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पीडीएफ

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री सप्तगिरि शंकर उलाका) ने 7 अगस्त, 2025 को 'प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। पात्र ग्रामीण बसाहटों को सड़कों के माध्यम से बारहमासी संपर्क प्रदान करने के लिए पीएमजीएसवाई को दिसंबर 2000 में शुरू किय़ा गया था। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • टेंडर्स में कम बोलियों पर रोक: पीएमजीएसवाई के तहत, सड़क परियोजनाओं के लिए टेंडर्स बोली के  जरिए हासिल किए जाते हैं। कमिटी ने कहा कि ठेकेदार अक्सर परियोजनाओं की बोली जीतने के लिए न्यूनतम बोली राशि से 25-30% कम राशि का भाव बताते हैं। कमिटी ने ग्रामीण विकास विभाग को एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करने का सुझाव दिया जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि बोली और वास्तविक बोली के बीच के अंतर के बराबर राशि जमानत के रूप में रखी जाए। अगर निर्मित सड़क गुणवत्ता मानदंडों को पूरा करती है तो यह राशि जारी की जा सकती है। कमिटी ने केंद्र सरकार को यह सुझाव भी दिया कि सड़कों की गुणवत्ता पर ऐसी कम बोलियों का क्या प्रभाव पड़ता है, इसका आकलन करने के लिए एक समिति का गठन किया जाए।

  • सड़क निर्माण की क्वालिटी: कमिटी ने गौर किया कि इस योजना के तहत कई जगहों पर सड़क निर्माण के मानकों का पालन नहीं किया गया और घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया। कमिटी ने विभाग को यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय करने का सुझाव दिया कि योजना के तहत निर्धारित गुणवत्ता मानदंडों का पालन किया जा रहा है।

  • सड़कों का रखरखाव: कमिटी ने कहा कि इस योजना के तहत, निर्माण के बाद पांच वर्षों तक सड़क के रखरखाव की ज़िम्मेदारी ठेकेदारों की होती है। कमिटी ने गौर किया कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत निर्मित सड़कों का रखरखाव ठीक से नहीं किया जाता और वे पांच वर्षों की अवधि के भीतर ही खराब हो जाती हैं। कमिटी ने विभाग को यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि निर्माण के बाद सड़कों के रखरखाव के संबंध में दिशानिर्देशों का पालन किया जाए। कमिटी ने यह भी सुझाव दिया कि दोषी ठेकेदारों को शॉर्टलिस्ट करके ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाना चाहिए।

  • कमिटी ने पीएमजीएसवाई के तहत सड़कों के आवधिक और अनिवार्य भौतिक निरीक्षण के लिए विशिष्ट टीमों के गठन का भी सुझाव दिया। जिन सड़कों की हालत पहले से ही खराब है, कमिटी ने एक समर्पित पहल के तहत उनके पुनर्वास या उन्हें नए पीएमजीएसवाई आवंटनों में शामिल करने का सुझाव दिया। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि निगरानी को मज़बूत करने और जवाबदेही बढ़ाने के लिए, विभाग हर छह महीने में सड़कों के रियल टाइम वीडियो वैरिफिकेशन जैसी पहल कर सकता है, और शुरुआती पांच वर्षों के दौरान औचक निरीक्षण बढ़ा सकता है।

  • संपर्करहित बसाहटों को जोड़ना: कमिटी ने कहा कि ग्रामीण संपर्क परियोजनाओं के तहत कई सड़कें केवल गांवों के बाहरी इलाकों तक ही पहुंचती हैं और उन जगहों तक नहीं पहुंचतीं, जहां ज्यादातर लोग रहते हैं। कमिटी ने विभाग को यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि पीएमजीएसवाई के तहत निर्मित सड़कें संपर्क रहित बस्तियों तक पहुंचें।

  • सड़कों की भार सहने की क्षमता को बढ़ाना: कमिटी ने कहा कि पीएमजीएसवाई के तहत बनी सड़कों का इस्तेमाल भारी वजन ढोने वाले वाहन भी करते हैं। कमिटी ने कहा कि इससे कम भार वाली ग्रामीण सड़कों को ऐसा नुकसान होता है जिसे सुधारा नहीं जा सकता। क्योंकि ये सड़कें भारी वाहनों का वजन सहने के लिए नहीं बनाई गई हैं। कमिटी ने क्षतिग्रस्त सड़कों की मरम्मत की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उसने सुझाव दिया कि भारी भार सहने करने के लिए सड़कों की मोटाई बढ़ाई जाए।

  • परियोजनाओं में विलंब: कमिटी ने कहा कि पीएमजीएसवाई के तहत बड़ी संख्या में परियोजनाएं निर्धारित समय-सीमा के भीतर पूरी नहीं हो पातीं, जिससे लागत बढ़ जाती है। कमिटी ने यह भी कहा कि पीएमजीएसवाई के वामपंथी अतिवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क संपर्क परियोजना के तहत, मई 2025 तक स्वीकृत सड़कों की लंबाई का केवल 78% ही पूरा हो पाया है। कमिटी ने इस समस्या के समाधान के लिए समय पर धनराशि जारी करने, अनुमोदन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और अन्य मंत्रालयों के साथ बेहतर तालमेल बिठाने का सुझाव दिया।

  • संशोधित सड़क सर्वेक्षण: कमिटी ने कहा कि पीएमजीएसवाई-IV सड़क सर्वेक्षण 2011 की जनगणना पर आधारित है, जो वर्तमान जनसंख्या, बस्तियों के विस्तार और बुनियादी ढांचे की ज़रूरतों को नहीं दर्शाता। कमिटी ने सुझाव दिया कि पीएमजीएसवाई-IV को नवीनतम उपलब्ध जनसंख्या आंकड़ों या अंतरिम आकलन के आधार पर संशोधित किया जाना चाहिए।   

 

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है

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