स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राम गोपाल यादव) ने 12 सितंबर, 2022 को ‘वैक्सीन का विकास एवं वितरण प्रबंधन तथा कोविड-19 महामारी में राहत’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं
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कोविड-19 संबंधी पहल: कमिटी ने कहा कि भारत की कोविड-19 संबंधी पहल में कई कमियां थीं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) कमजोर स्वास्थ्य संरचना और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी, (ii) शुरआत में ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीनेशन की धीमी दर, और (iii) दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन सप्लाई का कुप्रबंधन। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि पहली लहर के बाद प्रतिबंधों में ढिलाई दी गई और टेस्टिंग में गिरावट हुई। इन दोनों की वजह से मामलों की संख्या बढ़ी और दूसरी लहर के दौरान बहुत से लोगों की मौत हुई। बड़े पैमाने पर सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक आयोजन भी दूसरी लहर का एक मुख्य कारण थे जिनमें सोशल डिस्टेंसिंग का बिल्कुल पालन नहीं किया गया।
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कमिटी ने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को कोविड-19 को देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य संरचना में सुधार के अवसर के रूप में देखना चाहिए। इन सुधारों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) स्वास्थ्य तथा अनुसंधान एवं विकास में निवेश पर सार्वजनिक व्यय बढ़ाना, (ii) स्वास्थ्य सेवाओं की लास्ट माइल डिलिवरी को सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना और (iii) स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता को बढ़ाना।
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इमरजेंसी यूज़ ऑथराइजेशन (ईयूए): कमिटी ने कहा कि भारतीय ड्रग नियम और रेगुलेशंस में स्पष्ट प्रावधान के बिना भारत में वैक्सीन्स को ईयूए दिया गया। ड्रग्स और कॉस्मैटिक्स एक्ट, 1940 के अंतर्गत नए ड्रग्स और क्लिनिकल ट्रायल्स नियम, 2019 में ईयूए के प्रावधान नहीं हैं। अन्य देशों के कानूनों में ईयूए स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं जिनमें महामारी के दौरान वैक्सीन्स और ड्रग्स को मंजूरी देने में पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है। हालांकि भारत में अपनाए जाने वाले प्रोटोकॉल और वैक्सीन्स के क्लिनिकल ट्रायल डेटा से संबंधित सूचनाओं में पारदर्शिता की कमी थी। इसके अलावा बूस्टर डोज़ के लिए मंजूरी प्रक्रिया में भी स्पष्टता की कमी है। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) ईयूए के लिए विशिष्ट प्रावधान करना, (ii) भविष्य में ईयूए देने से पहले क्लिनिकल ट्रायल डेटा का कठोर मूल्यांकन करना और (iii) वैक्सीन नीति में परिवर्तन करने के लिए वैज्ञानिक निष्कर्षों का उपयोग करना।
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बूस्टर डोज़: अप्रैल 2022 से निजी वैक्सीनेशन केंद्रों में सभी वयस्कों के लिए बूस्टर/ऐहतियाती डोज़ शुरू कर दी गई। कमिटी ने मंत्रालय से निम्नलिखित सौंपने को कहा: (i) प्रमाण आधारित अनुसंधान, जिसमें बूस्टर डोज़ लगवाने को जरूरी बताया गया है, और (ii) उसी वैक्सीन के बूस्टर डोज़ देने के कारण। कमिटी ने कहा कि कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, किसी दूसरी वैक्सीन की बूस्टर डोज़ बेहतर होती है। उसने कहा कि ऐसे प्रस्तावों को लागू करने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान और क्लिनिकल ट्रायल की जरूरत होती है। मंत्रालय को वैक्सीन्स के विभिन्न कॉम्बिनेशंस की शक्ति और असर पर अध्ययन को भी प्रोत्साहित करना चाहिए।
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वैक्सीन की खरीद: कमिटी ने कहा कि वैक्सीन के विकास के चरण में भारत ने किसी वैक्सीन निर्माता को कोई अग्रिम भुगतान नहीं किया, न ही कोई पूर्व खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए। जब राज्यों की मांग के हिसाब से वैक्सीन की सप्लाई नहीं हो पाई तब ऐसे समझौतों की जरूरत महसूस की गई। वैक्सीन की जरूरत के बेहतर मूल्यांकन से वैक्सीन अभियान में तेजी लाई जा सकती थी। कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह भविष्य की आपात स्थितियों के लिए खरीद रणनीति को मजबूती देने के लिए तकनीकी और वित्तीय मदद ले।
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सार्वजनिक क्षेत्र में वैक्सीन का निर्माण: कोविड-19 के दौरान वैक्सीन्स की लगातार सप्लाई को सुनिश्चित करना बड़ी चुनौती थी। कमिटी ने कहा कि कोविड-19 वैक्सीन उत्पादन में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का योगदान न के बराबर था। वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र की वैक्सीन निर्माण इकाइयों की संख्या सात हैं जिनमें केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआई) और पाश्चर इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (पीआईआई) शामिल हैं। कमिटी ने कहा कि इन इकाइयों का कम उपयोग किया जा रहा है। उसने मंत्रालय को इन इकाइयों को पुनर्जीवित करने का सुझाव दिया।
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भारत विश्व स्तर पर कोविड-19 वैक्सीन्स पर बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) की छूट का हिमायती रहा है। हालांकि कमिटी ने कहा कि केंद्र सरकार ने देशी वैक्सीन कोवैक्सीन को आईपीआर से छूट नहीं दी है। उसने सुझाव दिया कि सार्वजनिक क्षेत्र के वैक्सीन निर्माताओं को कोवैक्सीन के तकनीकी हस्तारण की संभावनाओं की जांच की जाए और इन इकाइयों में उसके उत्पादन को शुरू किया जाए।
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