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पीडीएफ

स्टील पीएसयूज़ में सुरक्षा प्रबंधन और कार्य पद्धतियां

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
 

  • कोयला और स्टील संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: राकेश सिंह) ने 6 अगस्त, 2021 को “स्टील पीएसयूज़ में सुरक्षा प्रबंधन और कार्य पद्धतियां” विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने इस बात की समीक्षा की कि स्टील क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रम (पीएसयूज़) सुरक्षा प्रबंधन की मानक कार्य पद्धतियों का अनुपालन करते हैं अथवा नहीं। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • स्टील पीएसयूज़ में दुर्घटनाएं: कमिटी ने कहा कि 2015 और 2020 के बीच स्टील पीएसयूज़ में मशीनों के चलने और ऊंचाई से गिरने के कारण ज्यादातर दुर्घटनाएं हुईं। इसके अतिरिक्त कमिटी ने गौर किया कि स्टील पीएसयूज़ में ज्यादातर घातक दुर्घटनाएं कई तरह की कमियों की वजह से हुईं, जैसे स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर का पालन न करना, डिजाइन में त्रुटियां, और प्रशिक्षण एवं जागरूकता पर ध्यान न देना। कमिटी ने सुझाव दिया कि जोखिमपरक गतिविधियों में इन कमियों को चिन्हित किया जाना चाहिए। ये चूक न हों, इसके लिए नियमित निगरानी की जानी चाहिए। 
     
  • स्टील क्षेत्र के लिए सुरक्षा संबंधी दिशानिर्देश: कमिटी ने कहा कि स्टील मंत्रालय के अंतर्गत एक्सपर्ट्स के वर्किंग ग्रुप ने आयरन और स्टील क्षेत्र के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाए हैं ताकि न्यूनतम सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित किया जा सके। हालांकि स्टील क्षेत्र के लिए इन दिशानिर्देशों को अपनाना स्वैच्छिक है, चूंकि क्षेत्र में सुरक्षा दिशानिर्देशों के अनिवार्य कार्यान्वयन के लिए कोई रेगुलेशन नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि दुर्घटनाओं को रोकने के लिए इन दिशानिर्देशों को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसने सुझाव दिया कि स्टील मंत्रालय को श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के साथ समन्वय करना चाहिए ताकि व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थितियां संहिता, 2020 के अंतर्गत इन दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।
     
  • निगरानी और निरीक्षण व्यवस्था: कमिटी ने कहा कि स्टील पीएसयूज़ सुरक्षा की स्थिति तथा विभिन्न दिशानिर्देशों के अनुपालन की निगरानी और समीक्षा के लिए समय-समय पर जांच और नियमित निरीक्षण करते हैं। उसने सुझाव दिया कि समय-समय पर निगरानी प्रक्रिया के दौरान चिन्हित समस्याओं का हल सुनिश्चित करने के लिए एक फॉलोअप व्यवस्था होनी चाहिए। निगरानी प्रक्रिया के दौरान मिलने वाले सुझावों को निश्चित तौर से लागू किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त स्टील पीएसयूज़ में सुरक्षा संबंधी मामलों में श्रमिकों से फीडबैक लेने के लिए एक फोरम भी होना चाहिए।
     
  • प्रशिक्षण और जागरूकता: कमिटी ने कहा कि नए श्रमिकों के लिए स्टील पीएसयूज़ में सेफ्टी इंडक्शन ट्रेनिंग और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। इन कार्यक्रमों की अवधि नियमित कर्मचारियों के लिए तीन दिन और कॉन्ट्रैक्ट श्रमिकों के लिए दो दिन होती है। उसने सुझाव दिया कि इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों की अवधि उपयुक्त तरीके से बढ़ाई जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त रीफ्रेशर सेफ्टी ट्रेनिंग कार्यक्रम भी अक्सर कराए जाने चाहिए। अपडेटेड जोखिम आकलन और खतरे की पहचान के आधार पर ट्रेनिंग करिकुलम में संशोधन किया जाना चाहिए।
     
  • इसके अतिरिक्त कमिटी ने गौर किया कि कुछ स्टील पीएसयूज़ में व्यवहार आधारित सेफ्टी ट्रेनिंग कार्यक्रम चलाए जाते हैं (जैसे स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया)। उसने सुझाव दिया कि इन कार्यक्रमों को सभी स्टील पीएसयूज़ में चलाया जाना चाहिए और इसे अक्सर संचालित किया जाना चाहिए।
     
  • क्षतिपूर्ति नीति: कमिटी ने कहा कि स्टील पीएसयूज़ के कर्मचारी क्षतिपूर्ति नीतियों के दायरे में आते हैं। इन नीतियों के अंतर्गत मृत्यु या पूरी तरह से विकलांगता की स्थिति में एक पात्र आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नौकरी दी जाती है। कमिटी ने गौर किया कि अगर पीड़ित परिवार के सदस्य को समय पर क्षतिपूर्ति नहीं मिलती, तो इन नीतियों का उद्देश्य विफल हो जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को क्षतिपूर्ति पैकेज को मंजूरी देने से संबंधित मामलों में देरी नहीं करनी चाहिए। जरूरी पेपरवर्क पूरा करने में परिवार की मदद के लिए एक नोडल अधिकारी को डेप्यूट किया जाना चाहिए। क्षतिपूर्ति पैकेज की समय समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।
     
  • सुरक्षा अधिकारियों को सशक्त करना: कमिटी ने कहा कि स्टील प्लांट के कर्मचारियों के बीच सुरक्षा संबंधी जागरूकता को बढ़ावा देने में विभागीय सुरक्षा अधिकारी (डीएसओ) और जोनल सुरक्षा अधिकारी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि इन सुरक्षा अधिकारियों को अपना काम करने के लिए पूरी छूट दी जानी चाहिए क्योंकि उन्हें जमीनी हकीकत की बेहतर जानकारी होती है।


 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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