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पीडीएफ

भारतीय रेलवे की यात्री आरक्षण प्रणाली 

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • रेलवे संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: राधा मोहन सिंह) ने 30 नवंबर, 2021 को ‘भारतीय रेलवे की यात्री आरक्षण प्रणाली’ पर अपनी रिपोर्ट पेश की। यात्री आरक्षण प्रणाली में भारतीय रेल नेटवर्क की ऑनलाइन यात्री आरक्षण और टिकटिंग प्रणाली का प्रावधान है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
     
  • रिज़रवेशन (आरक्षण) चार्ट्स: कमिटी ने कहा कि दूसरा रिज़रवेशन चार्ट तैयार होने तक टिकटों को ऑनलाइन या कंप्यूटरीइज्ड काउंटर्स के जरिए बुक किया जा सकता है। दूसरा रिज़रवेशन चार्ट ट्रेन जाने के निर्धारित समय से 30 से पांच मिनट पहले तैयार किया जाता है। कमिटी ने कहा कि वेटिंग में बुक होने वाले और कंफर्मेशन के लिए वेट करने वाले टिकटों की संख्या बहुत अधिक होती है, इसलिए उनके कंफर्म होने की गुंजाइश बहुत कम होती है। उसने सुझाव दिया कि दूसरे रिज़रवेशन चार्ट को तैयार करना कितना जरूरी है, इस बात की समीक्षा की जानी चाहिए और आखिरी वक्त की भीड़भाड़ में दलालों (जो टिकट बेचते और खरीदते हैं) को शामिल होने से रोकना चाहिए ताकि ऐसे अपराध रुक सकें। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि पहले प्रेपरेशन चार्ट के तैयार होने (ट्रेन के चलने के 4-5 घंटे पहले) के बाद अगर कोई सीट खाली रहती है तो उस सीट को वेटलिस्ट के यात्रियों को आबंटित किया जाना चाहिए।  
     
  • आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर: कमिटी ने कहा कि यात्री आरक्षण प्रणाली हर दिन एक करोड़ से अधिक के लेनदेन को प्रोसेस करती है और इसमें औसत पांच करोड़ यात्री संलग्न होते हैं। यह सिस्टम अधिकतम 28,000 लेनदेन को हैंडल कर सकता है, हालांकि 2019-20 में हर मिनट औसत 8,711 लेनदेन होते थे। वैसे यह देखा गया है कि अधिकांश टिकट आईआरसीटीसी वेबसाइट या ऐप के माध्यम से बुक किए जाते हैं पर वेबसाइट आमतौर पर धीमी होती है और खास तौर से रश आवर के दौरान, इसके माध्यम से टिकट बुक करने में काफी समय लगता है। कमिटी ने इस संबंध में निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) सर्वर या वेबसाइट की क्षमता को मजबूत करना, (ii) दूसरे देशों में अधिक व्यापक टिकटिंग प्रणालियों का पता लगाना।
     
  • तत्काल प्रणाली: तत्काल प्रणाली उन यात्रियों के आरक्षण के लिए शुरू की गई थी जिन्हें शॉर्ट नोटिस पर यात्रा करनी पड़ती है। तत्काल टिकट पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर प्रीमियम चार्ज का भुगतान करके बुक किए जाते हैं। कमिटी ने कहा कि दलालों की वजह से यात्री इस योजना का लाभ नहीं उठा पाते। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि ज्यादातर तत्काल टिकट ऑनलाइन बुक किए जाते हैं। जो यात्री फिजिकल काउंटर पर टिकट बुक करने का विकल्प चुनते हैं, उन्हें ये टिकट उपलब्ध ही नहीं होते। उसने  तत्काल निगरानी तंत्र को मजबूत करने और आरक्षण काउंटरों पर तत्काल आरक्षण के लिए एक निश्चित कोटा प्रदान करने का सुझाव दिया। इससे उन यात्रियों को मदद मिलेगी जिनके पास इंटरनेट नहीं है।
     
  • फेयर स्ट्रक्चर: कमिटी ने कहा कि फ्लेक्सी फेयर स्कीम 2016 से राजधानी, शताब्दी और दुरंतो ट्रेनों में लागू है। इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक 10% बर्थ की बिक्री के साथ किराए में 10% की वृद्धि होती है, जो मूल कीमत के 1.4 गुना की अधिकतम सीमा के अधीन है। कमिटी ने कहा कि फ्लेक्सी प्राइसिंग सिस्टम भेदभावपूर्ण है क्योंकि राजधानी जैसी कुछ ट्रेनों का किराया पहले से ही अन्य मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों की तुलना में अधिक है और कई बार बजट एयरलाइनों के बराबर या उससे अधिक होता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस किराया व्यवस्था की समीक्षा की जाए और किरायों के मूल्य निर्धारण की अधिक संतुलित प्रणाली अपनाई जाए। 
     
  • रियायत: कमिटी ने गौर किया कि सामाजिक सेवा बाध्यताओं के अंग के रूप में भारतीय रेलवे 50 से अधिक श्रेणियों के यात्रियों को किराये में रियायत देता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) कई श्रेणियों के दिव्यांग यात्री, (ii) वरिष्ठ नागरिक, (iii) स्वतंत्रता सेनानी, और (iv) खिलाड़ी। इसके अतिरिक्त भारतीय रेलवे प्रिविलेज पास/प्रिविलेज टिकट ऑर्डर और कॉम्पिमेंटरी पास के जरिए रेलवे कर्मचारियों को भी रियायत देता है। यह रियायत किराये का 10% से लेकर 100% तक होती है जोकि व्यक्तियों की श्रेणियों पर निर्भर करता है।
     
  • यह गौर किया गया कि रियायत के परिणामस्वरूप यात्री आय के सेगमेंट में जितने राजस्व का नुकसान हुआ है, वह 2016-17 में 1,670 करोड़ रुपए, 2017-18 में 1,810 करोड़ रुपए और 2018-19 में 1,995 करोड़ रुपए था। कमिटी ने कहा कि रेलवे की वित्तीय स्थिति पर इन रियायतों के असर का आकलन करने की तत्काल जरूरत है। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) रियायत देने के मानदंडों की समीक्षा करना, और (ii) कर्मचारी प्रिविलेज पास/प्रिविलेज टिकट ऑर्डर और कॉम्पिमेंटरी पास का दुरुपयोग न कर पाएं, इसके लिए एक आंतरिक व्यवस्था को अपनाना।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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