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दवाओं और मेडिकल उपकरणों की उपलब्धता

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • रसायन एवं उर्वरक संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: सुश्री कनिमोझी करुणानिधि) ने 21 मार्च, 2022 को ‘कोविड प्रबंधन के लिए दवाओं और मेडिकल उपकरणों की उपलब्धता’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) फार्मास्यूटिकल उद्योग के संवर्धन के लिए जिम्मेदार है। विभाग कोविड-19 के प्रबंधन के लिए अनिवार्य दवाओं के उत्पादन और आपूर्ति को बढ़ाने का काम भी करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • दवाओं की उपलब्धता: कमिटी ने कहा कि कोविड-19 के प्रबंधन के लिए दवाओं की लिस्टिंग और उनका नुस्खा देना, राष्ट्रीय उपचार प्रोटोकॉल के अंतर्गत किया जाता है। यह प्रोटोकॉल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आता है। राष्ट्रीय उपचार प्रोटोकॉल तैयार करने में डीओपी की कोई भूमिका नहीं है। वर्तमान में केंद्रीय औषधि नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) दवाओं की उत्पादन क्षमता और उपलब्धता के बारे में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को अपडेट करता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से मिलने वाले इनपुट्स के आधार पर डीओपी कोविड-19 के प्रबंधन के लिए आवश्यक दवाओं के उत्पादन और आपूर्ति को बढ़ाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना के चरण में डीओपी और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के बीच समन्वय शुरू करने के लिए, डीओपी को राष्ट्रीय उपचार प्रोटोकॉल को निर्धारित करने में शामिल किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसने डीओपी और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को सुझाव दिया कि उन्हें राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जरूरी दवाओं और मेडिकल उपकरणों की दैनिक समीक्षा को अनिवार्य करना चाहिए।
     
  • दवाओं का मूल्य नियंत्रण: वर्तमान में राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल प्राइजिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) औषधि (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 (डीपीसीओ) के अंतर्गत निर्दिष्ट अधिसूचित दवाओं का अधिकतम मूल्य तय करती है। अधिसूचित दवाओं के सभी मैन्यूफैक्चरर्स को अपने उत्पादों को एनपीपीए द्वारा निर्धारित अधिकतम मूल्य के अंदर बेचना होता है। हालांकि गैर-अनुसूचित फॉर्मूलेशन के मैन्यूफैक्चरर्स को अपने खुद के खुदरा बिक्री मूल्य तय करने की अनुमति है (बशर्ते कि ऐसे फॉर्मूलेशन की कीमत में वृद्धि पिछले 12 महीनों के दौरान 10% से अधिक न हो)। कमिटी ने डीओपी और एनपीपीए को कोविड-19 की खास दवाओं और मेडिकल उपकरणों के लिए एक नई मूल्य व्यवस्था तैयार करने का सुझाव दिया। इस व्यवस्था के तहत देश में महामारी के पूरी तरह से समाप्त न होने तक कीमतों में वार्षिक वृद्धि की अनुमति न हो। इसके अतिरिक्त अनुसूचित और गैर-अनुसूचित दवाओं के बीच के अंतर को समाप्त किया जा सकता है।
     
  • ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स की कीमतें: कमिटी ने कहा कि ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स की कीमत अभी भी काफी अधिक हैं। उसने डीओपी और एनपीपीए को सुझाव दिया कि वे ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स की अधिकतम कीमत तय करने पर विचार करें ताकि उन्हें वहन करने योग्य बनाया जा सके। इसके अतिरिक्त डीओपी के अंतर्गत आने वाले फार्मा पीएसयू इसकी मैन्यूफैक्चरिंग पर विचार कर सकते हैं। साथ ही कमिटी ने सुझाव दिया कि वेंटिलेटर और कॉन्सेंट्रेटर जैसे मेडिकल उपकरणों को आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल किया जाना चाहिए ताकि उनके मूल्य को नियंत्रित किया जा सके।
     
  • दवाओं पर जीएसटी: कमिटी ने कहा कि जून 2021 में कोविड-19 की ज्यादातर अनिवार्य दवाओं और मेडिकल उपकरणों पर जीएसटी को घटाकर 5% कर दिया गया था। उसने सुझाव दिया कि कीमत में और कटौती करने के लिए डीओपी और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को जीएसटी परिषद के सामने यह प्रस्ताव रखना चाहिए कि वह कोविड-19 की अनिवार्य दवाओं और मेडिकल उपकरणों को जीएसटी के दायरे से छूट दे। इसके अतिरिक्त जब तक महामारी खत्म नहीं हो जाती, तब तक ऐसी दवाओं और मेडिकल उपकरणों को बेसिक कस्टम्स ड्यूटी से छूट दी जानी चाहिए।
     
  • दवाओं का आयात: कमिटी ने कहा कि कुछ खास किस्म के कच्चे माल (एक्सीपिएंट्स) का आयात, दवाओं की उपलब्धता की बड़ी अड़चन है। उदाहरण के लिए टोसिलिजुमा का फिनिश्ड फॉर्मूलेशन भारत में नहीं बनता। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) देश में कच्चा माल बनाने के लिए जरूरी उपाय शुरू करके अन्य देशों पर निर्भरता को कम करना, (ii) दवाओं के उत्पादन के लिए भारतीय मैन्यूफैक्चरर्स को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए ड्रग कोऑर्डिनेशन कमिटी में विदेशों में भारतीय मिशनों के कामकाज की समीक्षा करना, और (iii) टोसिलिजुमा और लिपोसोमल एमफोटेरिसिन बी जैसी दवाओं के आयात को बढ़ाना।
     
  • रेमडेसिविर: कमिटी ने कहा कि रेमडेसिविर को ऑप्शनल ड्रग के तौर पर राष्ट्रीय उपचार प्रोटोकॉल में शामिल किया गया है। यह पेंटेट की हुई दवा है जिसे सात भारतीय मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां बना रही हैं। हालांकि डीओपी के अंतर्गत किसी फार्मास्यूटिकल पीएसयू को रेमडेसिविर और कोविड-19 की अन्य अनिवार्य दवाओं को बनाने का स्वैच्छिक लाइसेंस नहीं दिया गया। कमिटी ने सुझाव दिया कि डीओपी को इन पीएसयूज़ द्वारा कोविड-19 की अनिवार्य दवाओं को बनाने की संभावनाएं तलाशने के लिए कदम उठाने चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि रेमडेसिविर जैसी दवाओं के असर पर अध्ययन किए जाएं जोकि राष्ट्रीय उपचार प्रोटोकॉल के अंतर्गत वैकल्पिक है। इन अध्ययनों के आधार पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को उन दवाओं को इस प्रोटोकॉल से हटाना चाहिए जोकि जरूरी नहीं हैं। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि सभी पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर्स के लिए राष्ट्रीयव्यापी ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं जिसमें रेमडेसिविर और प्रोटोकॉल में शामिल कोविड-19 की अन्य दवाओं के उचित उपयोग के बारे में बताया जाए।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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