स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- विदेशी मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: पी.पी. चौधरी) ने 10 सितंबर, 2021 को ‘भारत और द्वीपक्षीय निवेश संधियां’ विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। द्विपक्षीय निवेश संधियां (बीआईटीज़) दो देशों के बीच पारस्परिक समझौते होते हैं जिनके अंतर्गत वे एक दूसरे के परिक्षेत्रों में विदेशी निजी निवेश को प्रोत्साहित एवं संरक्षित करते हैं। बीआईटीज़ दो देशों के बीच विदेशी निवेश के तरीके से संबंधित न्यूनतम गारंटी निर्धारित करते हैं, जैसे विदेशी निवेशकों और भारतीय कंपनियों के साथ एक जैसा व्यवहार करना, अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार निष्पक्ष और समानतापूर्ण बर्ताव करना और संपत्ति की जब्ती से सुरक्षा, यानी किसी देश की उसके क्षेत्र में विदेशी निवेश को अधिग्रहित करने की क्षमता को सीमित करना। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- बीआईटीज़ का दर्जा: कमिटी ने कहा कि 2015 तक भारत ने 83 देशों के साथ बीआईटी पर हस्ताक्षर किए थे (इनमें से 74 प्रभावी हैं)। इन सभी बीआईटीज़ पर 1993 के भारतीय मॉडल बीआईटी के आधार पर समझौता किया गया था। 2015 में भारत अपने मॉडल बीआईटी में संशोधन किया था। कमिटी ने कहा कि तब से, भारत ने (i) सिर्फ चार देशों के साथ नए बीआईटी/निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और 37 देशों/ब्लॉक्स के साथ बातचीत चल रही है, तथा (ii) 77 देशों के साथ पुराने बीआईटीज़ को रद्द किया गया है (यानी सिर्फ छह देशों के साथ पुराने बीआईटी प्रभावी हैं)।
- कमिटी ने गौर किया कि 2015 के बाद से भारत ने जिन बीआईटीज़/निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और जिन पर बातचीत चल रही है, उनकी संख्या पर्याप्त नहीं है। उसने कहा कि बीआईटीज़ में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने की क्षमता है। इससे संभावित निवेशकों को निवेश करने का भरोसा मिलता है। इसके मद्देनजर कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) उन देशों के साथ बीआईटीज़ पर हस्ताक्षर करना जिनके साथ भारत पहले ऐसी संधियां कर चुका है, (ii) प्राथमिकता वाले चिन्हित क्षेत्रों में चुनींदा बीआईटीज़ करना, और (iii) विदेश मंत्रालय द्वारा दूसरे मंत्रालयों/विभागों के सहयोग से संधि वार्ता को जल्द पूरा करना।
- बीआईटी के अंतर्गत आर्बिट्रेशन: बीआईटीज़ निवेशकों और जिस देश में निवेश किया गया है, उस देश के बीच विवादों को सुलझाने के लिए एक प्रक्रिया प्रदान करते हैं। विवादों को सुलझाने का सबसे पसंदीदा तरीका आर्बिट्रेशन है जिसमें दोनों पक्ष इस बात पर सहमत होते हैं कि अदालत में जाने की बजाय उनके विवाद पर एक तटस्थ व्यक्ति (आर्बिट्रेटर) फैसला दे। कमिटी ने कहा कि अब तक विभिन्न बीआईटीज़ के तहत भारत के खिलाफ विवाद से संबंधित 37 नोटिस या पत्र मिल चुके हैं। हालांकि अब तक सिर्फ एक मामले पर फैसला आया है जोकि भारत के खिलाफ था। इस फैसले के परिणामस्वरूप भारत सरकार को काफी बड़ी रकम चुकानी पड़ी। भविष्य में ऐसे नुकसान से बचने के लिए कमिटी ने यह सुझाव दिया कि आर्बिट्रेशन से पहले सलाह-मशविरे या बातचीत के जरिए विवाद को समय रहते सुलझाया जाए।
- नियमों और प्रक्रियाओं के आधार पर आर्बिट्रेशन संस्थागत हो सकता है (जो आर्बिट्रल संस्था में नियमों के हिसाब से किया जाए) या तदर्थ (एडहॉक) (जिसे दोनों पक्ष मिलकर आयोजित करें)। कमिटी ने कहा कि विदेश मंत्रालय ने परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (पीसीए) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके तहत पीसीए भारत में आर्बिट्रेशन कर सकता है। पीसीए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद निवारण की सबसे पुराना संस्था है। कमिटी के अनुसार, मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समझौता जल्द लागू हो ताकि भारत अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन का हब बन सके।
- मॉडल बीआईटी, 2015 के प्रावधान: कमिटी ने कहा कि हालांकि मॉडल बीआईटी, 2015 में पहले के बीआईटीज़ के मुकाबले बेहतर है, फिर भी कुछ प्रावधानों में कुछ परिवर्तनों की गुंजाइश है (जैसे निवेशक-देश के बीच विवाद निवारण प्रक्रिया से संबंधित प्रावधान)। उसने सुझाव दिया कि (i) मॉडल बीआईटी को बीआईटीज़ में उठने वाले विवादों से जुड़े नए अनुभवों के मद्देनजर संशोधित किया जाना चाहिए, (ii) मॉडल बीआईटी की निरंतर समीक्षा होनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि वह संतुलित और विस्तृत है, और (iii) विकसित देशों की बीआईटीज़ के कार्यान्वयन और परिणामों का विस्तृत अध्ययन करके, उनकी बेहतर कार्यपद्धतियों और प्रावधानों को मॉडल बीआईटी में शामिल किया जाना चाहिए।
- बीआईटीज़ की ड्राफ्टिंग: कमिटी ने सुझाव दिया कि बीआईटीज़ को किसी अस्पष्टता के बिना ड्राफ्ट किया जाना चाहिए ताकि निम्नलिखित से बचा जा सके: (i) आर्बिट्रेटर्स और ट्रिब्यूनल्स की व्यापक व्याख्या, (ii) भारत के खिलाफ निवेश संबंधी विवाद या दावे, और (iii) निवेशकों द्वारा कुछ प्रावधानों का दुरुपयोग।
- स्थानीय विशेषज्ञता विकसित करना: कमिटी ने कहा कि चूंकि भारत में जरूरी विशेषज्ञता और अनुभव वाले वकील/जज पर्याप्त संख्या में नहीं हैं, इसलिए निवेश संबंधी आर्बिट्रेशन में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए विदेशी वकीलों और लॉ फर्मों को मोटी फीस चुकाई जाती है। उसने देसी वकीलों (और लॉ फर्मों) के पैनल विकसित करने का सुझाव दिया (i) जिनमें निवेश संबंधी आर्बिट्रेशन में भारत का प्रतिनिधित्व करने की जरूरी विशेषज्ञता हो, और (ii) बीआईटीज़ की अच्छी ड्राफ्टिंग को सुनिश्चित करने के लिए निवेश संधि कानून का अनुभव हो। उसने निवेश संधियों के क्षेत्र में सरकारी अधिकारियों को प्रशिक्षित करने और नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय आर्बिट्रेशन केंद्र को विश्व स्तरीय आर्बिट्रेशन केंद्र के रूप में बढ़ावा देने का भी सुझाव दिया।
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