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पीडीएफ

भूजल: एक मूल्यवान, किंतु घटता संसाधन

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • जल संसाधन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री परबतभाई सवाभाई पटेल) ने 17 मार्च, 2023 को ‘भूजल: एक मूल्यवान, किंतु घटता संसाधन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • केंद्रीय निकाय का गठन: राज्य और केंद्रीय, दोनों स्तरों पर कई निकाय वर्तमान में पानी से संबंधित मुद्दों के लिए जिम्मेदार हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं (i) केंद्रीय मंत्रालय जैसे कि जल शक्ति, ग्रामीण विकास और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय; (ii) राज्य विभाग, (iii) राज्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड; और (iv) केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी और केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) जैसे समर्पित प्राधिकरण। कमिटी ने गौर किया कि उनके बीच समन्वय की कमी है और सुझाव दिया कि जल शक्ति मंत्रालय ऊपर वर्णित संस्थाओं के प्रतिनिधित्व के साथ एक केंद्रीय निकाय का गठन करे।

  • कानून: 1970 में सर्कुलेट किए गए एक मॉडल बिल के आधार पर 19 राज्यों में भूजल प्रबंधन पर कानून पारित किए गए हैं, और अंतिम बार 2005 में उसमें संशोधन किया गया है। कमिटी ने कहा कि दिशानिर्देशों के अभाव में इन कानूनों को लागू करने में कठिनाइयां हुईं। उन्होंने सुझाव दिया कि जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग इस संबंध में तत्काल कार्रवाई करे।

  • सिंचाई: कमिटी ने कहा कि सिंचाई के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भरता है क्योंकि धान और गन्ना जैसी जल-गहन फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) अधिक होता है। किसानों को वित्तीय सहायता और सिंचाई के लिए मुफ्त या रियायती बिजली प्रदान करने वाली योजनाओं ने इस समस्या को बढ़ाया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग को कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के साथ मिलकर काम करना चाहिए जिससे कम पानी की खपत वाली फसलों और खेती के तरीकों को बढ़ावा दिया जा सके।

  • भूजल प्रदूषण: कमिटी ने कहा कि औद्योगिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप भूजल प्रदूषण बढ़ा है। उसने सुझाव दिया कि जल जीवन मिशन (जेजेएम), जिसका उद्देश्य परिवारों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है, के तहत अधिक धनराशि भूजल प्रदूषण वाले क्षेत्रों को आवंटित की जा सकती है। कमिटी ने यह भी गौर किया कि भूजल प्रदूषण को दूर करने के लिए जिम्मेदार निकायों, उदाहरण के लिए राज्य सरकार के विभागों, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स और सीजीडब्ल्यूए जैसी एजेंसियों के बीच डेटा शेयरिंग और समन्वय की कमी है। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रस्तावित केंद्रीय भूजल प्राधिकरण को उनके बीच समन्वय करना चाहिए, और भूजल प्रदूषण पर एक नीति तैयार करनी चाहिए। कमिटी ने पाया कि कर्मचारियों और संसाधनों की कमी राज्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स के कामकाज में बाधा डालती है, और सुझाव दिया कि इनका समाधान किया जाए। कमिटी ने जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) एक्ट, 1974 में संशोधन का भी सुझाव दिया ताकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड औद्योगिक इकाइयों को एकदम बंद करने की बजाय कम कठोर सजा के रूप में आर्थिक दंड लगा सकें।

  • भूजल का पुनर्भरण (रीचार्जिंग): महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी योजनाएं भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए परियोजनाओं को लागू करती हैं। इसके यह मायने हैं कि भूजल की रीचार्जिंग के लिए स्ट्रक्चर्स का निर्माण करना। कमिटी ने इन योजनाओं में संशोधन का सुझाव दिया ताकि मौजूदा जलाशयों का कायाकल्प किया जा सके। शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन के जरिए भूजल के पुनर्भरण की योजनाएं हैं, जैसे कि अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत)। कमिटी ने सुझाव दिया कि जल शक्ति मंत्रालय इन प्रयासों का समन्वय करे। जलाशयों के रखरखाव के लिए शहरी स्थानीय निकायों को अधिक धन दिया जाना चाहिए। अटल भूजल योजना भूजल प्रबंधन से संबंधित परियोजनाओं के लिए राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों (जैसे ग्राम पंचायत) को केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान करती है। चूंकि इसे वर्तमान में केवल सात राज्यों में प्रायोगिक तौर पर चलाया जा रहा है, इसलिए कमिटी ने सुझाव दिया कि उन सभी राज्यों में इस योजना को चलाया जाए जो भूजल की कमी का सामना कर रहे हैं।

  • जलवायु परिवर्तन: राष्ट्रीय सौर मिशन और अन्य के साथ राष्ट्रीय जल मिशन जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना को लागू करने वाले अभियानों में से एक है। यह जल संसाधनों के संरक्षण, कुशल प्रबंधन और समान वितरण पर रणनीति तैयार करने और इस उद्देश्य के लिए केंद्र सरकार के विभागों के बीच समन्वय के लिए जिम्मेदार है। कमिटी ने कहा कि इस अभियान में धन और स्वायत्तता की कमी है, और सुझाव दिया कि इस संबंध में इसे मजबूत किया जाए।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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