उच्च स्तरीय कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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केंद्र सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय कमिटी (चेयर: पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद) ने एक साथ चुनाव पर अपनी रिपोर्ट पेश की। कमिटी का गठन सितंबर 2023 में किया गया था। इसकी संदर्भ की शर्तों में व्यवहार्यता की जांच करना और एक ही समय में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के लिए एक रूपरेखा का सुझाव देना शामिल था। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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एक साथ चुनाव कराने का तर्क: कमिटी ने सुझाव दिया कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाएं। उसने कहा कि बार-बार चुनाव होने से अनिश्चितता का माहौल बनता है। एक साथ चुनाव व्यवधान और नीतिगत गतिहीनता को कम करके शासन में स्थिरता और पूर्वानुमान सुनिश्चित करेगा। एक साथ चुनाव से लागत कम करने और मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने में मदद मिलेगी। उसने एक शोध पत्र का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि एक साथ चुनावों से उच्च आर्थिक विकास, निम्न मुद्रास्फीति, निवेश में वृद्धि और सरकारी व्यय की गुणवत्ता में सुधार होता है।
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एक साथ चुनाव कराना: कमिटी ने एक साथ चुनाव कराने के लिए एक रूपरेखा का सुझाव दिया जिसके लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी। लोकसभा के अगले चुनाव के समय एकमुश्त उपाय के रूप में शेष कार्यकाल की परवाह किए बिना सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों को भंग कर दिया जाना चाहिए। इससे सभी चुनाव एक साथ होंगे। कमिटी ने लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर और स्थानीय निकायों के चुनाव उसके 100 दिनों के भीतर कराने का सुझाव दिया।
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वर्तमान में एक विधायिका पांच वर्ष की अवधि के लिए चुनी जाती है। इसलिए किसी भी समय त्रिशंकु विधायिका उन्हें अगली बार एक साथ चुनाव के तालमेल से बाहर कर देगी। कमिटी ने कहा कि इस समस्या को दूर करने के लिए कम अवधि के लिए त्रिशंकु विधायिका या स्थानीय निकाय के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जाने चाहिए। यह कार्यकाल एक साथ चुनाव के पांच वर्ष के चक्र की शेष अवधि के बराबर होगा। इसका अर्थ यह है कि अगर किसी राज्य विधानसभा या लोकसभा के नए चुनाव एक साथ चुनाव के दो साल बाद होते हैं, तो उसका कार्यकाल केवल तीन साल होगा। इससे हर पांच साल में सभी चुनाव एक साथ होंगे।
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राज्यों द्वारा समर्थन की जरूरत: कमिटी ने कहा कि संसद और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल से संबंधित संवैधानिक संशोधनों के लिए राज्यों के समर्थन की जरूरत नहीं होगी। हालांकि स्थानीय निकायों से संबंधित संवैधानिक संशोधन तभी पारित होंगे, जब कम से कम आधे राज्यों का समर्थन हासिल हो।
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एकल मतदाता सूची: चुनावों का पर्यवेक्षण दो संवैधानिक प्राधिकारियों को सौंपा गया है: (i) संसद के दोनों सदनों, राज्य विधानसभाओं और परिषदों, राष्ट्रपति औऱ उपराष्ट्रपति के लिए भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई), और (ii) स्थानीय निकायों के लिए राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसीज़)। एसईसी द्वारा मतदाता सूची की तैयारी संबंधित राज्य कानूनों द्वारा शासित होती है। कुछ राज्य कानूनों के तहत एसईसी अलग मतदाता सूची तैयार करते हैं, जबकि कुछ राज्य कानून के तहत राज्य निर्वाचन आयोगों को ईसीआई द्वारा तैयार मतदाता सूची का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।
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कमिटी ने सुझाव दिया कि एक एकल मतदाता सूची को अपनाया जाना चाहिए। इससे कई एजेंसियों में अतिरेक और दोहराव कम हो जाएगा। कमिटी ने एसईसी के परामर्श से एकल मतदाता सूची तैयार करने के लिए ईसीआई को सशक्त बनाने का सुझाव दिया। इस एकल मतदाता सूची को प्रभावी बनाने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी। कमिटी ने कहा कि इन संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों के समर्थन की भी आवश्यकता होगी।
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लॉजिस्टिक्स की जरूरत: कमिटी ने सुझाव दिया कि ईसीआई और एसईसी को रोलआउट के आसपास लॉजिस्टिक व्यवस्था के लिए योजना और अनुमान लगाना चाहिए।
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