स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सन: रमेश बैस) ने 3 जनवरी, 2019 को ‘जनजाति उप-योजना के कार्यान्वयन का विश्लेषण’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। जनजाति उप-योजना (टीएसपी) का लक्ष्य अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य लोगों के बीच के सामाजिक-आर्थिक अंतर को समयबद्ध तरीके से दूर करना है। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
- धनराशि का आबंटन: कमिटी ने कहा कि पहले संबंधित मंत्रालय अपने योजना व्यय में टीएसपी के लिए धनराशि मुहैय्या करते थे। योजना और गैर योजनागत व्यय के विलय के बाद वित्त मंत्रालय ने दिसंबर 2017 में टीएसपी के आबंटन की दर में संशोधन किया। वर्तमान में 41 केंद्रीय मंत्रालय अपनी विभिन्न योजनाओं के जरिए टीएसपी को लागू कर रहे हैं। कमिटी ने कहा कि व्यय की मदों के विलय के बाद से मंत्रालय टीएसपी के लिए बहुत कम धनराशि आबंटित कर रहे हैं।
- कमिटी के अनुसार, जनजाति मामलों के मंत्रालय (मंत्रालय) को सभी मंत्रालयों को यह निर्देश देना चाहिए कि वे अपने कुल योजना परिव्यय का निर्दिष्ट हिस्सा इस मद के लिए चिन्हित करें। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को ग्रामीण विकास विभाग को टीएसपी के अंतर्गत मनरेगा जैसी मुख्य योजनाओं के लिए धनराशि आबंटित करने को कहना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि इन योजनाओं का लाभ जनजातीय लोगों को मिल रहा है। कमिटी के अनुसार, मंत्रालय को सभी मंत्रालयों को निर्देश देना चाहिए कि वे साल में दो बार टीएसपी के अंतर्गत विभिन्न योजनाओं पर किए गए व्यय का विवरण पेश करें।
- राज्यों द्वारा धनराशि का आबंटन: कमिटी ने कहा कि टीएसपी के अंतर्गत राज्यों के लिए धनराशि मुहैय्या कराने के दिशानिर्देश मौजूद हैं। इन दिशानिर्देशों के अनुसार राज्यों को अपनी जनजातीय आबादी के अनुपात में योजना परिव्यय में से धनराशि आबंटित करनी होती है। कमिटी ने कहा कि कुछ राज्य इन दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। उदाहरण के लिए 2015-16 और 2016-17 में मध्य प्रदेश ने अपनी जनजातीय आबादी के अनुपात में धनराशि आबंटित नहीं की। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को सभी राज्यों से इस संबंध में बातचीत करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दिशानिर्देशों के अनुसार धनराशि मुहैय्या कराई जाए।
- राज्यों द्वारा आबंटित धनराशि का पर्याप्त उपयोग न करना: कमिटी ने गौर किया कि 2015-16 और 2016-17 के दौरान कई राज्य सरकारों ने टीएसपी के अंतर्गत आबंटित धनराशि का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को राज्य सरकारों के सचिव स्तरीय अधिकारियों के साथ त्रैमासिक आधार पर बैठक करनी चाहिए, विशेष रूप से जनजातीय बहुल राज्यों में। इस प्रकार मंत्रालय टीएसपी के अंतर्गत राज्यवार व्यय की निगरानी कर सकेगा।
- स्वास्थ्य केंद्रों की कमी: कमिटी ने कहा कि 31 मार्च, 2017 तक आदिवासी क्षेत्रों में 1,240 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी), 273 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) और 6,503 उपकेंद्रों की कमी थी। कमिटी को यह सूचित किया गया था कि 50% या उससे अधिक जनजातीय आबादी वाले राज्यों के आदिवासी बहुल 94 जिलों में पर्याप्त स्वास्थ्य संरचना को सुनिश्चित करने के लिए मंत्रालय ने एक प्रस्ताव तैयार किया है। कमिटी ने कहा कि ऐसे 40 जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के तौर पर पर्याप्त स्वास्थ्य संरचना मौजूद नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को पीएसची और सीएचसी में सुविधाओं और डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों और संबंधित मंत्रालयों को नियमित रूप से एडवाइजरीज़ देनी चाहिए।
- लाभार्थियों के आंकड़े: कमिटी ने कहा कि मंत्रालय के पास टीएसपी के अंतर्गत विभिन्न मंत्रालयों द्वारा लागू की जाने वाली योजनाओं के लाभार्थियों के आंकड़े नहीं थे। कमिटी के अनुसार मंत्रालय ने कहा कि राज्य सरकारों के संबंधित मंत्रालयों के पास विभिन्न योजनाओं और उनके प्रदर्शन से संबंधित आंकड़े होते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को विभिन्न योजनाओं के प्रदर्शन से संबंधित आंकड़ों को एकत्र करने की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि टीएसपी की सफलता का आकलन किया जा सके।
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