स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: प्रतापराव जाधव) ने 8 फरवरी, 2022 को ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) के समीक्षात्मक मूल्यांकन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। मनरेगा को सितंबर 2005 में अधिसूचित किया गया था। इसमें हर वित्तीय वर्ष में प्रत्येक ग्रामीण परिवार, जिसका वयस्क सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक श्रम करने की इच्छा रखता है, को कम से कम 100 दिनों के वैतनिक रोजगार की गारंटी दी गई है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- काम के दिनों की संख्या में वृद्धि: योजना के अंतर्गत अगर प्राकृतिक आपदाओं के कारण बहुत जरूरी हो तो राज्य सरकार 100 दिनों की गारंटी के अतिरिक्त 50 दिनों के काम की और मांग कर सकती है। कमिटी ने कहा कि कोविड-19 के कारण चुनौतियों को पूरा करने के लिए इस योजना में बदलाव किए जाने चाहिए। उसने योजना के अंतर्गत 100 दिनों की बजाय 150 दिनों के काम की गारंटी दिए जाने का सुझाव दिया।
- अनुमत कार्यों में संशोधन: कमिटी ने कहा कि योजना के अंतर्गत अनुमत कार्यों के दायरे में नियमित संशोधन किए जाने की जरूरत है। उसने सुझाव दिया कि ग्रामीण विकास मंत्रालय को स्टेकहोल्डर्स से सलाह लेनी चाहिए और स्थानीय जरूरतों के मुताबिक मनरेगा में क्षेत्र विशिष्ट कार्यों को शामिल करना चाहिए। उदाहरण के लिए बाढ़ के समय भूक्षरण को रोकने के लिए बांध बनाने और कृषि भूमि को आवारा पशुओं से बचाने के लिए बाऊंड्री बनाने जैसे काम इसमें शामिल किए जा सकते हैं।
- मजदूरी की एक समान दर: मनरेगा के अंतर्गत विभिन्न राज्यों/केंद्रित शासित प्रदेशों में अधिसूचित मजदूरी दर 193 रुपए से लेकर 318 रुपए के बीच है। कमिटी ने कहा कि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मजदूरी की दरों में यह अंतर उचित नहीं है। उसने सुझाव दिया कि देश में एक समान मजदूरी दरों के लिए एक व्यवस्था तैयार की जाए।
- मुद्रास्फीति के अनुरूप मजदूरी को बढ़ाना: कमिटी ने कहा कि मनरेगा के लाभार्थी ज्यादातर समाज के गरीब और वंचित वर्ग के लोग होते हैं। उसने कहा कि मनरेगा के अंतर्गत मामूली मजदूरी के कारण लाभार्थी हतोत्साहित होते हैं और वे अधिक लाभप्रद काम करने या शहरी इलाकों में पलायन करने को मजबूर होते हैं। यह इस तथ्य से प्रदर्शित होता है कि 2020-21 में 755 लाख परिवारों को रोजगार प्रदान किया गया लेकिन सिर्फ 72 लाख परिवारों ने 100 दिनों का रोजगार पूरा किया। कमिटी के मुताबिक, डॉ. नागेश सिंह कमिटी ने सुझाव दिया था कि सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक)-कृषि मजदूर के बजाय सीपीआई-ग्रामीण मजदूर के आधार पर मनरेगा के तहत मजदूरी दर तय की जाए लेकिन इस सुझाव को लागू नहीं किया गया। स्टैंडिंग कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया है कि उसकी स्थिति की समीक्षा करे और मजदूरी बढ़ाए।
- मजदूरी का देर से भुगतान: केंद्र सरकार मनरेगा के अंतर्गत मजदूरी का भुगतान करती है। काम पूरा करने के बाद मस्टर रोल्स बंद होने की तारीख के 15 दिनों के अंदर लाभार्थी मजदूरी प्राप्त करने के पात्र हो जाते हैं। कमिटी ने कहा कि लाभार्थियों को मजदूरी का भुगतान करने में बहुत ज्यादा देरी होती है। ऐसा मुख्य रूप से (i) इनएक्टिव आधार और (ii) बंद, ब्लॉक या फ्रोजन बैंक खाते के चलते फेल्ड पेमेंट ट्रांसफर के कारण होता है।
- हर्जाने में भी देरी: मनरेगा के अंतर्गत भुगतान में देरी होने पर लाभार्थी हर दिन 0.05% मजदूरी की दर से हर्जाना प्राप्त करने के पात्र हैं, जब तक उन्हें मजदूरी नहीं मिल जाती। कमिटी ने कहा कि देश की अधिकतर जगहों पर हर्जाने का भुगतान नहीं किया जाता। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को हर्जाने के भुगतान का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना चाहिए।
- बेरोजगारी भत्ता: मनरेगा के अंतर्गत अगर व्यक्ति काम के लिए आवेदन करता है और उसे 15 दिनों के भीतर काम नहीं दिया जाता तो वह बेरोजगारी भत्ते का पात्र होता है। राज्य सरकार इस भत्ते की दर को निर्धारित करती है। कमिटी ने कहा कि 2019-20 और 2020-21 के दौरान क्रमशः सिर्फ 12,000 रुपए और 3,000 रुपए बेरोजगारी भत्ते के रूप में चुकाए गए। उसने मंत्रालय से अनुरोध किया कि वह बेरोजगारी भत्ते से संबंधित प्रावधान का कार्यान्वयन सुनिश्चित करे।
- सोशल ऑडिट: मनरेगा के अंतर्गत ग्राम सभा को ग्राम पंचायत द्वारा लिए गए सभी प्रॉजेक्ट्स का नियमित सोशल ऑडिट करना चाहिए। कमिटी ने कहा कि इस प्रावधान को सही से लागू नहीं किया जाता। 2020-21 में सिर्फ 29,611 ग्राम पंचायतों का कम से कम सिर्फ एक बार ऑडिट किया गया था। कमिटी ने मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि किसी वित्तीय वर्ष में ग्राम पंचायतों का ऑडिट छूट न जाए। कमिटी ने यह भी पाया कि सोशल ऑडिट रिपोर्ट्स सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। उसने सुझाव दिया कि ऑडिट पूरा होने के तुरंत बाद इन रिपोर्ट्स को पब्लिक डोमेन में डाला जाए।
- ऑम्बड्ज़पर्सन की नियुक्ति: एक्ट के अंतर्गत प्रत्येक जिले में एक ऑम्बड्ज़पर्सन होना चाहिए जो शिकायतें प्राप्त करेगा, उसकी जांच करेगा और फिर उस पर फैसला देगा। कमिटी ने कहा कि 715 संभावित नियुक्तियों में अब तक केवल 263 ऑम्बड्ज़पर्सन की नियुक्ति की गई है। इससे केंद्र और राज्यों की नोडल एजेंसियों के बीच खराब समन्वय प्रदर्शित होता है। कमिटी ने कहा कि जिन राज्यों में ऑम्बड्ज़पर्सन्स की नियुक्ति नहीं हुई हो, वहां दंडात्मक उपाय किए जा सकते हैं या राज्यों की धनराशि रोकी जा सकती है। इसके अतिरिक्त कमिटी ने ऑम्बड्ज़पर्सन की नियुक्ति का अनुपालन करने के लिए ग्रामीण विकास विभाग को सभी राज्य सरकारों को एक साथ लाने का सुझाव दिया।
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