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पीडीएफ

विकलांग व्यक्ति अधिकार एक्ट, 2016 के कार्यान्वयन के लिए योजना (सिपडा) का मूल्यांकन 

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: रमा देवी) ने 6 अगस्त, 2021 को ‘विकलांग व्यक्ति अधिकार एक्ट, 2016 के कार्यान्वयन के लिए योजना (सिपडा) का मूल्यांकन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। सिपडा एक अंब्रेला योजना है जोकि केंद्र सरकार द्वारा कार्यान्वित और पूर्ण वित्त पोषित है। यह विकलांग व्यक्ति अधिकार एक्ट, 2016 के विभिन्न घटकों को लागू करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अवरोध मुक्त परिवेश का निर्माण, (ii) सुगम्य भारत अभियान, और (iii) जिला विकलांगता पुनर्वास केंद्र। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • सिपडा में नियमित संशोधन: जब से एक्ट लागू हुआ है, सिपडा के अंतर्गत उप-योजनाओं में संशोधन किया जाता रहा है। वर्तमान में सिपडा के अंतर्गत 13 उप-योजनाएं हैं। कमिटी ने गौर किया कि सिपडा में बार-बार संशोधन करने से कार्यान्वयन में मुश्किलें आई हैं और स्टेकहोल्डर्स और कार्यान्वयन एजेंसियों के लिए नई प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों को समझना मुश्किल हुआ है।
     
  • इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि उप-योजनाओं में संशोधन करने से पहले केंद्रीय एडवाइजरी बोर्ड (विकलांगता संबंधी मामलों में सुझाव देने वाली एपेक्स बॉडी) से सलाह नहीं ली गई। उसने यह सुझाव भी दिया कि सिपडा के विभिन्न पहलुओं पर मुख्य नीतिगत फैसलों में बोर्ड को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। 
     
  • सिपडा के लिए धनराशि का आबंटन: कमिटी ने कहा कि 2016-17 और 2021-22 के दौरान सिपडा के अंतर्गत उप-योजनाओं की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है (छह से 13)। हालांकि इस अवधि में सिपडा का बजटीय आबंटन 193 करोड़ रुपए से बढ़कर 210 करोड़ रुपए हुआ है (सिर्फ करीब 9% की बढ़ोतरी)। 
     
  • इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि सिपडा को साल में सिर्फ एक बार धनराशि आबंटित की जाती है जिसे अपेक्षित मांग के आधार पर विभिन्न उप-योजनाओं में बांटा जाता है। अगर किसी उप-योजना को कम वित्त पोषण प्रस्ताव मिलते हैं तो उसकी अप्रयुक्त धनराशि को अधिक प्रस्ताव वाली अन्य उप-योजनाओं में ट्रांसफर कर दिया जाता है। एक उप-योजना से दूसरी में धनराशि को ट्रांसफर करने से सिपडा का उद्देश्य कमजोर हो सकता है। सिपडा के अंतर्गत ही सभी उप-योजनाएं विकलांग व्यक्तियों को सशक्त करने में विशिष्ट भूमिका निभाती हैं। इसलिए कमिटी ने विकलांग व्यक्ति सशक्तीकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) से सिफारिश की कि वह सिपडा के लिए एकल आबंटन बनाम उसके अंतर्गत प्रत्येक उप-योजना के लिए अलग से आबंटन के फैसले पर विचार करे। 
     
  • विकलांग व्यक्तियों के लिए अवरोध मुक्त परिवेश: अवरोध मुक्त परिवेश का निर्माण उप-योजना विकलांग व्यक्तियों के लिए इंफास्ट्रक्चर (जैसे इमारतें और वेबसाइट्स) तक पहुंच को आसान करने का प्रयास करती है। कमिटी ने कहा कि 2017-18 से सिर्फ 11 राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों ने इस योजना के अंतर्गत अनुदान के लिए आवेदन और उसे प्राप्त किया है। इसके अतिरिक्त विकलांग व्यक्तियों के लिए सरकारी वेबसाइट्स को सुगम बनाने के लिए कोई धनराशि जारी नहीं की गई है। कमिटी ने इस संबंध में निम्नलिखित सुझाव दिए हैं: (i) वेबसाइट्स के एक्सेस को आसान करने के लिए धनराशि आबंटन की कार्यप्रणाली पर दोबारा से काम करना, (ii) इस उप-योजना के अंतर्गत राज्यों द्वारा लंबित प्रस्तावों में तेजी लाना, और (iii) इस उप-योजना के दायरे को दूसरे राज्यों तक बढ़ाना (जैसे वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करना और राज्यों को व्यावहारिक प्रस्ताव तैयार करने की सलाह देना)।
     
  • सुगम्य भारत अभियान: इस अभियान का उद्देश्य कुछ पूर्व चिन्हित इमारतों और स्थानों (जैसे हवाईअड्डे और रेलवे स्टेशन) तक विकलांग व्यक्तियों की सार्वभौमिक पहुंच को सुनिश्चित करना है। कमिटी ने कहा कि इस अभियान की शुरुआत दिसंबर 2015 में हुई थी। इसके बाद इसके लक्ष्य को जुलाई 2016 से बढ़ाकर जून 2022 कर दिया गया। लेकिन इस अभियान के अंतर्गत चिन्हित 30% इमारतों और 65% वेबसाइट्स को ही विकलांग व्यक्तियों के लिए सुगम बनाया गया है। उसने सुझाव दिया कि डीईपीडब्ल्यूडी को बिना किसी और विस्तार के, समय सीमा का पालन करना चाहिए और अगर समय सीमा पूरी नहीं होती तो एक्ट के अंतर्गत सजा दी जानी चाहिए। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि सरकारी मंत्रालय/विभाग को क्षेत्रवार सुगमता मानदंडों को तुरंत अंतिम रूप देना चाहिए। 
     
  • विकलांग व्यक्तियों के लिए दक्षता विकास हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना: इस योजना का उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए उनका दक्षता विकास है। कमिटी ने कहा कि योजना की शुरुआत (2016-17) से कई राज्यों को उसके अंतर्गत धनराशि नहीं मिली है। इसके अतिरिक्त इन राज्यों में या तो एम्पैनल्ड ट्रेनिंग पार्टनर्स (ईटीपीज़) नहीं हैं या दूसरे राज्यों में पंजीकृत ईटीपी द्वारा संचालित केंद्र हैं। इस संबंध में कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) जिन राज्यों में ईटीपी मौजूद नहीं हैं, वहां ट्रेनिंग संस्थाओं को बढ़ावा देना, और (ii) जिन राज्यों में ईटीपीज़ रजिस्टर्ड नहीं हैं, वहां उन्हें केंद्र संचालित कराने से हतोत्साहित करना। उसने डीईपीडब्ल्यूडी को सुझाव दिया कि वह महामारी के दौरान विकलांग व्यक्तियों के प्रशिक्षण के लिए विकसित देशों द्वारा प्रयुक्त साधनों को अपनाए। 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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