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पीडीएफ

महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार और उनके खिलाफ अपराध

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: आनंद शर्मा) ने ‘महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार और उनके खिलाफ अपराध’ पर 15 मार्च, 2021 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     

  • अपराधों को दर्ज करना: कमिटी ने कहा कि अक्सर पुलिस स्टेशनों में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों को दर्ज नहीं किया जाता। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) पुलिस स्टेशनों में डिकॉय ऑपरेशंस करना, ताकि यह सुनिश्चित हो कि एफआईआर समय पर दर्ज की जाती है, (ii) एफआईआर के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन को विकसित करना, और उसे बढ़ावा देना, (iii) जीरो एफआईआर को दर्ज करना, और (iv) एफआईआर को दर्ज करने में होने वाली देरी के कारणों को रिकॉर्ड करना। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि झूठे केस दर्ज करने वाले पुलिसकर्मियों और लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
     

  • दोष सिद्धि की दर: कमिटी ने कहा कि महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में दोष सिद्धि की दर बहुत निम्न है। बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण एक्ट, 2012 के अंतर्गत मामलों के लिए 1,023 फास्ट ट्रैक अदालतों का लक्ष्य है लेकिन सिर्फ 597 अदालतें काम कर रही हैं। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए (i) यौन अपराधों के लिए ऑनलाइन इनवेस्टिगेशन ट्रैंकिंग सिस्टम को लागू करना ताकि पुलिस की जांच को ट्रैक किया जा सके, (ii) हर राज्य की राजधानी में कम से कम एक फॉरेंसिक लेबोरेट्री बनाना, (iii) एक निश्चित समयावधि में फास्ट ट्रैक अदालतें बनाना, और (iv) सरकारी वकीलों के साथ कानून का प्रवर्तन करना।
     

  • वंचित समुदायों की महिलाएं: कमिटी ने कहा कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को अत्याचार और अपराध की शिकायत दर्ज कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उसने सुझाव दिया कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की महिलाओं से बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) एक्ट, 1989 के प्रावधानों को भी लागू करना चाहिए।
     

  • सुरक्षा और निवारण के उपाय: कमिटी ने कहा कि सरकार ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध की शिकायतें दर्ज कराने के लिए तमाम उपायों के साथ, हेल्पलाइन नंबर और महिला एवं बच्चों के लिए हेल्पडेस्क बनाए हैं। उसने कहा कि इन हेल्पलाइन नंबरों पर बहुत कम कॉल्स आती हैं। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) भारत भर में एकीकृत तीन अंकों वाला हेल्पलाइन नंबर, (ii) हेल्पलाइन नंबरों को प्रचारित करना और उनके इस्तेमाल को बढ़ावा देना। उसने गौर किया कि राज्य सरकारें घटना के बाद की सेवाएं, जैसे शेल्टर होम्स प्रदान करती हैं। इस पर उसने सुझाव दिया कि उनकी संख्या बढ़ाई जाए ताकि घटना के बाद महिला को पूरी देखभाल मिल सके।
     

  • साइबर-अपराध: कमिटी ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सुझाव दिया कि वे साइबर अपराध करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें, भले ही अपराध किसी भी राज्य में किया गया हो। उसने सुझाव दिया कि वे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर की मदद से साइबर सिक्योरिटी वॉल को पार करने वाले वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क्स को चिन्हित और उन्हें स्थायी रूप से ब्लॉक करें। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि साइबर टूल्स पर बढ़ती निर्भरता के मद्देनजर कानून प्रवर्तन एजेंसियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
     

  • महिलाओं का प्रतिनिधित्व: कमिटी ने कहा कि गृह मंत्रालय ने यह एडवाइजरी बार-बार जारी की है कि पुलिस बलों में 33% महिलाएं होनी चाहिए लेकिन उनका प्रतिनिधित्व 10.3% ही है। उसने सुझाव दिया कि सभी स्तरों के पदों के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाए जाएं।
     

  • संस्थागत प्रणाली: कमिटी ने कुछ सुधारों का सुझाव दिया जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) जाति जैसे सामाजिक मानदंडों के आधार पर महिलाओं के खिलाफ अत्याचार पर डेटा जमा करना, (ii) छेड़छाड़ सहित दूसरे अपराधों में शामिल अपराधियों का डेटाबेस बनाना, और (iii) निराश्रित महिलाओं और बच्चों को आश्रय देने के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस बनाना।
     

  • निर्भया फंड: कमिटी ने गौर किया कि फंड में आबंटित केवल 39% राशि का संवितरण किया गया है। उसने केंद्रीय स्तर पर एक कमिटी बनाने का सुझाव दिया जोकि धनराशि के उपयोग पर नजर रखे। इसके अतिरिक्त इस फंड को दूसरी योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जाए।
     

  • कानूनी परिवर्तन: कमिटी ने सुझाव दिया कि दहेज उन्मूलन एक्ट, 1961 में संशोधन किए जाएं। इससे झूठी शिकायतों के आधार पर कानून के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा। कमिटी ने कहा कि किशोरों द्वारा यौन अपराधों में वृद्धि हो रही है, इसलिए कमिटी ने पॉक्सो के अंतर्गत एप्लिकेबिलिटी की सीमा को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने का सुझाव दिया।
     

  • कोविड-19 का असर: कमिटी ने कहा कि कोविड-19 महामारी और उसके बाद लॉकडाउन ने घरेलू हिंसा और मानव तस्करी को बढ़ाया है। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) महिलाओं को नकद हस्तांतरण में बढ़ोतरी करना, (ii) महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयंसहायता समूहों के लिए ब्याज दरों पर मोराटोरियम देना, और (iii) आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना। उसने राज्यों और देशो में मानव तस्करी के मामलों की जांच के लिए राष्ट्रीय मानव तस्करी रोधी ब्यूरो बनाने का भी सुझाव दिया।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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