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पीडीएफ

भारत की पड़ोसी प्रथम नीति

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • विदेशी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री पी.पी. चौधरी) ने 25 जुलाई, 2023 को 'भारत की पड़ोसी प्रथम (नेबरहुड फर्स्ट) नीति' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। पड़ोसी प्रथम नीति की अवधारणा 2008 में अस्तित्व में आई थी। अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे कुछ प्राथमिकता वाले देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए इस अवधारणा की कल्पना की गई थी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • आतंकवाद और गैरकानूनी प्रवास: कमिटी ने कहा कि पिछले तीन दशकों में भारत को अपने निकटतम पड़ोस से खतरों, तनाव और आतंकवादी और उग्रवादी हमलों की आशंकाओं का सामना करना पड़ा है। अवैध प्रवास और हथियारों एवं नशीली पदार्थों की तस्करी की चुनौतियों के लिए सीमाओं पर बेहतर सुरक्षा अवसंरचना की जरूरत है। कमिटी ने सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध प्रवास के कारण होने वाले जनसांख्यिकीय परिवर्तनों की निगरानी का सुझाव दिया। अवैध प्रवास को रोकने के लिए विदेश मंत्रालय को गृह मंत्रालय और राज्य सरकारों के साथ निकटता से समन्वय करना चाहिए।

  • चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध: चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध विवादास्पद मुद्दों से ग्रस्त रहे हैं। पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद चिंता का मुख्य विषय है। कमिटी ने क्षेत्रीय और बहुपक्षीय संगठनों के साथ जुड़ने का सुझाव दिया ताकि आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की भूमिका के प्रति उन्हें संवेदनशील बनाया जा सके। पड़ोसी प्रथम नीति के तहत आतंकवाद से मुकाबले के लिए एक साझा मंच स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि सरकार को पाकिस्तान के साथ आर्थिक संबंध स्थापित करने चाहिए।

  • सीमा अवसंरचना में निवेश: कमिटी ने भारत की सीमा अवसंरचना की कमी और सीमावर्ती क्षेत्रों को स्थिर और विकसित करने की जरूरत पर गौर किया। भारत के पड़ोसियों के साथ जुड़ाव के लिए कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर, जैसे सीमा पारीय सड़कों, रेलवे और अंतर्देशीय जलमार्ग और बंदरगाहों में सुधार की जरूरत है। उसने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के तहत कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए क्षेत्रीय विकास फंड बनाने की व्यावहारिकता तलाशने का सुझाव दिया।

  • भारत की लाइन ऑफ क्रेडिट (एलओसी) परियोजनाओं की निगरानी: भारत का अपने पड़ोसियों के लिए एलओसी 2014 में 3.3 बिलियन USD से बढ़कर 2020 में 14.7 बिलियन USD हो गया। कमिटी ने कहा कि भारत का 50% वैश्विक सॉफ्ट लेंडिंग उसके पड़ोसियों को जाता है। उसने विदेश मंत्रालय को नियमित निगरानी के माध्यम से ऐसी एलओसी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए प्रभावी कदम उठाने का सुझाव दिया। संयुक्त परियोजना निगरानी समितियों और निरीक्षण तंत्र को मजबूत करके पड़ोसी देशों में विकास परियोजनाओं को समय पर पूरा किया जाना चाहिए।

  • रक्षा और समुद्री सुरक्षा: रक्षा सहयोग भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों की कुंजी है। मालदीव, म्यांमार और नेपाल जैसे विभिन्न देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किए जाते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को भारत के विस्तारित पड़ोस में समुद्री क्षेत्र में जागरूकता बढ़ाने के लिए पहल करनी चाहिए।

  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में विकास: एक्ट ईस्ट पॉलिसी एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विस्तारित पड़ोस पर केंद्रित है। भारत का उत्तर पूर्वी क्षेत्र कई पड़ोसी देशों के साथ जमीनी सीमा साझा करता है। उत्तर पूर्वी राज्यों का आर्थिक विकास नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी और एक्ट ईस्ट पॉलिसी की सफलता का अभिन्न अंग है। कमिटी ने मंत्रालय को इन दोनों नीतियों के बीच तालमेल बनाए रखने का सुझाव दिया। इससे उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की कनेक्टिविटी, आर्थिक विकास और सुरक्षा में सुधार करने में मदद मिल सकती है।

  • पर्यटन को बढ़ावा: 2020 से भारत मालदीव में पर्यटकों के आगमन का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। बांग्लादेश से बड़ी संख्या में पर्यटक इलाज के लिए भारत आते हैं। कई भारतीय धार्मिक पर्यटन के लिए भी नेपाल जाते हैं। कमिटी ने नेबरहुड फर्स्ट नीति के तहत चिकित्सा पर्यटन सहित पर्यटन में निवेश को बढ़ावा देने का सुझाव दिया।

  • बहुपक्षीय संगठन: भारत अपने पड़ोसियों के साथ बहुपक्षीय और क्षेत्रीय संगठनों के जरिए भी जुड़ा हुआ है। इनमें दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) और बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) शामिल हैं। कमिटी ने कहा कि नेबरहुड फर्स्ट नीति का प्रभाव जमीनी स्तर पर व्यापक रूप से महसूस किया जाना चाहिए। इसके लिए संस्थागत और बहुपक्षीय/क्षेत्रीय तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है। कमिटी ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों की संरचना की आवर्ती समीक्षा का सुझाव दिया।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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