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मीडिया कवरेज में नैतिक मानक

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

मीडिया कवरेज में नैतिक मानक

  • संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. शशि थरूर) ने 1 दिसंबर, 2021 को ‘मीडिया कवरेज में नैतिक मानक’ विषय पर अपनी रिपोर्ट पेश की। जनवरी 2020 तक देश में 1.45 लाख अखबार, 387 न्यूज और करंट अफेयर्स चैनल और ऑल इंडिया रेडियो द्वारा संचालित 495 रेडियो स्टेशंस हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस रिपोर्ट में शामिल सभी पहलुएं को शमिल करने के लिए एक आयोग बनाया जाए और वह छह महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपे। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • पीसीआई का पुनर्गठन: प्रेस का रेगुलेशन करने के लिए प्रेस परिषद एक्ट, 1978 के अंतर्गत भारतीय प्रेस परिषद एक सांविधिक निकाय है। कमिटी ने कहा कि पीसीआई के पास अनुपालनों का प्रवर्तन करने की शक्ति नहीं है क्योंकि उसकी एडवाइजरीज़ को अदालती फैसलों की तरह लागू नहीं किया जाता। इसके अतिरिक्त उसने कहा कि मीडिया के अलग-अलग सेगमेंट्स के लिए अलग-अलग मानक हैं, और कइयों के तो कोई मानक ही नहीं हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि पीसीआई का पुनर्गठन किया जाए और सभी प्रकार के मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल) को कवर करने के लिए मीडिया परिषद बनाई जाए। परिषद के पास सांविधिक शक्तियां होनी चाहिए ताकि जब भी जरूरत हो, उसके आदेशों को लागू किया जाए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने पीसीआई की सदस्यता बढ़ाने का भी सुझाव दिया (वर्तमान में उसके 20 सदस्य हैं)।
  • मीडिया के खिलाफ शिकायतें: प्रिंट मीडिया द्वारा नैतिक मानकों का उल्लंघन करने पर पीसीआई अखबारों को निर्देश देती है कि वे शिकायतकर्ता के वर्जन को छापें। कुछ मामलों में अखबारों को फटकार लगाई जाती है। ऐसे मामलों में इन फैसलों को ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्यूनिकेशन (बीओसी) और संबंधित राज्य सरकारों को भेजा जाता है। कमिटी ने कहा कि बीओसी कोई कार्रवाई करे, तब तक अखबार नैतिक मानकों का उल्लंघन करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त उसने कहा कि बीओसी को आदेश देने में करीब एक साल लग जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को बीओसी के लिए एक समय सीमा तय करनी चाहिए जिसमें वह पीसीआई के फैसले पर कार्रवाई करे।
  • कमिटी ने कहा कि निजी न्यूज और नॉन-न्यूज चैनल्स के लिए उनके उद्योग संगठनों के सेल्फ रेगुलेशन की व्यवस्था है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) द्वारा गठित न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी और उसके पास ब्रॉडकास्टर को चेतावनी देने, उसे फटकार लगाने तथा एक लाख रुपए तक का जुर्माना लगाने की शक्ति है, (ii) इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) द्वारा गठित ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेन्स काउंसिल जोकि शिकायतों की समीक्षा करती है और उन्हें दूर करती है, और (iii) एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा गठित कंज्यूमर कंप्लेंस काउंसिल जोकि विज्ञापनों के संबंध में शिकायतों पर विचार करती है। कमिटी ने गौर किया कि 2015-19 के दौरान कार्यक्रम और विज्ञापन संहिता के उल्लंघन के 141 मामलों के खिलाफ कार्रवाई की गई। इनमें से 110 मामले एनबीए या आईबीएफ के गैर सदस्यों से संबंधित थे। इन 119 मामलों में से 87 के खिलाफ 2019 में कार्रवाई की गई और 51 मामलों को मंत्रालय ने निपटा दिया। उसने मामलों को समयबद्ध तरीके से निपटाने का सुझाव दिया ताकि सीधे असर पड़े और सभी निजी सेटेलाइट टेलीविजन चैनल्स में सेल्फ रेगुलेशन को बढ़ावा मिले। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को केबल टीवी नेटवर्क्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1995 में संशोधन करना चाहिए, क्योंकि किसी भी शिकायत पर कार्रवाई कार्यकारी आदेश के बजाय नियम द्वारा होनी चाहिए।
  • देशी द्रोही दृष्टिकोण की परिभाषा: केबल नेटवर्क नियम, 2014 के अंतर्गत केबल सर्विस के उन सभी कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाया गया है जोकि ‘देश द्रोही दृष्टिकोण’ को बढ़ावा देते हैं। हालंकि ‘देश द्रोही दृष्टिकोण’ को परिभाषित नहीं किया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि किसी भी प्रकार की अस्पष्टता को दूर करने के लिए ‘देश द्रोही दृष्टिकोण’ की उचित परिभाषा दी जानी चाहिए।
  • टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट्स (टीआरपी): वर्तमान में टेलीविजन दर्शकों को मापने का काम टीआरपी (टेलीविजन सेट जैसे कम्यूनिकेशन डिवाइस के जरिए व्यूअरशप को मापने के लिए इस्तेमाल होने वाला मीट्रिक) के माध्यम से किया जाता है। यह उस समय और प्रोग्राम को रिकॉर्ड करता है जोकि दर्शक एक खास दिन देखता है। 2015 में मंत्रालय ने ब्रॉडकास्टर ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) को टेलीविजन रेटिंग एजेंसी के तौर पर पंजीकृत किया था। यह पंजीकरण दस वर्ष की अवधि के लिए दिया गया है। बार्क एक सेल्फ रेगुलेटेड, नॉन फॉर प्रॉफिट बॉडी है और इसके अंतर्गत देश भर की 44,000 पारिवारिक इकाइयां आती हैं। कमिटी ने कहा कि हाल ही में ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें कुछ टेलीविजन चैनल्स ने बार्क के डिवाइसेज़ में छेड़छाड़ करके टीआरपी में हेराफेरी की। इसके अतिरिक्त कमिटी ने गौर किया कि मौजूदा टीआरपी व्यवस्था शहरी क्षेत्रों के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में पक्षपातपूर्ण है। इस संबंध में कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) टीआरपी मापने के लिए अधिक पारदर्शी प्रणाली बनाई जाए, (ii) सैंपल साइज में बढ़ोतरी के जरिए ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों को एक बराबर वेटेज दिया जाए और दर्शकों को मापने की प्रणाली में बदलाव किया जाए, और (iii) टीआरपी मापने की विश्वव्यापी पद्धतियों का अध्ययन किया जाए।
  • शिकायत निवारण: कमिटी ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ कुछ लिखा जाता है, तो उसकी शिकायत को दर्ज करने और उसके निवारण के लिए वर्तमान में कोई शिकायत निवारण तंत्र नहीं है। इस संबंध में कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) सभी स्तरों (यानी जिला, राज्य और केंद्र) पर शिकायत निवारण व्यवस्था तैयार की जाए, (ii) सभी प्रकार के मीडिया में इन-हाउस शिकायत निवारण व्यवस्था तैयार की जाए, और (iii) मीडिया में नैतिकता के मानकों को बरकरार रखने के लिए एक मीडिया हेल्पलाइन नंबर शुरू किया जाए। 


 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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