60%) और ब्राज़ील (75%) जैसे अन्य विकासशील देशों से कम है। इसके अलावा छोटी और सीमांत कृषि जोत (दो हेक्टेयर से कम) कुल परिचालन (ऑपरेशनल) जोत का 86% हिस्सा है। कमिटी ने यह भी कहा कि जब तक छोटी जोत के लिए उपयुक्त मशीनें उपलब्ध नहीं कराई जातीं या पर्याप्त कृषि भूमि का समेकन नहीं होता, छोटे किसानों के लिए अपनी मशीनें खरीदना मुश्किल होगा।
-
कमिटी ने यह भी कहा कि देश को 75-80% मशीनीकरण हासिल करने में लगभग 25 वर्ष लगेंगे। उसने कहा कि किसानों को अतिरिक्त फसलें लेने में सक्षम बनाने की तत्काल आवश्यकता है, जो कृषि को आकर्षक और लाभदायक बनाएगी। कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के मद्देनजर कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को छोटे खेतों के मशीनीकरण को प्राथमिकता देनी चाहिए। उसने सुझाव दिया कि सरकार को 25 वर्षों से कम समय में 75% मशीनीकरण हासिल करना चाहिए।
तालिका 1 : विभिन्न फसलों में मशीनीकरण का स्तर
फसल |
चावल |
गेहूं |
दालें |
गन्ना |
कुल |
स्तर |
53% |
69% |
41% |
35% |
47% |
-
कृषि उपकरणों की पोर्टेबिलिटी: चूंकि कृषि मशीनरी महंगी है, इसलिए छोटे किसानों के लिए कृषि उपकरण खरीदना मुश्किल होता है। कमिटी ने कहा कि सरकार ने कस्टम हायरिंग सेंटर और फार्म मशीनरी बैंक शुरू किए हैं, जहां किसान मशीनें साझा कर सकते हैं। अब तक 37,097 कस्टम हायरिंग सेंटर, जिनमें 17,727 फार्म मशीनरी बैंक शामिल हैं, स्थापित किए जा चुके हैं। एक सुस्थापित केंद्र लगभग 100-200 किसानों को मशीनें प्रदान करता है। कमिटी ने कहा कि लगभग सभी राज्यों में फार्म मशीनरी बैंक स्थापित किए गए हैं। हालांकि यह कहा गया कि उनका लाभ जिला, तालुका, पंचायत और ग्राम सभा स्तर तक नहीं पहुंचा है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार ऐसी योजनाओं का व्यापक रूप से प्रचार करे, और आस-पास के केंद्रों/बैंकों का पता लगाने और उनसे संपर्क करने के लिए एक ऐप विकसित करे।
-
कमिटी ने यह भी कहा कि कृषि मशीनरी का मानकीकरण जटिल है और सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग के स्तर पर इंटरचेंजेबिलिटी को लागू करने के लिए एक ठोस नीति बनानी चाहिए। मानक भागों की उपलब्धता उत्पादन को सरल बनाती है। कमिटी ने कहा कि डिज़ाइन मानकीकरण भारतीय मानक ब्यूरो के स्तर पर प्राप्त किया जा सकता है, और मैन्यूफैक्चरर के स्तर पर ऐसे मानकों का कार्यान्वयन किया जा सकता है।
-
कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन: मिशन के तहत सरकार छोटे और सीमांत किसानों को ट्रैक्टर, पावर टिलर या कंबाइन हार्वेस्टर खरीदने की लागत का 40-50% प्रदान करती है। इसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। सितंबर 2022 में मिशन को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में विलय कर दिया गया। 2014-15 में मिशन के कार्यान्वयन के बाद से 14.2 लाख मशीनें वितरित की गईं। कमिटी ने उल्लेख किया कि छोटे किसानों के लिए इसकी वहनीयता सुनिश्चित करने हेतु सरकार कम लागत वाले उपकरणों को बढ़ावा देती है। कमिटी ने यह भी कहा कि दोनों योजनाओं के विलय के बाद से कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन के उद्देश्य को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।
-
खेती के लिए बिजली की उपलब्धता: कमिटी ने कहा कि खेती के लिए बिजली की उपलब्धता फसल की पैदावार को प्रभावित करती है। उसने कहा कि औसत कृषि बिजली उपलब्धता 2.5 किलोवाट प्रति हेक्टेयर है, जिसे 2030 तक 4 किलोवाट प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जाना चाहिए। उसने राज्यों के बीच कृषि बिजली उपलब्धता में असमानता पर भी गौर किया जिसे कम किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए पंजाब में बिजली की उपलब्धता 6 किलोवाट प्रति हेक्टेयर है, जबकि मिजोरम में 0.7 किलोवाट प्रति हेक्टेयर। चूंकि बिजली आपूर्ति में सुधार यह सुनिश्चित करता है कि अधिक कार्य सही समय पर पूरे हो जाएं, अधिक क्षेत्रों में खेती की जा सकती है और इससे उत्पादन बढ़ता है।
-
कृषि मशीनीकरण का आकलन करने हेतु अध्ययन: कमिटी ने कहा कि कृषि मशीनीकरण का आकलन करने के लिए कोई औपचारिक अध्ययन नहीं किया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने प्रस्ताव दिया है कि मशीनीकरण में कमियों की पहचान करने और उपयुक्त रणनीतियों का सुझाव देने के लिए राज्य-वार अध्ययन किया जाना चाहिए। कमिटी ने सुझाव दिया कि कृषि और किसान कल्याण विभाग ऐसे अध्ययन के लिए एक योजना तैयार करे। कमिटी ने कहा कि किसानों को प्रदर्शन, प्रशिक्षण और मार्गदर्शन देने के लिए इंजीनियरिंग कर्मियों की कमी है। वर्तमान में कृषि इंजीनियरिंग निदेशालय केवल मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में मौजूद है। मंत्रालय ने राज्यों को सूचित किया है कि उन्हें अपने राज्य में एक निदेशालय स्थापित करना होगा। कमिटी ने यह भी सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य में एक निदेशालय स्थापित किया जाना चाहिए।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।