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पीडीएफ

पुलिस प्रशिक्षण और सुधार

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • गृह मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: आनंद शर्मा) ने 10 फरवरी, 2022 को ‘पुलिस- प्रशिक्षण, आधुनिकीकरण और सुधार’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी है। पिछले चार दशकों में पुलिस सुधारों की जांच के लिए कई आयोग बनाए गए। इनमें राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977, चेयर:धरम वीर), क्रिमिनल जस्टिस प्रणाली के सुधार पर गठित कमिटी (2003, चेयर: डॉ. वी.एस. मलिमथ) और पुलिस के पुनर्गठन पर केंद्रित कमिटी (2000, चेयर: के. पद्मनाभैया) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (बीपीआरएंडडी) ने भी बीते सालों में पुलिस प्रणाली में सुधार के लिए कई सुझाव दिए हैं। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • पुलिस प्रशिक्षण: कमिटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों में सॉफ्ट स्किल विकसित करने और उनमें व्यवहारगत बदलाव की जरूरत है, साथ ही अपराधों को सुलझाने के लिए नई तकनीक को समझने और उसे इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए। कमिटी ने मौजूदा प्रशिक्षण कार्यक्रमों में कई परिवर्तनों का सुझाव दिया, जैसे (i) आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, ड्रोन टेक्नोलॉजी, फॉरेंसिक और बैलिस्टिक साइंस पर केंद्रित कार्यक्रमों को शामिल करना, (ii) गिरफ्तारी से जुड़ी प्रक्रियाओं और गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकारों पर जोर देना, (iii) कानूनों के अपडेट्स को शामिल करना, और (iv) आदिवासियों और दूसरे कमजोर वर्गों के स्थानीय रिवाजों पर ट्रेनिंग मैनुअल तैयार करना। 
     
  • यूनिवर्सिटीज़ से जोड़ना: कमिटी ने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय राज्य को सलाह दे सकता है कि वह पुलिस स्टेशनों के एक क्लस्टर को किसी विशेष यूनिवर्सिटी से लिंक कर सकता है। उसने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय राज्य सरकारों को अपने यहां अधिक संख्या में पुलिस यूनिवर्सिटी खोलने में सहयोग कर सकता है। ये यूनिवर्सिटीज़ अपराध, क्रिमिनल जस्टिस, सार्वजनिक सुरक्षा और सुरक्षा से संबंधित क्षेत्रीय मुद्दों पर शोध कर सकती हैं। 
     
  • कॉमन ट्रेनिंग मॉड्यूल: कमिटी ने कहा कि पुलिस प्रशिक्षण के सामान्य न्यूनतम मानदंड को बरकरार रखा जाना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि बीपीआरएंडडी एक कॉमन ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार कर सकता है और उसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा कर सकता है। केंद्र और राज्य पुलिस प्रशिक्षण अकादमियों की ऑनलाइन लाइब्रेरी बनाई जा सकती है और उसे देश में उपलब्ध कराया जा सकता है। 
     
  • टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल: कमिटी ने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय को निम्नलिखित के लिए मानवरहित एरियल वाहनों को तैनात करने हेतु राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से सहयोग करना चाहिए: (i) वीवीआईपी सुरक्षा, (ii) क्राइम हॉटस्पॉट्स का सर्विलांस, (iii) भीड़ नियंत्रण और दंगा प्रबंधन, और (iv) आपदा प्रबंधन। कमिटी ने सुझाव दिया कि अदालतों, जेलों और फॉरेंसिक्स के साथ क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (सीसीटीएनएस) को एकीकृत करने के लिए गृह मंत्रालय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दे सकता है, ताकि वर्क्स का डुप्लिकेशन और त्रुटियों को कम किया जा सके। इसके अतिरिक्त गृह मंत्रालय राज्यों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और पुलिसिंग के लिए बिग डेटा जैसी तकनीकों का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय राज्यों को सभी जिलों में साइबर सेल्स बनाने की सलाह दे सकते हैं जोकि साइबर अपराध के हॉटस्पॉट्स को मैप करें। 
     
  • राज्य पुलिस बलों में रिक्तियां: कमिटी ने कहा कि राज्य पुलिस बलों में कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या 26.2 लाख है, लेकिन उसमें करीब 21% की कमी है। इससे कर्मचारी तनावपूर्ण परिस्थितियों में ओवरटाइम काम करते हैं और पुलिस बल की कार्य क्षमता पर असर होता है। उसने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को एक केंद्रित मिशन के रूप में पुलिस भर्ती अभियान चलाने और विभिन्न पदों पर पुलिसकर्मियों की भर्ती के प्रशासनिक अवरोधों को हटाने की सलाह दे सकता है। इसके अतिरिक्त गृह मंत्रालय बीपीआरएंडडी को एक ऐसा अध्ययन करने को कह सकता है जिससे यह पता चले कि पुलिस का कौन सा जरूरी प्रशिक्षण वाला काम आउटसोर्स किया जा सकता है।
     
  • मॉडल पुलिस एक्ट, 2006 को अपनाना: कमिटी ने कहा कि मॉडल पुलिस एक्ट को 2006 में सभी राज्यों में फॉरवर्ड किया गया था। तब से 17 राज्यों ने मॉडल एक्ट को लागू किया है या अपने मौजूदा पुलिस एक्ट्स में संशोधन किए हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय बाकी के राज्यों से फीडबैक ले सकता है और इस बात पर जोर दे सकता है कि वे इस एक्ट को लागू करें। इसके अतिरिक्त गृह मंत्रालय उन 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ सहयोग कर सकता है जिन्होंने पुलिस सुधारों पर मुशाहारी कमिटी के सुझावों को लागू नहीं किया ताकि वे उन सुझावों के संबंध में अपनी मौजूदा स्थिति को प्रस्तुत कर सकें। 
     
  • स्वतंत्र पुलिस शिकायत अथॉरिटी: कमिटी ने कहा कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों से निपटने के लिए 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने राज्य और जिला स्तर पर पुलिस शिकायत अथॉरिटीज़ (पीसीए) बनाई हैं। कमिटी ने कहा कि पीसीए पुलिस बल से अलग स्थापित किया जाना चाहिए। इसलिए उसने सुझाव दिया कि विधि एवं न्याय मंत्रालय के साथ गृह मंत्रालय राज्यों से सहयोग कर सकता है ताकि पीसीए का स्वतंत्र संयोजन सुनिश्चित हो सके। पीसीए में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, सेवानिवृत्त वरिष्ठ लोक सेवक और प्रतिष्ठित ज्यूरी शामिल होने चाहिए और इनमें महिलाओं को पूरा प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि गृह मंत्रालय राज्यों को सलाह दे सकता है कि पुलिस के आंतरिक शिकायत निवारण प्रकोष्ठ को समयबद्ध तरीके से काम करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि पीड़ित पुलिसकर्मियों की शिकायतें समय पर दूर हों। 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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