स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री वी. विजयसाई रेड्डी) ने 10 अगस्त, 2023 को 'हवाई किराये के निर्धारण का मुद्दा' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। 1994 से पहले केंद्र सरकार वायु निगम एक्ट, 1953 के तहत हवाई किराए का पूरी तरह से रेगुलेशन करती थी। इसे 1994 में डीरेगुलेट किया गया और वर्तमान में एयरक्राफ्ट एक्ट, 1934 के तहत निर्धारित नियमों के जरिए हवाई किराए का प्रबंधन किया जाता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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हवाई किराये को निर्धारित करने के लिए मौजूदा संरचना: विमान नियम, 1937 के तहत एयरलाइंस को उचित लाभ और आम तौर पर प्रचलित शुल्क को ध्यान में रखते हुए शुल्क तय करना होता है। किराये की निगरानी के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) जिम्मेदार है। यह उन एयरलाइंस को निर्देश जारी कर सकता है जो अत्यधिक कीमतें वसूलती हैं, या अल्पाधिकारवादी कार्य पद्धतियों में संलग्न हैं। एयरलाइंस को इन निर्देशों का पालन करना चाहिए।
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कमिटी ने कहा कि डीजीसीए की निगरानी के बावजूद एयरलाइंस अधिक शुल्क वसूलती हैं जिससे हवाई किराए में वृद्धि होती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय हवाई शुल्कों को रेगुलेट करने के लिए डीजीसीए को अधिकार दे। उसने सेबी की तर्ज पर एक निगरानी निकाय के गठन का भी सुझाव दिया जिसके पास उचित शुल्क को प्रभावी बनाने के लिए अर्ध-न्यायिक शक्तियां हों।
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उचित लाभ की परिभाषा: कमिटी ने गौर किया कि उचित लाभ को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है जिससे मनमाने तरीके से कार्य किया जाता है। इसके अलावा एयरलाइंस लागत-वसूली मॉडल पर कीमतें तय करती हैं और उचित मुनाफे पर विचार नहीं करतीं। कमिटी ने कहा कि उचित लाभ को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए और एयरलाइंस को इस आधार पर टैरिफ तय करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
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वहनीयता (एफोर्डेबिलिटी) और क्षेत्र का विकास: मंत्रालय ने कहा कि क्षेत्र के विकास के लिए शुल्क का रेगुलेशन वांछनीय नहीं है। कमिटी ने इस पर अपनी असहमति जताई और दोहराया कि यात्रियों के साथ उचित बर्ताव होना चाहिए। उसने यह भी कहा कि वर्तमान में एयरलाइंस अपने व्यवसाय के हिसाब से उचित हवाई किराया वसूलने के लिए स्वतंत्र हैं और सरकार सीट बुकिंग शुल्क की निगरानी नहीं करती है। हालांकि ज्यादातर एयरलाइंस को कोविड-19 महामारी के कारण घाटा हुआ है, कमिटी ने कहा कि यात्री और एयरलाइन हितों के बीच संतुलन होना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय आपदाओं के दौरान शुल्क में बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए अपनी शुल्क नीति पर दोबारा विचार करे।
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एविएशन टर्बाइन ईंधन (एटीएफ): एयरलाइंस की कुल परिचालन लागत में एटीएफ का हिस्सा लगभग 40% है। एटीएफ की कीमतें अंतरराष्ट्रीय उत्पाद कीमतों और रुपए के मूल्य से प्रभावित होती हैं। मूल्य वर्धित कर (वैट), सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क लगाने से भी एटीएफ महंगा होता है। इसका असर भारतीय एयरलाइंस की वित्तीय व्यवहार्यता और उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता पर पड़ता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि एटीएफ पर कर कम किया जाए और सभी राज्यों में एक समान कर लगाया जाए।
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हवाई किराए पर हवाई अड्डा शुल्क का प्रभाव: हवाई किराए में हवाई अड्डे के ऑपरेटरों द्वारा लगाए गए विभिन्न शुल्क/प्रभार शामिल होते हैं। इनमें उपयोगकर्ता विकास शुल्क, यात्री सेवा शुल्क और सामान्य उपयोग टर्मिनल उपकरण शुल्क शामिल हैं। कमिटी ने इस तरह की फीस में व्यापक भिन्नताएं देखी, जिससे हवाई किराए में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटर्स के 12 निजी हवाई अड्डों में से केवल चार ही ईंधन अवसंरचना शुल्क लेते हैं। इसी तरह, पार्किंग शुल्क तीन रुपए प्रति मीट्रिक टन/घंटा से लेकर 99 रुपए प्रति मीट्रिक टन/घंटा तक होता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि हवाई अड्डा आर्थिक रेगुलेटरी प्राधिकरण हवाई किराया घटकों को कम करने की व्यावहारिकता का आकलन करे और मंत्रालय सभी हवाई अड्डों पर एक समान शुल्क स्थापित करे।
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मूल्यों में परिवर्तन और अनबंडलिंग: कम भुगतान करने वाले ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए एयरलाइंस अपनी फ्लाइट सीटों का एक हिस्सा औसत लागत से कम कीमत पर बेचती हैं। कमिटी ने कहा कि कीमतें तय करने के लिए किसी निश्चित मॉडल का पालन नहीं किया जाता है और खाली सीटें अधिक या कम कीमत पर बेची जा सकती हैं। सीट की कीमतों में व्यापक अंतर को ध्यान में रखते हुए कमिटी ने कहा कि क्या किराए में अत्यधिक वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए कोई फॉर्मूला तैयार किया जा सकता है। यह भी कहा गया कि सीट की कीमतें अनबंडलिंग के कारण एक ही उड़ान पर भिन्न होती हैं, जहां आधार मूल्य बहुत कम होता है और सुविधाओं के लिए ऐड-ऑन के रूप में शुल्क लिया जाता है। कमिटी ने इस व्यवस्था पर फिर से विचार करने का सुझाव दिया क्योंकि यह समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।
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कम लागत वाले करियर्स की कीमतें: कमिटी ने कहा कि कम लागत वाली एयरलाइंस पूर्ण-सेवा एयरलाइंस की तुलना में समान मार्गों पर अधिक किराया वसूलती हैं। ऐसा इसके बावजूद है कि कम लागत वाले करियर्स विमान में मुफ्त भोजन, आरामदायक सीटें और लॉयल्टी लाभ जैसी कम सेवाएं प्रदान करते हैं। कम लागत वाले करियर्स के पास हवाई किराया तय करने के लिए कोई निश्चित मानदंड नहीं है, और वे बाजार की गतिशीलता से निर्धारित होते हैं। कमिटी ने कहा कि बाजार की गतिशीलता शब्द व्यापक और अनिश्चित है, और सुझाव दिया कि मंत्रालय ऐसे किरायों की निगरानी और उनका समाधान करे।
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