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टेलीकॉम सेवाओं/इंटरनेट का सस्पेंशन और उसका असर

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. शशि थरूर) ने 1 दिसंबर, 2021 को ‘टेलीकॉम सेवाओं/इंटनेट का सस्पेंशन और उसका असर’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। वर्तमान में दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल और सार्वजनिक सुरक्षा) नियम, 2017 के अंतर्गत टेलीकॉम सेवाओं का सस्पेंशन (इंटरनेट शटडाउन सहित) किया जाता है। ये नियम भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885 के अंतर्गत अधिसूचित किए गए हैं। 2017 के नियमों में यह प्रावधान है कि सार्वजनिक आपातकाल के आधार पर किसी क्षेत्र में टेलीकॉम सेवाओं को अस्थायी रूप से बंद किया जा सकता है (एक बार में 15 दिनों तक)। 1885 का एक्ट केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह इंटरनेट सेवाओं सहित विभिन्न प्रकार की टेलीकॉम सेवाओं को रेगुलेट करे और उन्हें लाइसेंस प्रदान करे। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • टेलीकॉम सेवाओं के सस्पेंशन का रेगुलेशन: कमिटी ने कहा कि 2017 के नियमों की अधिसूचना से पहले तक दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत मनमाने ढंग से टेलीकॉम/इंटरनेट शटडाउन्स के आदेश दिए जाते थे। 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 2017 के नियमों में पर्याप्त सुरक्षात्मक उपाय मौजूद नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद नवंबर 2020 में 2017 के नियमों में कुछ संशोधन किए गए। हालांकि कमिटी ने कहा कि ये संशोधन पर्याप्त नहीं हैं और बहुत से प्रावधानों को ओपन-एंडेड छोड़ दिया गया है। उसने कई चिंताएं जाहिर कीं, जैसे सस्पेंशन के जो आधार हैं, उनकी परिभाषा मौजूद नहीं है, और ओवरसाइट कमिटी की संरचना को काफी हद तक कार्यपालिका तक सीमित रखा गया है। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) नियमों की समीक्षा की जाए ताकि इंटरनेट शटडाउन के सभी पहलुओं को संबोधित किया जा सके, (ii) नियमों को बदलती तकनीक के अनुकूल किया जाए ताकि लोगो को कम से कम परेशानी हो, और (iii) इंटरनेट शटडाउन का आदेश देते समय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक समान दिशानिर्देश जारी किए जाएं। इसके अतिरिक्त उसने सुझाव दिया कि दूरसंचार विभाग (डॉट) को दूसरे लोकतांत्रिक देशों में इंटरनेट शटडाउन के नियमों का विश्लेषण करना चाहिए और भारत के विशिष्ट संदर्भ में बेहतरीन विश्वव्यापी पद्धतियों को अपनाना चाहिए। 
     
  • टेलीकॉम सेवाओं के सस्पेंशन के लिए आधार: 2017 के नियमों के अंतर्गत सार्वजनिक आपातकाल और सार्वजनिक सुरक्षा के आधार पर टेलीकॉम/इंटरनेट शटडाउन्स के आदेश दिए जा सकते हैं। लेकिन 1885 के एक्ट या 2017 के नियमों में सार्वजनिक आपातकाल और सार्वजनिक सुरक्षा को परिभाषित नहीं किया गया है। कमिटी ने कहा कि इंटरनेट शटडाउन कितना जरूरी है और व्यक्तिपरक मूल्यांकन के आधार पर शटडाउन का आदेश दिया गया है, यह तय करने के लिए मानदंड निर्धारित नहीं किए गए हैं। उसने कहा कि राज्य सरकारों ने नियमित पुलिसिंग और प्रशासनिक उद्देश्यों, जैसे परीक्षाओं में नकल एवं स्थानीय अपराध को रोकने के लिए शटडाउन्स के आदेश दिए हैं। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) ऐसे स्पष्ट मानदंडों को संहिताबद्ध करना, जो सार्वजनिक आपातकाल और सार्वजनिक सुरक्षा के रूप में स्थापित हैं, और (ii) इंटरनेट शटडाउन का महत्व तय करने के लिए एक व्यवस्था तैयार करना। 
     
  • रिव्यू कमिटी: 2017 के नियमों में केंद्रीय स्तर पर कैबिनेट सचिव तथा राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय रिव्यू कमिटी क्रमशः केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार के आदेश पर किए जाने वाले टेलीकॉम/इंटरनेट शटडाउन की समीक्षा करेगी। रिव्यू कमिटी के अन्य सदस्यों में केंद्रीय स्तर पर कानूनी मामलों के सचिव और दूरसंचार सचिव; तथा राज्य स्तर पर कानूनी एवं गृह मामलों के सचिव शामिल होंगे। कमिटी ने सुझाव दिया कि रिव्यू कमिटी में गैर सरकारी सदस्य जैसे सेवानिवृत्त न्यायाधीश और सार्वजनिक सदस्य होने चाहिए ताकि कमिटी को और अधिक समावेशी बनाया जा सके। कमिटी ने कहा कि डॉट के पास सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में रिव्यू कमिटी के गठन के संबंध में डेटा नहीं है। उसने डॉट को यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि सभी राज्यों में रिव्यू कमिटी बनी हुई हैं। उसने डॉट को सुझाव दिया कि वह कमिटियों के गठन के संबंध में डेटा मेनटेन करे।
     
  • सेवाओं पर चुनींदा पाबंदी: इंटरनेट शटडाउन के मौजूदा रूप में इंटरनेट पर सभी प्रकार की सूचनाओं और सेवाओं को प्रतिबंधित किया जाता है। कमिटी ने डॉट को सुझाव दिया कि वह इंटरनेट पर पूरी पाबंदी लगाने की बजाय कुछ सेवाओं के इस्तेमाल पर चुनींदा पाबंदी लगाने की नीति बनाए। इससे आम लोगों को कम से कम असुविधा होगी और साथ ही, गलत सूचनाओं पर रोक लगाने का उद्देश्य भी पूरा होगा।
     
  • इंटरनेट शटडाउन्स का असर: कमिटी ने कहा कि इंटरनेट शटडाउन्स का असर राष्ट्रीय सुरक्षा, प्रेस की स्वतंत्रता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। उसने कहा कि डॉट और गृह मामलों के मंत्रालय ने इंटरनेट शटडाउन्स के असर का आकलन करने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इंटरनेट शटडाउन्स के असर और सार्वजनिक सुरक्षा एवं सार्वजनिक आपातकाल से निपटने में उनकी भूमिका एवं प्रभाव पर अध्ययन किया जाए। 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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