स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- परिवहन, पर्यटन एवं संस्कृति संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री टी.जी. वेंकटेश) ने 28 मार्च, 2022 को ‘सागरमाला प्रॉजेक्ट्स के कार्यान्वयन की प्रगति’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं।
- कार्यान्वयन में देरी: कमिटी ने कहा कि पिछले एक वर्ष में केवल एक और बंदरगाह की आधुनिकीकरण परियोजना पूरी हुई है। कमिटी इस बात को लेकर चिंतित थी कि ऑल वेदर ऑल-कार्गो वधावन बंदरगाह के काम में कोई प्रगति नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि सागरमाला के तहत बंदरगाह आधुनिकीकरण परियोजनाओं की लागत में 20,000 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। बंदरगाहों का तेजी से आधुनिकीकरण सुनिश्चित करने के लिए कमिटी ने कहा कि बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय को यह पता लगाना चाहिए कि हर बंदरगाह में देरी की क्या वजह है और इस विलंब को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
- बंदरगाह की उत्पादकता को बढ़ाना: कमिटी ने कहा कि प्रमुख बंदरगाहों पर कार्गो की कुल क्षमता 2,500 मिलियन टन है लेकिन इसमें से सिर्फ 1,248 मिलियन टन कार्गो ही सभी प्रमुख बंदरगाहों पर मूव किया गया। इसके अतिरिक्त 2020-21 के दौरान प्रमुख बंदरगाहों पर जहाजों का औसत टर्नअराउंड समय 56 घंटे था, जबकि प्री-बर्थिंग वेटिंग की अवधि 26 घंटे थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जहाज का टर्नअराउंड समय 24 घंटे से कम है, और प्री-बर्थिंग रुकावट न के बराबर है। इसके अतिरिक्त भारतीय बंदरगाहों (50-200) पर हर कंटेनर वेसल हर घंटे औसत 50-200 मूव्स कर पाता है, जोकि 200 से 300 के अंतरराष्ट्रीय औसत से काफी कम है। बंदरगाहों की उत्पादकता में सुधार के लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) मशीनीकरण और टेक्नोलॉजी को अपनाना, (ii) बंदरगाह परिसर के भीतर सहायक सेवाओं का विकास, और (iii) नेविगेशन चैनलों की गहराई बढ़ाना, तथा बेहतर क्षमता उपयोग के लिए बर्थिंग का आधुनिकीकरण करना।
- बंदरगाहों की कनेक्टिविटी में सुधार: कमिटी ने भीतरी इलाकों से बंदरगाहों की कनेक्टिविटी के महत्व पर गौर किया। सागरमाला के अंतर्गत बंदरगाहों के 208 कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट्स में से 56 पूरे हो गए हैं और 69 कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। इसके अतिरिक्त आबंटित किए गए 1.36 लाख करोड़ रुपयों में से सिर्फ 19,488 करोड़ रुपए का इस्तेमाल किया गया। साथ ही, कमिटी ने कहा कि छोटे बंदरगाहों के लिए अपेक्षाकृत कुछ ही कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट्स थे।
- कमिटी ने यह भी कहा कि कुछ मामलों में सागरमाला प्रॉजेक्ट्स को मुख्य चौराहों तक ही चलाया जाता है। इस समस्या को दूर करने के लिए कमिटी ने सुझाव दिया कि सागरमाला के अंतर्गत सड़क कनेक्टिविटी में सड़क मार्ग का पूरा घेरेदार नेटवर्क शामिल होना चाहिए। इससे क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए निकटवर्ती कस्बों, गांवों, पर्यटन स्थलों और राष्ट्रीय स्मारकों को इंटरलिंक करने में मदद मिलेगी।
- बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण: कमिटी ने कहा कि जो उद्योग परिवहन गहन होते हैं, उन्हें अगर तटों/जलमार्गों के निकट विकसित किया जाए तो वे संरचात्मक रूप से प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं। कमिटी ने कहा कि बंदरगाह आधारित 33 औद्योगीकरण प्रॉजेक्ट्स में से सिर्फ नौ पूरे हुए हैं जबकि 21 कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। इसके अतिरिक्त कमिटी ने गौर किया कि 12 प्रमुख बंदरगाहों में से सिर्फ आठ ने निर्धारित भूमि पर औद्योगीकरण शुरू किया और आठ में से सिर्फ दो (विशाखापट्टनम और पारादीप) ने निर्धारित भूमि का पूरा उपयोग किया। कमिटी ने (i) विश्व स्तर के मानकीकृत लक्ष्यों की स्थापना, और (ii) भूमि अधिग्रहण और बंदरगाह कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट्स के एकीकरण के जरिए बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण प्रॉजेक्ट्स के कार्यान्वयन में तेजी लाने का सुझाव दिया।
- कोस्टल शिपिंग और इनलैंड वॉटर स्पोर्ट्स (आईडब्ल्यूटी): कमिटी ने कहा कि माल ढुलाई में कोस्टल शिपिंग और आईडब्ल्यूटी का हिस्सा बहुत कम है। इसकी वजहें निम्नलिखित हैं: (i) कार्गो की वाणिज्यिक आवाजाही के लिए जलमार्ग की पर्याप्त गहराई का अभाव, और (ii) अंतर्देशीय जहाजों की कमी। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि 90% से अधिक भारतीय निर्यात-आयात कार्गो, और 40% से अधिक तटीय कार्गो विदेशी जहाजों द्वारा ले जाया जा रहा है। यह 2018-19 में 52 बिलियन USD से अधिक की माल ढुलाई के बराबर है। कार्गो ले जाने में भारतीय जहाजों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कमिटी ने मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958 की व्यापक समीक्षा का सुझाव दिया।
- बंदरगाहों की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार: कमिटी ने कहा कि प्रॉजेक्ट की कुल लागत का बड़ा हिस्सा ड्रेजिंग (बंदरगाह से गाद और तलछट को हटाना) और उसकी परिचालन लागत होता है। इसके अतिरिक्त कमिटी ने गौर किया कि टैरिफ की गणना में ड्रेजिंग की कीमत को शामिल करने से भारतीय बंदरगाह महंगे और कम प्रतिस्पर्धी होते हैं। कमिटी ने चैनलों को राष्ट्रीय परिसंपत्ति मानने का सुझाव दिया और कहा कि ड्रेजिंग की पूरी लागत को वित्त पोषित किया जाए। कमिटी ने कहा कि अमेरिकी फेडरल सरकार इनकी 50-90% लागत को वित्त पोषित करती है।
- इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनांसिंग: कमिटी ने कहा कि विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी होने के लिए भारतीय कंपनियों के लिए फाइनांसिंग की लागत वैश्विक दर के बराबर होनी चाहिए। इसे प्राप्त करने के लिए कमिटी ने मंत्रालय को एक समुद्री विकास कोष बनाने पर शीघ्र निर्णय लेने का सुझाव दिया।
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