स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- वाणिज्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: वी. विजयसाय रेड्डी) ने 11 सितंबर, 2021 को ‘निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी सुविधाओं का विस्तार’ विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने कहा कि विश्वव्यापी निर्यात में भारत का हिस्सा बहुत छोटा है (2.1%)। उसने यह भी कहा कि 2019-20 से भारतीय निर्यात में संकुचन आया है (2020 में 15.73% की गिरावट)। कमिटी के मुख्य सुझावों और निष्कर्षों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- लॉजिस्टिक्स: भारतीय उत्पाद विश्वव्यापी बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकें, इसके लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति को अंतिम रूप देना, (ii) भारतीय पैकेजिंग संस्थान की सलाह से कार्गो की अलग-अलग श्रेणियों के लिए पैकेजिंग के दिशानिर्देशों को मानकीकृत करना, (iii) यह सुनिश्चित करना कि अहमदाबाद और फरीदाबाद में निरीक्षण, परीक्षण और सर्टिफिकेशन करने वाली लेबोरेट्रीज़ का निर्माण समय पर हो।
- निर्यात के लिए इनसेंटिव: कमिटी ने कहा कि निर्यातकों को एडवांस ऑथराइजेशन स्कीम के अंतर्गत 15% अनिवार्य वैल्यू एडिशन को पूरा करने में दिक्कत आ रही है, इसलिए इन मानदंडों में रियायत दी जाए। योजना में ऐसे इनपुट्स के ड्यूटी फ्री आयात की अनुमति है जिन्हें निर्यात होने वाले उत्पाद में बाहर से लगाया जाता है या उसे बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
- निर्यात संवर्धन पूंजी उत्पाद योजना में कस्ट्म्स ड्यूटी के बिना उन पूंजी उत्पादों का आयात किया जा सकता है, जिन्हें निर्माण से पहले, निर्माण और निर्माण के बाद इस्तेमाल किया जाता है। कमिटी ने कहा कि नई मशीनरी को इंस्टॉल करने और उसकी कमीशनिंग में एक साल से ज्यादा समय लग सकता है। और निर्यातकों को आयात होने की तारीख से छह महीने के भीतर इंस्टॉलेशन सर्टिफिकेट देने की शर्त के कारण बहुत परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। कमिटी ने यह भी कहा कि निर्यातकों को अपनी निर्यात बाध्यता को पूरा करने में मुश्किलें आ रही हैं क्योंकि यह बाध्यता उस तारीख से गिनी जाती है, जिस तारीख से पूंजी उत्पाद के लिए आयात का ऑथराइजेशन जारी किया गया था। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं: (i) मशीनरी की कमीशनिंग की तारीख से निर्यात बाध्यता की अवधि की शुरुआत को गिना जाए, और (ii) इंस्टॉलेशन सर्टिफिकेट को सौंपने की समय अवधि में रियायत दी जाए।
- स्पेशल इकोनॉमिक जोन्स (सेज): कमिटी ने कहा कि भारत के कुल निर्यात में सेज का योगदान 20% है। उसने प्लग और प्ले सुविधा तथा अच्छी पावर सप्लाई देकर सभी 426 सेज को जल्द से जल्द ऑपेशनल करने का सुझाव दिया।
- फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (एफटीएज़): कमिटी ने कहा कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट न होने की वजह इन बाजारों में भारतीय निर्यातक नुकसान में रहते हैं। उसने हमारे ट्रेड पार्टनर्स के साथ एग्रीमेंट करने तथा घरेलू बाजार के हितों के साथ संतुलन बनाने का सुझाव दिया।
- रेलवे: कमिटी ने गौर किया कि माल ढुलाई (फ्रेट) में सड़कों के मुकाबले रेलवे का हिस्सा कम है (35%), जिसकी वजह रेलवे की माल भाड़े (फ्रेट) की गैर प्रतिस्पर्धी दरें हैं। 2011-12 से रेलवे की माल भाड़ा दरों में 52% की बढ़ोतरी के मद्देनजर कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) बंदरगाहों से दूर स्थित निर्यातकों को दूरी आधारित रियायत देना, (ii) जून 2022 तक डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के सभी खंडों को चालू करना, और (iii) क्रॉस सबसिडी के बोझ को कम करने के लिए रेलवे टर्मिनल्स, स्टेशंस, जमीन, मल्टी-फंक्शनल कॉम्पलैक्स और स्टेडियम्स के मुद्रीकरण के रास्ते तलाशना।
- एयर फ्रेट: कमिटी ने गौर किया कि एयर कार्गो टर्मिनल्स पर कार्गों की प्रोसेसिंग और हैंडलिंग के लिए सभी हवाई अड्डों पर अलग-अलग दरें हैं। हवाई मार्ग से माल ढुलाई को बढ़ावा देने के लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) दूसरे देशों के शुल्कों से तुलना करते हुए सभी हवाईअड्डों पर प्रोसेसिंग और हैंडलिंग के शुल्क तय करने वाले मानक निर्धारित करना, और (ii) एयरपोर्ट आर्थिक रेगुलेटरी अथॉरिटी को एयर फ्रेट के शुल्क के रेगुलेशन का काम सौंपने के लाभों का अध्ययन करना।
- बंदरगाह बिल: कमिटी ने सुझाव दिया कि ड्राफ्ट भारतीय बंदरगाह बिल, 2021 छोटे बंदरगाहों पर राज्य सरकारों के नियंत्रण और उनकी स्वायत्तता पर असर नहीं करेगा, बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए। बिल बोर्ड ऑफ मेजर पोर्ट अथॉरिटी द्वारा सभी मुख्य बंदरगाहों के प्रबंधन और प्रशासन का प्रस्ताव रखता है। यह हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में राज्य मैरिटाइम बोर्ड द्वारा गैर मुख्य बंदरगाहों के प्रबंधन और प्रशासन का भी प्रस्ताव रखता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों के इनपुट्स की समीक्षा की जानी चाहिए और उन्हें ड्राफ्ट बिल में शामिल किया जाना चाहिए।
- सड़कें: कमिटी ने कहा कि भारतमाला परियोजना के अंतर्गत सिर्फ 17% परियोजनाएं पूरी हुई हैं। इसके अतिरिक्त परियोजनाओं के लगभग पांच वर्षों के कार्यान्वयन के बाद भी सिर्फ 54% परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। उसने परियोजनाओं के रियल टाइम निरीक्षण और देरी के कारणों को तुरंत पहचानने और उन्हें दुरुस्त करने का सुझाव दिया। कमिटी ने कहा कि सड़क परिवहन मंत्रालय के अंतर्गत भी 152 परियोजनाओं में विलंब हुआ है।
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