स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री सप्तगिरि शंकर उलाका) ने 29 जुलाई, 2025 को ‘पंचायती राज प्रणाली के तहत धनराशि हस्तांतरण’ पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। कमिटी की प्रमुख टिप्पणियों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- वित्त आयोग के अनुदानों का पुनर्गठन: ग्रामीण स्थानीय निकाय (आरएलबी) केंद्रीय वित्त आयोग से टाइड (60%) और अनटाइड (40%) अनुदानों के रूप में वित्तीय हस्तांतरण प्राप्त करते हैं। 15वें वित्तीय आयोग (2021-26) द्वारा अनुशंसित 70% धनराशि नवंबर 2024 तक राज्यों को जारी कर दी गई है। टाइड अनुदानों का उपयोग केवल स्वच्छता और पेयजल आपूर्ति के लिए किया जा सकता है। कमिटी ने कहा कि अगर अन्य योजनाओं के माध्यम से इन श्रेणियों में लक्ष्य हासिल किए जा चुके हों तो पंचायतों को धनराशि जारी नहीं की जाती है, क्योंकि टाइड अनुदानों का पुनर्आवंटन नहीं किया जा सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि धनराशि के अधिक से अधिक उपयोग के लिए टाइड अनुदानों को अनटाइड अनुदानों के तौर पर फिर से आवंटित करने वाला एक तंत्र स्थापित किए जाए।
- प्रदर्शन अनुदानों का वितरण: केंद्रीय वित्त आयोग के सुझावों के आधार पर अच्छा प्रदर्शन करने वाली पंचायतों और ग्रामीण स्थानीय निकायों को कार्य निष्पादन अनुदान (या प्रदर्शन अनुदान) प्रदान किए जाते हैं। कमिटी ने गौर किया कि कई पंचायतें शर्तें पूरी न करने के कारण इन अनुदानों का लाभ नहीं उठा पातीं, जबकि कई पात्रता के लिए भ्रामक जानकारी प्रस्तुत करती हैं। कमिटी ने पारदर्शिता बढ़ाने और कमजोर पंचायतों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए रैंकिंग प्रणाली में संशोधन का सुझाव दिया।
- समय पर जानकारी प्रदान करना: पंचायतों को ग्राम पंचायत विकास योजनाएं (जीपीडीपी) तैयार करनी होती हैं। केंद्रीय वित्त आयोग के अनुदानों को जारी करने के लिए जीपीडीपी को ई-ग्रामस्वराज पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य है। कमिटी ने कहा कि कुछ राज्यों ने या तो जीपीडीपी अपलोड नहीं की हैं या आवश्यकता से कम अपलोड की हैं। कमिटी ने पंचायत कर्मचारियों को नियमित प्रशिक्षण देने और जीपीडीपी को ब्लॉक एवं जिला योजनाओं के अनुरूप करने का सुझाव दिया।
- राज्य वित्त आयोगों का गठन: राज्यों को हर पांच वर्ष में वित्त आयोगों का गठन करना होता है। ये आयोग राज्य और स्थानीय निकायों के बीच संसाधनों के बंटवारे का सुझाव देते हैं। 2024-25 से कुछ केंद्रीय अनुदान प्राप्त करने के लिए राज्य वित्त आयोगों का गठन एक अनिवार्य शर्त है। कमिटी ने कहा कि 28 में से केवल 25 राज्यों ने ही राज्य वित्तीय आयोगों का गठन किया है।
- पंचायती राज संस्थानों को शक्तियों का हस्तांतरण: कमिटी ने कहा कि संवैधानिक आदेश के बावजूद, पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) को कार्यों, धनराशि और पदाधिकारियों का हस्तांतरण अभी भी अधूरा है। कई पंचायतें सीमित प्रशासनिक अधिकारों, अपर्याप्त वित्तीय संसाधनों और प्रभावी नियोजन नियंत्रण के अभावों के साथ काम करती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्य शक्तियों के हस्तांतरण के लिए एक समयबद्ध रोडमैप तैयार करें। पंचायती राज मंत्रालय को यह सुझाव दिया गया है कि वह हर वर्ष ‘हस्तांतरण की स्थिति’ पर रिपोर्ट प्रकाशित करे। कमिटी ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को अनुदानों के तहत वित्तीय प्रोत्साहनों और योजनाओं को वास्तविक प्रगति से जोड़ना चाहिए।
- व्यय संबंधी स्वायत्तता: कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्य पंचायतों को अनटाइड फंड्स का नियमित, पर्याप्त और पारदर्शी हस्तांतरण सुनिश्चित करें। उसने सलाह दी कि पंचायतों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार इन फंड्स के उपयोग में स्वायत्तता दी जानी चाहिए, जिसमें उच्च प्रशासन का हस्तक्षेप न हो। कमिटी ने भविष्य में होने वाले हस्तांतरण के एक हिस्से को प्रदर्शन संकेतकों, जैसे सामुदायिक मांगों के प्रति संवेदनशीलता या नियोजित कार्यों के पूरा होने, से जोड़ने का भी सुझाव दिया।
- नियमित पंचायत चुनाव: कमिटी ने कहा कि पंचायत चुनावों में देरी या व्यवधान से धन के प्रभावी उपयोग और विकास कार्यों की निरंतरता में बड़ी रुकावट आती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि चुनाव समय पर और नियमित होने चाहिए। उसने यह भी सुझाव दिया कि अंतरिम अवधि में, राज्य सीमित कार्यकाल और जिम्मेदारियों वाले नामित प्रतिनिधियों या प्रशासकों की नियुक्ति पर विचार कर सकते हैं।
- राजस्व के अपने स्रोतों को बढ़ाना: पंचायतें और ग्रामीण स्थानीय निकाय अनुदानों पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं। वे संपत्ति और स्थानीय करों के माध्यम से भी अपना राजस्व जुटा सकते हैं। कमिटी ने कहा कि अनेक प्रयासों के बावजूद वे अपने आय स्रोतों को पर्याप्त रूप से विकसित नहीं कर पाए हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि पंचायतों को राजस्व सृजन क्षमता बढ़ाने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
- जिला योजना समितियों (डीपीसी) का समुचित संचालन: कमिटी ने कहा कि कई राज्यों ने या तो जिला योजना समितियों का गठन नहीं किया है या उन्हें निष्क्रिय ही रहने दिया है। कमिटी ने इस बात पर गौर किया कि मौजूदा जिला योजना समितियां अक्सर कई तरह की समस्याओं का शिकार रहती हैं, जैसे: (i) अनियमित बैठकें, (ii) प्रशासनिक और तकनीकी सहायता का अभाव, (iii) ग्रामीण और शहरी विकास योजनाओं का अपर्याप्त एकीकरण, और (iv) स्थानीय प्रतिनिधियों की सीमित भागीदारी। कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्यों को जिला योजना समितियों का तत्काल गठन और उनका संचालन सुनिश्चित करना चाहिए। कमिटी ने यह भी सुझाव दिया कि जिला योजना समितियों को एकीकृत जिला विकास योजनाएं तैयार करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। योजना के धनराशि आवंटन का एक हिस्सा जिला योजना समिति की योजनाओं से लिंक किया जाना चाहिए।
डिस्क्लेमर: प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।