स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- जल संसाधन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: संजय जैसवाल) ने ‘देश में बाढ़ प्रबंधन और चीन, पाकिस्तान एवं भूटान के साथ संधि/समझौते के विशेष संदर्भ के साथ जल संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय जल संधियां’ विषय पर 5 अगस्त, 2021 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- समवर्ती सूची के अंतर्गत बाढ़ नियंत्रण: कमिटी ने कहा कि संविधान के अंतर्गत बाढ़ नियंत्रण का काम संबंधित राज्य के क्षेत्राधिकार में आता है। चूंकि अधिकतर नदियां कई राज्यों में बहती हैं, इसलिए किसी एक राज्य के बाढ़ नियंत्रण उपायों का असर कई राज्यों पर पड़ता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को बाढ़ नियंत्रण और प्रबंधन को संविधान की समवर्ती सूची में रखने पर आम सहमति कायम करनी चाहिए।
- कानून: कमिटी ने सुझाव दिया कि जल शक्ति मंत्रालय जल्द से जल्द बांध सुरक्षा बिल और नदी घाटी प्रबंधन बिल को पारित करवाए। ये दोनों बिल बाढ़ को कम करने के अतिरिक्त जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग और प्रभावी प्रबंधन का प्रावधान करते हैं। कमिटी ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने डूब क्षेत्र की जोनिंग करने वाले एक मॉडल बिल को सभी राज्यों में सर्कुलेट किया था। कमिटी ने गौर किया कि बाढ़ की आशंका वाले राज्यों ने इस कानून को नहीं अपनाया है। उसने सुझाव दिया कि राज्यों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखकर मॉडल बिल में संशोधन किए जाएं और जिन राज्यों में इसे लागू किया जाए, उनके लिए एक मुआवजा व्यवस्था का प्रावधान किया जाए।
- राष्ट्रीय एकीकृत बाढ़ प्रबंधन समूह: कमिटी ने सुझाव दिया कि जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय एकीकृत बाढ़ प्रबंधन समूह की स्थापना की जाए जो बाढ़ नियंत्रण के लिए जिम्मेदार व्यापक निकाय होगा। समूह में सदस्य के रूप में राज्यों के संबंधित मंत्री शामिल हो सकते हैं जो साल में कम से कम एक बार बैठक जरूर करें। यह निम्नलिखित के लिए जिम्मेदार होना चाहिए: (i) बाढ़ की रोकथाम और शमन के लिए रणनीतियां बनाना, और (ii) बाढ़ के प्रबंधन की निगरानी करना, जिसमें राज्यों या स्थानीय सरकारों द्वारा नियंत्रित पहलु तथा अंतरराष्ट्रीय लिंकेज के अंतर्गत आने वाले पहलू शामिल हैं।
- फंडिंग: कमिटी ने कहा कि बाढ़ नियंत्रण के कार्यक्रमों की फंडिंग में केंद्र सरकार का हिस्सा कम हो गया है। यह सामान्य राज्यों में 75% से घटकर 50% हो गया है, और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए 90% से घटकर 70% हो गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि बाढ़ प्रबंधन योजनाओं की फंडिंग में केंद्र सरकार का हिस्सा बढ़ाया जाए और इसके लिए पर्याप्त बजटीय सहयोग प्रदान किया जाए।
- बाढ़ नियंत्रण की योजना: कमिटी ने सुझाव दिया कि बाढ़ नियंत्रण के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया जाए जोकि भूक्षरण को रोक सके और भूमिगत जल के रिसाव को बढ़ावा दे। कमिटी ने निम्नलिखित से संबंधित रणनीति तैयार करने का सुझाव दिया: (i) कैचमेंट एरिया यानी जलग्रहण क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पतियों और मिट्टी को जमाना और उनका संरक्षण, (ii) खेती के ऐसे तरीकों का अपनाना जो बाढ़ के पानी का बेहतर इस्तेमाल कर सकें, (iii) सूखे पड़े झरनों में पानी भरना, (iv) भूमिगत जल स्तर का पुनर्भरण और बेहतर भूमिगत जल रिसाव को सुनिश्चित करना, और (v) एकीकृत नदी घाटी प्रबंधन योजना विकसित करना।
- पूर्वोत्तर में बाढ़: कमिटी ने कहा कि असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र में हर साल विनाशकारी बाढ़ आती हैं। इन इलाकों में बाढ़ पर काबू पाने के लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) बाढ़ को रोकने के लिए कदम उठाना (बाढ़ का पूर्वानुमान मॉडल, जलाशयों की गाद निकालना, मौसम स्टेशंस बनाना), (ii) जल संसाधनों का प्रबंधन (नदी घाटी संगठन, नदी घाटी प्रबंधन अथॉरिटी बनाना, पूर्वोत्तर जल प्रबंधन अथॉरिटी बिल को लागू करना, ब्रह्मपुत्र बोर्ड में रिक्तियों को भरना), और (iii) नदी के क्षरण के लिए सहायता प्रदान करना।
- अंतरराष्ट्रीय संधियां: सिंधु जल संधि, 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच जल को साझा करने की प्रणाली तैयार की गई थी। कमिटी ने कहा कि इसके अंतर्गत पूर्वी नदियों (सतलुज, व्यास और रावि) तक भारत की अप्रतिबंधित पहुंच है, जबकि पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चेनाब) के पानी को खेती और जल विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के लिए गैर उपभोग्य तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। कमिटी ने कहा कि भारत पूर्वी नदियों के पहुंच योग्य पानी और पश्चिमी नदियों की जल विद्युत क्षमता का पूरा उपयोग नहीं करता। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को पाकिस्तान के साथ संधि पर फिर से बातचीत करने के लिए कूटनीतिक उपाय करने चाहिए ताकि सिंधु घाटी में पानी की उपलब्धता पर जलवायु परिवर्तन के असर को कम किया जा सके। कमिटी ने ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन की कार्रवाई पर निगरानी रखने का सुझाव भी दिया। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि चीन ऐसी कोई पहल नहीं कर रहा जोकि भारत के हितों को प्रभावित करे।
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