स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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आवासन एवं शहरी मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: जगदंबिका पाल) ने 9 मई, 2022 को “मेट्रो रेल प्रॉजेक्ट्स का कार्यान्वयन-एक समीक्षा” पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
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कम सवारियां: अधिकतर मेट्रो प्रॉजेक्ट्स (दिल्ली और मुंबई 1 को छोड़कर) में वास्तविक दैनिक औसत राइडरशिप (सवारी) उस स्तर से कम होती हैं, जिस स्तर पर आय और लागत एक बराबर हो (जिस ब्रेकईवन कहा जाता है)। इन मेट्रो प्रॉजेक्ट्स में बेंगलुरू, हैदराबाद, चेन्नई, लखनऊ और जयपुर शामिल हैं। उदाहरण के लिए 2020-21 में: (i) बेंगलुरू मेट्रो की वास्तविक औसत राइडरशिप 0.96 लाख है, जबकि ब्रेकईवन के लिए 18.64 लाख अपेक्षित है, और (ii) हैदराबाद मेट्रो की वास्तविक राइडरशिप 0.65 लाख है, जबकि ब्रेकईवन के लिए 19 लाख अपेक्षित है। कमिटी ने कहा कि मेट्रो प्रॉजेक्ट्स के खराब प्रदर्शन से कई बातों का संकेत मिलता है, जैसे (i) फर्स्ट और लाइस्ट माइल कनेक्टिविटी की कमी, और (ii) स्टेशनों पर पार्किंग की समस्या। अगर मेट्रो को मास ट्रांसपोर्टेशन का माध्यम बनाना है (यानी आम लोग उसे इस्तेमाल करें) तो यात्रियों को निजी वाहन इस्तेमाल करने से दूर करने की जरूरत है। इसलिए कमिटी ने निम्नलिखित का सुझाव दिया: (i) यह सुनिश्चित करना कि राइडरशिप का अनुमान (जोकि यह तय करता है कि किसी प्रकार की मेट्रो को चुना जाए) वास्तविक और सही है, और (ii) सभी मेट्रो प्रॉजेक्ट्स में राइडरशिप को बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
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फर्स्ट और लास्ट माइल कनेक्टिविटी: मेट्रो रेल नीति, 2017 में यह प्रावधान है कि मेट्रो रेल के सभी प्रस्तावों में फीडर सिस्टम्स के प्रस्ताव शामिल किए जाएं। कमिटी ने कहा कि सभी मेट्रो नेटवर्क्स में फर्स्ट और लास्ट माइल कनेक्टिविटी की सुविधाएं नहीं है। जैसे लखनऊ, अहमदाबाद और कोलकाता में फीडर बसों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। इस कनेक्टिविटी के अभाव में अनुमानित राइडरशिप को हासिल नहीं किया जा सकता। उसने सुझाव दिया कि आगामी मेट्रो प्रॉजेक्ट्स को तब तक मंजूरियां नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि विस्तृत प्रॉजेक्ट रिपोर्ट में फर्स्ट और लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए प्रावधान न हों।
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मेट्रो प्रॉजेक्ट्स के लिए कानून: कमिटी ने गौर किया कि चूंकि ज्यादातर शहर मेट्रो प्रॉजेक्ट्स ला रहे हैं, इसलिए मेट्रो प्रॉजेक्ट्स के लिए व्यापक कानून की जरूरत है। इस समय तीन केंद्रीय कानूनों के जरिए मेट्रो प्रॉजेक्ट्स को रेगुलेट किया जाता है। आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने कहा था कि वह एक बिल का ड्राफ्ट तैयार कर रहा है जोकि इन तीन मौजूदा कानूनों का स्थान लेगा।
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एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण (यूएमटीए): राज्य सरकारों से यह अपेक्षित है कि वे शहरी परिवहन के प्रबंधन के लिए एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण (यूएमटीएज़) बनाएं। कमिटी ने गौर किया कि कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान जैसे कई राज्यों ने यूएमटीएज़ का गठन नहीं किया है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को यूएमटीएज़ बनाने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
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कम पूंजी-गहन मेट्रो नेटवर्क: 2021-22 में मंत्रालय के बजट में 43% हिस्सा मेट्रो प्रॉजेक्ट्स का था। मेट्रो के निर्माण की प्रति किलोमीटर लागत 37 लाख रुपए से लेकर 1,126 करोड़ रुपए तक है, जोकि मेट्रो सिस्टम पर निर्भर करता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को छोटे शहरों में मेट्रोलाइट और मेट्रोनियो सिस्टम्स को बढ़ावा देना चाहिए। चूंकि वहां उसकी पूंजीगत, परिचालनगत और रखरखाव की लागत कम है। इन सिस्टम्स को नियमित मेट्रो की 25-40% लागत से बनाया जा सकता है।
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किराया निर्धारण समिति (एफएफसी): मेट्रो रेलवे (परिचालन और रखरखाव) एक्ट, 2002 के तहत मेट्रो प्रॉजेक्ट का शुरुआती किराया, मेट्रो प्रशासन द्वारा तय किया जाता है। इसके बाद एफएफसी किराये को तय करती है। केंद्र सरकार राज्य सरकार/मेट्रो रेल कंपनी से अनुरोध मिलने पर एफएफसी बनाती है। कमिटी ने कहा कि अब तक दिल्ली मेट्रो के लिए चार और मुंबई मेट्रो लाइन 1 के लिए दो एफएफसी बनाई गई हैं, जबकि बेंगलुरू के लिए एफएफसी पर काम चल रहा है। दूसरे मेट्रो प्रॉजेक्ट्स में शुरुआती किराया लागू है। कमिटी ने सुझाव दिया कि: (i) मेट्रो प्रॉजेक्ट्स के लिए एफएफसीज़ बनाई जानी चाहिए, और (ii) किराया वहन करने योग्य हो, यह सोचकर किराया तय करते समय इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कौन से कारक मेट्रो को चलाने की लागत को प्रभावित करते हैं।
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सिंगल कार्ड के जरिए किराये का भुगतान: मार्च 2019 में शुरू किए गए नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (एनसीएमसी) में देश भर में सार्वजनिक परिवहन के विभिन्न माध्यमों के लिए भुगतान की अनुमति है। सिंगल कार्ड के जरिए भुगतान करने से ग्राहक सार्वजनिक परिवहन की तरफ आकर्षित होते हैं और राइडरशिप बढ़ती है। कमिटी ने कहा कि कोलकाता, जयपुर, लखनऊ, कानपुर, चेन्नई और गुजरात में एनसीएमसी कंप्लायंट सिस्टम्स इंस्टॉल नहीं किए गए हैं। उसने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह एनसीएमसी को ऑपरेशनलाइज करने के लिए उचित कदम उठाए।
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अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली की सोर्सिंग: चेन्नई, हैदराबाद, दिल्ली और लखनऊ जैसे मेट्रो नेटवर्क्स ऊर्जा संरक्षण के उपाय कर रहे हैं। उदाहरण के लिए कोच्चि और पुणे मेट्रो ने 60% बिजली सौर ऊर्जा से हासिल करने की योजना बनाई है। कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि मेट्रो नेटवर्क्स द्वारा अक्षय ऊर्जा स्रोतों, खासकर सौर ऊर्जा से बिजली की अनिवार्य सोर्सिंग को बढ़ावा दिया जाए।
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