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पीडीएफ

भारत में ज्वारीय ऊर्जा विकास

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: राजीव रंजन सिंह) ने अगस्त, 2021 में ‘भारत में ज्वारीय ऊर्जा विकास’ विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। ज्वारीय ऊर्जा यानी टाइडल एनर्जी का मतलब है, समुद्री ज्वार की गति से पैदा होने वाली ऊर्जा। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • ज्वारीय ऊर्जा की क्षमता का मूल्यांकन: कमिटी ने कहा कि समुद्री ऊर्जा के तीन प्रकार हैं: (i) तरंग, (ii) ज्वार, और (iii) समुद्री-तापीय। ज्वारीय और तरंग ऊर्जा की सैद्धांतिक क्षमता क्रमशः 12.5 गिगावॉट और 41.3 गिगावॉट है। समुद्री-तापीय ऊर्जा की क्षमता का अनुमान अब तक नहीं लगाया गया है। कमिटी के अनुसार, उपरोक्त क्षमता का मतलब व्यावहारिक रूप से दोहन योग्य क्षमता नहीं है। इसलिए कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को ज्वारीय, तरंग और समुद्री ऊर्जा की दोहन योग्य क्षमता का फिर से मूल्यांकन करना चाहिए।
      
  • ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र की लागत: कमिटी ने कहा कि उच्च लागत के कारण ज्वारीय ऊर्जा के निम्नलिखित दो संयंत्र बंद हो गए: (i) पश्चिम बंगाल में 37.5 मेगावॉट का संयंत्र (जिसकी लागत 63.5 करोड़ रुपए प्रति मेगावॉट थी), और (ii) गुजारत में 50 मेगावॉट का संयंत्र (जिसकी लागत 15 करोड़ रुपए प्रति मेगावॉट थी)। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को ज्वारीय ऊर्जा की मौजूदा लागत का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए ताकि लंबे समय में उसके आर्थिक महत्व और लाभ को निर्धारित किया जा सके।
     
  • पायलट ज्वारीय ऊर्जा प्रॉजेक्ट को लगाना: भारत में 2022 के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य (175 गिगावॉट) में ज्वारीय ऊर्जा शामिल नहीं है। हालांकि कमिटी के अनुसार, नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के सबमिशन में कहा गया है कि 2030 के लक्ष्य में अक्षय ऊर्जा के सभी स्रोत पात्र होंगे। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को पायलट ज्वारीय ऊर्जा प्रॉजेक्ट लगाना चाहिए। इस प्रॉजेक्ट को कच्छ की खाड़ी में लागत प्रभावी स्थान पर लगाया जाना चाहिए। 
     
  • ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र का पर्यावरणीय प्रभाव: कमिटी ने गौर किया कि ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र के पर्यावरणीय और पारिस्थितिकी प्रभाव के मूल्यांकन पर कोई अध्ययन नहीं हुआ है। ऊर्जा संयंत्र का पर्यावरणीय असर नदी के बहाव की तरफ भी हो सकता है, और उसकी विपरीत दिशा में भी। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र के पर्यावरणीय प्रभाव और पारिस्थिकी स्थिरता का आकलन करना चाहिए। 
     
  • अनुसंधान और विकास: कमिटी ने कहा कि केंद्र सरकार ने ज्वारीय ऊर्जा के विकास पर कोई धनराशि खर्च नहीं की है। इसके अतिरिक्त उसने गौर किया कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय या अनुसंधान और विकास के लिए आबंटित धनराशि में संशोधित चरण में काफी कमी आई है। इन वर्षों (2017-20) में मंत्रालय इतनी राशि भी पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर सका। कमिटी ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार को अनुसंधान के लिए धनराशि में कटौती नहीं करनी चाहिए। केंद्र सरकार को अप्रयुक्त स्रोतों, जैसे ज्वारीय ऊर्जा को सहायता प्रदान करनी चाहिए।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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