रिपोर्ट का सारांश
- नीति आयोग ने ‘भारत में रीन्यूएबल्स इंटिग्रेशन’ पर रिपोर्ट जारी की। रीन्यूएबल्स इंटिग्रेशन का अर्थ होता है, मेनस्ट्रीम पावर सिस्टम में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण को शामिल करना। रिपोर्ट में अक्षय ऊर्जा क्षमता के बढ़ते हिस्से को एकीकृत करने के तरीकों का सुझाव दिया गया है। रिपोर्ट में गौर किया गया है कि भारत में सोलर और विंड एनर्जी 2030 के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी (लक्ष्य 450 गिगावॉट का है)। मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- रीन्यूएबल इंटिग्रेशन की चुनौतियां: रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के राज्यों में रीन्यूएबल इंटिग्रेशन को हासिल करने के मार्ग में निम्नलिखित चुनौतियां हैं: (i) राज्यों के कुछ क्षेत्रों या कुछ राज्यों में सोलर विंड एनर्जी वाले स्थलों के केंद्रित होने के कारण सीमित अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन लाइन्स, (ii) मांग के नए स्रोतों से पीक मांग में बढ़ोतरी (जैसे एयर कंडीशनर्स और इलेक्ट्रिक वाहन), और (iii) क्षेत्रीय स्तरों पर फ्रीक्वेंसी और वोल्टेज में फ्लकचुएशंस का बढ़ना।
- पावर सिस्टम फ्लेक्सिबिलिटी: रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि राज्य को पावर सिस्टम में फ्लेक्सिबिलिटी लाने के लिए सभी संभावित स्रोतों का फायदा उठाना चाहिए। उसका सिस्टम भी इतना कुशल होना चाहिए कि बिजली की मांग और आपूर्ति में बदलाव होने पर उत्पादन या खपत में बदलाव किया जा सके। फ्लेक्सिबिलिटी को सुनिश्चित करने के लिए रिपोर्ट में मुख्य विकल्पों का सुझाव दिया गया है: (i) बैटरी स्टोरेज, (ii) स्मार्ट मीटर्स, (iii) मांग का पूर्वानुमान लगाने वाले उपकरण, और (iv) अंतर क्षेत्रीय ट्रांसफर और सीमा पारीय ट्रांसमिशन लाइन्स। इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में क्षेत्रीय स्तर तथा राज्य स्तर के मॉडल का प्रावधान है जोकि बढ़ती अक्षय ऊर्जा के प्रभाव और देश में फ्लेक्सिबिलिटी सॉल्यूशंस की भूमिका का मूल्यांकन करे।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि पावर सिस्टम में फ्लेक्सिबिलिटी को सुनिश्चित करने के लिए मांग पक्ष की फ्लेक्सिबिलिटी को मुख्य प्राथमिकता दी जाए। मांग पक्ष की फ्लेक्सिबिलिटी को हासिल करने के लिए निम्नलिखित किया जा सकता है: (i) कृषि मांग को सोलर पीक घंटों के साथ मिलाया जाए, (ii) टाइम-ऑफ यूज टैरिफ (दिन में खपत के समय के आधार पर टैरिफ) और (iii) रूफटॉप सोलर और ऊर्जा दक्ष कूलिंग सिस्टम्स (जैसे एयर कंडीशनर्स) को बढ़ावा देना।
- रूफटॉप सोलर से संबंधित चुनौतियां: रिपोर्ट में कहा गया है कि रूफटॉप सोलर सिस्टम्स में मांग के पूर्वानुमान की दृश्यता का अभाव है। इससे वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) के मांग पूर्वानुमान पर असर पड़ता है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि डिस्कॉम्स के मांग पूर्वानुमान को बेहतर बनाने के लिए रूफटॉप सोलर की दृश्यता में सुधार किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसने सुझाव दिया कि राज्यों में सोलर पंप और रूफटॉप सोलर सिस्टम्स के रजिस्ट्रेशन के लिए प्लेटफॉर्म का विकास किया जाए। इस प्लेटफॉर्म पर जमा होने वाले डेटा को बेहतर मांग पूर्वानुमान के लिए डिस्कॉम्स के साथ शेयर किया जाना चाहिए।
- स्टोरेज सिस्टम्स के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क: रिपोर्ट में कहा गया है कि दिन में उच्च सोलर आउटपुट को बाद के इस्तेमाल (जैसे शाम की मांग को पूरा करना) के लिए स्टोर किया जा सकता है। इस प्रकार एनर्जी स्टोरेज (जैसे बैटरियां) भविष्य में रीन्यूएबल्स इंटिग्रेशन में फ्लेक्सिबिलिटी दे सकता है। भारत में फिलहाल एनर्जी स्टोरेज के प्रावधानों पर नीतियां नहीं हैं और कुछ रेगुलेशंस एनर्जी स्टोरेज से राजस्व अर्जित करने पर प्रतिबंध लगाते हैं। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि एनर्जी स्टोरेज के लिए रेगुलेटरी और क्षतिपूर्ति फ्रेमवर्क विकसित किया जाना चाहिए।
- बिजली में कटौती: बिजली कटौती का मतलब है, वास्तविक क्षमता से कम बिजली उत्पादन करना, वह भी जानबूझकर। ऐसा बिजली की आपूर्ति और मांग को संतुलित करने के लिए किया जाता है, या फिर ट्रांसमिशन की बाधाओं को अनुकूल बनाने के लिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि जबकि भारत में रीन्यूएबल्स का ‘मस्ट रन स्टेटस’ है (यानी पावर प्लांट को हर स्थिति में बिजली आपूर्ति करनी ही पड़ती है), सिस्टम सिक्योरिटी के कारण रीन्यूएबल जनरेटर्स को कम किया जा सकता है। भविष्य में कटौतियों की उम्मीद से सोलर पावर पर्चेज़ की लागत बढ़ सकती है। इसके अतिरिक्त यह कहा गया कि कटौतियों और उनकी वजहों पर कोई पारदर्शी सार्वजनिक डेटा नहीं है, साथ ही संबंधित नीतियों का भी अभाव है जोकि निवेशकों के लिए चिंता का विषय है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि पावर सिस्टम में फ्लेक्सिबिलिटी लाने से कटौतियों कम करने में मदद मिलेगी।
- थोक बाजार: रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय बिजली बाजार कार्बन के निम्न मात्रा वाले स्रोतों के लागत प्रभावी एकीकरण को आसान बनाता है। लेकिन अंतरराज्यीय व्यापार में कुछ अड़चनें हैं, जैसे (i) ट्रांसमिशन क्षमता की कमी, (ii) अल्पकालिक थोक बाजार में निम्न तरलता, और (iii) कॉन्ट्रैक्ट आधारित मौजूदा संरचना (जैसे पावर पर्चेज एग्रीमेंट्स) में फ्लेक्सिबिलिटी की कमी।
- भारतीय बिजली बाजार ग्राहकों की बिजली की मंग को पूरा करने के लिए मुख्य रूप से फिजिकल पावर पर्चेज एग्रीमेंट्स (पीपीएज़) (बिजली की फिजिकल डिलिवरी पर आधारित समझौते) पर निर्भर हैं। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि मांग को पूरा करने के लिए थोक बाजार में वित्तीय पीपीएज़ (बिजली के थोक मूल्यों में फ्लक्चुएशन पर आधारित समझौते) को इस्तेमाल किया जाना चाहिए। फिजिकल पीपीए का मतलब वह समझौता होता है जिसमें संबंधित पार्टी को बिजली की फिजिकल डिलिवरी या लागू शुल्क के साथ कंपनसेट किया जाता है, जबकि वित्तीय पीपीए में आपस में सहमत रेफ्रेंस मूल्य और थोक बाजार मूल्य के बीच के अंतर के आधार पर कंपनसेट किया जाता है।
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