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पीडीएफ

जल संसाधन मंत्रालय की राष्ट्रीय परियोजनाएं

कैग की ऑडिट रिपोर्ट का सारांश

  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) (कैग) ने 20 जुलाई, 2018 को ‘जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की राष्ट्रीय परियोजनाएं’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस ऑडिट में 2008-17 की अवधि शामिल थी। कैग के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • योजना का खराब प्रदर्शन: फरवरी 2008 में सरकार ने राष्ट्रीय परियोजनाओं की एक योजना मंजूर की थी जिसके अंतर्गत जल संसाधन विकास और सिंचाई से संबंधित 16 परियोजनाओं को चिन्हित किया गया था। इससे पूर्व ये परियोजनाएं त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत आती थीं। लेकिन इन परियोजनाओं को विभिन्न कारणों से नामंजूर कर दिया गया। इन कारणों में भूमि अधिग्रहण, अंतर-राज्यीय समन्वय, वित्तीय कठिनाइयां और प्रभावित जनसंख्या के पुनर्वास एवं स्थान परिवर्तन से जुड़ी समस्याएं शामिल थीं। इस योजना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि इन 16 परियोजनों के त्वरित कार्यान्वयन और समापन के लिए समन्वित और सकेंद्रित कार्रवाई की जाए। योजना के प्रदर्शन ऑडिट से यह पता चला कि योजना के इस उद्देश्य को हासिल नहीं किया जा सका।
     
  • 16 में से केवल पांच राष्ट्रीय परियोजनाओं को लागू किया जा रहा है। उनकी अनुमानित सिंचाई क्षमता 25 लाख हेक्टेयर की है। इनमें 14.5 लाख हेक्टेयर की क्षमता का सृजन किया गया है लेकिन सिर्फ 5.3 लाख हेक्टेयर (36.5%) का उपयोग किया जा रहा है। शेष 11 परियोजनाएं जिनकी अनुमानित सिंचाई क्षमता 10.4 लाख हेक्टेयर है, अभी शुरू नहीं हुई हैं।
     
  • कार्यान्वयन में देरी : प्रशासनिक देरी, नियमों का पालन न करने, अनुबंधों के खराब प्रबंधन और प्रभावी एवं समयोचित निरीक्षण की कमी के कारण इन परियोजनाओं को लागू करने में देरी हुई है।
     
  • योजना के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए कैग ने सुझाव दिया कि इन परियोजनाओं को मिशन मोड में लिया जा सकता है। लागू परियोजनाओं की प्रगति के प्रभावी निरीक्षण के लिए केंद्रीय स्तर पर नोडल अधिकारियों को नामित किया जा सकता है। इससे राज्य की अथॉरिटीज़ के साथ समन्वय करने में आने वाली बाधाओं को भी दूर किया जा सकेगा।
     
  • लागत में बढ़ोतरी : योजना में शामिल होने से पहले पांच परियोजनाओं की लागत में 32,802 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई थी। हालांकि राष्ट्रीय परियोजनाओं की योजना में शामिल होने से बाद इनमें से दो परियोजनाओं- इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना और गोसीखुर्द परियोजना की लागत में पिछली वृद्धि के मुकाबले 49,840 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। बाकी परियोजनाओं के समाप्त होने का समय निकल चुका है लेकिन उनमें से कोई भी पूरी नहीं हुई है। पांचों परियोजनाओं की कुल लागत में 2,341% की वृद्धि हुई है।
  • लागत में वृद्धि की समस्या के समाधान के लिए कैग ने सुझाव दिया कि अनुबंध प्रबंधन को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त इसमें कमियां होने पर अथॉरिटीज़ की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
     
  • भौतिक प्रगति : परियोजनाओं के विभिन्न घटकों की भौतिक प्रगति के मामले में 8% से लेकर 99% कमियां हैं। इनके धीमी गति से लागू होने के निम्नलिखित कारण हैं : (i) प्रबंधन संबंधी विफलताएं, (ii) सर्वे और जांच से जुड़े प्रावधानों का पालन न करना, (iii) परियोजना की साइट्स के लिए वैधानिक मंजूरी हासिल करना, और (iv) भूमि अधिग्रहण में प्रशासनिक देरी।
     
  • कमांड क्षेत्र विकास (सीएडी) : मार्च 2017 तक पांच में से एक परियोजना ने भी सीएडी वर्क्स का कोई प्रस्ताव केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) को मंजूरी के लिए नहीं भेजा। सीएडी वर्क्स के अंतर्गत वितरिकाओं (डिस्ट्रिब्यूटरीज़) के जरिए अंतिम छोर तक पानी पहुंचाया जाता है और अगर यह काम नहीं किया जाता तो इन परियोजनाओं के जरिए सृजित सिंचाई क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सकता। कैग के अनुसार, जल संसाधन मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन परियोजनाओं के साथ-साथ सीएडी वर्क्स भी कराए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त मंत्रालय संबंधित राज्यों से कह सकता है कि वे सीडब्ल्यूसी को जल्द से जल्द अपने सीएडी प्रस्ताव सौंपे।
  • परियोजनाओं का निरीक्षण : परियोजनाओं के समय पर पूरा न होने के कारणों में एक कारण यह भी है कि उनका पर्याप्त और प्रभावी निरीक्षण नहीं किया जाता। नुकसान या टूट-फूट होने पर इंफ्रास्ट्रक्चर को समय रहते दुरुस्त नहीं किया जाता और सृजित परिसंपत्तियों का अच्छी तरह से रखरखाव नहीं होता। कैग ने सुझाव दिया कि मंत्रालय और राज्य स्तरीय विभागों को नियमित बैठकें करके निरीक्षण व्यवस्था को मजबूती देनी चाहिए ताकि परियोजनाओं के मार्ग में आने वाले व्यवधानों को चिन्हित किया जा सके।

 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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