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सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी और बच्चों एवं समाज पर उसका प्रभाव

रिपोर्ट का सारांश

सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी और बच्चों एवं समाज पर उसका प्रभाव

  • सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी और बच्चों एवं समाज पर उसके प्रभाव जैसे चिंताजनक मुद्दे पर अध्ययन हेतु गठित राज्यसभा की एडहॉक कमिटी (चेयर: जयराम रमेश) ने 25 जनवरी, 2020 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • परिभाषा: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण एक्ट, 2012 में बाल पोर्नोग्राफी का अर्थ है, बच्चे से यौन संबंध बनाने का कोई भी दृश्य चित्रण, जिसमें वास्तविक बच्चा, या वास्तविक बच्चे जैसी दिखने वाली कोई आकृति शामिल हो (जैसे फोटोग्राफ या वीडियो)। कमिटी ने सुझाव दिया कि बाल पोर्नोग्राफी की परिभाषा को व्यापक बनाया जाए ताकि उसमें लिखित सामग्री और ऑडियो रिकॉर्डिंग भी शामिल की जा सके जोकि नाबालिग के साथ यौन गतिविधि का समर्थन करती हो या उसे प्रदर्शित करती हो। इसके अतिरिक्त उसने सुझाव दिया कि एक्ट में ‘यौन स्पष्टता’ को भी परिभाषित किया जाए।
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, ‘ग्रूमिंग’ बच्चे के साथ संबंध बनाने (ऑनलाइन या ऑफलाइन) की ऐसी प्रक्रिया को कहा जाता है जिससे नाबालिग से यौन संपर्क बनाना सहज हो। कमिटी ने सुझाव दिया कि ग्रूमिंग की ऐसी ही परिभाषा को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण एक्ट, 2012 में शामिल किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे यौन उत्पीड़न का एक प्रकार बनाया जाना चाहिए।
  • बाल पोर्नोग्राफी रखने के संबंध में अपवाद: कमिटी ने सुझाव दिया कि नाबालिगों को कुछ विशेष स्थितियों में अपनी अभद्र तस्वीरें रखने, उसे स्टोर करने या उनके आदान-प्रदान के लिए प्रोसिक्यूट नहीं किया जाना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त वयस्कों को निम्न मामलों में बाल पोर्नोग्राफी रखने के संबंध में अपवाद दिए जा सकते हैं: (i) अथॉरिटीज़ को रिपोर्ट करना, और (ii) जांच।
  • अपराध: कमिटी ने सुझाव दिया कि एक गलत डोमेन नेम का इस्तमाल करके धोखे से किसी नाबालिग को अश्लील सामग्री दिखाने को अपराध माना जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त बच्चों को पोर्नोग्राफी का एक्सेस देने तथा चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज मैटीरियल (सीएसएएम) को एक्सेस करने, बनाने या ट्रांसमिट करने वालों के लिए इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 में सजाएं शामिल की जानी चाहिए। 
  • इंटरमीडियरीज़ की जिम्मेदारियां: कमिटी ने सुझाव दिया कि इंटरमीडियरीज़ (जैसे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइर्स और सर्च इंजन्स) की जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (इंटरमीडिरीज़ के दिशानिर्देश) नियम, 2011 में रेखांकित किया जाना चाहिए। इन जिम्मेदारियों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बच्चों के यौन उत्पीड़न से जुड़ी सामग्री को रिपोर्ट करना, उन्हें चिन्हित करना और हटाना, और (ii) बच्चों के पोर्न या सीएसएएम को एसेस करने वाले लोगों की पहचान बताना। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि सीएसएएम को रिपोर्ट करने और उसे हटाने के लिए एक निश्चित समय सीमा तय की जानी चाहिए जिस पर कोई समझौता न किया जाए। इस समय सीमा का उल्लंघन करने पर सजा होनी चाहिए।
  • सोशल मीडिया: कमिटी ने वे उपाय सुझाए जिनके जरिए सोशल मीडिया साइट्स और ऐप्स नाबालिगों की रक्षा कर सकती हैं, और इन उपायों की मदद से सीएसएएम संबंधी कंटेंट को रेगुलेट किया जा सकता है, और उसे हटाया जा सकता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एकाउंट बनाने के समय, आयु संबंधी सीमा, (ii) लोगों को बाल शोषण से संबंधित कंटेंट को पोस्ट करने से प्रतिबंधित करना, और (iii) कई भाषाओं में यूजर्स को गैर कानूनी कंटेट के संबंध में जानकारी प्रदान करना।
  • जागरूकता: कमिटी ने सुझाव दिया कि निम्नलिखित मुद्दों पर जागरूकता संबंधी अभियान चलाने चाहिए: (i) बाल उत्पीड़न के शुरुआत संकेतों के बारे में माता-पिता हेतु अभियान, और (ii) साइबर बुलिंग पर देशव्यापी अभियान। कमिटी ने निम्नलिखित को प्रशिक्षित करने का भी सुझाव दिया: (i) बाल उत्पीड़न की जांच में उत्तरदाता (रिस्पांडर्स), और (ii) बाल शोषण की रिपोर्टिंग करने वाले मीडियाकर्मी।  
  • अथॉरिटीज़: कमिटी ने सुझाव दिया कि एक उन्नत राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को बाल पोर्नोग्राफी से जुड़े मुद्दे से निपटना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रत्येक राज्य में बाल अधिकार संरक्षण आयोगों को गठित किया जाना चाहिए। राज्य निम्नलिखित को सुनिश्चित करने के लिए ई-सेफ्टी कमीश्नर भी नियुक्त कर सकते हैं: (i) सोशल मीडिया के दिशानिर्देशों को लागू करना, (ii) कंटेट की फ्लैगिंग, और (iii) आयु सत्यापन।  
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: कमिटी ने सुझाव दिया कि भारत को डार्क वेब जांच में सूचनाओं को साझा करने के लिए दूसरे देशों के साथ संधियों पर हस्ताक्षर करने चाहिए। इसके अतिरिक्त भारत को वरीयता प्राप्त देशों के साथ संपर्क स्थापित करना चाहिए जोकि म्यूचुअल असिस्टेंस ट्रीटी के अंतर्गत ऑनलाइन कंटेंट को हटाने के अनुरोधों पर तेजी से काम कर सकें।
  • शोध: कमिटी ने सुझाव दिया कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो को बाल पोर्नोग्राफी के सभी मामलों को अनिवार्य रूप से रिकॉर्ड और रिपोर्ट करना चाहिए।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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