एस्टिमेट्स कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- एस्टिमेट्स कमिटी (चेयर : डॉ. मुरली मनोहर जोशी) ने 25 जुलाई, 2018 को ‘सशस्त्र बलों की तैयारी- रक्षा उत्पादन और खरीद’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- रक्षा सेवाओं पर खर्च: कमिटी ने गौर किया कि केंद्र सरकार के कुल व्यय में सशस्त्र सेवाओं का हिस्सा लगातार कम हुआ है। 2014-15 में जहां यह 13% था, वहीं 2017-18 में 12% हो गया है। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में रक्षा संबंधी व्यय 2014-15 में 2% से गिरकर 2017-18 में 1.6% हो गया, जोकि 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद से सबसे कम है। कमिटी ने कहा कि मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत रक्षा तैयारी पर कम खर्च करने का खतरा नहीं उठा सकता। कमिटी ने सुझाव दिया कि मौजूदा जरूरतों और भविष्य की विस्तार और आधुनिकीकरण योजनाओं, दोनों को देखते हुए रक्षा तैयारी के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन आबंटित किए जाने चाहिए।
- पूंजीगत खरीद के बजट का अनुपात: कमिटी ने कहा कि रक्षा बजट में पूंजीगत खरीद के बजट की हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है। यह 2013-14 में 39% थी जो 2018-19 में गिरकर 34% हो गई। इसके अतिरिक्त सुरक्षा बलों में खरीद की योजना दीर्घकालीन एकीकृत दृष्टिकोण योजना (लॉन्ग टर्म इंटीग्रेटेड पर्सपेक्टिव प्लान) (तीनों सैन्य सेवाओं, आर्मी, एयरफोर्स और नेवी, के लिए 15 वर्षीय दृष्टिकोण योजना) के अनुसार नहीं बनाई जाती। उसे बजटीय आबंटनों के हिसाब से समायोजित किया जाता है। पूंजीगत खरीद में गिरावट से सशस्त्र बलों की आधुनिकीकरण प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और यह हमारे देश की सुरक्षा से समझौता करने जैसा है। कमिटी ने सुझाव दिया कि पूंजीगत बजट का पर्याप्त आबंटन किया जाना चाहिए और फंड्स का पूरा उपयोग होना चाहिए।
- रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता: भारत विश्व में रक्षा उत्पादों और सेवाओं के सबसे बड़े आयातकों में से एक है। रक्षा उत्पादन विभाग ने कमिटी के समक्ष यह बयान दिया था कि देश के कुल रक्षा उत्पादन में 40% का स्वदेशी स्तर पर उत्पादन होता है और 60% का आयात किया जाता है। इसके अतिरिक्त मिलिट्री हार्डवेयर के लिए विदेशी सप्लाइज़ पर निर्भरता के कारण रक्षा उपकरणों के आयात पर अत्यधिक खर्च होता है। रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण (घरेलू उत्पादन) का स्तर बहुत धीमी गति से बढ़ रहा है।
- ड्राफ्ट डिफेंस प्रोडक्शन पॉलिसी 2018 का लक्ष्य 2025 तक भारत को विश्व के पांच प्रमुख रक्षा उत्पादकों में से एक बनाना है और साथ ही 13 क्षेत्रों में उसे आत्मनिर्भर बनाना है। इस संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि ड्राफ्ट पॉलिसी में दर्ज आत्मनिर्भरता के स्तर को प्राप्त करने के लिए प्रभावी निगरानी के साथ एक रोडमैप तैयार किया जाना चाहिए। कमिटी ने सरकार से अनुरोध किया कि वह आयात पर देश की निर्भरता को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाए। इसके लिए सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि रक्षा प्लेटफॉर्म्स और हार्डवेयर में स्थानीय सामग्रियों का उपयोग बढ़ाया जाए।
- ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड: ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों में कैलिबर हथियार, बम, विजन एक्विपमेंट्स, इत्यादि की मैन्यूफैक्चरिंग होती है। ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड में 41 ऑर्डनेंस फैक्ट्रियां काम करती हैं। इन फैक्ट्रियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सशस्त्र बलों द्वारा असमान मांग, (ii) रणनीतिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए क्षमता से कम मात्रा में सैन्य उत्पादों का उत्पादन, और (iii) समर्पित वेंडरों के साथ दीर्घकालीन अनुबंध करने में कठिनाइयां। सशस्त्र सेनाओं ने इन फैक्ट्रियों में निर्मित हथियारों की क्वालिटी पर भी सवाल उठाए हैं।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों और सैन्य बलों के बीच बेहतर समन्वय होना चाहिए। उत्पादन से जुड़ी जटिलताओं और उसमें लगने वाले लंबे समय को देखते हुए सशस्त्र बलों को अपने ऑर्डर एडवांस में देने चाहिए। इसके अतिरिक्त ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों में टेक्नोलॉजी के आधुनिकीकरण और अपग्रेडेशन को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- सशस्त्र बलों और सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों (डीपीएसयूज़) के बीच सिनर्जी: कमिटी ने कहा कि सैन्य सेवाओं ने डीपीएसयूज़ को जितने ऑर्डर दिए थे, या तो उनकी डिलिवरी अभी शुरू भी नहीं की गई है, या वे बकाया हैं। इससे प्राप्त किए गए ऑर्डर, डिलिवरी के टारगेट्स और डिलिवरीज़ के बीच जबरदस्त अंतर है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सशस्त्र बलों और डीपीएसयूज़ के बीच सिनर्जी को बढ़ाया जाए जोकि देश की रक्षा तैयारियों के लिए भी बहुत जरूरी है। इस संबंध में रक्षा मंत्रालय ऐसी संस्थागत प्रणाली विकसित कर सकता है जिसमें इन दोनों के प्रतिनिधि मौजूद हों। इससे सशस्त्र बलों और डीपीएसयूज़ के बीच सिनर्जी कायम की जा सकती है।
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