स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- शहरी विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: जगदंबिका पाल) ने 6 अगस्त, 2021 को ‘फुटपाथी दुकानकार (जीविका का संरक्षण और फुटपाथी बिक्री का रेगुलेशन) एक्ट, 2014 का कार्यान्वयन’ विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। एक्ट निम्नलिखित का प्रावधान करता है: (i) फुटपाथी दुकानदारों की जीविका के अधिकारों का संरक्षण, (ii) फुटपाथी दुकानदारों के लिए सामाजिक सुरक्षा, और (iii) भारत में फुटपाथी बिक्री का रेगुलेशन। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- राज्यों द्वारा कानून को लागू करना: कमिटी ने कहा कि अनेक राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) ने अब तक एक्ट के कई प्रावधानों को लागू नहीं किया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि कानून के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा करने और कार्यान्वयन की अच्छी पद्धतियो को साझा करने के लिए एक मॉनिटरिंग कमिटी बनाई जाए। उसने यह सुझाव भी दिया कि स्वच्छ सर्वेक्षण की तर्ज पर एक वार्षिक सर्वेक्षण किया जाना चाहिए ताकि एक्ट के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए शहरी स्थानीय निकायों को पुरस्कृत किया जा सके।
- फुटपाथी दुकानदारों का रजिस्ट्रेशन: कमिटी ने कहा कि पहचान पत्र और बिक्री सर्टिफिकेट्स से फुटपाथी दुकानदारों को निर्दिष्ट बिक्री क्षेत्र में कारोबार करने का कानूनी अधिकार मिलता है। लेकिन सभी फुटपाथी दुकानदारों को पहचान पत्र और बिक्री सर्टिफिकेट्स जारी नहीं किए गए हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि इन दुकानदारों को संबंधित सूचना (जैसे पहचान और बिक्री सर्टिफिकेट के विवरण) वाले स्मार्ट कार्ड दिए जाएं जोकि पेपर वाले डॉक्यूमेंट्स की तुलना में ज्यादा टिकाऊ होंगे।
- टाउन वेंडिंग कमिटी (टीवीसीज़): एक्ट राज्य सरकारों को अधिकार देता है कि वे टीवीसीज़ बना सकती हैं ताकि: (i) फुटपाथी दुकानदारों की पहचान की जा सके, (ii) बिक्री सर्टिफिकेट्स जारी किए जा सकें, और (iii) दुकानदारों के रिकॉर्ड्स रखे जा सकें। कमिटी ने कहा कि कई राज्यों में टीसीवी नहीं बनाई गई हैं। इस वजह से फुटपाथी दुकानदारों को बेदखल करना संभव है। कमिटी ने इन राज्यों में जल्द से जल्द टीवीसीज़ बनाने का सुझाव दिया। उसने कहा कि टीवीसीज़ की सलाह के बिना कोई बेदखली या पुनर्स्थापन नहीं किया जाना चाहिए।
- टीवीसीज़ में प्रतिनिधित्व: कमिटी ने कहा कि टीवीसी के 60% सदस्यों में सरकारी प्रतिनिधि शामिल हैं जिन्हें राज्य सरकारों ने नामित किया है। इससे फुटपाथी दुकानदारों की वास्तविक समस्याओं की अवहेलना हो सकती है। इसके अतिरिक्त यह कहा गया कि एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि टीवीसीज़ में निर्वाचित प्रतिनिधियों का समावेश सुनिश्चित हो। कमिटी ने सुझाव दिया कि स्थानीय निकायों, राज्य विधानमंडलों और संसद के निर्वाचित प्रतिनिधियों को पदेन सदस्यों, या स्थायी आमंत्रितों (इनवाइटी) या पर्यवेक्षकों के तौर पर शामिल किया जा सकता है। टीवीसीज़ में दुकानदारों के प्रतिनिधियों का नियमित निरीक्षण होना चाहिए और आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रतिनिधियों का डेटाबेस बनाया जाना चाहिए।
- फुटपाथी बिक्री की योजना: एक्ट में स्थानीय अथॉरिटीज़ से यह अपेक्षित है कि वे फुटपाथी बिक्री से संबंधित विषयों पर काम करने के लिए फुटपाथी बिक्री योजना बनाएं। इन विषयों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बिक्री क्षेत्रों की पहचान, (ii) फुटपाथी दुकानदारों के लिए स्थान विशेष योजनाएं, और (iii) वस्तुओं और सेवाओं के कुशल एवं लागत प्रभावी वितरण के लिए उपाय करना। कमिटी ने कहा कि कानून के लागू होने के बाद से विभिन्न राज्यों के 4,315 शहरों में से सिर्फ 1,341 शहरों (31%) ने एक्ट के अंतर्गत किसी योजना को अधिसूचित किया है और कार्यक्रम तैयार किए हैं। नौ राज्यों (इनमें असम, मेघालय और सिक्किम शामिल हैं) ने कोई बिक्री योजना नहीं बनाई। असम जैसे कुछ राज्यों ने बिक्री योजना बनाए बिना बिक्री क्षेत्र अधिसूचित किए हैं।
- स्मार्ट सिटी मिशन के साथ एकीकरण: कमिटी ने कहा कि कई शहरों को स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित किया गया या उनमें मास्टर प्लान बनाया जा रहा है लेकिन इस दौरान फुटपाथी दुकानदारों के बारे में नहीं सोचा जा रहा। उसने आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय को निम्नलिखित के संबंध में दिशानिर्देश जारी करने का सुझाव दिए: (i) विकास संबंधी मिशन्स और शहरी योजना प्रक्रिया के साथ एक्ट को एकीकृत करना, (ii) स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत प्रॉजेक्ट्स की योजना बनाने के दौरान टीवीसीज़ से सलाह करना, और (iii) शहर के लिए मास्टर प्लान बनाने वाली कमिटी में फुटपाथी दुकानदारों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
- शिकायत निवारण कमिटी (जीआरसीज़): कमिटी ने कहा कि फुटपाथी दुकानदारों का भरोसा हासिल करने और प्रक्रियाओं की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जीआरसीज़ महत्वपूर्ण हैं। कमिटी ने कहा कि केवल नौ राज्यों ने जीआरसीज़ बनाई हैं (असम, केरल और पंजाब सहित)। उसने सुझाव दिया कि शिकायत निवारण प्रक्रियाओं में पता लगाने, जवाबदेही तथा पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए वेबसाइट या मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किए जाने चाहिए।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।