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पीडीएफ

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम का कार्यान्वयन

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • लोक लेखा कमिटी (चेयर: अधीर रंजन चौधरी) ने 15 मार्च, 2021 को प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के कार्यान्वयन पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। गैर कृषि क्षेत्रों में परंपरागत कारीगरों और बेरोजगार युवाओं के सूक्ष्म उद्यमों को क्रेडिट लिंक्ड सबसिडी देने के लिए 2008 में पीएमईजीपी को शुरू किया गया था। 2008 से 2016 के बीच भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा इस कार्यक्रम के ऑडिट पर यह रिपोर्ट आधारित है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • नोडल बैंक्स: कमिटी ने कहा कि 2016 में पीएमईजीपी के अंतर्गत धनराशि संवितरित करने वाला एक नोडल बैंक प्रस्तावित किया गया ताकि यह सुनिश्चित हो कि दावों की प्रोसेसिंग जल्द हो और धनराशि निष्क्रिय न पड़ी रहे। इसके लिए 2016 से 2020 के बीच कॉरपोरेशन बैंक को नोडल बैंक के तौर पर नियुक्त किया गया था। कमिटी ने कहा कि कॉरपोरेशन बैंक ने इस अवधि के लिए आबंटित राशि से अधिक राशि जारी की। कमिटी ने सुझाव दिया कि पीएमईजीपी के अंतर्गत दावों को वैलिडेट करने से पहले नोडल बैंक धनराशि को मंजूरी न दे, यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त जांच कराई जाए। 2020 में इंडियन बैंक को नोडल बैंक बनाया गया। कमिटी ने कहा कि 2020 तक बैंक ने 154 करोड़ रुपए संवितरित नहीं किए थे। उसने निर्धारित समयावधि का पालन करने का सुझाव दिया ताकि यह सुनिश्चित हो कि धनराशि लंबे समय तक बकाया न रहे।
     
  • अधिक ब्याज और ब्याज की दरें: ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (आरईजीपी) के अंतर्गत उद्यमों को रियायती ऋण और सरकारी सबसिडी दी जाती है। कमिटी ने गौर किया कि कुछ उद्यमों को दी जाने वाली सरकारी सबसिडी पर ब्याज वसूला जाता था। कमिटी ने सुझाव दिया कि उद्यमों से अतिरिक्त ब्याज न वसूला जाए, यह सुनिश्चित करने के लिए एक व्यवस्था बनाई जाए। उसने यह सुझाव भी दिया कि पीएमईजीपी पोर्टल पर ब्याज कैलकुलेटर प्रदर्शित किया जाए ताकि लाभार्थी अपने ब्याज को कैलकुलेट कर सकें। उसने यह भी कहा कि पीएमईजीपी के अंतर्गत आवेदकों पर एक समान और निम्न ब्याज दर लगाई जाए।
     
  • ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (आरईजीपी): प्रधानमंत्री रोजगार योजना और आरईजीपी का विलय करके पीएमईजीपी शुरू की गई थी। कमिटी ने कहा कि जबकि आरईजीपी को 2008 में बंद कर दिया गया था, 2011-12 में पीएमईजीपी के लिए धनराशि आबंटित की गई ताकि आरईजीपी के अंतर्गत पुराने दावों का निपटारा किया जा सके। कमिटी ने कहा कि 2011 में आरईजीपी को आबंटित धनराशि में से 12.5 करोड़ रुपए 2020 तक उपयोग नहीं किए गए थे। कमिटी ने सुझाव दिया कि जल्द से जल्द आरईजीपी के अंतर्गत लंबित दावों का निपटारा किया जाए।
     
  • भौतिक सत्यापन: परिचालन के पहले तीन वर्षों के लिए आरईजीपी के अंतर्गत प्रॉजेक्ट्स का भौतिक सत्यापन अनिवार्य है ताकि मंजूर किए गए प्रॉजेक्ट्स की निरंतरता सुनिश्चित की जा सके। कमिटी ने गौर किया कि भौतिक सत्यापन के लिए काफी अधिक बैकलॉग है। उसने नियत अवधि के बाद प्रॉजेक्ट के प्रदर्शन की निगरानी का सुझाव दिया ताकि (i) पीएमईजीपी के प्रभाव का आकलन किया जा सके और सुधार किए जा सकें, (ii) अच्छा प्रदर्शन करने वाली यूनिट्स की मदद की जा सके, (iii) घाटे में चलने वाली यूनिट्स को सहारा दिया जा सके।
  • लोन की मंजूरी की धीमी गति: कमिटी ने कहा कि ऑडिट अवधि के दौरान वित्तीय वर्ष की पहली दो तिमाहियों में बैंक लोन की मंजूरी की गति धीमी थी। इससे आखिरी तिमाही में काम बढ़ गया और इसके चलते खराब क्वालिटी के प्रॉजेक्ट्स को मंजूरी दे दी गई। कमिटी ने चेतावनी दी कि इससे नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स में बढ़ोतरी हो सकती है। उसने कहा कि आरबीआई के निर्देश के अनुसार, मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यमों को लोन्स की मंजूरी या उन्हें रद्द करने का काम 30 दिनों में हो जाना चाहिए। कमिटी ने सुझाव दिया कि इसका अनुपालन किया जाना चाहिए और पीएमईजीपी के अंतर्गत आवेदकों को सहयोग देने के लिए ई-पोर्टल पर नोडल अधिकारियों की सूची प्रकाशित की जानी चाहिए।
     
  • कोलेट्रल सुरक्षा: आरबीआई ने बैंकों के लिए अनिवार्य किया है कि 10 लाख रुपए तक के लोन्स के लिए कोलेट्रल सिक्योरिटी की मांग न करें। कमिटी ने कहा कि ऑडिट की अवधि के दौरान बैंकों ने इस प्रावधान का उल्लंघन किया और उसने सुझाव दिया कि इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
     
  • सेकेंड लोन्स: पीएमईजीपी के अंतर्गत उन यूनिट्स को उन्नत बनाने के लिए सबसिडी के साथ सेकेंड लोन्स दिए जा सकते हैं जो टर्नओवर, मुनाफे और लोन चुकाने जैसे मामलों में अच्छा प्रदर्शन कर रही हों। कमिटी ने कहा कि इस संबंध में उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं दी गई और उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) सेकेंड लोन का ऑफ टेक बढ़ाने के लिए दिशानिर्देशों में संशोधन, और (ii) निर्धारित अवधि में लोन चुकाने वाले उद्यमों का भौतिक सत्यापन करना, ताकि वे सेकेंड लोन के लिए आवेदन कर सकें।
     
  • जागरूकता: कमिटी ने सुझाव दिया कि पीएमईजीपी और उससे जुड़े सफल मामलों का क्षेत्रीय भाषाओं में प्रचार किया जाए जिससे उसकी पहुंच बढ़े। इसके अतिरिक्त उसने कहा कि संभावित उद्यमियों की मदद के लिए हेल्प डेस्क और छोटे कॉल सेंटर बनाए जाएं। इससे जागरूकता और पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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