कैग की रिपोर्ट का सारांश
- भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने दिसंबर 2021 में ‘नए इंडियन इंस्टीट्यूट्स ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना’ पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में 2008-09 के दौरान भुवनेश्वर, गांधीनगर, हैदराबाद, इंदौर, जोधपुर, मंडी, पटना और रोपड़ में स्थापित आठ नए आईआईटीज़ के प्रदर्शन ऑडिट के निष्कर्षों को प्रस्तुत किया गया है। इसमें 2014-19 के दौरान इन आईआईटीज़ की गतिविधियों को शामिल किया गया है। कैग के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- भूमि आबंटन: सभी आठ आईआईटीज़ ने स्थायी कैंपस में शिफ्ट करने से पहले अस्थायी/ट्रांजिट कैंपस से अपना काम शुरू किया था जिन्हें चरणबद्ध तरीके से विकसित किया जाना था। 2006 में केंद्र सरकार ने संबंधित राज्य सरकारों से हर आईआईटी को 500-600 एकड़ भूमि मुफ्त में आबंटित करने का अनुरोध किया था। ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया कि भुवनेश्वर, गांधीनगर, मंडी और रोपड़ में चार संस्थानों को भूमि आबंटन और हस्तांतरण में लगातार समस्याएं थीं। जमीन न होने की वजह से भी स्टूडेंट्स को सुविधाएं देने में रुकावट आई। कैग ने सुझाव दिया कि शिक्षा मंत्रालय को आईआईटीज़ को जमीन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ सक्रिय कदम उठाने चाहिए।
- इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में देरी: हर आईआईटी ने अपना मास्टरप्लान बनाया है जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर की विस्तृत जरूरत और अकादमिक तथा गैर आकदमिक उद्देश्यों के लिए आबंटित जमीन शामिल है। 2012-19 के दौरान सभी आठ आईआईटीज़ में प्रमुख निर्माण कार्य किए गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की रफ्तार स्टूडेंट्स/फैकेल्टी की अनुमानित बढ़ोतरी के मुताबिक नहीं थी। इसलिए इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लक्ष्य को समय पर पूरा न कर पाने की वजह से आठों संस्थानों में स्टूडेंट्स के दाखिले पर असर पड़ा। इससे उपकरणों को समय पर लगाना और उचित फंड मैनेजमेंट भी प्रभावित हुआ। कैग ने सुझाव दिया कि इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास तेज किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि जरूरी साइट्स खरीद के लिए तैयार हों और साइंटिफिक उपकरणों को समय पर लगाया जा सके।
- इंफ्रास्ट्रक्चर विकास में देरी की वजह से परियोजना अवधि छह वर्ष से बढ़कर 13 वर्ष हो गई। इसके अलावा पूंजीगत परिव्यय 6,080 करोड़ रुपए से बढ़कर 14,332 करोड़ रुपए हो गया (136% की वृद्धि)। ऑडिट में कुछ कमियां भी पाई गईं जैसे: (i) टेंडर प्रक्रियाओं के बिना नामांकन के आधार पर कंसल्टेट्स/ठेकेदारों को नियुक्त करना, (ii) आईआईटीज़ पर अनिश्चितकालीन दायित्व/वित्तीय प्रतिबद्धताओं को लागू करने वाले दोषपूर्ण अनुबंध समझौते, और (iii) सृजित संपत्तियों का निष्क्रिय पड़े रहना।
- वित्तीय प्रबंधन: आईआईटीज़ स्वायत्त संस्थान होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार से अनुदान मिलता है। वे फीस, पब्लिकेशंस, ब्याज औऱ कंसल्टेंसी के काम से भी आंतरिक संसाधन जुटाते हैं। ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि आईआईटीज़ में बार बार होने वाला खर्चा ज्यादा है, और उनकी आंतरिक प्राप्तियों का अनुपात कम है। इसलिए आईआईटीज़ अपने बार बार के खर्चे को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के अनुदान पर बहुत अधिक निर्भर थे। कैग ने सुझाव दिया कि मंत्रालय और आईआईटीज़ को पर्याप्त आंतरिक संसाधनों के रास्ते तलाशने चाहिए। इससे सरकारी अनुदान पर निर्भरता कम होगी और सभी आईआईटीज़ की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी।
- स्टूडेंट्स का दाखिला: मंत्रालय ने 2008-14 के बीच आठ आईआईटीज़ में कुल मिलाकर 18,880 स्टूडेंट्स के दाखिले का अनुमान लगाया था। ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि इस अवधि के दौरान केवल 6,224 स्टूडेंट्स (अनुमानित दाखिले का 33%) को दाखिला दिया गया था। स्नातकोत्तर/पीएचडी प्रोग्राम्स में सभी आठ आईआईटी में रिक्तियां थीं। इससे इस बात का संकेत मिलता है कि स्टूडेंट्स के दाखिले का सही तरीके से आकलन किया जाना चाहिए और प्रोग्राम्स का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए ताकि स्टूडेंट्स को आकर्षित किया जा सके। स्नातकोत्तर और पीएच.डी नामांकन में आरक्षित वर्ग के स्टूडेंट्स का प्रतिनिधित्व भी अपर्याप्त था। कैग ने सुझाव दिया कि स्नातकोत्तर और पीएचडी प्रोग्राम्स में दाखिले का लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए। आईआईटीज़ को पाठ्यक्रम की संख्या और स्टूडेंट्स की संख्या बढ़ाने के लिए कदम उठाने चाहिए।
- रिसर्च प्रॉजेक्ट्स: प्रायोजित रिसर्च प्रॉजेक्ट्स के लिए आईआईटीज़ को सरकारी और गैर-सरकारी/उद्योग दोनों स्रोतों से फंडिंग मिलती है। ऐसे प्रोजेक्ट्स में आईआईटीज़ के फैकल्टी मेंबर लगे हुए हैं। ऑडिट में पाया गया कि सभी आठों आईआईटीज़ में गैर सरकारी फंडिंग वाले प्रायोजित प्रॉजेक्ट्स कम हैं। गैर सरकारी फंडिंग वाले प्रॉजेक्ट्स, प्रॉजेक्ट फंड के लिहाज से 0.35% से 14.31% हैं। इसके अलावा कई पेटेंट फाइल किए गए लेकिन 2014-19 के दौरान पांच आईआईटीज़ को कोई पेटेंट नहीं मिले। इससे इस बात का संकेत मिलता है कि रिसर्च के काम के आउटकम्स में सुधार की जरूरत है। कैग ने सुझाव दिया कि आईआईटीज़ को दिए गए पेटेंट के जरिए रिसर्च पर अधिक ध्यान देना चाहिए और गैर-सरकारी स्रोतों से रिसर्च फंडिंग को आकर्षित करना चाहिए।
- फैकल्टी में रिक्तियां: मंत्रालय ने इस बात को मंजूरी दी है कि स्टूडेंट्स के बढ़ने के साथ फैकल्टी के पदों में भी बढ़ोतरी की जा सकती है। आईआईटीज़ के प्रयासों के बावजूद सात आईआईटीज़ में फैकल्टी पदों पर 5% से 36% रिक्तियां हैं। कैग ने सुझाव दिया कि आईआईटीज़ को समय-समय पर फैकल्टी की उपलब्धता और रिक्त पदों को भरने के लिए फैकल्टी को आकर्षित करने के तरीकों की समीक्षा करनी चाहिए।
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